जीतने की सोचोगे तो जीत ही मिलेगी सदा हारने की सोचोगे तो हार जाओगे तुम ... -डॉ. संतोष राय
प्रोफेशनल कैरियर एण्ड कम्प्यूटर्स
१९६, जोनल मार्केट, सेक्टर-10, भिलाई.
हर सफल व्यक्ति के पास दो हाथ दो पैर और एक खूबसूरत दिमाग होता है। वह उनका उपयोग कैसे करता है यह महत्त्वपूर्ण है।
किसी भी जीत या किसी भी सफलता की शुरूआत एक बेहतर सोच से होती है। किसी ने कहा कि अभिषेक कितना अच्छा पेन्टर है। कितनी खूबसूरत पेन्टिंग बनाता है। उसके हाथो में जादू है। इसका दूसरा पहलू उस पेन्टर के खूबसूरत दिमाग में खूबसूरत सोच है। तभी हाथ खुबसूरत चित्र को कोरे कागज पर उतारने में सफल हो पाता है। दिमाग ही (सोच ही) वह आधार है जहां से सफलता की शुरूआत होती है। ज्यादातर लोग सायकल को स्टैंड पर खड़ा करके बहुत तेजी से चलाते हुए मंजिल तक जाने की सोच रखते है। परन्तु सायकल तो स्टैंड पर खड़ी है और केवल पिछला पहिया ही चल रहा है। ऐसे में वह अपनी मंजिल तक कैसे पहुंच पायेगा। उसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ बेहतर सोच होना आवश्यक है।
आज का युवा देश का भविष्य है। और औद्योगिक एवं प्रबन्धकीय युग में ''स्मार्टÓÓयुवाओं की मांग है। विषय का ज्ञान तो आवश्यक है। परंतु स्मार्ट होना भी जरूरी है । ''स्मार्ट,, बनने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी संस्कृति व माता पिता को भूल जायें। अगर आप बेहतर करने की ख्वाहिश रखते हो तो कड़ी मेहनत के साथ-साथ एक बेहतर सोच भी आवश्यक है।
माता पिता (पालक) को भी एक ही सुझाव है। अगर बच्चा कुछ सोच या करने की चाह रखता है तो उसे प्रोत्साहित करें, निगेटिव सोच कार्य को नकारात्मक कर देगी, अगर आपका बच्चा सी.ए. करना चाहता है या आईसीडब्लूए या सी.एस. या आईआईटी या पीएमटी या एआईईईई या कोई भी कोर्स करना चाहता है तो आप उसके साथ बैठकर उसके निर्णय में एक बेहतर सुझाव दीजिए न कि आप उसे यह कहें कि देख तू कर पायेगा कि नहीं, मेरा पैसा तो नहीं बर्बाद करेगा, तेरे से कुछ होगा नहीं, पढऩे लिखने में मन लगता नहीं चले हो.... ।
ऐसी निगेटिव सोच के साथ शुरआत निगेटिव ही होगी, नुकसान की सोच पहले होगी तो नुकसान तो होगा ही. मैने अपनी पर्सनाल्टी डेवलपमेंट की कार्यशाला में कुछ छात्र-छात्राओं पर रिसर्च किया तो पाया कि छात्रों और उनके माता पिता के बीच में होने वाले संवाद काफी सीमित हैं। ज्यादातर बातें (माता-पिता और पुत्र-पुत्री के बीच) आज के व्यस्ततम समय की बातचीत
1. बेटे चलो जाओ पढ़ाई करो।
2. अभी तक यहीं बैठा है।
3. पढ़ाई कैसी चल रही है।
4. टी. वी. देखना बन्द करो।
5. बाद में पछताओगे।
6. और नम्बर लाना है।
7. गाड़ी तेज मत चलाया करो।
8. तुम्हारी बहुत दोस्ती हो गयी है।
उन कुछ गिने चुने संवादों से पूरी दिनचर्या को समझते हुए बच्चे के साथ बैठे और उन्हे इन्ही बातों को बेहतर अंदाज में समझाते (परन्तु समझाने वो संवाद कुछ लम्बे न हों वरन संक्षिप्त एवं प्रभावी हों)
जैसे :- गाड़ी तेज मत चलायाकर बेटा कुछ भी गलत होगा तो तेरे पापा एवं मम्मी तेरे बगैर रह नहीं पाएंगे। बच्चे के इम्पार्टेंस एवं उपयोगिता को बतायें।
प्रोफेशनल कैरियर एण्ड कम्प्यूटर्स
१९६, जोनल मार्केट, सेक्टर-10, भिलाई.
