ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

  'ग्राह्य' योग्य है यह 'ग्रहण' और आपकी राशियों और व्यापार पर क्या पड़ेगा प्रभाव (शोधपूर्ण आलेख)

       'ग्राह्य' योग्य है यह 'ग्रहण'  और आपकी राशियों और व्यापार पर क्या पड़ेगा प्रभाव (शोधपूर्ण आलेख)

'ग्राह्य' योग्य है यह 'ग्रहण' पर केन्द्रीत आलेख  क्योंकि इसमें  राहु के  साथ  ही 'केतु ' के खगोलीय अस्तित्व  और  'ग्रहण कारकत्व' का  'साइंटिफिक'  शोध पूर्ण आलेख .....

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे

  प्रिय मित्रों/साथियों/ फॉलोवर आत्मीयजनों ..नमस्कार

  इस बार रक्षाबंधन को  7-8-2017 को खण्डग्रास  चंद्र ग्रहण  हो रहा है तो मैं आप लोगों को साईंटिफिक ढंग से  सूर्य और चंद्र ग्रहणों में  ''केतु के अस्तित्व '' के बारे में बात करेंगे, आईए इसके पूर्व एक बार फिर श्रावण पुर्णिमा को लगने वाले खण्ड ग्रास चंद्रग्रहण के  बारे में भी बताये देता हुं. जिसका विवरण इस प्रकार है... यह ग्रहण श्रावण पूर्णिमा को 7 एवं 8 अगस्त 2017 की मध्यगत रात्रि को सम्पूर्ण भारत में खंडग्रास के रुप में दिखाई देगा  विवरण इस प्रकार है ग्रहण का प्रारंभ 10:52:56pm 7-8-2017 एवं ग्रहण का मध्य 11:50:29pm  7-8-2017 और ग्रहण का मोक्ष( समाप्त) 12:48:09 am 8-8-2017, सूतक का निर्णय  7/8/2017   दोपहर 1:53 से  लगेंगे अतः आप सभी रक्षाबंधन प्रात: से  दोपहर 1:53  से पहले धूमधाम से मनाया जाना चाहिये क्योंकि इस दिन  भद्रा का विचार नहीं किया जाना चाहिये! 

ज्योतिष में दो प्रकार के केतुओं का उल्लेख पाया जाता है। एक केतु तो चंद्रमा का अवरोही पात  जिसे अंग्रेजी में Descending Node कहते हैं,  जो क्रांतिवृत्त पर आरोही पात (Ascending Node) अर्थात् राहु के सामने 1800 के अंतर पर स्थित होता है और दूसरा केतु धूमकेतु (पुच्छल तारा अथवा Coment ) होता है, जिनका वर्णन वराहमिहिर की वृहत्संहिता के केतुचार नामक अध्याय में पाया जाता है। यहाँ हम पहले केतु के बारे में विचार करेंगे।

मुझे  अपने शिक्षाकाल का वो दौर संस्मरण आ रहा है जब  बांस को फाड़कर पतले बांस की प्रतंचानुमा बांस के  अलग-अलग टुकड़ो  से 'गोल' बनाते थे और गुरूदेव डॉ.रामचंद्र पाण्डेय जी उसे ठीक ठीक ग्रहों की प्रतिस्थापना करके ''खगोलीय घटनाओं पर विस्तृत जानकारी देते'' उसी क्रम में 

 जब हम लोगों को इस केतु का नाम राहु के साथ जु़डा हुआ है। राहु-केतु का ज्योतिष मे  विशिष्ट स्थान है। ज्योतिष में राहु-केतु सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण के कारक माने जाते हैं। राहु-केतु को कुछ लोग छाया ग्रह कहते हैं, तो कुछ कटान बिन्दु कहते हैं।

खगोलीय दृष्टि से राहु-केतु चंद्रमा के पातबिन्दु (Node) हैं। पातबिंदु क्रान्तिवृृत्त (सूर्य का प्रतीयमान मार्ग) पर वे बिंदु होते हैं, जिस स्थान पर चंद्रमा अथवा कोई ग्रह क्रान्तिवृत्त को काटकर एक बार दक्षिण से उत्तर की ओर एवं दूसरी बार उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं। जब वे क्रान्तिवृत्त (Ascending Node) को काटकर दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं तो उस बिंदु को आरोही पात (Ascending Node) एवं जब वे उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं, तो उस बिंदु को अवरोही पात (Descending Node) कहते हैं। चंद्रमा के आरोही पात को राहु एवं अवरोही पात को केतु कहते हैं। ये दोनों पात बिंदु क्रान्तिवृत्त पर आमने-सामने 180 Degree के अंतर पर स्थित होते हैं।

