ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

*धर्म-संस्कृति अलंकरण, समारोह की रुपरेखा तय की गई*


*धर्म-संस्कृति अलंकरण, समारोह की रुपरेखा तय की गई*

रुन झुन भरी मीठी मीठी धुन की आनंद वल्लभ संगीत बजने लगी मै और भाई अनुज जी साथ ही बहन साधना जी का सहसा ध्यान गया तो ध्यान आया की यह, किसी के मोबाईल की आवाज़ है, विषयवार बातचीत में मशगुल आदरणीय कनिराम जी का ही सेलफोन था , उन्होंने फोन रिसीव किया... उधर से फोन लगाने वाले व्यक्ति ने प्रश्न किया.... आप कहां हैं ? कनिराम जी ने ठहाके लगाते हुए जवाब दिया .मेरे पैर में *चक्र* है जिसकी वजह से सतत भ्रमण करते रहना हमारी प्रवृत्ति बन चुकी है..(लंबी सांस लेते हुए) ... मैं पण्डित चौबे जी के यहां से होते हुए... भिलाई के रिसाली में साधना बहन के माताजी से मिलने आया था ! और अब दुर्ग के *ताम्रकार* जी के यहां जाऊंगा.... साथियों.... लंबे प्रवास के बाद *चरैवेति चरैवेति* के सिद्धांत की अवधारणा के अवगाहक आदरणीय *कनिरामजी* का आज भिलाई प्रवास था ! साथ में भाई *अनुज नारद* जी श्री ताम्रकार जी की बहुत सुन्दर उपस्थिति रही ! आज *देवोत्थापिनी एकादशी* के पावन पर्व पर महाराष्ट्र के ग्राम *नेऊरगांवकर* निवासी आदरणीया बहन *साधना जोगलेकर* जी की श्रद्धेय माताजी से मुलाकात उनके भिलाई निवास एचसीएल कॉलोनी रिसाली मे हुई, वाकई वह बेहद भावुक क्षण था , हम लोगों के लिए ! आदरणीया *माताजी* उसी परिवार से हैं जिस परिवार से *संघ* के तृतीय *सरसंघचालक श्रद्धेय देवरस* जी थे ! बेहद प्रसन्नचित्तता भरा दिन रहा ! साथ ही प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले अगस्त मांह में *धर्म-संस्कृति अलंकरण* समारोह इस वर्ष 17/12/2017 रविवार को भिलाई में आयोजित की जा रही है, *धर्म-संस्कृति अलंकरण* समारोह के बारे में विस्तृत बिन्दुवार चर्चा हुई, और उपरोक्त कार्यक्रम का रुपरेखा तय किया गया ! ज्ञात हो की *मायाराम शिक्षण विकास समिति, भिलाई द्वारा* आयोजित किया जाताहै जिसमें सनातन धर्मावलंबी राष्ट्रवादी विचारधारा वाले पांच महान व्यक्तित्वों को *अलंकृत* किया जाता है, जिनका चयन *निर्णायक मण्डल* द्वारा किया जाता है ! उक्त विशेष अवसर पर *ज्योतिष का सूर्य* मासिक पत्रिका के १०० वें अंक का लोकार्पण भी किया जायेगा ! *अन्तर्नाद* व्हाट्सएप ग्रुप के सर्वाधिक *उत्कृष्ट पोस्ट कर्ता* को *अलंकृत किया जाना सुनिश्चित किया गया है ! जिसकी भूमिका आज आदरणीय श्री *कनिरामजी* के मार्गदर्शन में एवं भाई अनुज जी उपस्थिति में रुपरेखा सुनिश्चित की गई ! मैं आपको आश्वस्त करना चाहूंगा की यह विशुद्ध रूप से गैर राजनीतिक कार्यक्रम है , इसमें आप सबकी उपस्थिति प्रार्थनीय है !! वंदे मातरम!!🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾

सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

हिन्दू समाज और कांग्रेस

हिन्दू समाज और कांग्रेस

डॉ विवेक आर्य

उमा भारती जी ने बयान दिया है कि गांधी जी की हत्या के बाद सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को हुआ। राजनीतिक लोग अपनी अपनी सहूलियत के अनुसार बयान देंगे। मगर मैं इतिहासिक दृष्टीकौन से इस बयान पर अपने विचार लिखना चाहूंगा। 1947 का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। जिन्ना मुसलमानों के पैरोकार बनकर अलग इस्लामिक मुल्क की मांग कर रहे थे। वे मुसलमानों का हित देख रहे थे। हिन्दू समाज का उस काल में व्यवस्थित राजनीतिक प्रतिनिधि नहीं था। हिन्दू महासभा अभी प्रारंभिक अवस्था में था। इसलिए हिन्दुओं ने कांग्रेस के पर आंख बंदकर विश्वास कर लिया। कांग्रेस में केवल सरदार पटेल हिन्दुओं के समर्थक थे। वहीं गाँधी, नेहरू और मौलाना कलाम दूसरे छोर पर खड़े थे। 1947 से पहले पाकिस्तान के शेखुपुरा और रावलपिंडी में हिन्दुओं का नरसंहार देखकर सरदार पटेल  को आभास हो चूका था कि हिन्दू-मुस्लिम जनता को अदला-बदली शांतिपूर्वक रूप से तो कभी नहीं होगी। हिन्दुओं की रक्षा में वीर सावरकर, भाई परमानन्द और मदन मोहन मालवीय जी प्रभावशाली रूप से सक्रिय थे। जस्टिस मेहरचंद महाजन ने लाहौर को भारत में मिलाने का प्रस्ताव नेहरू से किया था। जिस पर नेहरू ने ध्यान नहीं दिया। 85% हिन्दू बहुलता वाला लाहौर में धर्म के नाम पर ऐसा नंगा नाच हुआ। जिसे देख कर लोगों का मानवता से  विश्वास उठ जाये। जिन्ना ने जिस प्रकार से कश्मीर में कबायली लड़ाके भेजे थे। वैसे ही थरपारकर जो सिंध का हिन्दू बहुल जिला था। उसमें भी भेजे थे। वहां के हिन्दू राजपूत राजा ने जिन्ना से समझौता कर हिन्दू बहुल जिले को पाकिस्तान में मिला दिया। जिसका खामियाजा आज भी वहां की हिन्दू जनता भुगत रही हैं। मुसलमानों के अत्याचारों से सरदार पटेल का कांग्रेस पर विस्थापित हिन्दुओं की सहायता करने का दवाब बढ़ता गया। निरपराध हिन्दुओं को भूखे इस्लामिक कातिलों के समक्ष मरने, लूटने के लिए फेंक देने का दोष हिन्दुओं ने गाँधी, नेहरू और कांग्रेस को दिया। जो गाँधी जी कहते थे कि भारत का विभाजन मेरी लाश के ऊपर होगा, जो नेहरू यह कहते थे कि हिन्दुओं आराम से लाहौर में रहो। लाहौर भारत का भाग बनेगा। वहां न केवल हिन्दुओं की व्यापक हानि हुई, सामूहिक बलात्कार तो आम बात थी। हिन्दू कन्याओं को नंगा कर सड़कों पर घुमाया गया।  हिन्दुओं का पीढ़ियों से नमक खाने वाले मुस्लिम नौकरों ने खोज खोज कर छुपाई गई हिन्दू लड़कियों के पते मुस्लिम दंगाइयों को बताये। हिन्दू लुटते पीटते जाने कैसे दिल्ली आने वाली रेलगाड़ियों में चढ़े तो उन्हें भी लुटा गया। इस नंगे नाच का परिणाम यह निकला कि गाँधी जी की लोकप्रियता उस काल में उनके जीवन के निम्न स्तर पर आ गई। कांग्रेस को लगने लगा था कि उसका जनाधार खिसकता जा रहा है।  देश की राजधानी दिल्ली शरणार्थियों के अस्थायी टेंटों के शहर में परिवर्तित हो गई। गाँधी जी ने हिन्दुओं के घावों पर नमक लगाने के लिए पाकिस्तान को 56 करोड़ रुपये की सहायता देने का प्रण ले लिया। इससे रोषित होकर नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को गाँधी जी की हत्या कर दी। इस घटना से कांग्रेस को मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई। कांग्रेस ने अप्रासंगिक हो चुके गाँधी जी को शहीद घोषित कर दिया।  विभाजित भारत में जहां हिन्दुओं को राजनीतिक वरीयता मिलनी थी। उसे हिन्दुओं से छीन लिया गया। जो सरदार पटेल पीड़ित हिन्दुओं की सहायता करने, उनके पुनर्वास के लिए के लिए प्रेरित थे। उन पर गाँधी जी की हत्या को लेकर नेहरू ने दबाव बनाया। कहां विस्थापित और पीड़ित हिन्दू समाज की सहायता सरकार को करनी थी। उसके विपरीत हिन्दू समाज को गाँधी जी का हत्यारा सिद्ध कर दिया गया। वीर सावरकर सरीखे हिन्दू नेताओं को पकड़ कर जेल में डाला गया और संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। कांग्रेस का उद्देश्य राष्ट्रवादी हिन्दुओं को आतंकित करना था। हिन्दुओं को उनके अधिकारों के स्थान पर गाँधी जी की हत्या का दोषी करारा देना था। इस अवसर का कांग्रेस ने बखूबी लाभ उठाया। भारत को हिन्दू राज्य के स्थान पर सेक्युलर सिद्ध कर दिया। जिन मुसलमानों ने भारत का विभाजन करवाया था। उन्हें अल्पसंख्यक के नाम पर विशेष सुविधाएँ दी। कश्मीर मामले को भी UNO में ले जाकर नासूर बना दिया। मुसलमानों को पाकिस्तान में धकेलने के स्थान पर मिन्नतें कर कर रुकवाया। भारत अगर विशुद्ध हिन्दू राष्ट्र होता तो इजराइल के समान उन्नत राष्ट्र होता। स्वतंत्रत भारत में अंग्रेजों की फुट डालों, राज करो की नीति को यथास्थिति बनाये रखने के लिए मुसलमानों को प्रोत्साहित किया गया। हिन्दु कोड बिल बनाकर हिन्दुओं की जनसंख्या पर रोक लगाई मगर मुसलमानों को जनसंख्या बढ़ाने के लिए पूरा अवसर प्रदान किया। इतिहास का पाठयक्रम ऐसा बनाया गया कि हिन्दू सदा इस्लामिक महान आक्रांताओं से पीटते आये। हिन्दू राजा सदा आपस में लड़ते रहते थे। हिन्दू समाज अन्धविश्वास और छुआछूत से पीड़ित था। इस शिक्षाप्रणाली असर यह निकला कि हिन्दू समाज न केवल यह भूल गया कि उसके साथ पिछले 1200 वर्षों से क्या क्या अत्याचार हुआ, अपितु अत्याचार का विरोध करना भी भूल गया। कहां कहां तक लिखें।
वर्तमान में भी कांग्रेस का यही हिन्दुओं को पीछे से घात करने का खेल अविरल जारी है। कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मुसलमानों का भारत के संसाधनों पर पहला हक बताते है।  कांग्रेस के पूर्व गृहमंत्री शिंदे हिन्दुओं को भगवा आतंकवादी बताते है। दो करोड़ बंगलादेशी मुसलमानों को देश में अवैध रूप से बसाकर हिन्दुओं का जनसंख्या समीकरण बिगाड़ दिया। केरल, बंगाल, आसाम, कश्मीर में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बना दिया।

देवउठनी एकादशी के बाद भी मुहूर्तों की कमी रहेगी


*अन्तर्नाद* मंच के वैष्णव भक्तो आप सभी को देव ग्यारस/देवउठनी एकादशी/प्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर अनंत बधाई एवं शुभकानाएं 

साथियों, देव प्रबोधिनी एकादशी मे देव उत्थापन के बाद सभी मांगलिक कार्य शुरू नहीं हो पायेंगे ! विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए लोगों को केवल 20 ही दिन मिलेंगे।  जिसका कारण है, गुरु व शुक्र तारा अस्त रहना । खरमास के कारणों से लम्बे समय तक विवाह, गृहप्रवेश मुंडन आदि सभी शुभ कार्य रुके रहेंगे। ज्योतिषशास्त्र की गोचर प्रणाली अनुसार श्रीदेव पंचांग रायपुर के अनुसार) आचार्य पण्डित विनोद चौबे 9827198828 Bhilai जी द्वाारा लिखित आलेख के मुताबिक । शुक्र दिनांक 16.12.17 से सोमवार दिनांक 1.02.18 तक अस्त रहेगा। इसके साथ ही देवगुरु बृहस्पति दिनांक 13.10.17  से लेकर गुरुवार दिनांक 09.11.17 तक अस्त रहेंगे। और आज 31.10.17 को देव प्रबोधिनी एकादशी है भगवान विष्णु आज योगनिद्रा से जागृत होंगे !  स्वयंसिद्ध अबूझ मुहूर्त रहेगा।  देेेव पंचांंग के मुताबिक आगामी 7 नवंबर को गुरु उदय होने के बाद विवाह शुरू होंगे परंतु ..... और अधिक जानकारी के लिये इस लिंक पर क्लिक करें....    पहला  23.11.17 को विवाह योग रहेगा तथा  14 दिसम्बर से खरमास लगेगा जो 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास खत्म हो जाएगा लेकिन शुक्र अस्त रहेगा।

वहीं काशीस्थ हृषिकेश पंचांग के मुताबिक 2/3.2.18 को  ही शुक्र उदय हो जा रहे हैैं अत: 4.2.17  शुक्र बालत्व निवृत्ति के साथ ही विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ हो जायेंगे वैसे 8.2.2017 वाला विवाह मुहूर्त उत्तम है! अधिक जानकारी के लिये मात्र मुहूर्त से संबंधित प्रश्न मेरे इस नंबर पर पुछ सकते हैं आचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई 9827198828 !

