प्रायवेट स्कूलों की मनमानी
एक ओर जहां सीसीई सिस्टम ने लोगों को चिंता में डाल दिया है वहीं दुर्ग जिले में प्रायवेट स्कूलों की मनमानी और फीस बढ़ोत्तरी जैसे कई मामलों में अंकुश लगाने में प्रशासनिक सुस्ती से पालक वर्ग खासा नाराज दिखाई दे रहा है। शहरी क्षेत्रों में एक प्रकार से निजी स्कूलों ने पालकों को लूटने में कहीं से कोई कसर बाकी नहीं रखी है। स्कूलों में ही कापी-किताब, ड्रेस, जूते-मोजे, टाई, स्कूल बैग सभी कुछ बिकने लगा है, पालकों पर बाध्यता है कि वे स्कूल की निश्चित दुकान से ही अपने बच्चों के लिये सामान खरीदें अगर उन्हें उस स्कूल में बच्चे को पढ़ाना है। हर वर्ष बिल्डिंग फंड, डोनेशन, कॉशन मनी व केपिटेशन फीस के नाम पर पालकों की जेब खाली की जा रही है। ज्ञान केन्द्रों पर अब खुले तौर पर व्यवसाय किया जाने लगा है। दुर्ग जिले में इसके विरोध में लगातार चलाये जा रहे आंदोलन के बाद जैसे-तैसे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने की कार्रवाई बलवती होती दिखाई पड़ी थी लेकिन इस संबंध में कलेक्टर का निर्देश भी अब महज कागजी बन कर उपहास का कारण बन गया है।
प्रतियोगी परीक्षा में को- स्कॉलिस्टिक नगण्य...
पं. रविशंकर शुल्क विश्वविद्यालय रायपुर के एक वरिष्ठ प्रोफेसर से जब मैंने चर्चा कि तो उन्होंने कहा कि सामान्यत: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में अगर किसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है तो वह है शिक्षा-प्रणाली। गैर-सरकारी और एनजीओ द्वारा किए गए कार्य और प्राप्त आंकड़ों के आधार एवं सरकारी महकमे के चंद चापलूस शिक्षाविदें और अधिकारियों की सांठ-गांठ से हमेशा शिक्षा पद्धतियों व नीतियों में परिवर्तन किया जाता रहा है। शासन द्वारा यह पहल आम बच्चों को ध्यान में रख कर की जाती है लेकिन जब आप अखिल भारतीय स्तर पर रोजगार के लिये सिविल सर्विस परीक्षा, बैंक, वैज्ञानिक अनुसंधान, डॉक्टर, इंजीनियरिंग की परीक्षा की ओर ध्यान देते हैं तो इसमें वहीं बच्चे सफल होते हैं जो विषय ज्ञान (स्कॉलिस्टिक एरिया) रखते हैं। यहां को-स्कॉलिस्टिक एरिया नगण्य है।
हर माल एक रूपये में ...
की तर्ज पर सीसीई प्रणाली
च्च्आज भले ही स्कूली छात्र-छात्राओं व अभिभावकों द्वारा केन्द्र सरकार की नवीनतम शिक्षा प्रणाली ष्टशठ्ठह्लद्बठ्ठह्वशह्वह्य & ष्टशद्वश्चह्म्द्गद्धद्गह्यद्ब1द्ग श्व1ड्डद्यह्वड्डह्लद्बशठ्ठ स्4ह्यह्लद्गद्व (सीसीई सिस्टम) का विरोध न किया गया हो लेकिन आने वाले समय में यही वर्ग भारतीय शिक्षा-प्रणाली के इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह वर्तमान मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का नाम काले अक्षर में लिखेगा। जब विषय के मूल ज्ञान के अभाव में यही वर्ग बेरोजगारी की अनंत कतार में अपने भविष्य का आंकलन करेगा तब तक काफी देर हो चुकी होगी।ज्ज्
कपिल सिब्बल या उनके संरक्षण की चादर तले छिपे कई शिक्षाविद् भले आज लाल किला या इंडिया गेट पर चढ़ कर डंके की चोट पर इस बात का दावा करें कि उनकी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन करने कटिबद्ध है लेकिन सच्चाई यही है कि नई सीसीई शिक्षा प्रणाली एक ओर जहां आने वाले वर्षों में मूर्ख मानव संसाधन का एक विशाल जमघट खड़ा करने पर आमादा है वहीं सरकारी से गैर-सरकारी और निजी विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को छात्र-छात्राओं व पालकों के सामने आईने के सामने खड़ा कर दिया है। हालांकि वर्तमान सीसीई सिस्टम ने दसवीं के परिक्षा परिणाम में अनुत्तीर्ण हुए या अपेक्षा से कम अंक पाने वाले छात्र-छात्राओं द्वारा की जाने वाली खुदकुशी की घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से कम किया है लेकिन ये परिणाम सिर्फ तात्कालीन हैं, इसके दूरगामी परिणाम तब काफी खतरनाक रूख दिखायेंगे जब हाथ में डिग्री लेकर सड़कों पर नौकरी या रोजगार की तलाश में यह वर्ग दर-दर भटकेगा क्योंकि उस समय एक विशाल समूह के पास विषय के मूल ज्ञान का पर्याप्त अभाव होगा।
सीसीई सिस्टम की सबसे बड़ी च्च्खामीज्ज्
सीसीई सिस्टम की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसने छात्र-छात्राओं द्वारा परीक्षा में प्राप्त अंकों को गुप्त रखा है, उसे ग्रेड में दर्शाया है ताकि परिक्षा परिणाम के तुरंत बाद (ऐसे समय ही छात्र-छात्रा खुदकुशी की ओर अग्रसर होते हैं) उन्हें अपने अंकों का पता न चले, साथ ही कमजोर छात्र-छात्राओं को परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु न्यूनतम अंक (30 से 40) ग्रेड प्राप्त करने के लिये तीन अवसर तो दिए गए हैं परंतु स्कूलों को यह भी निर्देश है कि किसी भी हालत में संबंधित बच्चे को उस वर्ग में अनुत्तीर्ण घोषित न किया जाये।
स्कॉलिस्टिक एरिया ए- में कुल नौ ग्रेड बनाये गये हैं :- ए-1 (91 से 100, ग्रेड पाइंट-10), ए-2 (81 से 90, ग्रेड पाइंट-9), बी-1 (71 से 80, ग्रेड पाइंट-8), बी-2 (61 से 70, ग्रेड पाइंट-7), सी-1 (51 से 60, ग्रेड पाइंट-6), सी-2 (41 से 50, ग्रेड पाइंट-5), डी (33 से 40, ग्रेड पाइंट-4), ई-1 (21 से 32) एवं ई-2 (00 से 20) जो मूलत: पांच ग्रेड ए+, ए, बी+, बी एवं सी ग्रेड के रूप में क्रियान्वित हुए हैं जबकि को-स्कॉलिस्टिक एरिया में तीन एरिया - लाईफ स्किल्स (ए+, ए और बी ग्रेड), एडिट्यूट एण्ड वैल्यू (ए+, ए, बी ग्रेड) और एक्टिविटी एण्ड क्लब (ए+, ए और बी ग्रेड) क्रियान्वित किये गये हैं।
कैसे जगायेंगे
च्च्अव्वल रहने की भावनाज्ज्
दुर्भाग्य यह है कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) अपनी स्थापना के 48 वर्षों बाद से जिस तरह इस नई प्रणाली को क्रियान्वित किया है वह भले अभिभावकों को देखने व सुनने में आकर्षित करता रहा हो लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभिभावकों व बच्चों को जिस तरह से अंधकार में रखा गया वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही है। नई सीसीई प्रणाली ने जहां शिक्षक-शिक्षिकाओं को ओव्हर बर्डन किया है वहीं छात्र-छात्राओं को को-स्कोलास्टिक एरिया की ओर उन्मुख कर उन्हें विषय के मूल ज्ञान से किनारे कर दिया है। इतना ही नहीं, बच्चों के मन में यह बैठ गया है कि शिक्षक उन्हें किसी भी हालत में अनुत्तीर्ण घोषित नहीं कर सकता और न ही दण्डित कर सकता है (चाहे स्कूल में उनका कैसा भी व्यवहार क्यों न हो), सिवाय इसके कि वे (शिक्षक-शिक्षिकाएं) उनकी डायरी में उनके अभिभावक के नाम एक नोट लिख दें कि उनका बच्चा स्कूली वातावरण को विषाक्त कर रहा है।
पप्पू पास हो कर भी किस काम का....?
