जन्मकुण्डली में देवगुरु वृहस्पति और विंशोत्तरी दशा में शुभाशुभ फल........
"अन्तर्नाद" व्हाट्सएप ग्रुप के सभी सम्मानित सदस्यों को मंगलमयी सुप्रभात..आईये आज देव गुरु वृहस्पति के बारे में विस्तृत चर्चा करें कि आपके जन्मांक में वृहस्पति किस स्थान पर है तो उसका क्या फल होगा...साथ ही विंशोत्तरीय महादशा में वृहस्पति क्या प्रभाव डालता है.?
आईये इसे समझने का प्रयास करते हैं..
गुरु की विशेषता :-
प्रथम, चौथे, पांचवें, नौवें, दसवें स्थान में स्थित गुरू कुण्डली के अधिकतर दोषों को नष्ट कर देता है !
गुरू की महादशा में....
गुरु में गुरु का अन्तर्दशा फल :
गुरू उच्च, स्वक्षेत्री होकर केन्द्रगत हो तो भवन एवं वाहन का योग बनता है!
गुरू में शनि का अन्तर्दशा :-
शनि उच्च, स्वक्षेत्री एवं मूलत्रिकोणी हो अथवा १,४,५,७,९,१०,११ वें भाव मे स्थित हो तो भूमि, धन का लाभ एवं पश्चिम की यात्रा होती है!
इसी प्रकार उपरोक्तानुसार यदि बुध का अन्तर्दशा है तो जातक को मंत्री, आईएस ऑफिसर, धनलाभ एवं पुत्र का लाभ होता है, वहीं केतु की अन्तर्दशा में शासकीय नियमों का वेजा लाभ उठाते हुये किये गये अनलीगल कार्यों का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है!
सूर्य उत्तम फलदायी एवं चंद्र कष्टप्रद रहता है साथ ही मंगल भूमि, भवन तथा यशस्वी बनाता है! गुरु की महादशा में राहु विदेश यात्रा और ख्याति दिलाता है, किन्तु उपरोक्त ग्रहों का शुभ फल यदि वह ग्रह ६,८,१२ वें भाव में हैं तो वह विपरित प्रभाव कारी होते हैं!
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे,
संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका भिलाई
Mobil no. 09827198828
http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/07/blog-post_15.html?m=1
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