 खगोल के मुताबिक सूर्य पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है जो अपने ही प्रकाश से चमकता है। अन्य ग्रह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में गुरु एवं शुक्र ग्रह को तारा माना गया है। इनके अस्त हो जाने पर भारतीय ज्योतिष शास्त्र किसी भी प्राणी को शुभकार्य की अनुमति नहीं देता। ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है और ऋग्वेद के अनेक मंत्र यह संकेत देते हैं कि हर बीस महीनों की अवधि के दौरान शुक्र नौ महीने प्रभात काल में अर्थात प्रातः काल पूर्व दिशा में चमकता हुआ दृष्टिगोचर होता है।

गुरु एवं शुक्र के उदयास्त के संबंध में वैदिक साहित्य से भी यह ज्ञात होता है कि गुरु दो से तीन माह तक शुक्र के आसपास ही घूमा करता था। इस अवधि में गुरु कुछ दिनों तक शुक्र के अत्यधिक निकट रहता है लेकिन शुक्र की अपनी स्वाभाविक तेज गति के कारण गुरु पीछे रह जाता है और शुक्र पूर्व दिशा की ओर बढ़ते हुए आगे निकल जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि शुक्र ग्रह का पूर्व दिशा की ओर उदय होता है। इस अस्तोदय की कार्य प्रणाली के पूर्व इतना जरूर निश्चित रहता है कि कुछ समय तक ये दोनों ग्रह साथ-साथ रहते हैं। शुक्र का अर्थ सींचने वाला है। इसके बल के अनुरूप ही पुरुष वीर्यशाली या वीर्यहीन होता है। जब शुक्र ग्रह पृथ्वी के दूसरी ओर चला जाता है तब इसे शुक्र का अस्त होना या डूबना कहते हैं।

गुरु व शुक्र के अस्त के समय विवाह आदि शुभ मांगलिक कार्य करना पूर्णतः वर्जित है। इसी तरह स्वयंवर के लिए भी गुरु व शुक्र के अस्त का समय त्याज्य माना गया है। कोई व्यक्ति पुनर्विवाह करे तो गुरु व शुक्र के अस्त, वेध, लग्न शुद्धि, विवाह विहित मास आदि का कोई दोष नहीं लगता। संक्रामक/गंभीर रोगों की स्थिति में रोगी की जीवन रक्षा हेतु औषधि निर्माण, औषधियों का क्रय आदि एवं औषधि सेवन के लिए गुरु और शुक्र के अस्तकाल का विचार नहीं किया जाता है।

पुराने या मरम्मत किए गए मकान में गृह प्रवेश हेतु गुरु एवं शुक्र के अस्त काल का विचार नहीं किया जाता अर्थात जीर्णोद्धार वाले मकान बनाने के लिए गुरु व शुक्र अस्त काल में प्रवेश कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि शुक्र के अस्त होने पर यात्रा करने से प्रबल शत्रु भी जातक के वशीभूत हो जाता है। शत्रु से सुलह या संधि हो जाती है। शुक्रास्त काल में वशीकरण के प्रयोग शीघ्र सिद्धि देने वाले साबित होते हैं। गुरु व शुक्र के उदय काल में ही वास्तु शांति कर्म करना शुभ माना जाता है, अस्त काल में नहीं।

मित्रों आलेख तो लंबा हो रहा है परन्तु मुझे एक संदर्भ स्मरण हो रहा है हम उसे यहां बताना चाहेंगे हो सकता है आपके मन में कुछ संदेह हो परन्तु कोई बात नहीं मैं छत्तीसगढ़ के भिलाई में स्थित शांतिनगर के सड़क 26 मे रहता हुं और कार्यालय भी यहीं है आप आकर हमसे मिल सकते हैं किन्तु पूर्व मिलने का समय अवश्य ले लेवें मेरा दूरभाष क्रमांक है 9827198828 आईये अब चर्चा शुरु करते हैं   नारायण बलि कर्म गुरु व शुक्र के अस्त काल में करना त्याज्य माना गया है। वृक्षारोपण का कार्य गुरु और शुक्र के अस्त काल में करने से अशुभ लेकिन उदय काल में करने से शुभ फल देता है। शपथ ग्रहण मुहूर्त का विचार करते समय गुरु व शुक्र की शुद्धि आवश्यक होती है, अतएव इन दोनों के अस्त काल में शपथ ग्रहण करना वर्जित है। बच्चों का मुंडन संस्कार इन दोनों ग्रहों के अस्त काल में करना वर्जित है। देव प्रतिष्ठा गुरु व शुक्र के अस्त काल में करनी चाहिए। यात्रा हेतु शुक्र का सामने और दाहिने होना त्याज्य है। वधू का द्विरागमन गुरु व शुक्र के अस्त काल में वर्जित है। यदि आवश्यक हो तो दीपावली के दिन ऋतुवती वधू का द्विरागमन इस काल में कर सकते हैं। राष्ट्र विप्लव, राजपीड़ावस्था, नगर प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, एवं तीर्थयात्रा के समय नववधू को द्विरागमन के लिए शुक्र दोष नहीं लगता। वृद्ध व बाल्य अवस्था रहित शुक्रोदय में मंत्र दीक्षा लेना शुभ माना जाता है!
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
शांतिनगर, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़

महाभारत के वो 18 दिन, युद्ध समीक्षा

पहला दिन :
युद्ध के पहले दिन पांडव पक्ष को भारी हानि हुई थी। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत को शल्य और भीष्म ने मार दिया था। भीष्म ने पांडवों के कई सैनिकों का वध कर दिया था। ये दिन कौरवों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला और पांडव के लिए निराशाजनक था।

दूसरा दिन :
दूसरे दिन पांडवों को अधिक नुकसान नहीं हुआ था। द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया। भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया। भीम ने हजारों कलिंग और निषाद मार गिराए। अर्जुन ने भीष्म को रोके रखा।

तीसरा दिन :
तीसरे दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया। इसके बाद भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, लेकिन अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाते हैं, जिससे श्रीकृष्ण स्वयं ही भीष्म को मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं। तब अर्जुन भरोसा दिलाते हैं कि वे पूरे उत्साह से युद्ध लड़ेंगे।

चौथा दिन :
इस दिन कौरवों अर्जुन को रोक नहीं सके। भीम ने कौरव सेना में हाहाकार मचा दिया। दुर्योधन ने अपनी गजसेना भीम को मारने के लिए भेजी, लेकिन घटोत्कच के साथ मिलकर भीम ने उन सबको मार दिया। भीष्म से अर्जुन और भीम का भयंकर युद्ध हुआ।

पांचवां दिन :
युद्ध के पांचवें दिन भीष्म ने पांडव सेना में खलबली मचा दी। भीष्म को रोकने के लिए अर्जुन और भीम ने उनसे युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य रोके रखा। भीष्म ने सात्यकि को युद्ध से भागने के लिए मजबूर कर दिया।

छठा दिन :
इस दिन भी दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। दुर्योधन क्रोधित होता रहा, लेकिन भीष्म उसे आश्वासन देते रहे और पांचाल सेना का संहार कर दिया।

सातवां दिन :
सातवें दिन अर्जुन कौरव सेना पर हावी हो जाता है। धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है, अर्जुन का पुत्र इरावान विन्द और अनुविन्द को हरा देता है। दिन के अंत में भीष्म पांडव सेना पर हावी हो जाते हैं।

आठवां दिन :
आठवें दिन भी भीष्म पांडव सेना पर हावी रहते हैं। भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देता है, राक्षस अम्बलुष अर्जुन पुत्र इरावान का वध कर देता है। घटोत्कच दुर्योधन को अपनी माया से प्रताड़ित करता है। तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच, भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है। दिन के अंत तक भीम धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।

