ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

कार्तिक मांह में 'गावो विश्वस्य मातर:' एवं 'बोनस तिहार' के बाद अब 'मातर तिहार के आगाज़'

हिन्दू धर्मग्रंथो में कार्तिक महीना बेहद शुभ माना जाता है। इस महीने का एक अहम त्यौहार है गोवर्धन -पूजा है क्योंकि इस माह की शुरुआत ही इसी पर्व से होती है, इस माह प्रतिदिन दीप जलाने का महत्व है, इस माह के स्वामी भगवान विष्णु हैं, और हमारे भिलाई, दुर्ग राजनांद गांव सहित पूरे छत्तीसगढ़ में तो आज से मातर तिहार मनावे बर सब्बो डाहन से गांव दिहात से अब्बड़कन तैयारी चलत हे, एखर पहिली हमन छत्तीसगढि़या मन हा 'बोनस तिहार' मनाय हवयं, अब मातर मनाबो, मोर शांतिनगर, ( ज्योतिष भवन) के घर डाहन 'गावो विश्वस्य मातर:' के अलख जगावे बर जरुर आबो । छत्तीसगढ़ गोवर्धन पूजा को कई लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गाय माता की पूजा की जाती है। महाभारत,  समेत कई हिन्दू ग्रंथों में इस व्रत का वर्णन किया गया है।

इस दिन प्रातः स्नान करके पूजा स्थल पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना चाहिए। इस पर्वत पर श्रद्धापूर्वक अक्षत,चंदन, धूप, फूल आदि चढ़ाना चाहिए। पर्वत के सामने दीप जलाना चाहिए तथा पकवानों के साथ श्रीकृष्ण प्रतिमा की भी पूजा करनी चाहिए।

इसके बाद पकवान जैसे गुड़ से बनी खीर, पुरी, चने की दाल और गुड़ का भोग लगाकर गाय को खिलाना चाहिए तथा पूजा के पश्चात परिवार के सभी सदस्यों को भी भोग लगे हुए प्रसाद को ही सबसे पहले खाना चाहिए।

गोवर्धन पूजा की कथा श्रीकृष्ण काल से जुड़ी है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रज में इंद्र देव की पूजा करने का रिवाज था, जिसे समाप्त कर भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन की पूजा करना प्रारंभ किया था। श्रीकृष्ण जी का यह तर्क था कि इंद्रदेव तो वर्षा कर मात्र अपने कर्म को निभा रहे हैं लेकिन गोवर्धन पर्वत हमें ईंधन, फल आदि देकर हमारी सेवा भी करता है। इस बात पर देव इंद्र को बहुत क्रोध आया और उन्होंने ब्रज में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर दी।

बाढ़ से ब्रजवासी बड़े परेशान हो गए तथा अपने प्राण बचाने के लिए इधर -उधर भागने लगें। इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कानी ऊंगली पर उठा लिया, जिसके नीचे आकर सभी ब्रजवासियों ने अपने प्राण बचाए। इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा चली आ रही है।

मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की सहायता से इंद्र का घमंड चूर किया था तथा स्वयं गोवर्धन पर्वत ने ब्रजवासियों को अपने दर्शन देकर छप्पन भोग द्वारा उनकी भूख मिटायी थी। इस प्रकार गोवर्धन पूजा करने से घर में दरिद्रता का वास नहीं होता तथा घर हमेंशा धन और अन्न से भरा रहता है।

(कल भाई दूज है, अग्रिम बधाई और इस मांह के विभिन्न पर्व प्रसंगो पर लघु आलेख लेकर प्रस्तुत होते रहूंगा, प्रतिक्षा है आपके प्रतिक्रिया की)

- आचार्य पण्डित विनोद चौबे,

 संपादक - "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, मोबाईल नं. 9827198828

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_20.html?m=1

कोई टिप्पणी नहीं: