!! काली सहस्त्राक्षरी मंत्र के साथ मंगलमयी सुप्रभात !!
क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं स्वाहा
शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीं कामेश्वरी वीं हं वाराहिके
ह्णीं महामाये खं खः क्रोधाधिपे श्रीमहालक्ष्म्यै सर्वहृदयरञ्जनि
वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिं हसकहल ह्नीं हस्त्रैं ॐ ह्नीं क्लीं मे स्वाहा ॐ ॐ
ह्नीं ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीं हू ह्नीं स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे
ॐ ह्नीं नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रें विमोहिनी
सर्वदुष्टान् मोहा मोहय हयग्रीवे सिंहवाहिनी सिंहस्थे अश्वारूढे अश्वमुरिपु
विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून् मां हिंसितुमुद्यतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले
वलाकिनी नीलपताके क्रें क्रीं कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके
सर्वजगद्वशमानय वशमानय मातङ्गिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातड्गिनी
सर्ववशङ्करी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून्
विनाशिनी उन्मादिनी रों रों रों रों ह्नीं श्रीं हसौं: सौं वद वद क्लीं क्लीं क्लीं क्रीं
क्रीं क्रीं कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्बरघातिनि कामेश्वरी
कामिके ह्नं ह्नं क्रीं स्वाहा हृदयालये ॐ ह्नीं क्रीं मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीं ह्नं ह्नीं
चामुण्डै ह्रदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून् शंखिनी
क्षतजचर्चितस्तने उन्नतस्तने विष्टंभकारिणि विद्याधिके श्मशानवासिनी
कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिंहे दक्षिणकालिके
अनिरुद्ध्ये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणि हं कालिके करालिके घोरे
कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके
तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथानायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि
दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपून्दर्शने दर्शय दर्शय
सिंहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं फट् स्वाहा
शक्तिरूपायै रों वा गणपायै रों रों रों व्यामोहिनि यंत्रनिके महाकायायै
प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः
ब्रह्मरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी
तंत्रनिके मेघप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनी कुल्ले कुरुकुल्ले
चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्नीं ह्नीं रक्ष रक्ष ज्वालाप्रचण्डचण्डिकेयं
शक्तिमार्तण्ड भैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्षय आकर्षय पिशिते
पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै
नमो नमः ब्रह्मै नमो नमः माहेश्वर्यैं नमो नमः कौमार्यैं नमो नमः वैष्णव्यैः नमो
नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमौ नमः अपराजितायै
नमो नमः नारसिंहिकायै नमो नमः कालि महाकालीके अनिरुद्धके सरस्वति
फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष
परविद्यां क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके
चीरसिद्धिके कृष्णरूपिणी अजनसिद्धिके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।
(उपरोक्त मंत्र के अनुष्ठान द्वारा भूत, प्रेत या भटकती आत्माओं की शांति किया जा सकता है ऐसा मेरा (आचार्य पण्डित विनोद चौबे9827198828) मानना है कि यदि पूर्व में नेगेटिव्ह एनर्जी है तो वह दैवीय प्रकोप से घर में बार बार अपमृत्यु, अशांति आदि होता वहीं अन्य दिशाओ से नेगेटिव्ह एनर्जी आती है तो वह बाहरी दोष है, जिसकी उपरोक्त *स्तोत्र* का पाठ, हवन, बंध आदि करना चाहिये, वगैर गुरुपुजन के बाद ही इसे किया जाना चाहिये :!
http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_28.html?m=1
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