हर सफल व्यक्ति के पास दो हाथ दो पैर और एक खूबसूरत दिमाग होता है। वह उनका उपयोग कैसे करता है यह महत्त्वपूर्ण है।
किसी भी जीत या किसी भी सफलता की शुरूआत एक बेहतर सोच से होती है। किसी ने कहा कि अभिषेक कितना अच्छा पेन्टर है। कितनी खूबसूरत पेन्टिंग बनाता है। उसके हाथो में जादू है। इसका दूसरा पहलू उस पेन्टर के खूबसूरत दिमाग में खूबसूरत सोच है। तभी हाथ खुबसूरत चित्र को कोरे कागज पर उतारने में सफल हो पाता है। दिमाग ही (सोच ही) वह आधार है जहां से सफलता की शुरूआत होती है। ज्यादातर लोग सायकल को स्टैंड पर खड़ा करके बहुत तेजी से चलाते हुए मंजिल तक जाने की सोच रखते है। परन्तु सायकल तो स्टैंड पर खड़ी है और केवल पिछला पहिया ही चल रहा है। ऐसे में वह अपनी मंजिल तक कैसे पहुंच पायेगा। उसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ बेहतर सोच होना आवश्यक है।
आज का युवा देश का भविष्य है। और औद्योगिक एवं प्रबन्धकीय युग में ''स्मार्टÓÓयुवाओं की मांग है। विषय का ज्ञान तो आवश्यक है। परंतु स्मार्ट होना भी जरूरी है । ''स्मार्ट,, बनने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी संस्कृति व माता पिता को भूल जायें। अगर आप बेहतर करने की ख्वाहिश रखते हो तो कड़ी मेहनत के साथ-साथ एक बेहतर सोच भी आवश्यक है।
माता पिता (पालक) को भी एक ही सुझाव है। अगर बच्चा कुछ सोच या करने की चाह रखता है तो उसे प्रोत्साहित करें, निगेटिव सोच कार्य को नकारात्मक कर देगी, अगर आपका बच्चा सी.ए. करना चाहता है या आईसीडब्लूए या सी.एस. या आईआईटी या पीएमटी या एआईईईई या कोई भी कोर्स करना चाहता है तो आप उसके साथ बैठकर उसके निर्णय में एक बेहतर सुझाव दीजिए न कि आप उसे यह कहें कि देख तू कर पायेगा कि नहीं, मेरा पैसा तो नहीं बर्बाद करेगा, तेरे से कुछ होगा नहीं, पढऩे लिखने में मन लगता नहीं चले हो.... ।
ऐसी निगेटिव सोच के साथ शुरआत निगेटिव ही होगी, नुकसान की सोच पहले होगी तो नुकसान तो होगा ही. मैने अपनी पर्सनाल्टी डेवलपमेंट की कार्यशाला में कुछ छात्र-छात्राओं पर रिसर्च किया तो पाया कि छात्रों और उनके माता पिता के बीच में होने वाले संवाद काफी सीमित हैं। ज्यादातर बातें (माता-पिता और पुत्र-पुत्री के बीच) आज के व्यस्ततम समय की बातचीत
1. बेटे चलो जाओ पढ़ाई करो।
2. अभी तक यहीं बैठा है।
3. पढ़ाई कैसी चल रही है।
4. टी. वी. देखना बन्द करो।
5. बाद में पछताओगे।
6. और नम्बर लाना है।
7. गाड़ी तेज मत चलाया करो।
8. तुम्हारी बहुत दोस्ती हो गयी है।
उन कुछ गिने चुने संवादों से पूरी दिनचर्या को समझते हुए बच्चे के साथ बैठे और उन्हे इन्ही बातों को बेहतर अंदाज में समझाते (परन्तु समझाने वो संवाद कुछ लम्बे न हों वरन संक्षिप्त एवं प्रभावी हों)
जैसे :- गाड़ी तेज मत चलायाकर बेटा कुछ भी गलत होगा तो तेरे पापा एवं मम्मी तेरे बगैर रह नहीं पाएंगे। बच्चे के इम्पार्टेंस एवं उपयोगिता को बतायें।
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