...सरकारी स्कूलों और शिशु मंदिरों की बजाय मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों मे पढ़ा हुआ 12 वीं का छात्र पूछता है .what is veda ...?
Hrishikesh Tripathi, फेसबुक पर श्री हृषिकेश त्रिपाठी जी ने बलराम पुर के कलेक्टर श्री अवनीश जी के द्वारा अपनी बीटिया का दाखिला सरकारी स्कूलों कराया इस विषय पर चर्चा चल रही थी की....तपाक़ से मैंने भी कुछ शब्द-सागर की धार प्रवाहीत की...जरा आप भी पढ़ें......
सर्वप्रथम तो श्री अवनीश जी को बहुत बहुत धन्यवाद की इन्होंने अपनी बीटिया का दाखिला सरकारी स्कूल में कराया.और उम्मीद है कि रमन सरकार छत्तीसगढ़ में विकास का आडम्बर छोड़ यहां की शिक्षण व्यवस्था को सुधारें.और परिवहन विभाग के पैरलर चल रहे अवैध वसूली चेकपोस्टो पर उस पर ध्यान देने की बजाय...यहां के शिक्षाकर्मियों पर ध्यान दें...क्योंकि उन शिक्षा कर्मियों को तीन तीन माह में ले देकर पेमेंट हो पाता है...श्री अवनीश जी ने अपनी बीटिया का सरकारी स्कूल में दाखिला कराने को रमन सरकार की उपलब्धि से बिल्कुल नहीं जोड़ा जाना चाहिये.और श्री हृषिकेश त्रिपाठी जी ने ऐसा नहीं किया इसकी हमें खुशी है.......हां इस बात का मैं समर्थन करता हुं की श्री अवनीश जी ने जो किया वह काब़िले तारीफ है उनके इस कदम से जहां छत्तीसगढ़ में अफसरशाही बनाम लार्डशाही का खूब खेल चल रहा है वहीं इस सिस्टम को तमाचा है जो राजनीतिकऔर जातिगत, व सामाजिक वोटबैंक के आधार पर डीआईओएस तय किये जाते हैं ....मैं श्री अवनीश जी के इस कदम को दूसरे पहलु से लेना चाहता हुं वे स्वतः उच्च अधिकारी हैं वे कुछ नया व समाज के हित में काम करने की जज्बा रखते हैं उन्होंने छत्तीसगढ़ की शासकीय शिक्षण-व्यवस्था को सुदृढ़ करनेने हेतु रमन सरकार के ध्यानाकर्षण के लिये इससे बेहतर कोई और मार्ग नहीं हो सकता...शायद चना फ्री, धान फ्री, फलाने फ्री, ढ़िमका फ्री की हैसियत से चुनाव जीतने वाले नेताओं की नींद टूट जाये.. ..अब थोड़ा सा डिफरेंट एंगल...श्री हृषिकेश त्रिपाठी जी....बात यह नहीं है की शासकीय अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिले लें या वे अधिकारी देश की आवाम को सरकारी स्कूलों में बच्चों के दाखिले के लिये प्रोत्साहित करें ...बल्कि सवाल इस बात की है की हमारे देश के भीड़ तंत्र ने आखिर प्राईवेट स्कूलों को इतना तवज्जो क्यों दिया करते हैं...वो भी तब जब ये प्राईवेट स्कूल घुड़सवारी से लेकर स्वीमिंग पुल तथा काला लाल पीला हरे रंग के प्रतिदिन वार के अनुसार स्कूल से तय किये गये पौष्टिक व्यंजनों से भरे बैग तथा दिन के हिसाब से उनके महंगे महंगे डीजाईनर ड्रेसेस ...की चकाचौंध के फेरे में हम जानबूझकर स्वयं को शोषण के सागर में गोते लगाने क्यों चले जाते हैं..इस विषय पर विचार करने की आवश्यकता है...क्या उस स्कूल में हमने नैतिक शिक्षा तथा वगैर ताम-झाम के विषयवार सतही ज्ञान या पारंगत पठन-पाठन की बजाय दिखावा..
के लिये भेजते हैं यह सोचते हुए की .देखो मेरा बच्चा 5000 इससे और भी अधिक रुपये महिने फीस वाले स्कूलों में पढ़ने जाता है...मेरा रूतबा है मैं बड़ा आदमी हुं...आदि स्टैण्डर्ड की सोच ने हमें जान-बूझकर .प्राईवेट स्कूलों में ढ़केलता है...दिलचस्प बात तो यह है कि यदि प्राईवेट स्कूलों मे ही दाखिला लेनी है तो हमारे देश में नैतिक शिक्षा तथा वगैर ताम-झाम के विषयवार पारंगतता प्रदाता एवं भारतीय प्रागैतिहासिकता को जीवंत बनाने/पढ़ाने/ बताने व वाली देश की सबसे बड़ी गैर सरकारी शिक्षण-संस्थान सरस्वती शिशु मंदिर जो पूरे भारत में लगभग 110000 (एक लाख दश हजार ) की संख्या में हैं, ऐसी संस्थाओं में हम बच्चों को न भेजने के अलावां मीशनरियों द्वारा महंगे महंगे स्कूूलों में बच्चों को पढ़ने के लिये भेजते हैं और वो बच्चा जब उस स्कूल में केजी-1 से 12 वीं में पहुंचता है तो ....अपने पापा से पूछता है...पापा हमारे देश में वेद की बड़ी चर्चा होती है..what is veda ...?
लानत हो हमारे देश की मीडिया और धन्यवाद हो सोशल मीडिया ..जिन्होंने ऐसे महान शख्सियत को सुर्खियों में ला दिया...और जरा आप सोचिये ...हमें श्री अवनीश जी के इस कदम ने हमे स्वयं की समीक्षा करने को क्यों मजबूर किया.केवल अधिकारियों को ही क्यों, क्या हम सभी भारतीय लोगों को इस विषय पर सतही चिन्तन व मनन नहीं करना चाहिये....नमन ऐसे महान शख्सियत को धन्यवाद श्री अवनीश जी
- पण्डित विनोेद चौबे, संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें