भारतीय पंचांगों में सुधार की आवश्यकता....?
-ज्योतिषाचार्य.पं विनोद चौबे महाराज
(आचार्य काशी हिन्दू विश्व विद्यालय वाराणसी उ.प्र से)
भारतीय पंचांगों और कलैंडरों में त्योहारों की तिथियों को लेकर अनिश्चितता बार-बार यही सवाल खड़ा करता है कि -आखिरकार!!! इसका जिम्मेदार कौन है ?
5000 वर्ष पहले वैदिक काल में समय की गणना '' सूर्य सिद्धान्त ''। पर आधारित प्रारम्भ हुआ था जिसके अनुसार वर्ष की लम्बाई 365.258756 दिन होता है। वैज्ञानिकों के समय-चक्र की गणना के मुताबिक 0.1656 दिन अधिक है । दोनो में इस अन्तर को देखते हुए वैज्ञानिक प्रो. मेघनाद साहा ने सर्वप्रथम '' एशियाटीक सोसायटी '' में शक संवत् की शुरुआत पर 1952 में अपना पक्ष रख कर संयुक्त रुप से वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद को '' कैलेण्डर (पंचांग) सुधार समिति '' गठित करने को मजबूर कर दिये थे। जिसकी अध्यक्षता स्वयं प्रो. मेघनाद साहा के अलावा भारतीय वैज्ञानिक एवं विद्बानो में प्रमुख रुप से ए.सी बनर्जी,के.के.दफ्तरी,जे.एस. करंडीकर,गोरख प्रसाद,आर.वी.वैद्य,तथा एन.सी.लाहिरी आदि विद्बान सम्मिलित थे। विश्व पंचांग (कैलेण्डर) सुधार समिति के इन सदस्यों ने अपने-अपने शोधपत्र1954 के जेनेवा में आयोजित यूनेस्को के 18 वें अधिवेशन में जारी किया गया,जो एकमत से 1955 में इसको प्रकाशित शक-संवत की प्रथम तिथि ईस्वी.79 के वसन्त विषुव से प्रारम्भ हुयी जो भारतीय कैलेन्डर (पंचांगो) में शक संवत 1879 है। अर्थात् 22 मार्च 1957 से शुरु होता है।
समिति के सुझाव के अनुसार सामान्यत: एक वर्ष में 365 दिन तथा लीप वर्ष में 366 दिन होंगे। लीप वर्ष की परिभाषा को इस प्रकार परिभाषित किया गया शक सम्वत् जो भी संख्या प्राप्त हो उसे 4 से विभाजित हो जाय तो वह लीप वर्ष होगा लेकिन अगर 100 का गुणज तो है लेकिन 400 का नहीं है तो वह लीप वर्ष नहीं माना जायेगा।
(आचार्य काशी हिन्दू विश्व विद्यालय वाराणसी उ.प्र से)
भारतीय पंचांगों और कलैंडरों में त्योहारों की तिथियों को लेकर अनिश्चितता बार-बार यही सवाल खड़ा करता है कि -आखिरकार!!! इसका जिम्मेदार कौन है ?
5000 वर्ष पहले वैदिक काल में समय की गणना '' सूर्य सिद्धान्त ''। पर आधारित प्रारम्भ हुआ था जिसके अनुसार वर्ष की लम्बाई 365.258756 दिन होता है। वैज्ञानिकों के समय-चक्र की गणना के मुताबिक 0.1656 दिन अधिक है । दोनो में इस अन्तर को देखते हुए वैज्ञानिक प्रो. मेघनाद साहा ने सर्वप्रथम '' एशियाटीक सोसायटी '' में शक संवत् की शुरुआत पर 1952 में अपना पक्ष रख कर संयुक्त रुप से वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद को '' कैलेण्डर (पंचांग) सुधार समिति '' गठित करने को मजबूर कर दिये थे। जिसकी अध्यक्षता स्वयं प्रो. मेघनाद साहा के अलावा भारतीय वैज्ञानिक एवं विद्बानो में प्रमुख रुप से ए.सी बनर्जी,के.के.दफ्तरी,जे.एस. करंडीकर,गोरख प्रसाद,आर.वी.वैद्य,तथा एन.सी.लाहिरी आदि विद्बान सम्मिलित थे। विश्व पंचांग (कैलेण्डर) सुधार समिति के इन सदस्यों ने अपने-अपने शोधपत्र1954 के जेनेवा में आयोजित यूनेस्को के 18 वें अधिवेशन में जारी किया गया,जो एकमत से 1955 में इसको प्रकाशित शक-संवत की प्रथम तिथि ईस्वी.79 के वसन्त विषुव से प्रारम्भ हुयी जो भारतीय कैलेन्डर (पंचांगो) में शक संवत 1879 है। अर्थात् 22 मार्च 1957 से शुरु होता है।
समिति के सुझाव के अनुसार सामान्यत: एक वर्ष में 365 दिन तथा लीप वर्ष में 366 दिन होंगे। लीप वर्ष की परिभाषा को इस प्रकार परिभाषित किया गया शक सम्वत् जो भी संख्या प्राप्त हो उसे 4 से विभाजित हो जाय तो वह लीप वर्ष होगा लेकिन अगर 100 का गुणज तो है लेकिन 400 का नहीं है तो वह लीप वर्ष नहीं माना जायेगा।
परंपरागत भारतीय कैलेन्डर (पंचांग)के 12 मास चैत्र,वैशाख,ज्येष्ठ, आषाढ़,श्रावण,भाद्रपद,कार्तिक,मार्गशिर्ष,पौष,माघ,फाल्गुन आदि हैं। उक्त विश्व कैलेन्डर (पंचांग) सुधार समिति ने संस्तुति दी की-वर्ष की शुरुआत वसन्त(विषुव) ऋतु के अगले दिन से होना चाहिए। जो प्रथम मास चैत्र मास होगा वही परंपरा आज भी है जिसको चान्द्र मास कहते हैं।
पंचांगों में सबसे प्रमुख त्रुटि थी वर्ष की लंबाई। पंचांग प्राचीन 'सूर्य सिद्धांत' पर आधारित होने के कारण वर्ष की लंबाई 365.258756 दिन की होती है। वर्ष की यह लंबाई वैज्ञानिक गणना पर आधारित सौर वर्ष से .01656 दिन अधिक है। प्राचीन सिद्धांत अपनाने के कारण ईस्वी सन् 500 से वर्ष 23.2 दिन आगे बढ़ चुका है। भारतीय सौर वर्ष 'वसंत विषुवÓ औसतन 21 मार्च के अगले दिन मतलब 22 मार्च से शुरु होने के बजाय 13 या 14 अप्रैल से शुरु होता है। दूसरी ओर, जैसे कि पहले बताया गया है, यूरोप में जूलियस सीजर द्वारा शुरू किए गए 'जुलियन कलैंडर में भी वर्ष की लंबाई 365.25 दिन निर्धारित की गई थी जिसके कारण 1582 ईस्वी आते-आते 10 दिन की त्रुटि हो चुकी थी। तब पोप ग्रेगरी तेरहवें ने कलैंडर सुधार के लिए आदेश दे दिया कि उस वर्ष 5 अक्टूबर को 15 अक्टूबर घोषित