अगर कोई बच्चा डी ग्रेड लाता है, यानि उसके अंक 33-40 प्रतिशत के बीच हैं तो उसे अगले वर्ग में भेजना ही पड़ेगा। इतना ही नहीं ई-1 या ई-2 ग्रेड पाने वाले (00 से 32 अंक) बच्चों को इस प्रणाली के अनुरूप तीन अवसर दिए जायेंगे ताकि वह डी ग्रेड प्राप्त कर अगले वर्ग में दाखिला ले सकें, परंतु किसी भी हालत में उस विद्यार्थी को शिक्षक अनुत्तीर्ण घोषित नहीं करेंगे। इस प्रणाली में स्कोलास्टिक एवं को-स्कोलास्टिक एरिया के तहत प्रत्येक स्कूल या शिक्षकों को 100 प्रतिशत में से 60 प्रतिशत अंक देने का प्रावधान है। अब अगर बच्चे को गणित या विज्ञान में या अंग्रेजी में मात्र 5 से 10 अंक मिले और प्रदत्त अधिकार के अधीन शिक्षक उसे उन एरिया में प्राप्त अंक को जोड़ कर और औसत अंक के आधार पर उत्तीर्ण घोषित कर देंगे तो ऐसे में बच्चा पास हो कर भी किस काम का....?
कार्यशैली से बढ़ी नाराजगी
-जारी है आंदोलन
गौरतलब हो कि डीईओ टीम के निरीक्षण के बाद जब कलेक्टर ने जनसुनवाई के लिए संयुक्त कलेक्टर पी तिर्की और डिप्टी कलेक्टर जीवन सिंह राजपूत को जिम्मेदारी सौंपी तो पैरेंट्स में आस जगी थी। पैरेंट्स ने तो राहत की उम्मीद पाल ली लेकिन जिला प्रशासन ही सुस्त होता चला गया। जनसुनवाई की रिपोर्ट कलेक्टर के टेबल पर देर से पहुंची। फाइल पर उन्होंने निर्णय लेकर डीईओ को कार्रवाई के निर्देश दे दिए। निर्देश की कापी डीईओ कार्यालय में दब गई। दोषी निजी स्कूल निश्चिंत हो गए। जिम्मेदार अधिकारी बताते हंै कि कलेक्टर के निर्देश के बाद तीन अधिकारियों की बैठक हुई जिसमें तकरीबन आधे घंटे तक मंत्रणा के बाद सीधे कहा गया कि कुछ मत करो। कागजी कार्रवाई वैसे ही रहने दो, मौखिक बात सुनो। हालांकि बैठक में मौजूद एक अधिकारी इससे सहमत नहीं थे। बाद में उन्होंने दूसरे अधिकारी से चर्चा भी की पर अपने बड़े अफसर के सामने जुबान खोलने हिम्मत नहीं जुटा पाए। इस तरह कलेक्टर का कागजी निर्देश बिसरा दिया गया। 4 जुलाई व 23 अगस्त को लोक शिक्षण विभाग संचालनालय व मंत्रालय से प्रायवेट स्कूलों के संबंध में आदेश जारी कर बिल्डिंग फंड, डोनेशन, कॉशन मनी व केपिटेशन फीस पर तत्काल रोक लगाने कहा गया था लेकिन यह आदेश भी डीईओ ने ताक पर रख दिया।
कलेक्टर की कड़ी हिदायत के बाद भी प्रायवेट स्कूलों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में आये निर्देश कि निजी विद्यालय भी सूचना के अधिकार के दायरे में आयेंगे, के बाद जिले के निजी स्कूलों में खासी खलबली देखी जा रही है। कांग्रेस के युवा नेता सीजू एंथोनी लम्बे समय से निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। श्री एंथोनी ने ज्योतिष का सूर्य से चर्चा में कहा कि उनका संघर्ष अभी रूका नहीं है। जिलाधीश की पहल के बाद इस मामले में लोगों के बीच आश जगी थी कि शिक्षा के व्यावसायीकरण पर अब लगाम लग सकेगी लेकिन निर्देश के बाद भी अमल में लाने वाले अधिकारी ढिलाई बरत रहे हैं। श्री एंथोनी ने कहा कि- कुछ दिन इंतजार किया जा रहा है अगर इसके बाद भी हालात जस के तस रहे तो क्षेत्र की जनता के साथ उग्र आंदोलन करने विवश होंगे जिसके लिये सीधे तौर पर जिला प्रशासन जिम्मेदार होगा ।
संतोष मिश्रा
पत्रकार, भिलाई
- संतोष मिश्रा
