ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 30 अगस्त 2017

जानिए ... वामावर्ती (बांया) दक्षिणावर्ती (दायां) गणेश जी के सूंड का शास्त्रसम्मत रहस्य....

जानिए ... वामावर्ती (बांया) दक्षिणावर्ती (दायां) गणेश जी के सूंड का शास्त्रसम्मत रहस्य....

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे
9827198828

 अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्री गणेश की कौन सी सूंड होनी... चाहिये ? सर्वप्रथम हमें 'गणेश' शब्द के बारे में जानना होगा !

गणेशः यानी गणा नां प्रमथसमूहानां यद्वा गणानां जीवजातानां ईशः ईश्वरः । शिवः ! ऐसा 'हारावली' 'महाभारत' एवं 'कैरात' आदि नामक ग्रंंथो में वर्णित किया गया है !

गणेश शब्द की व्याख्या करते हुए महाभारत में कहा गया है कि-“ प्रसादये त्वां भगवन् ! सर्व्वभूतमहेश्वर ! ।

गणेशं जगतः शम्भुं लोककारणकारणम् ॥”गणानां गणाख्यदेवविशेषाणां विघ्नाख्यदेवानांवा ईशः नियन्ता ।) शिवपुत्त्रः । (यथा, महा-भारते । १ । १ । ७३ ।

खैर, आईये 'गणेश' शब्द की व्युत्पत्ति और विस्तृत व्याख्या में न जाकर भगवान गणेश जी के वामावर्ती एवं दक्षिणावर्ती सूंड के रहस्य के बारे में समझने का प्रयास करते हैं !

 भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एकतरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है। वक्र यानी टेढ़ा तुण्ड का मतलब हाथी का विशेष मुख जिसकी घ्राण नासिक अधिक लंबी होती है !

क्रमश: गणेश पुराण, मुद्गल, शिव, वायु तथा लिंग आदि महापुराण एवं उपपुराणों में गजानन के अलग-अलग मुखाकृति तथा उनके जन्म की कथाएं भी भिन्न ठीक उसी प्रकार जैसे गणेश जी वक्रतुण्ड के वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा सीधा सूंड को लेकर मत-मतांतर है ! भगवान गणेश के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की आेर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति जब भी दक्षिण की आेर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। हालाकि यह केवल लोक मान्यता है यथार्थ ऐसा नहीं है !  कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव  है। 

मुझे ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणेश खण्ड के छठवें अध्याय का एक संदर्भ संस्मरण आता है, जो इस प्रकार है...जिसे प्रस्तुत कर रहा हुं.....