नवां दिन :
नवें दिन दुर्योधन भीष्म से कर्ण को युद्ध में लाने की बात कहता है, तब भीष्म उसे आश्वासन देते हैं कि या तो श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे या किसी एक पांडव का वध कर देंगे। युद्ध में भीष्म को रोकने के लिए श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है और वे शस्त्र उठा लेते हैं। इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं।

दसवां दिन :
इस दिन पांडव श्रीकृष्ण के कहने पर भीष्म से उनकी मुत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म के बताए उपाय के अनुसार अर्जुन शिखंडी को आगे करके भीष्म पर बाण ही बाण चला देते हैं। अर्जुन के बाणों से भीष्म बाणों की शय्या पर लेट जाते हैं।

ग्याहरवां दिन :
ग्याहरवें दिन कर्ण युद्ध में आ जाता है। कर्ण के कहने पर द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया जाता है। दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे तो युद्ध खत्म हो जाएगा। दुर्योधन की योजना अर्जुन पूरी नहीं होने देता है। कर्ण भी पांडव सेना का भारी संहार करता है।

बारहवां दिन :
युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए शकुनि और दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन समय पर पहुंचकर युधिष्ठिर को बंदी बनने से बचा लेते हैं।

तेरहवां दिन :
इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन से युद्ध करने के लिए भेजता है। भगदत्त भीम को हरा देते हैं, अर्जुन के साथ युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा करते हैं। अर्जुन भगदत्त की आंखो की पट्टी तोड़ देता है, जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है। अर्जुन इस अवस्था में ही उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं। जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, लेकिन निकलना नहीं जानता था। युधिष्ठिर भीम आदि को अभिमन्यु के साथ भेजता है, लेकिन चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ सभी को रोक देता है। केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। वह अकेला ही सभी कौरवों से युद्ध करता है और मारा जाता है। पुत्र अभिमन्यु का अन्याय पूर्ण तरीके से वध हुआ देखकर अर्जुन अगले दिन जयद्रथ वध करने की प्रतिज्ञा ले लेता है और ऐसा न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने को कह देता है।

चौदहवां दिन :
अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव जयद्रथ को बचाने योजना बनाते हैं। द्रोण जयद्रथ को बचाने के लिए उसे सेना के पिछले भाग मे छिपा देते है, लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा किए गए सूर्यास्त के कारण जयद्रथ बाहर आ जाता है और अर्जुन और वध कर देता है। इसी दिन द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।

पंद्रहवां दिन :
इस दिन पाण्डव छल से द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की मृत्यु का विश्वास दिला देते हैं, जिससे निराश हो द्रोण समाधि ले लेते हैं। इस दशा में धृष्टद्युम्न द्रोण का सिर काटकर वध कर देता है।

सोलहवां दिन :
इस दिन कर्ण को कौरव सेनापति बनाया जाता है। इस दिन वह पांडव सेना का भयंकर संहार करता है। कर्ण नकुल-सहदेव को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। भीम दुःशासन का वध कर देता है और उसकी छाती का रक्त पीता है।

सत्रहवां दिन :
सत्रहवें दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है, तब कर्ण पहिया निकालने के लिए नीचे उतरता है और उसी समय श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन कर्ण का वध कर देता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बने, जिसे युधिष्ठिर मार देता है।

अठाहरवां दिन :
इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए सभी भाइयों को मार देता है। सहदेव शकुनि को मार देता है। अपनी पराजय मानकर दुर्योधन एक तालाब मे छिप जाता है, लेकिन पांडव द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है। तब भीम छल से दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करता है, इससे दुर्योधन की मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं।
- साभार

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/18.html?m=1

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

आज रविवार का सांध्य चर्चा

रविवार को पश्चिमी सभ्यता के अवगाहकों ने रविवार को अवकास घोषित कराया जबकी, यह सप्ताह की शुरुआत और तपश्चर्या का दिवस रहता है, आईए आज 'अन्तर्नाद' व्हाट्सएप ग्रुप के साथियों आपको सूर्यवार के बारे बताने की कोशीष करूंगा....
इस मंच के साथियो जैसा की आप जानते हैं, भगवान सूर्य ब्रह्मांड के संचालक हैं। सम्‍पूर्ण ब्रह्मांड उन्‍ही से नियंत्रित है। वह समस्‍त लोकों के स्‍वामी हैं। श्री सूर्य देव ग्रहों के राजा हैं। ब्रह्मांड के न्‍यायाधीश श्री शनि देव के पिता हैं। स्‍वयं नारायण रूप हैं। ब्रहृमा के समान विद्वान हैं। श्री हनुमान जी के गुरु हैं। वह समस्‍त लोकों को प्रकाशमान करते हैं। हालाकी यह आलेख अपने मंच के एक साथी श्री विरेन्द्र पाण्डेय जी ने प्रेषित किये थे ! लेकिन उन्ही के बात को आगे बढ़ाते हुए चर्चा करता हुं.........
अपने जीवन के दुखों को दूर करने का सबसे सरल उपाय है सूर्य उपासना। अगर रोज कर सकें तो अति उत्‍तम और नहीं तो सूर्य आराधना के लिए रविवार का दिन तो उन्‍ही के लिए बना है।
रविवार के दिन सूर्य उपासना के लिए सबसे उत्तम माना गया है। इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने, मंत्र का जाप करने और सूर्य नमस्कार करने से बल, बुद्धि, विद्या, वैभव, तेज, ओज, पराक्रम व दिव्यता आती है। ‘राष्ट्रवर्द्धन’ सूक्त से लिया गया सूर्य का दुर्लभ मंत्र –
‘उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वच:।
यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्न: सपत्नहा।।
सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विष सहि:।
यथाहभेषां वीराणां विराजानि जनस्य च।।’
अर्थात यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मंत्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला बन जाऊं।
प्रतिद्वन्द्वी को नष्ट करने वाला, प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला बन जाऊं, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराए लोगों का शासक बन सकूं।
रविवार तक सूर्य को नित्य रक्त पुष्प डाल कर अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य द्वारा विसर्जित जल को दक्षिण नासिका, नेत्र, कान व भुजा को स्पर्शित करें।
भगवान सूर्य  को अर्घ्य देते समय उच्‍चारित करें –

ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:।
अर्घ्य समर्पयामि।।

भगवान सूर्य ध्यान मंत्र :

ध्येय सदा सविष्तृ मंडल मध्यवर्ती।
नारायण: सर सिंजासन सन्नि: विष्ठ:।।
केयूरवान्मकर कुण्डलवान किरीटी।
हारी हिरण्यमय वपुधृत शंख चक्र।।
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम।
तमोहरि सर्वपापध्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम।।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं योन तन्द्रयते।
चरश्चरैवेति चरेवेति…!
सूर्य नमस्कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्येक बार सूर्य मंत्रो के उच्चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्न है-
ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_29.html?m=1
- 'ज्योतिष का सूर्य, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 9827198828

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

💐 #हम_हिन्दू_बुत_परस्त_नहीं_हैं 💐

💐 #हम_हिन्दू_बुत_परस्त_नहीं_हैं 💐
श्रीराम! कंकड़ पत्थर फेंककर मारने वाले एक पाषाणखण्डको सभी असभ्य तरीकेसे चाटने वाले मुश्लिम,, जिस किसी धातु या प्लास्टिकसे बने बध्यचिन्हको गलेमें लटकाने तथा जहां तहां उसी के स्टीकर , सीमेंट निर्मित बध्य स्तंभ की आकृति को बैठानेवाले क्रिश्चियन तथा कुछ सनकी बिगड़ैल भारतीय दलबाज भी हमेशा यह कहते रहतेहैं कि हिन्दू बुतपरस्त (मूर्तिपूजक) होतेहैं। अतः ये लोग बड़े मूर्ख और निंदनीय हैं।किंतु वास्तविकता यही है कि ये बेचारे खुद ही दयनीय बुद्धि  विकलांग ही है।क्योंकि ये लोग इस रहस्यको नहीं समझते, और मात्सर्य बस संमझ भी नहीं सकते।अथच-
     हम मूर्तिपूजक नहीं हैं, वल्कि मूर्तिमें प्रतिष्ठित देव श्रीभगवनकीही पूजा आराधना करतेहैं। जिस प्रकार पिता माता गुरुजनों की की गई सेवा और प्रणामादि उनके शरीर को नहीं बल्कि शरीर के अधिष्ठाता चेतन आत्माको ही होते हैं, शरीर के माध्यमसे शरीरी आत्माकी ही सेवा पूजा होती है, उस प्रकार प्रतिमा (मूर्ति)को माध्यम बनाकर उसमें अंतर्यामी रूपसे प्रतिष्ठित परमात्माकी ही सेवा पूजा होतीहै, प्रतिमाकी नहीं।।
      साधारण अवस्थावाले जन  मन बुद्धिसे अतीत परमात्मामें अपने मन बुद्धिको नहीं लगा पाते ,अतः ऐसे उपासकों के लिए प्रतिमा के माध्यमसे से समुचित व्यवस्था हो पाती है।गीताजीमें भगवान कहते हैं--
   मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
   श्रद्धया परयोपेता स्ते में युक्ततमो मताः(गीता.१२-२)
अर्थात् जो लोग मेरे साकार स्वरूप(प्रतिमा)में मनको एकाग्र करके एकान्तरति होकर प्रेमके साथ पूजा करतेहैं वे मेरे श्रेष्ठ भक्तहैँ। जो व्यक्ति अव्यक्त (शुद्ध आत्मास्वरूप)की उपासना करता है,वह तभी प्राप्त कर सकताहै, जब कि उसकी सभी इन्द्रियाँ और मन बुद्धि पूर्ण रूपसे वश में हों, अन्यथा नहीं।वश में होने पर भी बड़ी मुश्किल से ही प्राप्ति होतींहै--क्लेशोधिकतरस्तेषाम् अयक्तासक्तचेतसाम्(गी.१२-५)।मेरा शरीर मेरी इन्द्रियाँ, इत्यादि प्रकार से असक्त जीव अव्यक्त स्वरूपको दुःखसे ही प्राप्त कर पाताहै।भगवान् के इन वचनोंसे यह सिद्ध होताहै कि जबतक इन्द्रियाँ पूर्ण वशमें न हो जायें, देहाभिमान नष्टहोकर पूर्ण वैरागयक़ी प्राप्ति न होजाये,तब तक अव्यक्त(निराकार आत्मास्वरूप)की उपासना संभव ही नहींहै।इस असुविधा के कारण ही महर्षियोंने साकार मूर्तिपूजाका सुगम निरापद उपाय बतायाहै।
       जैसे किसी को अधिक सूर्य ताप लेना हो तो दो ही उपाय हैं--सूर्यके पास उड़कर चला जाये, अथवा न जसके तो आतिशी सीसा को लेकर सूर्यके सामने रखे ,और जहां पर उसका उत्ताप केंद्रित हो वहां से ही ले ले।इसी प्रकार जिस साधक के मन बुद्धि अत्यंत निर्मल ही हो चुके हों, वे भले सीधे ही अव्यक्त की उवासना करें, किन्तु सामान्य साधक को तो मूर्तिरूपी सीसे में प्रतिफलित परमात्माकी शक्ति को श्रद्धा आदि द्वारा प्रगट करके भगवान् की उपासना करना ही उपयुक्त है।।
#निवेदनम् - विषय की समाप्ति अग्रिम पोस्ट मे

काली सहस्त्राक्षरी


!! काली सहस्त्राक्षरी मंत्र के साथ मंगलमयी सुप्रभात !! 

क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं स्वाहा

शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीं कामेश्वरी वीं हं वाराहिके 

ह्णीं महामाये खं खः क्रोधाधिपे श्रीमहालक्ष्म्यै सर्वहृदयरञ्जनि

वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिं हसकहल ह्नीं हस्त्रैं ॐ ह्नीं क्लीं मे स्वाहा ॐ ॐ 

ह्नीं ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीं हू ह्नीं स्वाहा खड्‌गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे 

ॐ ह्नीं नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रें विमोहिनी 

सर्वदुष्टान् मोहा मोहय हयग्रीवे सिंहवाहिनी सिंहस्थे अश्वारूढे अश्वमुरिपु 

विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून् मां हिंसितुमुद्यतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले 

वलाकिनी नीलपताके क्रें क्रीं कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके 

सर्वजगद्वशमानय वशमानय मातङ्गिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातड्गिनी 

सर्ववशङ्करी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् 

विनाशिनी उन्मादिनी रों रों रों रों ह्नीं श्रीं हसौं: सौं वद वद क्लीं क्लीं क्लीं क्रीं 

क्रीं क्रीं कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्बरघातिनि कामेश्वरी 

कामिके ह्नं ह्नं क्रीं स्वाहा हृदयालये ॐ ह्नीं क्रीं मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीं ह्नं ह्नीं 

चामुण्डै ह्रदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून् शंखिनी 

क्षतजचर्चितस्तने उन्नतस्तने विष्टंभकारिणि विद्याधिके श्मशानवासिनी 

कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिंहे दक्षिणकालिके 

अनिरुद्‌ध्ये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणि हं कालिके करालिके घोरे 

कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके 

तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथानायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि 

दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपून्दर्शने दर्शय दर्शय 

सिंहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं फट् स्वाहा 

शक्तिरूपायै रों वा गणपायै रों रों रों व्यामोहिनि यंत्रनिके महाकायायै 

प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः 

ब्रह्मरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी 

तंत्रनिके मेघप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनी कुल्ले कुरुकुल्ले

चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्नीं ह्नीं रक्ष रक्ष ज्वालाप्रचण्डचण्डिकेयं 

शक्तिमार्तण्ड भैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्षय आकर्षय पिशिते

पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै

नमो नमः ब्रह्मै नमो नमः माहेश्वर्यैं नमो नमः कौमार्यैं नमो नमः वैष्णव्यैः नमो

नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमौ नमः अपराजितायै

नमो नमः नारसिंहिकायै नमो नमः कालि महाकालीके अनिरुद्धके सरस्वति

फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष

परविद्यां क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके

चीरसिद्धिके कृष्णरूपिणी अजनसिद्धिके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।

(उपरोक्त मंत्र के अनुष्ठान द्वारा भूत, प्रेत या भटकती आत्माओं की शांति किया जा सकता है ऐसा मेरा (आचार्य पण्डित विनोद चौबे9827198828) मानना है कि यदि पूर्व में नेगेटिव्ह एनर्जी है तो वह दैवीय प्रकोप से घर में बार बार अपमृत्यु, अशांति आदि होता वहीं अन्य दिशाओ से नेगेटिव्ह एनर्जी आती है तो वह बाहरी दोष है, जिसकी उपरोक्त  *स्तोत्र*  का पाठ, हवन, बंध आदि करना चाहिये, वगैर गुरुपुजन के बाद ही इसे किया जाना चाहिये :!