क्रान्तिवृत्त से उत्तर अथवा दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को शर (Celestial Latitude) कहते हैं। चूँकि क्रान्तिवृत्त सूर्य का प्रतीयमान मार्ग है अत: सूर्य का शर सदैव शून्य होता है। चंद्रमा अथवा ग्रह जब अपने पात बिंदु पर होते हैं, उस समय वे क्रान्तिवृत्त पर होते हैं और उस समय उनका शर शून्य होता है। चंद्रमा अथवा ग्रहों के परम शर अलग-अलग होते हैं अर्थात वे क्रान्तिवृत्त से अलग-अलग दूरी तक उत्तर अथवा दक्षिण की ओर जाते हैं। उदाहरण के लिए चंद्रमा का परम शर 50 9" होता है अर्थात् चंद्रमा क्रान्तिवृत्त से 5.9 Degree" तक उत्तर की ओर एवं उतना ही दक्षिण की ओर चले जाते हैं। इसी प्रकार बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति एवं शनि के औसत परम शर क्रमश: 7.0", 3.24", 1.51", 1.18", 2.29 Degree" होते हैं। चंद्रमा के पात बिंदु निम्नलिखित चित्र से स्पष्ट हैं -

राहु-केतु : चंद्रमा एवं ग्रहों के पात बिंदु स्थिर नहीं होते हैं। ये भी क्रान्तिवृत्त पर भ्रमण करते रहते हैं। चंद्रमा के पात बिंदु (राहु-केतु) 6793.5 दिन (अर्थात 18.6 वर्ष) में वक्र गति से एक भगण (चक्कर) पूरा करते हैं। एक वर्ष में ये 19.21 Degree" एवं एक दिन में 3' 11"  की वक्र गति से क्रान्तिवृत्त पर संचरण करते हैं। अमावस्या अथवा पूर्णिमा को यदि ये पात बिंदु (राहु अथवा केतु) सूर्य के पास हों तो क्रमश: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प़डते हैं। चँूकि सूर्य का एक भगण (पृथ्वी का परिक्रमण) 365.2564 दिन में मार्गी गति में तथा चंद्रपात (राहु अथवा केतु) का एक भगण 6793.5 दिन में वक्र गति में होता है अत: सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति 346.62 (= 1(365.2564+6793.5) दिन में होती है। यह सूर्य के साथ राहु से राहु अथवा केतु से केतु तक की युति की अवधि है। चूँकि राहु एवं केतु एक-दूसरे के आमने-सामने स्थित होते हैं अत: राहु से केतु अथवा केतु से राहु तक, सूर्य की युति होने में 173.31 दिन (346.62 दिन का आधा समय) लगते हैं। पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रता के कारण यह अवधि 1.67 प्रतिशत (अर्थात् 2.89 दिन) न्यूनाधिक हो सकती है।

यह हम जानते हैं कि सूर्यग्रहण के समय चंद्रमा, सूर्य को एवं चंद्रग्रहण के समय पृथ्वी की छाया चंद्रमा को ढक लेती है। आर्यभट्ट ने भी कहा है - च्च्छादयति शशि: सूर्य शशिनं महती च भूच्छायाज्ज्। सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण तभी संभव होते हैं, जब सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय (Longitudinalद्य) (पूर्व-पश्चिम) अंतर शून्य अथवा 1800 के आसपास हो जाए, चँूकि सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय (पूर्व-पश्चिम) अंतर तो प्रत्येक अमावस्या को शून्य एवं पूर्णिमा को 1800 हो जाता है परन्तु उनका शरीय (उत्तर-दक्षिण) अंतर प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को शून्य नहीं होता है अत: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को नहीं प़डते हैं। सूर्य एवं चंद्रमा का शरीय अंतर शून्य तभी होगा, जब चंद्रमा अपने पात बिंदु (राहु अथवा केतु) के पास स्थित हों। ऎसा यदि अमावस्या अथवा पूर्णिमा को हो तो ही क्रमश: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प़डते हैं। इससे स्पष्ट है कि अमावस्या अथवा पूर्णिमा को सूर्य के पास राहु अथवा केतु की युति होने के कारण ही क्रमश: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प़डते हैं।

अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय सूर्य एवं चंद्रमा दोनों की युति एक साथ या तो राहु से होती है या केतु से होती है क्योंकि अमावस्या को सूर्य एवं चंद्रमा एक साथ होते हैं। पूर्णमासी को चंद्रग्रहण के समय सूर्य एवं चंद्रमा की युतियां भिन्न-भिन्न होती हैं। उस समय यदि सूर्य की युति राहु से होती है तो चंद्रमा की युति केतु से होती है अथवा यदि सूर्य की युति केतु से होती है तो चंद्रमा की युति राहु से होती है क्योंकि पूर्णमासी को सूर्य एवं चंद्रमा आमने-सामने स्थित होते हैं। औसतन 173.31 दिन (लगभग पौने छ: माह) के अंतराल के बाद जब ग्रहण पुनरावृत्त होते हैं तब राहु अथवा केतु के साथ की ये युतियां आपस में बदल जाती हैं। राहु अथवा केतु के पास जब चंद्रमा होते हैं, तब चंद्रमा का शर शून्य होता है। राहु अथवा केतु से ज्यों-ज्यों चंद्रमा का भोगांशीय अंतर 90 Degree"  तक बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों चंद्रमा का शर भी बढ़ता जाता है। राहु अथवा केतु से चंद्रमा का भोगांशीय अंतर जब 90 Degree" हो जाता है तब चंद्रमा अपने परम शर 5.9 Degree" कला पर होते हैं। राहु अथवा केतु से ज्यों-ज्यों चंद्रमा का भोगांशीय अंतर 90 Degree" से अधिक बढ़ने लगता है, त्यों-त्यों चंद्रमा का शर पुन: घटने लग जाता है। इस प्रकार चंद्रमा का शर उसके राहु अथवा केतु से भोगांशीय अंतर के साथ-साथ घटता-बढ़ता रहता है।

यदि अमावस्या को सूर्य से राहु अथवा केतु का भोगांशीय (पूर्व-पश्चिम) अंतर 15 Degree से कम हो तो निश्चित रूप से सूर्यग्रहण प़डता है। यदि यह अंतर 15 एवं 18 Degree" के बीच हो तो सूर्यग्रहण प़ड भी सकता है और नहीं भी प़ड सकता है। यह पृथ्वी से सूर्य एवं चंद्रमा की तात्कालिक दूरी पर निर्भर करेगा। यदि अमावस्या को सूर्य से राहु अथवा केतु का भोगांशीय अंतर 18 Degree से अधिक हो तो सूर्यग्रहण कदापि नहीं प़डेगा। इसी प्रकार यदि पूर्णिमा को सूर्य से राहु अथवा केतु का भोगांशीय अंतर 9 Degree से कम हो तो निश्चित रूप से चंद्रग्रहण प़डता है। यदि यह अंतर 9 Degree एवं 12 Degree के बीच हो तो चंद्रग्रहण प़ड भी सकता है और नही भी प़ड सकता है। यह पृथ्वी से सूर्य एवं चंद्रमा की तात्कालिक दूरी पर निर्भर करेगा। यदि पूर्णिमा को सूर्य से राहु अथवा केतु का भोगांशीय अंतर 12 Degree से अधिक हो तो चंद्रग्रहण कदापि नहीं प़डेगा। अमावस्या अथवा पूर्णिमा को सूर्य से राहु अथवा केतु का भोगांशीय अंतर जितना कम होगा, ग्रहण का परिमाण उतना ही अधिक होगा।

चूंकि सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति औसतन 173.31 दिन में होती है अत: इस युति के आस-पास जो भी अमावस्या अथवा पूर्णिमा प़डेगी, उसको क्रमश: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण निश्चित रूप से प़डेंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 2007 में सूर्य की राहु५ एवं केतु से युति के कारण निम्नानुसार सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण होंगे।

उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि सूर्य के साथ राहु-केतु की युति से पूर्व पूर्णिमा प़डने पर चंद्रग्रहण किंतु युति के पश्चात् अमावस्या प़डने पर सूर्यग्रहण प़ड रहा है। इसी प्रकार सूर्य के साथ चंद्रपातों (राहु अथवा केतु) की युति के कारण सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण औसतन 173.31 दिन के अंतराल में प़डते रहते हैं।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सूर्यग्रहण सूर्य से राहु अथवा केतु के 180 के भोगांशीय अंतर तक प़ड जाता है, जबकि चंद्रग्रहण 12 Degree के भोगांशीय अंतर के बाद नहीं प़डता है

