प्रश्न: लग्न कुंडली और चलित कुंडली में क्या अंतर है?
उत्तर : लग्न कुंडली का शोधन चलित कुंडली है, अंतर सिर्फ इतना है कि लग्न कुंडली यह दर्शाती है कि जन्म के समय क्या लग्न है और सभी ग्रह किस राशि में विचरण कर रहे हैं और चलित से यह स्पष्ट होता है कि जन्म समय किस भाव में कौन सी राशि का प्रभाव है और किस भाव पर कौन सा ग्रह प्रभाव डाल रहा है।
प्रश्न: चलित कुंडली का निर्माण कैसे करते हैं ?
उत्तर: जब हम जन्म कुंडली का सैद्धांतिक तरीके से निर्माण करते हैं तो सबसे पहले लग्न स्पष्ट करते हैं, अर्थात भाव संधि और भाव मध्य के उपरांत ग्रह स्पष्ट कर पहले लग्न कुंडली और उसके बाद चलित कुंडली बनाते हैं। लग्न कुंडली में जो लग्न स्पष्ट अर्थात जो राशि प्रथम भाव मध्य में स्पष्ट होती है उसे प्रथम भाव में अंकित कर क्रम से आगे के भावों में अन्य राशियां अंकित कर देते हैं और ग्रह स्पष्ट अनुसार जो ग्रह जिस राशि में स्पष्ट होता है, उसे उस राशि के साथ अंकित कर देते हैं। इस तरह यह लग्न कुंडली तैयार हो जाती है। चलित कुंडली बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किस भाव में कौन सी राशि भाव मध्य पर स्पष्ट हुई अर्थात प्रथम भाव में जो राशि स्पष्ट हुई उसे प्रथम भाव में और द्वितीय भाव में जो राशि स्पष्ट हुई उसे द्वितीय भाव में अंकित करते हैं। इसी प्रकार सभी द्वादश भावों मे जो राशि जिस भाव मध्य पर स्पष्ट हुई उसे उस भाव में अंकित करते हैं न कि क्रम से अंकित करते हैं। इसी तरह जब ग्रह को मान में अंकित करने की बात आती है तो यह देखा जाता है कि भाव किस राशि के कितने अंशों से प्रारंभ और कितने अंशों पर समाप्त हुआ। यदि ग्रह स्पष्ट भाव प्रारंभ और भाव समाप्ति के मध्य है तो ग्रह को उसी भाव में अंकित करते हैं। यदि ग्रह स्पष्ट भाव प्रारंभ से पहले के अंशों पर है तो उसे उस भाव से पहले वाले भाव में अंकित करते हैं और यदि ग्रह स्पष्ट भाव समाप्ति के बाद के अंशों पर है तो उस ग्रह को उस भाव के अगले भाव में अंकित किया जाता है। उदाहरण के द्वारा यह ठीक से स्पष्ट होगा। मान लीजिए भाव स्पष्ट और ग्रह स्पष्ट इस प्रकार हैं:
भाव स्पष्ट और ग्रह स्पष्ट से चलित कुंडली का निर्माण करते समय सब से पहले हर भाव में राशि अंकित करते हैं। उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत चलित कुंडली में प्रथम भाव मध्य में मिथुन राशि स्पष्ट हुई है। इसलिए प्रथम भाव में मिथुन राशि अंकित होगी। द्वितीय भाव में भावमध्य पर कर्क राशि स्पष्ट है, द्वितीय भाव में कर्क राशि अंकित होगी। तृतीय भाव मध्य पर भी कर्क राशि स्पष्ट है। इसलिए तृतीय भाव में भी कर्क राशि अंकित की जाएगी। चतुर्थ भाव में सिंह राशि स्पष्ट है इसलिए चतुर्थ भाव में सिंह राशि अंकित होगी। इसी प्रकार यदि उदाहरण कुंडली में देखें तो पंचम भाव में कन्या, षष्ठ में वृश्चिक, सप्तम में धनु, अष्टम में मकर, नवम में फिर मकर, दशम में कुंभ, एकादश में मीन और द्वादश में वृष राशि स्पष्ट होने के कारण ये राशियां इन भावों में अंकित की जाएंगी। लेकिन लग्न कुंडली में एक से द्वादश भावों में क्रम से राशियां अंकित की जाती हैं। राशियां अंकित करने के पश्चात भावों में ग्रह अंकित करते हैं। लग्न कुंडली में जो ग्रह जिस भाव में अंकित है, चलित में उसे अंकित करने के लिए भाव का विस्तार देखा जाता है अर्थात भाव का प्रारंभ और समाप्ति स्पष्ट।
उदाहरण लग्न कुंडली में तृतीय भाव में गुरु और चंद्र अंकित हैं पर चलित कुंडली में चंद्र चतुर्थ भाव में अंकित है क्योंकि जब तृतीय भाव का विस्तार देखकर अंकित करेंगे तो ऐसा होगा। तृतीय भाव कर्क राशि के 150 32‘49’’ से प्रारंभ होकर सिंह राशि के 120 21‘07’’ पर समाप्त होता है। गुरु और चंद्र स्पष्ट क्रमशः सिंह राशि के 080 02‘12’’ और 220 55‘22‘‘ पर हैं। यहां यदि देखें तो गुरु के स्पष्ट अंश सिंह 080 02‘12’’, तृतीय भाव प्रारंभ कर्क 150 32‘49’’ और भाव समाप्त सिंह 210 21‘07’’ के मध्य हैं, इसलिए गुरु तृतीय भाव में अंकित होगा। चंद्र स्पष्ट अंश सिंह 220 55‘22’’ भाव मध्य से बाहर आगे की ओर है, इसलिए चंद्र को चतुर्थ भाव में अंकित करेंगे। इसी तरह सभी ग्रहों को भाव के विस्तार के अनुसार अंकित करेंगे। उदाहरण कुंडली में सूर्य, बुध एवं राहु के स्पष्ट अंश भी षष्ठ भाव के विस्तार से बाहर आगे की ओर हैं, इसलिए इन्हें अग्र भाव सप्तम में अंकित किया गया है।
प्रश्न: चलित कुंडली में ग्रहों के साथ-साथ राशियां भी भावों में बदल जाती हैं, कहीं दो भावों में एक ही राशि हो तो इससे फलित में क्या अंतर आता है?
उत्तर: हर भाव में ग्रहों के साथ-साथ राशि का भी महत्व है। चलित कुंडली का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि हमें भावों के स्वामित्व का भली-भांति ज्ञान होता है। लग्न कुंडली तो लगभग दो घंटे तक एक सी होगी लेकिन समय के अनुसार परिवर्तन तो चलित कुंडली ही बतलाती है। जैसे ही राशि भावों में बदलेगी भाव का स्वामी भी बदल जाएगा। स्वामी के बदलते ही कुंडली में बहुत परिवर्तन आ जाता है। कभी योगकारक ग्रह की योगकारकता समाप्त हो जाती है तो कहीं अकारक और अशुभ ग्रह भी शुभ हो जाता है। ग्रह की शुभता-अशुभता भावों के स्वामित्व पर निर्भर करती है। इसलिए फलित में विशेष अंतर आ जाता है। उदाहरण लग्न कुंडली में एक से द्वादश भावों के स्वामी क्रमशः बुध, चंद्र, सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, शनि, गुरु, मंगल और शुक्र और चलित में एक से द्वादश भावों के स्वामी क्रमशः बुध, चंद्र, चंद्र, सूर्य, बुध, मंगल, गुरु, शनि, शनि, शनि, गुरु और शुक्र हैं। इस तरह से देखें तो लग्न कुंडली में मंगल अकारक है लेकिन चलित में वह अकारक नहीं रहा। सूर्य लग्न में तृतीय भाव का स्वामी होकर अशुभ है लेकिन चलित में चतुर्थ का स्वामी होकर शुभ फलदायक हो गया है। शुक्र, जो शुभ है, सिर्फ द्वादश का स्वामी होकर अशुभ फल देने वाला हो गया है। इसलिए भावों के स्वामित्व और शुभता-अशुभता के लिए भी चलित कुंडली फलित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रश्न: चलित में ग्रह जब भाव बदल लेता है तो क्या हम यह मानें कि ग्रह राशि भी बदल गई?
उत्तर: ग्रह सिर्फ भाव बदलता है, राशि नहीं। ग्रह जिस राशि में जन्म के समय स्पष्ट होता है उसी राशि में रहता है। ग्रह उस भाव का फल देगा जिस भाव में चलित कुंडली में वह स्थित होता है। जैसे कि उदाहरण लग्न कुंडली में सूर्य, बुध, राहु वृश्चिक राशि में स्पष्ट हुए लेकिन चलित में ग्रह सप्तम भाव में हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि वे धनु राशि के होंगे। ये ग्रह वृश्चिक राशि में रहते हुए सप्तम भाव का फल देंगे।
प्रश्न: क्या चलित में ग्रहों की दृष्टि में भी परिवर्तन आता है?
उत्तर: ग्रहों की दृष्टि कोण के अनुसार होती है। अतः लग्नानुसार दृष्टि का विचार करना चाहिए। लेकिन जो ग्रह चलित में भाव बदल लेते हैं उनकी दृष्टि लग्नानुसार करना ठीक नहीं है और न ही चलित कुंडली के अनुसार। अतः दृष्टि के लिए ग्रहों के अंशादि का विचार करना ही उत्तम है।
प्रश्न: निरयण भाव चलित और चलित कुंडली में क्या अंतर है?
उत्तर: चलित कुंडली में भाव का विस्तार भाव प्रारंभ से भाव समाप्ति तक है और भावमध्य भाव का स्पष्ट माना जाता है। लेकिन निरयण भाव में लग्न को ही भाव का प्रारंभ माना जाता है अर्थात जो भाव चलित कुंडली में भाव मध्य है, निरयण भाव चलित में वह भाव प्रारंभ या भाव संधि है। इस प्रकार एक भाव का विस्तार भाव प्रारंभ से दूसरे भाव के प्रारंभ तक माना जाता है। वैदिक ज्योतिष मे चलित को ही महत्व दिया गया है। कृष्णमूर्ति पद्धति में निरयण भाव को महत्व दिया गया है।
प्रश्न: जन्मपत्री लग्न कुंडली से देखनी चाहिए या चलित कुंडली से?
उत्तर: जन्मपत्री चलित कुंडली से देखनी चाहिए क्योंकि चलित में ग्रहों और भाव राशियों की स्पष्ट स्थिति दी जाती है।
प्रश्न: क्या भाव संधि पर ग्रह फल देने में असमर्थ हैं?
उत्तर: कोई ग्रह उसी भाव का फल देता है जिस भाव में वह रहता है। जो ग्रह भाव संधि में आ जाते हैं वे लग्न के अनुसार भाव के फल न देकर चलित के अनुसार भाव फल देते हैं, लेकिन वे फल कम देते हैं ऐसा नहीं है। वे चलित भाव के पूरे फल देते हैं।
प्रश्न: चलित कुंडली में दो भावों में एक राशि कैसे आ जाती है?
उत्तर: हां, ऐसा हो सकता है। यदि दोनों भावों में भाव मध्य पर एक ही राशि स्पष्ट हो जैसे द्वितीय भाव में कर्क 20 08‘40’’ पर है और तृतीय भाव में कर्क 280 56‘58’’ पर स्पष्ट हुई तो दोनों भावों, द्वितीय और तृतीय में कर्क राशि ही अंकित की जाएगी।
प्रश्न: यदि चलित कुंडली में ग्रह उस भाव में विचरण कर जाए जहां पर उसकी उच्च राशि है तो क्या उसे उच्च का मान लेना चाहिए?
उत्तर: नहीं। ग्रह उच्च राशि में नजर आता है। वास्तव में ग्रह ने भाव बदला है, राशि नहीं। इसलिए वह ग्रह उच्च नहीं माना जा सकता है।
प्रश्न: चलित कुंडली को बनाने में क्या अंतर है ?
उत्तर: चलित कुंडली दो प्रकार से बनाई जाती है - एक, जिसमें भाव की राशियों को दर्शित कर ग्रहों को भावानुसार रख देते हैं। दूसरे, दो भावों के मध्य में भाव संधि बना दी जाती है एवं जो ग्रह भाव बदलते हैं उन्हें भाव संधि में रख दिया जाता है। उदाहरणार्थ निम्न कुंडली दी गई है।
प्रश्न: यदि मंगल लग्न कुंडली में षष्ठ भाव में है और चलित में सप्तम भाव में तो क्या कुंडली मंगली हो जाती है?
उत्तर: चलित कुंडली में ग्रह किस भाव में है इसका महत्व है और मंगली कुंडली भी मंगल की भाव स्थिति के अनुसार ही मंगली कही जाती है। इसलिए यदि चलित में मंगल सप्तम में है तो कुंडली मंगली मानी जाएगी।
प्रश्न: यदि मंगल सप्तम भाव में लग्न
कुंडली में और चलित कुंडली में अष्टम भाव में हो तो क्या कुंडली को मंगली मानें?
उत्तर: मंगल की सप्तम और अष्टम दोनों स्थितियों से कुंडली मंगली मानी जाती है, इसलिए ऐसी स्थिति में मंगल दोष भंग नहीं होता।
प्रश्न: ग्रह किस स्थिति में चलायमान होता है?
उत्तर: यदि ग्रह के स्पष्ट अंश भाव के विस्तार से बाहर हैं तो ग्रह चलायमान हो जाता है।
प्रश्न: किन स्थितियों में चलित में ग्रह और राशि बदलती है?
उत्तर: यदि लग्न स्पष्ट प्रारंभिक या समाप्ति अंशों पर हो तो चलित में ग्रह का भाव बदलने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं क्योंकि किसी भी भाव के मध्य राशि के एक छोर पर होने के कारण यह दो राशियों के ऊपर फैल जाता है। अतः दूसरी राशि में स्थित ग्रह पहली राशि में दृश्यमान होते हैं।
प्रश्न: ग्रह चलित में किस स्थिति में लग्न जैसे रहते हैं?
उत्तर: यदि लग्न स्पष्ट राशि के मध्य में हो और ग्रह भी अपनी राशि के मध्य में अर्थात 5 से 25 अंश के भीतर हों तो ऐसी स्थिति में लग्न और चलित एक से ही रहते हैं।
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई
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