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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

आपकी राशि पर शनि के राशि परिवर्तन का क्या होगा शुभाशुभ प्रभाव ??

आपकी राशि पर शनि के राशि परिवर्तन का क्या होगा शुभाशुभ प्रभाव ?? 

शनि न्याय और अनुशासन प्रिय ग्रह हैं। शनि गोचर, साढ़ेसाती और महादशा का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। क्योंकि इसके प्रभाव से मनुष्य के जीवन में बड़े बदलाव होते हैं।
साल की शुरुआत में शनि वृश्चिक राशि में स्थित होगा। 26 जनवरी गुरुवार को शनि वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में गोचर करेगा व 6 अप्रैल से धनु राशि में वक्री हो जाएगा और इसी दौरान 21 जून बुधवार को शनि पुन: वृश्चिक राशि में वापस चला जाएगा। 25 अगस्त को शनि वक्री से मार्गी होगा और इसके बाद दोबारा 26 अक्टूबर गुरुवार को धनु राशि में प्रवेश करेगा। 4 दिसंबर सोमवार को सूर्य के निकट होने से शनि ग्रह अस्त हो जाएगा यानि इसका प्रभाव कम हो जाएगा और यह 8 जनवरी 2018 सोमवार तक इसी अवस्था में रहेगा। शनि ग्रह के इस संचरण का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा। हालांकि प्रत्येक राशि पर इसका असर भिन्न-भिन्न होगा। http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_26.html?m=1

मेष :
मेष राशि वाले जातकों के लिए शनि देव दसवें और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। 10वां भाव नौकरी, व्यवसाय और कर्म को दर्शाता है जबकि 11वां भाव आमदनी, लाभ और सफलता को दर्शाता है। 26 जनवरी को शनि का गोचर धनु राशि में होगा। इस दौरान शनि का गोचर मेष राशि से नौंवे भाव में होगा। इसके परिणामस्वरूप करियर की शुरुआत थोड़ी धीमी होगी। कार्य स्थल पर तनाव और चुनौती का सामना करना पड़ेगा इसलिए हर परिस्थिती में धैर्य बनाए रखें। जून तक आपके करियर की रफ्तार सुस्त रहेगी। जून से लेकर अक्टूबर तक का समय कष्टकारी रहेगा। क्योंकि आय और करियर से जुड़ी परेशानी देखने को मिलेगी। जब शनि वक्रीय गति करते हुए आपके आठवें भाव में प्रवेश करेगा। उस वक्त आपको अपने धैर्य की परीक्षा देनी होगी इसलिए कठिन परिश्रम और प्रयास जारी रखें। आपके भाई-बहनों को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। अक्टूबर के आखिरी में शनि दोबारा नौंवे भाव में स्थित होगा। इस समय में आप विरोधियों पर हावी होंगे और वे आपसे सुलह करने की कोशिश करेंगे। पहले से चली आ रही परेशानियां व तनाव दूर होगा और आप सुकून महसूस करेंगे।

उपाय: काली गाय को घी लगी रोटी खिलायें।

वृषभ :
वृषभ राशि के जातकों के लिए शनि नौंवें और दसवें भाव के स्वामी हैं। ये भाव भाग्य, कर्म, पेशा और शोहरत को दर्शाते हैं। साल 2017 में शनि का गोचर वृषभ राशि से आठवें भाव में होगा। इस दौरान आपके पिता के स्वास्थ्य में गिरावट हो सकती है। रिश्तों में कड़वाहट आ सकती है इसलिए संयमित भाषा बोलें और विवाद की स्थिति से बचने की कोशिश करें। भाग्य कभी आपका साथ देगा तो कभी निराशा हाथ लग सकती है। सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत और सार्थक प्रयास करने होंगे। पुरानी बीमारी परेशान कर सकती है इसलिए सेहत को लेकर लापरवाही नहीं बरतें। इस साल शनि देव आपकी कड़ी परीक्षा लेंगे। परिजनों, बच्चों और दोस्तों के साथ रिश्तों को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास करने होंगे और सभी को साथ लेकर चलना होगा। करियर के लिहाज से जून से अक्टूबर तक का समय बेहद अच्छा है। क्योंकि वक्रीय गति के दौरान शनि का गोचर आपके सातवें भाव में होगा। इस दौरान आपको बेहतरीन अवसर मिलेंगे। हालांकि इसके बाद शनि के दोबारा वक्रीय गति करते हुए आठवें भाव में लौटने से आपको किसी बुरे अनुभव का सामना करना पड़ सकता है जो एक बड़ी रूकावट पैदा करेगा।

उपाय: काले कपड़े और जूतों का दान करें।

मिथुन :
मिथुन राशि के जातकों के लिए शनि देव आठवें और नौंवे भाव के स्वामी हैं। इनमें आठवां भाव किसी बड़े परिवर्तन, दीर्घायु को दर्शाता है जबकि नौंवा घर भाग्य और शोहरत से संबंधित है। इस वर्ष शनि का गोचर मिथुन राशि से सातवें भाव में होगा। इसके फलस्वरूप इस वर्ष आपको मिश्रित परिणाम मिलेंगे। कठिन परिश्रम की बदौलत कार्य स्थल पर मान-सम्मान में वृद्धि होगी। हालांकि दांपत्य जीवन में कुछ परेशानियां आ सकती हैं। जून की शुरुआत से अक्टूबर के बीच वक्रीय शनि का गोचर छठवें भाव में होगा। इस समय किसी विवाद को लेकर अदालती केस में फैसला आपके पक्ष में होगा। अक्टूबर 2017 के आखिरी में शनि वक्रीय गति करते हुए सातवें भाव में लौटेगा। इस दौरान भाग्य आपका साथ देगा। इस वर्ष आपको कई शुभ समाचार मिलेंगे। आप लगातार सफलता प्राप्त करेंगे। माता जी के स्वास्थ्य में गिरावट हो सकती है लेकिन नियमित देखरेख करने से उनकी हालत सामान्य हो जाएगी। इस वर्ष किसी नई जगह पर बसने के बारे में सोच सकते हैं। आपका सामाजिक दायरा बढ़ेगा और वातावरण में बदलाव होगा।