इसी कारण चंद्रग्रहणों से सूर्यग्रहणों की संख्या लगभग डेढ़ गुना (18 भाग 12) अधिक होती है, परंतु हमको सूर्यग्रहणों से चंद्रग्रहण अधिक संख्या में प़डते हुए दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि चंद्रग्रहण संपूर्ण पृथ्वी पर जहाँ भी रात हो, दिखाई देता है जबकि सूर्यग्रहण लम्बन ( Parallax ) के कारण पृथ्वी के थो़डे से भाग पर ही दिखाई देता है। इसी कारण किसी स्थान विशेष से हमकोसूर्यग्रहणों से चंद्रग्रहण अधिक संख्या में प़डते हुए दिखाई देते हैं। इसी तथ्य को लेकर एक कविराज ने यह लिख दिया था कि चंद्रमा के सौम्य एवं शीतल होने के कारण राहु-केतु उसको जल्दी-जल्दी ग्रसते रहते  हैं , पुनश्च रक्षाबंधन के पावन पर आप सभी को "ज्योतिष का सूर्य " परिवार की ओर से  अनंत शुभकामनाएं..!

चन्द्रग्रहण  में क्या है वर्जित कार्य :

चंद्रग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के समय  रात्रि में  घर से बाहर नहीं  निकलना चाहिये ! गर्भवती महिलाओं को उनके शरीर के माप का एक काला धागा  'दक्षिणेश्वर  और दक्षिणेश्वरी मंत्र से अभिमंत्रित ' करके कमर में बांधना चाहिये.. इससे प्रसव काल में कोई परेशानियां जच्चे-बच्चे को नहीं होता है, साथ ही गर्भस्थ शीशु को 'बालारिष्ट' का प्रभाव नहीं रहता है ! इससे जुड़े उठ रहे प्रश्नों के लिये आप हमसे  सीधा संपर्क कर सकते हैं मोबाईल नं. 9827198828 (केवल गर्भवती महिलाओं के लिये ही यह सुविधा उपलब्ध है) 

अब आईये मूल विषय पर चलते हैं ग्रहण के दौरान  कामनापरक अनुष्ठान, मैथुन, क्षौर, श्मश्रु: तथा लौहकर्तन यंत्र या डीवाईड करने वाला कोई भी धातु के उस्तरा का प्रयोग वर्जित है  ! साथ ही  भोजन बनाना, खाना या  संबंधित भोज्य सामग्रियों का संचय नहीं करना चाहिये !

चंद्रग्रहण पर करणीय कार्य :

चन्द्र ग्रहण हो या सूर्य ग्रहण दोनों  ही ग्रहणों के स्पर्श  यानी शुरू होते ही स्नान करके  भगवद्भजन, संकीर्तन एवं  अथर्ववेदीय  तंत्रकल्प के मंत्रों को गुरु के सानिध्य में सिद्ध करना चाहिये और जगत का कल्याण करना चाहिये ! गीता, नारायण कवच, विष्णु सहस्त्र स्तोत्र का पाठ करना चाहिये  !

चन्द्रग्रहण का आपकी राशि अनुसार शुभाशुभ फल :

मकरगत चंद्र होंगे जब ग्रहण होगा तब अत: मकर के स्वामी शनि न्यायाधीश हैं अत: इस वित्तीय. वर्ष  २०१७-१८ में  भारत की आर्थिक सम्प्रभुता बढेगी, वहीं भारतीय सत्ता पर सत्तासीन एनडीए का पराक्रम बढेगा, किन्तु भ्रष्ट आचरण, आर्थिक कदाचरण  कर अनाप-श़नाप धन संग्रही राक्षसी शक्तियों का दमन होगा. वहीं  सच्चाई के मार्ग पर चलकर नौकरी/व्यापार करने वाले लोगों को न्यायाधीश शनि विशेष समृद्धवान बनायेंगे.!

   चंद्रग्रहण पर  राशिफल जो आपको प्रभावित कर सकता है  :

मेष- सुख, वृष- माननास, मिथुन- मृत्युतूल्य कष्ट, कर्क- स्त्रीपीड़ा, सिंह- सौख्य, कन्या- चिन्ता, तुला- व्यथा, वृश्चिक- श्री:, धनु- क्षति, मकर- घात, कुंभ- हानि, मीन ,- लाभ

उपरोक्त कुछ राशियों के लिये अशुभ फल कहें गये हैं, किन्तु यदि आप ग्रहण के दौरान खुली आकाश के नचे नहीं जाते हैं तो आप उपरोक्त अशुभफल से बच जायेंगे, दरअसल  मैं  स्वभाविक वास्तविक तथ्य आपके सामने रखा हुं: !नमोनम:

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका

शांतिनगर, भिलाई

मोबाईल नं. 9827198828

(नोट:- इस आलेख का का कॉपी-पेस्ट करना दण्डनीय अपराध है,  फोन पर ज्योतिषिय परामर्श उपलब्ध नहीं है, और परामर्श सशुल्क है)



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