एक ओर जहां सीसीई सिस्टम ने लोगों को चिंता में डाल दिया है वहीं दुर्ग जिले में प्रायवेट स्कूलों की मनमानी और फीस बढ़ोत्तरी जैसे कई मामलों में अंकुश लगाने में प्रशासनिक सुस्ती से पालक वर्ग खासा नाराज दिखाई दे रहा है। शहरी क्षेत्रों में एक प्रकार से निजी स्कूलों ने पालकों को लूटने में कहीं से कोई कसर बाकी नहीं रखी है। स्कूलों में ही कापी-किताब, ड्रेस, जूते-मोजे, टाई, स्कूल बैग सभी कुछ बिकने लगा है, पालकों पर बाध्यता है कि वे स्कूल की निश्चित दुकान से ही अपने बच्चों के लिये सामान खरीदें अगर उन्हें उस स्कूल में बच्चे को पढ़ाना है। हर वर्ष बिल्डिंग फंड, डोनेशन, कॉशन मनी व केपिटेशन फीस के नाम पर पालकों की जेब खाली की जा रही है। ज्ञान केन्द्रों पर अब खुले तौर पर व्यवसाय किया जाने लगा है। दुर्ग जिले में इसके विरोध में लगातार चलाये जा रहे आंदोलन के बाद जैसे-तैसे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने की कार्रवाई बलवती होती दिखाई पड़ी थी लेकिन इस संबंध में कलेक्टर का निर्देश भी अब महज कागजी बन कर उपहास का कारण बन गया है।
प्रतियोगी परीक्षा में को- स्कॉलिस्टिक नगण्य...
पं. रविशंकर शुल्क विश्वविद्यालय रायपुर के एक वरिष्ठ प्रोफेसर से जब मैंने चर्चा कि तो उन्होंने कहा कि सामान्यत: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में अगर किसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है तो वह है शिक्षा-प्रणाली। गैर-सरकारी और एनजीओ द्वारा किए गए कार्य और प्राप्त आंकड़ों के आधार एवं सरकारी महकमे के चंद चापलूस शिक्षाविदें और अधिकारियों की सांठ-गांठ से हमेशा शिक्षा पद्धतियों व नीतियों में परिवर्तन किया जाता रहा है। शासन द्वारा यह पहल आम बच्चों को ध्यान में रख कर की जाती है लेकिन जब आप अखिल भारतीय स्तर पर रोजगार के लिये सिविल सर्विस परीक्षा, बैंक, वैज्ञानिक अनुसंधान, डॉक्टर, इंजीनियरिंग की परीक्षा की ओर ध्यान देते हैं तो इसमें वहीं बच्चे सफल होते हैं जो विषय ज्ञान (स्कॉलिस्टिक एरिया) रखते हैं। यहां को-स्कॉलिस्टिक एरिया नगण्य है।
हर माल एक रूपये में ...
की तर्ज पर सीसीई प्रणाली
च्च्आज भले ही स्कूली छात्र-छात्राओं व अभिभावकों द्वारा केन्द्र सरकार की नवीनतम शिक्षा प्रणाली ष्टशठ्ठह्लद्बठ्ठह्वशह्वह्य & ष्टशद्वश्चह्म्द्गद्धद्गह्यद्ब1द्ग श्व1ड्डद्यह्वड्डह्लद्बशठ्ठ स्4ह्यह्लद्गद्व (सीसीई सिस्टम) का विरोध न किया गया हो लेकिन आने वाले समय में यही वर्ग भारतीय शिक्षा-प्रणाली के इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह वर्तमान मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का नाम काले अक्षर में लिखेगा। जब विषय के मूल ज्ञान के अभाव में यही वर्ग बेरोजगारी की अनंत कतार में अपने भविष्य का आंकलन करेगा तब तक काफी देर हो चुकी होगी।ज्ज्
कपिल सिब्बल या उनके संरक्षण की चादर तले छिपे कई शिक्षाविद् भले आज लाल किला या इंडिया गेट पर चढ़ कर डंके की चोट पर इस बात का दावा करें कि उनकी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन करने कटिबद्ध है लेकिन सच्चाई यही है कि नई सीसीई शिक्षा प्रणाली एक ओर जहां आने वाले वर्षों में मूर्ख मानव संसाधन का एक विशाल जमघट खड़ा करने पर आमादा है वहीं सरकारी से गैर-सरकारी और निजी विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को छात्र-छात्राओं व पालकों के सामने आईने के सामने खड़ा कर दिया है। हालांकि वर्तमान सीसीई सिस्टम ने दसवीं के परिक्षा परिणाम में अनुत्तीर्ण हुए या अपेक्षा से कम अंक पाने वाले छात्र-छात्राओं द्वारा की जाने वाली खुदकुशी की घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से कम किया है लेकिन ये परिणाम सिर्फ तात्कालीन हैं, इसके दूरगामी परिणाम तब काफी खतरनाक रूख दिखायेंगे जब हाथ में डिग्री लेकर सड़कों पर नौकरी या रोजगार की तलाश में यह वर्ग दर-दर भटकेगा क्योंकि उस समय एक विशाल समूह के पास विषय के मूल ज्ञान का पर्याप्त अभाव होगा।
सीसीई सिस्टम की सबसे बड़ी च्च्खामीज्ज्
सीसीई सिस्टम की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसने छात्र-छात्राओं द्वारा परीक्षा में प्राप्त अंकों को गुप्त रखा है, उसे ग्रेड में दर्शाया है ताकि परिक्षा परिणाम के तुरंत बाद (ऐसे समय ही छात्र-छात्रा खुदकुशी की ओर अग्रसर होते हैं) उन्हें अपने अंकों का पता न चले, साथ ही कमजोर छात्र-छात्राओं को परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु न्यूनतम अंक (30 से 40) ग्रेड प्राप्त करने के लिये तीन अवसर तो दिए गए हैं परंतु स्कूलों को यह भी निर्देश है कि किसी भी हालत में संबंधित बच्चे को उस वर्ग में अनुत्तीर्ण घोषित न किया जाये।
स्कॉलिस्टिक एरिया ए- में कुल नौ ग्रेड बनाये गये हैं :- ए-1 (91 से 100, ग्रेड पाइंट-10), ए-2 (81 से 90, ग्रेड पाइंट-9), बी-1 (71 से 80, ग्रेड पाइंट-8), बी-2 (61 से 70, ग्रेड पाइंट-7), सी-1 (51 से 60, ग्रेड पाइंट-6), सी-2 (41 से 50, ग्रेड पाइंट-5), डी (33 से 40, ग्रेड पाइंट-4), ई-1 (21 से 32) एवं ई-2 (00 से 20) जो मूलत: पांच ग्रेड ए+, ए, बी+, बी एवं सी ग्रेड के रूप में क्रियान्वित हुए हैं जबकि को-स्कॉलिस्टिक एरिया में तीन एरिया - लाईफ स्किल्स (ए+, ए और बी ग्रेड), एडिट्यूट एण्ड वैल्यू (ए+, ए, बी ग्रेड) और एक्टिविटी एण्ड क्लब (ए+, ए और बी ग्रेड) क्रियान्वित किये गये हैं।
कैसे जगायेंगे
च्च्अव्वल रहने की भावनाज्ज्
दुर्भाग्य यह है कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) अपनी स्थापना के 48 वर्षों बाद से जिस तरह इस नई प्रणाली को क्रियान्वित किया है वह भले अभिभावकों को देखने व सुनने में आकर्षित करता रहा हो लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभिभावकों व बच्चों को जिस तरह से अंधकार में रखा गया वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही है। नई सीसीई प्रणाली ने जहां शिक्षक-शिक्षिकाओं को ओव्हर बर्डन किया है वहीं छात्र-छात्राओं को को-स्कोलास्टिक एरिया की ओर उन्मुख कर उन्हें विषय के मूल ज्ञान से किनारे कर दिया है। इतना ही नहीं, बच्चों के मन में यह बैठ गया है कि शिक्षक उन्हें किसी भी हालत में अनुत्तीर्ण घोषित नहीं कर सकता और न ही दण्डित कर सकता है (चाहे स्कूल में उनका कैसा भी व्यवहार क्यों न हो), सिवाय इसके कि वे (शिक्षक-शिक्षिकाएं) उनकी डायरी में उनके अभिभावक के नाम एक नोट लिख दें कि उनका बच्चा स्कूली वातावरण को विषाक्त कर रहा है।
पप्पू पास हो कर भी किस काम का....?
