ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:

 नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
कोई भी वस्तु भगवती को समर्पित करने से पूर्व ॐभू र्भुव:स्व: ॐऐं ह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चे।इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करें।
नवरात्रके प्रथम दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रिया संपन्न कर अर्चना का संकल्प लेना चाहिए। मां अष्टभुजीदुर्गा की अर्चना के समय शुद्ध आसन पर बैठकर आचमन, पवित्री धारण, शरीर शुद्धि आसन शुद्धि, पूजन सामग्री, रक्षादीपप्रज्वालन, स्वस्ति वाचन, पूजा संकल्प तदङ्गभूतश्रीगणेश नवग्रह एवं भगवती गौरी का स्मरण पूर्वक पूजन करना चाहिए। कलश पूजन के बाद अन्य देवों नवग्रह आदि का पूजन करने के बाद प्रधान देव भगवती की अर्चना संपन्न करनी चाहिए। प्रतिष्ठापित दुर्गा मूर्ति में आह्वान एवं विसर्जन नहीं होता। इनमें ध्यान करके ही पूजा की जाती है।
हाथ में अक्षत लेकर भगवती दुर्गा का ध्यान करें।
ध्यान
विद्युद्दामसमप्रभांमृगपतिस्कन्धस्थितांभीषणाम्।कन्याभि:करवाल खेट विलसद्धस्ताभिरासेविताम्।।हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिषांश्चापं गुणंतर्जनीम्।बिभ्राणामनलात्मिकांशशिधरांदुर्गा त्रिनेत्रांभजे।।
ॐभू र्भुव:स्व: ॐऐं ह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चे।ध्यानार्थेपुष्पं समर्पयामि।ध्यान करके मां दुर्गा के चरणों में अक्षत समर्पित करें।
आसन-
आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के लिए फूल चढाएं-
पाद्य
ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।जल चढाएं-
अ‌र्घ्य
हस्तयोर‌र्घ्यसमर्पयामि। अ‌र्घ्यसमर्पित करें।
आचमन-
स्नानीयं जलंसमर्पयामि। स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि।स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं।
पय:स्नान-
ॐपय: पृथिव्यांपयओषधीषुपयोदिव्यन्तरिक्षेपयोधा:।पयस्वती:प्रदिश:संतु मह्यम्।।पय: स्नानंसमर्पयामि।पय: स्नानान्तेआचमनीयं जलंसमर्पयामि।दूध से स्नान कराएं, पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल चढाएं।
दधिस्नान-
दधिस्नानं समर्पयामि,दधि स्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।दही से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
घृत स्नान-
घृतस्नानं समर्पयामि,घृतस्नानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं।
मधु स्नान-
मधुस्नानंसमर्पयामि, मधुस्नानान्ते आचमनीयंजलं समर्पयामि। मधु से स्नान कराकर आचमन के लिए जल समर्पित करें।
शर्करा स्नान-
शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्तेशुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयं जलं समर्पयामि।शर्करा से स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।
पञ्चमृतस्नान
पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि, शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि। पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं।
गन्धोदकस्नान-
गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि,गन्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंसमर्पयामि।गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।
शुद्धोदकस्नान-
शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि।शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
वस्त्र-
वस्त्रंसमर्पयामि,वस्त्रान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
उपवस्त्र-
उपवस्त्रंसमर्पयामि,उपवस्त्रान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि। उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
यज्ञोपवीत-
यज्ञोपवीतंपरपमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्यंप्रतिमुञ्चशुभ्रंयज्ञांपवीतंबलमस्तुतेज:।। यज्ञोपवीतं समर्पयामि।यज्ञोपवीत समर्पित करें।
गंध-अर्पण
गन्धानुलेपनंसमर्पयामि।-चंदनउपलेपित करें।
सुगंधित द्रव्य-
सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।सुगंधित द्रव्य चढाएं।
अक्षत-
अक्षतान्समर्पयामि।अक्षत चढाएं।
पुष्पमाला-पुष्पमालां समर्पयामि।
पुष्पमाला चढाएं।
बिल्व पत्र-बिल्वपत्राणि समर्पयामि।बिल्व पत्र समर्पित करें।
नाना परिमलद्रव्य-नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि।
विविध परिमल द्रव्य चढाएं
धूप-धूपंमाघ्रापयामि।-धूप अर्पित करें।
दीप-दीपं दर्शयामि।
दीप दिखलाएं और हाथ धो लें।
नैवेद्य-नैवेद्यं निवेदायामि।नैवेद्यान्तेध्यानम्
ध्यानान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।नैवेद्य निवेदित करे, तदनंतर भगवान का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं।
ऋतुफल-ॐया: फलिनीर्याअफलाअपुष्पाश्चपुष्पिणी:
बृहस्पति प्रर्सूतास्तानो<न् द्धह्मद्गद्घ="द्वड्डद्बद्यह्लश्र:मुञ्चन्त्व">मुञ्चन्त्व्हस:।।
ऋतुफलानिसमर्पयामि।
ऋतुफलसमर्पित करें।
ताम्बूल पुंगीफल-
मुखवासार्थेसपुंगीफलंताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।पान और सुपारी चढाएं।
दक्षिणा-
कृताया:पूजाया:साद्रुण्यार्थेद्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें।
आरती-
कर्पूरार्तिक्यंदीपंदर्शयामि।
कपूर से भगवती की आरती करें।
इसके बाद पुष्पांजलि अर्पित कर क्षमा प्रार्थना करें।

कोई टिप्पणी नहीं: