व्रतोपवास में जरूरी है यह पालनीय नियम....
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असकृज्जलपानाच्च सक्रुताम्बूलभक्षणात ।
उपवासः प्रणश्येत दिवास्वापाच्च मैथुनात ॥
(विष्णु पुराण)
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क्षमा सत्यं दया दानं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
देवपूजाग्निहवनं संतोषः स्तेयवर्जनम् ॥
सर्वव्रतेष्वयं धर्मः सामान्यो दशधा स्थितः । (भविष्यपुराण)
सरल भावार्थ - व्रतके समय बार-बार जल पीने, दिनमें सोने, ताम्बूल चबाने और स्त्री-सहवास करनेसे व्रत बिगड़ जाता है ।
व्रतके दिनोंमें स्तेय (चोरी) आदिसे वर्जित रहकर क्षमा, दया, दान, शौच, इन्द्रियनिग्रह, देवपूजा, अग्निहोत्र और संतोष के कार्यों को करना उचित और बेहद आवश्यक है ।
"ज्योतिष का सूर्य" मासिक पत्रिका, भिलाई
"धर्म-कर्म डेस्क" 9827198828
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