ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

स्वयंसेवकों की हो रही नृशंस हत्याओं पर चुप्पी क्यों ?

राष्ट्र देवो भव: को मानने वाले  "स्वयंसेवकों के लिए राष्ट्र ही सर्वोपरि है और यही संघ का संस्कार भी,और इसलिए, राष्ट्र के प्रति समर्पित स्वयंसेवक अगर राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण न हो तो न केवल भारत अपने परम वैभव को नहीं प्राप्त कर पायेगा बल्कि एक कृतघ्न राष्ट्र भी कहलायेगा। ऐसे में देशतोड़क शक्तियां जो वैदेशिक धन पर पलने वाली देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त वामियों द्वारा आरएसएस को स्लाम विरोधी बताकर स्वयंसेवकों पर एक राष्ट्रव्यापी कुचक्र रचा जा रहा है, जिसके फलस्वरुप केरल से लेकर प.बंगाल होते हुए यूपी के गाज़ीपुर के राजेश मिश्र तक द्वि: शताधिक राष्ट्रसेवकों की नृशंस हत्याओं को अंजाम दिया जा रहा है, जो घोर निन्दनीय है !

जो भी शक्तियां स्वयंसेवकों की ऐसी नृशंश हत्या के माध्यम से संघ, स्वयंसेवकों अथवा समाज को जो भी सन्देश देने का प्रयास कर रही हैं, शायद उन्हें न तो संघ की शक्ति का अनुमान है और न ही स्वयंसेवकों के दृढ़ निश्चय का ! अगर संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र की रक्षा करने में सक्षम हैं तो स्वाभाविक है की वो अपना और अपने स्वजनों की रक्षा करने का भी सामर्थ्य रखते हैं। हां , इस प्रकार के कुचक्रों से स्वयंसेवक डरने वाले नहीं हैं, वामपंथी ताकतों का डटकर सामना करते रहेंगे, हमारी उदारता को कमजोरी समझने की भूल ना करें, और पिछे से हिंसक वार करने की बजाय देश के अलग अलग मंचों पर वैचारिक डीबेट करलें, समझ में आ जायेगा, कि उनके साथ देश की कितनी जनता है और स्वयंसेवकों के विचारों की समर्थक कितनी जनता है ! बजाय हिंसा के मुख्यधारा के सरोकार बन भारत के सांस्कृतिक विकास में योगदान दें ! स्वयंसेवकों की हत्याएं करके ऐसे तत्व कभी भी अपनी मंसूबों पर सफल नहीं हो पायेंगे ! अभी विगत दिनों शाखा से घर जा रहे स्वयंसेवक ६० वर्षीय श्री रविन्द्र गोसाईं को गोली मार दी गयी, जबकी इसके पहले पंजाब के जालंधर में पंजाब संघ प्रचारक ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा को दो बाईक सवारों ने पाश कालोनी में नजदीक से गोली मार दी थी ! ठीक उसी प्रकार यूपी के संघ स्वयंसेवक श्री राजेश मिश्र जी को भी दो बाईक सवारों ने बिल्कुल नजदीक से गोली मारकर हत्या कर दी गई !
देश में चहुंओर एक जैसे ही स्वयंसेवकों की हो रहीं नृशंस हत्याओं पर मानवाधिकार, और पुरस्कार वापसी गिरोह क्यों चुप हैं ? यह बड़ा यक्षप्रश्न है !