उपाय: मध्य अंगुली में काले घोड़े की नाल पहनें।

कर्क :
कर्क राशि के जातकों के लिए शनि सातवें और आठवें भाव का स्वामी है। इनमें सातवां घर पत्नी और साझेदारी से जुड़ा है जबकि आठवां भाव किसी बड़े परिवर्तन और दीर्घायु से संबंधित है। इस वर्ष शनि का गोचर कर्क राशि से छठवें भाव में होगा। इस दौरान परिवार के साथ किसी मुद्दे पर मतभेद हो सकते हैं। जीवन साथी के साथ विवाद बढ़ेगा। अगर आपने सूझबूझ के साथ काम नहीं लिया तो हालात बिगड़ सकते हैं। जून से अक्टूबर के बीच शनि का गोचर पांचवें भाव में होगा। रिश्तों पर किसी भी विवाद को हावी नहीं होने दें। बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है। पढ़ाई में रुकावट और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। अक्टूबर के अंत में शनि वक्रीय गति करते हुए छठवें भाव में प्रवेश करेगा। इस समय परिजनों की बातें ध्यान से सुनें और फिर अपनी राय जाहिर करें। कानूनी विवाद में उलझ सकते हैं हालांकि अंत में जीत आपकी ही होगी। कोई पुरानी बीमारी दोबारा आप पर हावी हो सकती है इसलिए सेहत का खास ख्याल रखें। विदेश यात्रा पर जा सकते हैं साथ ही छुट्टियां मनाने के लिए भी बाहर का रूख कर सकते हैं। भाई-बहनों को वक्त दें और उनके साथ स्नेह का भाव रखें। दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ वक्त गुजारें।

उपाय: पक्षियों को सात तरह के अनाज और दाल खिलायें।

सिंह :
सिंह राशि के जातकों के लिए शनि छठवें और सातवें भाव का स्वामी है। छठवां घर संघर्ष, शत्रु और बीमारियों से संबंधित है वहीं सातवां भाव पत्नी और साझेदारी से जुड़ा है। 26 जनवरी को शनि का गोचर सिंह राशि से पांचवें भाव में होगा। इस साल लव मैरिज के योग बन रहे हैं हालांकि कुछ चुनौतियां भी सामने आएंगी। प्रेम प्रसंग के लिए यह साल बेहद अच्छा रहने वाला है। जैसे-जैसे वक्त गुजरेगा वैसे-वैसे प्यार बढ़ता जाएगा। आमदनी में बढ़ोतरी होगी और कार्य स्थल पर सम्मान और शोहरत मिलेगी। स्वयं पर गर्व महसूस करेंगे। इस दौरान आप नौकरी छोड़ने के बारे में भी सोच सकते हैं। चौथे भाव में शनि के गोचर करने की वजह से स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है। छोटे-मोटे झगड़े और विवादों की वजह से पारिवारिक रिश्ते कमज़ोर होंगे। अक्टूबर में शनि का गोचर पांचवें भाव में होगा। इसके फलस्वरूप स्थिर आय होने के बावजूद आपको आर्थिक मोर्चे पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए संयम रखें और बेवजह पैसा खर्च ना करें। इस साल वित्तीय प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। बैंक या अन्य संस्था से लिया हुआ लोन चुकता हो जाएगा।

उपाय: पीपल के पेड़ के नीचे सरसो तेल का दिया लगाएं।

कन्या :
शनि आपकी राशि में पांचवें और छठवें भाव के स्वामी है। पांचवां भाव शिक्षा और बच्चों से संबंधित है जबकि छठवां भाव संघर्ष, शत्रु और रोग के बारे में दर्शाता है। शनि का गोचर कन्या राशि से पांचवें भाव में होगा। इस दौरान आप अपना निवास स्थान बदलने और किसी नई जगह पर शिफ्ट होने के बारे में सोच सकते हैं। आप किसी पर अत्याधिक क्रोधित हो सकते हैं इसलिए गुस्से पर नियंत्रण रखें। मानसिक शांति बनाये रखें। ऐसे किसी काम में लिप्त ना होयें जिससे आंतरिक शांति भंग हो। जून में वक्रीय शनि आपकी राशि से चौथे भाव में आएगा। इस समय आपकी माता जी का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। ज़मीन-जायदाद संबंधी विवाद भी हो सकते हैं। काम की अधिकता की वजह से स्वयं की सेहत पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। इसलिए नियमित रूप से आराम कीजिए और 8 घंटे की नींद लें। अक्टूबर के आखिरी में आपकी राशि से पांचवें भाव में शनि का गोचर होगा। कार्य स्थल पर आपके प्रयास सार्थक नहीं हो पाएंगे। करियर में सुधार होगा लेकिन परिणाम उतने बेहतर नहीं होंगे। सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

उपाय: हर शनिवार हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं।

तुला :
शनि ग्रह आपकी राशि में चौथे और पांचवें भाव के स्वामी हैं। चौथा घर माता, वाहन और जीवन में खुशी को दर्शाता है जबकि पांचावां भाव शिक्षा और बच्चों से संबंधित है। शनि आपका योग कारक ग्रह भी है जिसका आपके जीवन में बड़ा महत्व है। इस वर्ष शनि का गोचर तुला राशि से तीसरे भाव में होगा। इसके फलस्वरूप फैसले लेने की क्षमता में वृद्धि होगी और आप दृढ़ निश्चय के साथ सफलता प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होंगे। छोटे भाई-बहनों से परेशानी हो सकती है। इसकी वजह से मानसिक तनाव बढ़ सकता है। छोटी या लंबी दूरी की यात्रा की संभावना बन रही है। जून में आपकी राशि से दूसरे भाव में शनि का गोचर होगा। इस दौरान परिवार में विवाद की स्थिति बनेगी। प्रॉपर्टी से जुड़े मामलों में लाभ की संभावना है। अक्टूबर के अंत में शनि देव वक्रीय गति करते हुए आपकी राशि से तीसरे भाव में संचरण करेंगे। इस दौरान लंबी दूरी की यात्रा करने से धन लाभ की संभावना है। रोजमर्रा की ज़िंदगी में खर्च बढ़ने से परेशानी हो सकती है इसलिए खर्चों पर ध्यान दें। आपकी आय बढ़ेगी इसलिए आमदनी के हिसाब से खर्च करें और पैसे बचाएं। छात्रों को उच्च शिक्षा के अवसर मिलेंगे। इस साल आपको कई अच्छे अवसर मिलेंगे। अगर समय रहते हुए आपने इन अवसरों को भुना लिया तो इसके बेहद प्रभावशाली परिणाम प्राप्त होंगे।

उपाय: शनिवार को बंदर और काले कुत्ते को लड्डू खिलाएं।

वृश्चिक :
शनि ग्रह आपकी राशि में तीसरे और चौथे भाव का स्वामी है। तीसरा भाव प्रयास, संचार और भाई-बहन आदि से संबंधित होता है जबकि चौथा घर माता, वाहन और खुशियों को दर्शाता है। इस वर्ष शनि का गोचर वृश्चिक राशि से दूसरे भाव में होगा। इसकी वजह से पारिवारिक जीवन में उथल-पुथल मच सकती है। झगड़े और विवादों की स्थिति उत्पन्न होगी। अगर समय रहते हुए आपने स्थितियों को नहीं संभाला तो रिश्ते टूट सकते हैं। इस साल परिवार से दूर रहना पड़ सकता है। कार्य स्थल पर किए गए प्रयासों से बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे और आय में बढ़ोतरी होगी। कठिन परिश्रम से अच्छे नतीजे मिलेंगे। कोई बेहतरीन अवसर आपके दरवाजे पर दस्तक देंगे। जून में शनि का गोचर आपकी राशि में होने से मानसिक तनाव बढ़ेगा। स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है इसलिए संतुलित और अच्छा भोजन करें व अपना ध्यान रखें। तंदुरुस्त रहने के लिए सुबह सैर पर जाएं। अक्टूबर के अंत में शनि वक्रीय गति करते हुए आपकी राशि से दूसरे भाव में प्रवेश करेगा। कड़ी मेहनत की बदौलत अधिक से अधिक कमाई करने में सक्षम होंगे। परिजनों के साथ रिश्ते और बेहतर होंगे।

