'मदर' को छोड़, सभी "मातृ शक्तियां" करती हैं करवा चौथ- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
सर्वप्रथम माताओं, बहनों आप सभी को 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका की ओर से करवा चौथ (करक चतुर्थी) के अवसर पर बहुश: बधाईयां, और मेरी धर्मपत्नि श्रीमती रम्भा विनोद चौबे की ओर से आप सभी "मातृ शक्ति " को सादर प्रणाम !!
करवा चौथ व्रत कथा:
एक समय की बात है, सात भाइयों की एक बहन का विवाह एक राजा से हुआ। विवाहोपरांत जब पहला करवा चौथ आया, तो रानी अपने मायके आ गयी। रीति-रिवाज अनुसार उसने करवा चौथ का व्रत तो रखा किन्तु अधिक समय तक व भूख-प्यास सहन नहीं कर पर रही थी और चाँद दिखने की प्रतीक्षा में बैठी रही।
उसका यह हाल उन सातों भाइयों से ना देखा गया, अतः उन्होंने बहन की पीड़ा कम करने हेतु एक पीपल के पेड़ के पीछे एक दर्पण से नकली चाँद की छाया दिखा दी। बहन को लगा कि असली चाँद दिखाई दे गया और उसने अपना व्रत समाप्त कर लिया। इधर रानी ने व्रत समाप्त किया उधर उसके पति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
यह समाचार सुनते ही वह तुरंत अपने ससुराल को रवाना हो गयी।रास्ते में रानी की भेंट शिव-पार्वती से हुईं। माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इसका कारण वह खुद है। रानी को पहले तो कुछ भी समझ ना आया किन्तु जब उसे पूरी बात का पता चला तो उसने माँ पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की।
यह देख माँ पार्वती ने रानी से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत करें। तत्पश्चात देवी माँ ने रानी को व्रत की पूरी विधि बताई। माँ की बताई विधि का पालन कर रानी ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति की पुनः प्राप्ति की।
वैसे करवा चौथ की अन्य कई कहानियां भी प्रचलित हैं किन्तु इस कथा का जिक्र शास्त्रों में होने के कारण इसका आज भी महत्त्व बना हुआ है।द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत की आज भी वही मान्यता है। द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं। यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था।
इस व्रत में अपने वैवाहिक जीवन को समृद्ध बनाए रखने के लिए और अपने पति की लम्बी उम्र के लिए विवाहित स्त्रियाँ व्रत रखती हैं। यह व्रत सायंकाल में चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही खोला जाता है।हिन्दू पंचांग के कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन यह व्रत किया जाता है। इस वर्ष 2017 में यह शुभ तिथि 08 अक्तूबर को मनाई जाएगी। 'मदर' या 'मदर' के फॉलोवरों को छोड़ दें तो लगभग सभी "मातृ शक्तियां" इस "सौभाग्यप्रद व्रत" को विधी-विधान से करती हैं ! मेरे भिलाई, दुर्ग के लोग तो वैसे हर त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाते हैं परन्तु 'तीजा' पोला जैसा ही 'करवा चौथ' बहुत बढियां से महिलाएं मनाती हैं ! जबकी यह परम्परा अन्य किसी देशों में नहीं है, लोग कहते हैं भारत पुरुष प्रधान देश है, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि हमारे भारतीय सांस्कृतिक संरचना की अवधारणा "मातृ शक्ति" प्रधान राष्ट्र के रुप में रही है! क्योंकि मातृ-वंश की आदि पूर्वजा को "शक्ति" कहा जाता था। समान मातृ-वंश अथवा समान शक्ति वाले स्त्री-पुरुष का विवाह निषिद्ध था अर्थात् मातृष्वसा (मौसी) की कन्या के साथ विवाह निषिद्ध था और वह माता व मातृष्वसा की ही भाँति पूजनीया होती थी। खैर, 'मदर' के मानने वालों को यह लेख भले ना बुझाए पर "मातृ" मां, माता कहने व बोलने वालों को तो समझ आ ही रहा होगा !
आज के दिन सभी विवाहित स्त्रियाँ इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। चूंकि शिव-पार्वती का पति-पत्नी के युगल रूप में धार्मिक महत्त्व है इसलिए इनके पूजन से सभी स्त्रियाँ पारिवारिक सुख-समृधि की कामना करती हैं।
करवा चौथ तिथि : 08 अक्टूबर 2017, रविवार
करवा चौथ पूजा शुभ मुहूर्त : सायं 05:55 pm से 07:09 pm
चंद्रोदय समय : रात्रि 08:14 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 16:58 (8 अक्तूबर 2017)
चतुर्थी तिथि समाप्त : 14:16 (9 अक्तूबर 2017)
हमारे भारत के वैभवशाली इतिहास में तमाम ऋषि पत्नियों ने जहां एक ओर वैदिक संस्कृति को संजो कर रखने के लिये आश्रम में पढने आये बच्चों की नि:शु्क सेवा करने का बहु प्रशंसित कार्य किया , वहीं मैकाले शिक्षा नीति के फॉलोवर 'मदरों' ने भारत में कथित सेवा के नाम पर मोटी रकम के रुप में आश्रम की जगह लेने वाले स्कूलों में "ट्यूशन फी" के माध्यम से भारत को लूटकर भारतीय सांस्कृतिक संरचना को 'धर्मांतरण' के जरीये नष्ट करने पर तुले है, यह सब जानने के बावजूद ' मरियम' और 'मदर तेरेसा' को बहु प्रचारित कर सम्मान दिया गया! सम्मान तो असल में बहन निवेदिता का होना चाहिए था! पुनश्चपुन: आज भारत की मातृ शक्तियों को नमन व शुभकामनाएं!
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- "ज्योतिष का सूर्य''
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई
दूरभाष क्रमांक :- 9827198828
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