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_21.html?m=1

कांग्रेस और वामपंथियों की मिलीभगत से चल रहे इस खूनी खेल जो वर्षों से केरल में चल रहा है, क्या यही केरल सरकार और ममता दीदी का .बंगाल में 'सहिष्णुता" है ? बात बात में अपनी राय रखने वाले छपास बिमारी से पीड़ित नेता चुप क्यों है ? मुखर होकर आवाज क्यों नहीं उठाते ? यदि इस हिंसा के विरोधी ये लोग हैं तो सामने आकर विरोध क्यों नहीं करते ? करें भी कैसे इन लोगों ने तो कश्मिर में पंडितों पर कह़र बरपते देख जश्न मना रहे थे ! इन्हीं लोगों ने सियासत चमकाने के लिये कर्नल श्रीकांत पुरोहित, रमेश उपाध्याय तथा साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर चटजुल्म ढाहे, और 'भगवा आतंवाद' शब्द को दन्म दिया ! इन लोगों से उम्मीद भी क्या की जा सकती है, जिन्होंने भारत विरोधी नारे देने वालों की जमात का अ'कन्हैया को दत्तक पुत्र बना उसके साथ जेएनयू में प्रोटेस्ट करने जाते हैं, जिसके अन्दर का पप्पु भी पीगल हो गया हो, भला उन्हें स्वयंसेवक 'विलेन' ही दिखेंगे ! आज मैं आचार्य पण्डित विनोद चौबे (9827198828), भिलाई स्थित अपने निवास से बाहर निकला तो चर्चा चल रही थी की, जो भी हो 'आरएसएस कार्यकर्ता कभी हिंसा नहीं कर सकते' , यह सुनकर हमें गर्व होता है, कि गांव, और कसबों की चौक-चौपाटी के लोग आरएसएस पर इतना विश्वास करते हैं, संघ की विचारधारा को समझते हैं, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी आजतक 'संघ' क्यों नहीं समझ पाई ? समझ से परे है, और चिन्ता का विषय भी क्योंकि यही नेता 'संघ' के स्वयंसेवकों के प्रति कुछेक भाड़े के लोगों को भड़काते हैं , जो बेहद तिन्ताजनक है !

चिंता तो उस व्यवस्था की है जिसने आज समाज को इतना अव्यवस्थित और सामान्य नागरिकों को इतना असुरक्षित कर दिया है; हमारी लड़ाई किसी राजनेता, राजनीतिक दल अथवा सत्ता के पक्ष से नहीं बल्कि उन परिस्थितियों से है जिनसे वर्त्तमान त्रस्त है, यदि भाजपा शासीत राज्यों में या गैर-भाजपा शासित प्रदेशों में केन्द्र सरकार हस्तक्षेप करती भी हैं, तो "मानवाधिकार" प्रकट हो कर विरोध करने लगते हैं !
ऐसे में, आज जब वर्त्तमान स्वयं की प्रेरणा से राष्ट्र की सेवा में समर्पित स्वयंसेवकों के रक्त से रंजीत होना
तो ऐसा कोई कारन ही नहीं की हम अपने परिवर्तन लाने के प्रयास से पीछे हटें; आखिर खोने का  क्या है ;

एक वीर कभी पराजित नहीं होता क्योंकि उसके लिए  संघर्ष के पास परिणाम के रूप में केवल दो ही विकल्प होते हैं, या तो विजयश्री या वीरगति , और दोनों  ही परिस्थितियों में उसका प्रयास ही उसके लिए सम्मान अर्जित करता  है और यही उसके जीवन की उपलब्धि भी;

वीर वही जो प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने संघर्ष से अनुकूल बनाने  का प्रयास करे और भीरु वह जो जो जीवन की सरलता और सुविधा के लिए परिस्थितियों से समझौता करना सीख जाए।          

ऐसे में, आज जब वर्त्तमान ने हमारे समक्ष व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता द्वारा प्रायोजित संघर्ष की चुनौती प्रस्तुत की है तो क्या आपको नहीं लगता की भीरु के जीवन  से कहीं बेहतर  एक वीर की मृत्यु होगी;

हमें न तो बलिदान  की चिंता  है  न ही परिणाम  की क्योंकि  हम जानते हैं की किसी   भी समर्पित व् सतत  प्रयास से तो अस्मभव भी संभव होता आया है, ऐसे में, भारत के परम वैभव के उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण और गौरवशाली लक्ष्य वर्त्तमान में किसी भी स्वयंसेवक के लिए  भला और  हो  भी क्या सकता है;"स्वयंसेवकों के लिए राष्ट्र ही सर्वोपरि है और यही संघ का संस्कार भी,और इसलिए, राष्ट्र के प्रति समर्पित स्वयंसेवक अगर राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण न हो तो न केवल भारत अपने परम वैभव को नहीं प्राप्त कर पायेगा बल्कि एक कृतघ्न राष्ट भी कहलायेगा।