“शनिदृष्ट्या शिरश्छेदात् गजवक्त्रेण योजितः ।

गजाननः शिशुस्तेन नियतिः केन बाध्यते ॥”और अब स्कन्दपुराण के गणेश खण्ड ११वें अध्याय  में वर्णित संक्षेप में कुछ अंश दे रहा हुं..जरा अवलोकन करें...“अवतारो यदि धृतः साधुत्राणाय भो विभो !प्रकाशयाशु वदनं सर्व्वेषां शोकनाशनम् ॥नयस्व सर्व्वदेवानामानन्दं हृदये प्रभो ! ।शिव उवाच ।प्रत्युवाच गुरुं पुत्त्रः पार्व्वत्या हीनमस्तकः ॥शिशुरुवाच ।महेशाख्येन राज्ञा ते प्रणतौ चरणौ यदा ।तदाशीर्या त्वया दत्ता तस्मै राज्ञे गुरो मुदा ॥गजयोनौ जनिर्मुक्तिः शिवहस्तादुदीरिता ।तत् सर्व्वमभवत् तस्य विद्यते चारुमस्तकः ॥पूज्यमानः शिवेनास्ते शुण्डादण्डः सुशोभनः ।अवतारकरोऽसौ मे गुरोऽस्ति भविता मुखम् ॥शिव उवाच ।आश्चर्य्यपूर्णहृदयो गुरुरूचे पुनः शिशुम् ॥गुरुरुवाच ।भगवत ! विश्वरूपोऽसि त्रिकालज्ञोऽखिलेश्वरः ।मया यदुदितं तस्मै त्वया ज्ञातं यतः प्रभो ! ॥अहमीशस्वरूपं ते परिच्छेत्तुं न च क्षमः ।श्रुत्वैव ब्रह्मणः पुत्त्रो नारदस्तत्र चाब्रवीत् ॥नारद उवाच ।एवमेवावतीर्णोऽसि हीनमूर्द्धा कथं प्रभो ! ।अथवा बालरूपस्य छिन्नं ते केन तच्छिरः ॥एतन्मे संशयं छिन्धि कृपया परमेश्वर ! ।शिव उवाच ।निपीय नारदीं वाणीमुवाच शिशुरुच्चकैः ॥शिशुरुवाच ।सिन्दूरः कोऽपि दैत्यो मे वायुरूपधरोऽच्छिनत् ।अष्टमे मासि सम्पूर्णे प्रविश्योमोदरं शिरः ॥तमिदानीं हनिष्येऽहं गजास्यं साम्प्रतं द्बिज ! ।शिव उवाच ।श्रुत्वैव नारदः प्राह शिशुरूपिणमीश्वरम् ॥नारद उवाच ।अकिञ्चिज्ज्ञा वयं देव ! योजनेऽस्य मुखस्य ते ।त्वमेव च स्वभावेन मखमेतन्नियोजय !!अब तो आप गणेश जी के मुखाकृति से लेकर पूरे शस्त्र, वाहनादि का समुच्चय वर्णन तो समझ ही गये होंगे..!हमारे कुछ शुभचिंतकों में से एक आदरणीय श्री कनिरामजी शर्मा, सह प्रांत प्रचार प्रमुख, छत्तीसगढ़ प्रांत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ.. जी बार बार मुझसे कहते हैं कि - आचार्य चौबे जी आपका आलेख बहुत लंबा हो जाता है... लेकिन क्या करूं संदर्भवत व सोदाहरण आलेख विहंगम हो ही जाता है... क्षमा प्रार्थी पुन: विषय पर वापस लौटते हैं...तो चर्चा कर रहा था.. वामावर्ती एवं दाहिनावर्ती सूंड का तो आईये....

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_65.html?m=1

प्राय: गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाआें से दिखती है। जब सूंड दाईं आेर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। अर्थात् ऐसे गणेश जी का 'तंत्र कल्प'' विशेष महत्त्व बताया गया है ! एेसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है।

वहीं बाईं आेर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। एेसी  मूर्त  की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे  शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।

सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज एेसी मूर्त की ही आराधना करता है। मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं आेर सूंड वाली मूर्ति है इसीलिए इस मंदिर के प्रति मुंबईकरों की अगाध आस्था और अगाध आमदनी भी है !

किन्तु देखो भाई किसी मंदिर में बहुत चढावा आये तो वह मंदिर प्रसिद्ध होगा या जहां सेलिब्रेटी लोगों का जमावाड़ा हो वह मंदिर महत्त्वपूर्ण है ऐसा नहीं ! बल्कि मंदिर की प्रसिद्धि के पिछे वहां के पुजारी व वास्तु संरचनाओं पर आधारित है, यानी 'सिद्ध विनायक गणेश' मंदिर की प्रतिमा में दक्षिणावर्ती सूंड से वह मनोकामना पूर्ति हेतु सिद्ध मूर्ति है.! और वास्तु के अनुरूप वहां की भौगोलिक संरचना भी अष्टदलवत् है, जिसकी वजह से वहां बड़ी मात्रा में चढावा आता है !

कुछ विद्वानों का मानना है कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं।

यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऎसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है।इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।

घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक-

'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई

मोबाईल नं. 09827198828

(कृपया कॉपी-पेस्ट ना करें सख्त वैधानिक कार्यवाही की जावेगी)

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