अगर कोई बच्चा डी ग्रेड लाता है, यानि उसके अंक 33-40 प्रतिशत के बीच हैं तो उसे अगले वर्ग में भेजना ही पड़ेगा। इतना ही नहीं ई-1 या ई-2 ग्रेड पाने वाले (00 से 32 अंक) बच्चों को इस प्रणाली के अनुरूप तीन अवसर दिए जायेंगे ताकि वह डी ग्रेड प्राप्त कर अगले वर्ग में दाखिला ले सकें, परंतु किसी भी हालत में उस विद्यार्थी को शिक्षक अनुत्तीर्ण घोषित नहीं करेंगे। इस प्रणाली में स्कोलास्टिक एवं को-स्कोलास्टिक एरिया के तहत प्रत्येक स्कूल या शिक्षकों को 100 प्रतिशत में से 60 प्रतिशत अंक देने का प्रावधान है। अब अगर बच्चे को गणित या विज्ञान में या अंग्रेजी में मात्र 5 से 10 अंक मिले और प्रदत्त अधिकार के अधीन शिक्षक उसे उन एरिया में प्राप्त अंक को जोड़ कर और औसत अंक के आधार पर उत्तीर्ण घोषित कर देंगे तो ऐसे में बच्चा पास हो कर भी किस काम का....?
कार्यशैली से बढ़ी नाराजगी
-जारी है आंदोलन
गौरतलब हो कि डीईओ टीम के निरीक्षण के बाद जब कलेक्टर ने जनसुनवाई के लिए संयुक्त कलेक्टर पी तिर्की और डिप्टी कलेक्टर जीवन सिंह राजपूत को जिम्मेदारी सौंपी तो पैरेंट्स में आस जगी थी। पैरेंट्स ने तो राहत की उम्मीद पाल ली लेकिन जिला प्रशासन ही सुस्त होता चला गया। जनसुनवाई की रिपोर्ट कलेक्टर के टेबल पर देर से पहुंची। फाइल पर उन्होंने निर्णय लेकर डीईओ को कार्रवाई के निर्देश दे दिए। निर्देश की कापी डीईओ कार्यालय में दब गई। दोषी निजी स्कूल निश्चिंत हो गए। जिम्मेदार अधिकारी बताते हंै कि कलेक्टर के निर्देश के बाद तीन अधिकारियों की बैठक हुई जिसमें तकरीबन आधे घंटे तक मंत्रणा के बाद सीधे कहा गया कि कुछ मत करो। कागजी कार्रवाई वैसे ही रहने दो, मौखिक बात सुनो। हालांकि बैठक में मौजूद एक अधिकारी इससे सहमत नहीं थे। बाद में उन्होंने दूसरे अधिकारी से चर्चा भी की पर अपने बड़े अफसर के सामने जुबान खोलने हिम्मत नहीं जुटा पाए। इस तरह कलेक्टर का कागजी निर्देश बिसरा दिया गया। 4 जुलाई व 23 अगस्त को लोक शिक्षण विभाग संचालनालय व मंत्रालय से प्रायवेट स्कूलों के संबंध में आदेश जारी कर बिल्डिंग फंड, डोनेशन, कॉशन मनी व केपिटेशन फीस पर तत्काल रोक लगाने कहा गया था लेकिन यह आदेश भी डीईओ ने ताक पर रख दिया।
कलेक्टर की कड़ी हिदायत के बाद भी प्रायवेट स्कूलों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में आये निर्देश कि निजी विद्यालय भी सूचना के अधिकार के दायरे में आयेंगे, के बाद जिले के निजी स्कूलों में खासी खलबली देखी जा रही है। कांग्रेस के युवा नेता सीजू एंथोनी लम्बे समय से निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। श्री एंथोनी ने ज्योतिष का सूर्य से चर्चा में कहा कि उनका संघर्ष अभी रूका नहीं है। जिलाधीश की पहल के बाद इस मामले में लोगों के बीच आश जगी थी कि शिक्षा के व्यावसायीकरण पर अब लगाम लग सकेगी लेकिन निर्देश के बाद भी अमल में लाने वाले अधिकारी ढिलाई बरत रहे हैं। श्री एंथोनी ने कहा कि- कुछ दिन इंतजार किया जा रहा है अगर इसके बाद भी हालात जस के तस रहे तो क्षेत्र की जनता के साथ उग्र आंदोलन करने विवश होंगे जिसके लिये सीधे तौर पर जिला प्रशासन जिम्मेदार होगा ।
संतोष मिश्रा
पत्रकार, भिलाई
- संतोष मिश्रा
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