जो भी शक्तियां स्वयंसेवकों की ऐसी नृशंश हत्या के माध्यम से संघ, स्वयंसेवकों अथवा समाज को जो भी सन्देश देने का प्रयास कर रही हैं, शायद उन्हें न तो संघ की शक्ति का अनुमान है और न ही स्वयंसेवकों के दृढ़ निस्चय का ; अगर संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र की रक्षा करने में सक्षम हैं तो स्वायभाविक है की वो अपना और अपने स्वजनों की रक्षा करने का भी सामर्थ रखते हैं।

चिंता तो उस व्यवस्था की है जिसने आज समाज को इतना अव्यवस्थित और सामान्य नागरिकों को इतना असुरक्षित कर दिया है; हमारी लड़ाई किसी राजनेता, राजनीतिक दल अथवा सत्ता के पक्ष से नहीं बल्कि उन परिस्थितियों से है जिनसे वर्त्तमान त्रस्त है;

ऐसे में, आज जब वर्त्तमान स्वयं की प्रेरणा से राष्ट्र की सेवा में समर्पित स्वयंसेवकों के रक्त से रंजीत हो ही चूका है, तो ऐसा कोई कारन ही नहीं की हम अपने परिवर्तन लाने के प्रयास से पीछे हटें; आखिर खोने का  क्या है ;

एक वीर कभी पराजित नहीं होता क्योंकि उसके लिए  संघर्ष के पास परिणाम के रूप में केवल दो ही विकल्प होते हैं, या तो विजयश्री या वीरगति , और दोनों  ही परिस्थितियों में उसका प्रयास ही उसके लिए सम्मान अर्जित करता  है और यही उसके जीवन की उपलब्धि भी;

वीर वही जो प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने संघर्ष से अनुकूल बनाने  का प्रयास करे और भीरु वह जो जो जीवन की सरलता और सुविधा के लिए परिस्थितियों से समझौता करना सीख जाए।          

ऐसे में, आज जब वर्त्तमान ने हमारे समक्ष व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता द्वारा प्रायोजित संघर्ष की चुनौती प्रस्तुत की है तो क्या आपको नहीं लगता की भीरु के जीवन  से कहीं बेहतर  एक वीर की मृत्यु होगी;

हमें न तो बलिदान  की चिंता  है  न ही परिणाम  की क्योंकि  हम जानते हैं की किसी   भी समर्पित व् सतत  प्रयास से तो अस्मभव भी संभव होता आया है, ऐसे में, भारत के परम वैभव के उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण और गौरवशाली लक्ष्य वर्त्तमान में किसी भी स्वयंसेवक के लिए  भला और  हो  भी क्या सकता है; क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?"क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?"

कुल मिलाकर मेरा मन क्षुब् है, व्यथित है, और इस ओर देश के हर वर्ग के लोगों को संगठित कर आगाह करना चाहता हुं, की आपके बीच ऐसे 'हिंसा-प्रेमी देशतोड़क वामियों की जमात' द्वारा युवाओं को स्वयंसेवकों के प्रति बरगलाया जाता है तो आप सचेत रहें और और एक बार देश के किसी भी शाखा में जायें और आरएसएस को समझने का प्रयास करें, ताकी इन हिंसावादी ताकतों को वैचारिकता के बल से मुंहतोड़ जवाब दे सकें! !! वंदे मातरम्!!
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे,
संपादक - 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, मोबाईल नं. -9827198828
(विशेष सूचना : कृपया इस आलेख का कापी-पेस्ट ना करें, ऐसा पाये जाने पर आपके उपर संवैधानिक कार्यवाही की जायेंगी)

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_21.html?m=1

कोई टिप्पणी नहीं: