ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

हर अभिभावकों को पढ़ना जरुरी है... सिगरेट धारी... भ्रष्टाचारी सर्वभक्षी विद्यार्थिनां पंचलक्षणम्....!

.हर अभिभावकों को पढ़ना जरुरी है... सिगरेट धारी... भ्रष्टाचारी सर्वभक्षी विद्यार्थिनां पंचलक्षणम्....!

अपनी सहचरी मोटरसायकल से अल सुबह 7 बजे सुबह मैं भिलाई स्थित नेहरु नगर के एक स्थान पर पहुंचा ही था की, वर्षा शुरु हो गई, मैं वहीं एक पान ठेला पर रुक गया ! ... साथियों मेरी नजर वहीं पास में खड़े स्कूली लिबास में एक 16 या 17 वर्ष के छात्र पर पड़ी जो पास के ही एक नीजी स्कूल का छात्र है, वह छात्र पान ठेला संचालक से बोला - "अंकल... मुझे एक सिगरेट और मेन्टोफ्रेस टाफी दिजीये..! मैं यह दृश्य देखकर अवाक़ था स्कूली छात्र वहीं बगल में खड़ा होकर सिगरेट की कश़ लगा रहा था, उसके कुछ और दोस्त वहीं बगल में सायकल खड़ी करके सिगरेट की कश़ लगाने लगे !  उन बच्चों के चले जाने के बाद उस पान ठेले के संचालक से पूछा - क्यों भाई ? ये बच्चे रोज आते हैं क्या ? उस पाऩ ठेला संचालक ने कहा - प्रतिदिन 20 से 30 बच्चे आते हैं, कुछ तो बच्चे आते के साथ ही सिगरेट पीना चाहते हैं, कुछ वापसी में लेकर जाते हैं.... ये वो बच्चे होते हैं जो अपनी गाड़ियों या सायकल से स्कूल आते हैं ! 

मेरे लिये बेहद आश्चर्य का विषय था ! क्योंकि हम लोगों ने संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की, जहां आज भी वाराणसी के संस्कृत विद्यालयों में आश्रमी-शिक्षण पद्धति के मौलिकता का ध्यान रखा जाता है, वही संस्कार, वही गरु-शिष्य की परम्परा तथा सामाजिक ताना-बाना जो नैतिकता से पूर्ण 'अयं निज: परोवेति....!  और 

काक चेष्टा वको ध्यानम्, श्वान निद्रा तथैव च !

अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम् !! यह विद्यार्थियों के पांच लक्षण बताया जाता था !  की सीख दी जाती थी !  

किन्तु आज प्राईवेट स्कूल चलाने वाले स्कूल को 'प्रोफेशनल बिजनेश' की भांति व्यापार चला रहे हैं, विद्यालय नहीं ! मैकाले शिक्षा प्रणाली के छांव तले इन शिक्षा के व्यापारियों ने लुभावने तथा बच्चों के लिये मनभावन खिलौनों का बड़े-बड़े विज्ञापनों के माध्यम से शहर में ऐसा माहौल तैयार करते हैं मानो की वह सर्वोत्कृष्ट शिक्षण संस्थान है, परन्तु ऐसे शिक्षण संस्थानों में ना ही नैतिकता पर बल दिया जाता है, ना ही इन लोगों ने कभी बच्चों को 'छात्र' समझा ये लोग 'बच्चो' को ग्राहक समझते हैं, नहीं तो स्कूल के आस-पास पान ठेलों, खोमचों पर इनकी पैनी निगाहें अवश्य रहती ! 

खैर, और अधिक कठोर शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहता क्योंकि लगभग भारत के विभिन्न हाईटेक शहरों के कमोबेस सभी नीजी शिक्षण संस्थानों की वही बात है ! जरुरत है हमें ऐसे स्कूलों में बच्चों को दाखिला दिलायें, जहां वैदिक शिक्षण पद्धति के अन्तर्गत नैतिक-शिक्षा प्रदान की जाती हो ! 

 नहीं तो आज बदलते परिवेश में छात्रों के पांच लक्षण कुछ इस प्रकार हो जायेगा.... प्रस्तुत है स्वयं का निर्माणित एक श्लोक....

सिनेचर्चा केशध्यानं कुम्भनिद्रा तथैव च !

सिगरेटधारी, भ्रष्टाचारी सर्वभक्षी विद्यार्थिनां पंचलक्षणम्!!

- पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, 9827198828 http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_25.html?m=1

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