उपाय: कुष्ठ रोगियों की सेवा करें।

धनु :
शनि आपकी राशि में दूसरे और तीसरे भाव का स्वामी है। दूसरा भाव धन, परिवार और भाषा से संबंधित है जबकि तीसरा भाव भाई-बहन, प्रयास और संचार को दर्शाता है। इस साल शनि का गोचर धनु राशि में होगा। यह समय आपके लिए आसान नहीं रहने वाला है। मानसिक तनाव और परेशानी बढ़ेगी। अगर पहले से कोई बीमारी है जिसका इलाज चल रहा है उसमें लापरवाही नहीं बरतें वरना बड़ी हानि हो सकती है। सेहतमंद रहने के लिए नियमित रूप से आराम करें और स्वयं का ख्याल रखें। आपके भाई-बहनों के जीवन में खुशियां और समृद्धि आएगी। उनकी कामयाबी पर आपको गर्व होगा। जून में शनि का गोचर आपकी राशि से बारहवें भाव में होगा। इसके परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन में तनाव रहेगा। विवादों की वजह से जीवन साथी के साथ रिश्तों पर बुरा असर पड़ेगा। पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करें और बोलचाल में सावधानी बरतें। जीवन साथी को सम्मान दें और उनकी भावना का आदर करें। अक्टूबर के अंत में शनि का गोचर पुन: आपकी राशि में होगा। काम के बोझ से सक्रियता बढ़ेगी इसलिए कुछ बड़ा लक्ष्य हासिल करने की सोच रखें। कार्य स्थल पर सब कुछ अच्छा रहेगा लेकिन काम के दबाव से मानसिक शांति प्रभावित होगी।

उपाय: शराब और मांसाहार के सेवन से दूर रहें।

मकर :
शनि देव आपकी लग्न राशि के स्वामी हैं। यह आपके चरित्र, व्यक्तित्व और दीर्घायु को दर्शाते हैं। जबकि दूसरे भाव के स्वामी होकर धन, परिवार और भाषा से संबंधित हैं। इस वर्ष शनि का गोचर मकर राशि से बारहवें भाव में होगा। इस दौरान हानि की संभावना बन रही है। इस साल खर्च ज्यादा होने से नुकसान हो सकता है। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्या परेशान कर सकती है। जून में शनि आपकी राशि से ग्यारहवें भाव में प्रवेश करेंगे। इसके फलस्वरूप आपको कमाई के कई अवसर मिलेंगे। लंबे समय से जिस पल का आपको इंतज़ार था वो समय आएगा। नाम और शोहरत मिलने से सामाजिक जीवन भी अच्छा रहेगा। अक्टूबर के अंत में शनि पुन: बारहवें भाव में प्रवेश करेगा। इस दौरान मौसमी बीमारी से पीड़ित रह सकते हैं। इसलिए स्वच्छ व संतुलित भोजन करें और नियमित रूप से आराम करें। आमदनी के मुकाबले में ज्यादा खर्च होने से मुश्किलें बढ़ेंगी। विदेश से सफलता मिलने के योग हैं। कानूनी मामले और विवादों से परेशानी हो सकती है। पहले से तय किसी भी योजना के बारे में खुले दिमाग से सोचें और फिर कोई फैसला लें। जून के बाद का समय बेहद अच्छा है अत: कठिन परिश्रम से इसका भरपूर दोहन करें।

उपाय: शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें व 11 नारियल नदी में प्रवाहित करें।

कुंभ :
कर्मफल दाता शनि देव आपकी लग्न राशि के स्वामी हैं। यह आपके चरित्र, व्यक्तित्व और दीर्घायु को दर्शाते हैं। शनि देव आपके राशि में बारहवें भाव के भी स्वामी हैं। यह भाव हानि, खर्च, अस्पताल और सुख-सुविधाओं से संबंधित है। इस साल शनि का गोचर कुंभ राशि से ग्यारहवें भाव में होगा। इसके फलस्वरूप आपकी आमदनी में लगातार वृद्धि होगी। कार्य स्थल पर हर वक्त अच्छे अवसर मिलेंगे। बेहतर ज़िंदगी को लेकर जो सपना आपने देखा था वो इस साल पूरा होने की संभावना है। जून में शनि आपकी राशि से दसवें भाव की ओर बढ़ेंगे। इस दौरान कामकाज पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अच्छी आय होने के बावजूद खर्चों पर नियंत्रण रखें। इस समय में अपने कौशल और साहस का सही दिशा में इस्तेमाल करें। अक्टूबर में शनि का गोचर कुंभ राशि से ग्यारहवें भाव में होगा। यह आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण समय होगा। मेहनत और कार्य कुशलता की बदौलत अच्छे नतीजे मिलेंगे। छोटे भाई-बहनों की तबीयत बिगड़ सकती है। हालांकि आप स्वस्थ और तंदुरुस्त रहेंगे। अच्छी सेहत के लिए स्वच्छ और संतुलित भोजन करें। पूर्व की कोई बीमारी या कष्ट जिससे आप परेशान हैं उससे छुटकारा मिलेगा। आपकी शिक्षा या बच्चों की ओर से तनाव पैदा होगा। इस समय में प्रेम संबंध भी सुखमय नहीं होंगे। तनाव बढ़ने से परेशानी होगी इसलिए मानसिक शांति के लिए नियमित रूप से योग और प्राणायाम करें।

उपाय:: मंदिर में सरसो के तेल का दान करें।

मीन :
शनि देव आपकी राशि में ग्यारहवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं। ये भाव आय, लाभ, सफलता, खर्च और हानि से संबंधित होते हैं। इस वर्ष शनि का गोचर मीन राशि से दसवें भाव में होगा। इसके फलस्वरूप इस साल आमदनी कम होगी और खर्च ज्यादा होगा। इसलिए बेहतर होगा कि बेवजह खर्च करने से बचें। माता जी की तबीयत बिगड़ सकती है इसलिए उनकी सेहत पर ध्यान दें। जून में शनि आपकी राशि से नौंवे भाव में प्रवेश करेगा। इस दौरान आप नई नौकरी के बारे में सोच सकते हैं। अपने प्रयास जारी रखें और धैर्य व कठिन परिश्रम के महत्व को समझें। देर से ही सही लेकिन सफलता मिलेगी इसलिए संयम बनाये रखें। काम के सिलसिले में विदेश यात्रा पर जा सकते हैं। अक्टूबर के अंत में शनि देव पुन: आपके दसवें भाव में लौटेंगे। व्यस्त दिनचर्या की वजह से जीवन साथी को ज्यादा समय नहीं दे पाएंगे। इसकी वजह से विवाद की स्थिति पैदा होगी। परिजनों को भी समय दें और उनके लिए कुछ खास करें जिससे उन्हें खुशी मिले।
उपाय: शनिवार को काले कुत्ते को कुछ खिलाएं

-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, 
संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, 9827198828