नकर दिया जाए। लीप वर्ष भी स्वीकार कर लिया गया। लेकिन, भारत में सदियों से पंचांग यानी कलैंडर में इस प्रकार का कोई संशोधन नहीं हुआ था। चैत्र मास की प्रथम तिथि 22 मार्च के बजाय 21 मार्च होगी। समिति ने कहा कि जो उत्सव और अन्य महत्वपूर्ण तिथियां 1400 वर्ष पहले जिन ऋतुओं में मनाई जाती थीं, वे 23 दिन पीछे हट चुकी हैं। फिर भी धार्मिक उत्सवों की तिथियां परंपरागत पंचांगों से ही तय की जा सकती हैं। समिति ने धार्मिक पंचांगों के लिए भी दिशा निर्देश दिए। ये पंचांग सूर्य और चंद्रमा की गतियों की गणनाओं के आधार पर तैयार किए जाते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग प्रति वर्ष भारतीय खगोल पंचांग प्रकाशित करता है। लेकिन यहा आपको बताना लाजमी होगा कि-2010 में वह अंतर लगभग 24 दिन पिछे हट चुका है। वह दिन दुर नहीं की जब भारतीय पंचांग में गर्मी (गृष्म ऋतु) रहेगा और वर्तमान में भारतीय मौसम ठण्डक रहेगी।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कलैंडर सुधार समिति की रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा था, हमने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है। यह वांछनीय होगा कि हमारे नागरिक सामाजिक और अन्य कार्यों में काम आने वाले कलैंडर में कुछ समानता हो और इस समस्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिया जाना चाहिएच्ज् लेकिन उनके बाद कभी इतने बड़े राजनेता या समर्पित वैज्ञानिक प्रो.मेघनाद साहा और किसी भारतीय ज्योतिषाचार्यों का इस विषय ध्यान नहीं गया।
जरुरत है शासन को इस ओर ध्यान देने की, जिससे देश के वैज्ञानिक,ज्योषियों को एकजूट कर पुन: भारतीय-पंचांगों का गणितिय परिशोधन हो सके ।
पंचांगों में सबसे प्रमुख त्रुटि थी वर्ष की लंबाई। पंचांग प्राचीन 'सूर्य सिद्धांत' पर आधारित होने के कारण वर्ष की लंबाई 365.258756 दिन की होती है। वर्ष की यह लंबाई वैज्ञानिक गणना पर आधारित सौर वर्ष से .01656 दिन अधिक है। प्राचीन सिद्धांत अपनाने के कारण ईस्वी सन् 500 से वर्ष 23.2 दिन आगे बढ़ चुका है। भारतीय सौर वर्ष 'वसंत विषुवÓ औसतन 21 मार्च के अगले दिन मतलब 22 मार्च से शुरु होने के बजाय 13 या 14 अप्रैल से शुरु होता है। दूसरी ओर, जैसे कि पहले बताया गया है, यूरोप में जूलियस सीजर द्वारा शुरू किए गए 'जुलियन कलैंडर में भी वर्ष की लंबाई 365.25 दिन निर्धारित की गई थी जिसके कारण 1582 ईस्वी आते-आते 10 दिन की त्रुटि हो चुकी थी। तब पोप ग्रेगरी तेरहवें ने कलैंडर सुधार के लिए आदेश दे दिया कि उस वर्ष 5 अक्टूबर को 15 अक्टूबर घोषित
नकर दिया जाए। लीप वर्ष भी स्वीकार कर लिया गया। लेकिन, भारत में सदियों से पंचांग यानी कलैंडर में इस प्रकार का कोई संशोधन नहीं हुआ था। चैत्र मास की प्रथम तिथि 22 मार्च के बजाय 21 मार्च होगी। समिति ने कहा कि जो उत्सव और अन्य महत्वपूर्ण तिथियां 1400 वर्ष पहले जिन ऋतुओं में मनाई जाती थीं, वे 23 दिन पीछे हट चुकी हैं। फिर भी धार्मिक उत्सवों की तिथियां परंपरागत पंचांगों से ही तय की जा सकती हैं। समिति ने धार्मिक पंचांगों के लिए भी दिशा निर्देश दिए। ये पंचांग सूर्य और चंद्रमा की गतियों की गणनाओं के आधार पर तैयार किए जाते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग प्रति वर्ष भारतीय खगोल पंचांग प्रकाशित करता है। लेकिन यहा आपको बताना लाजमी होगा कि-2010 में वह अंतर लगभग 24 दिन पिछे हट चुका है। वह दिन दुर नहीं की जब भारतीय पंचांग में गर्मी (गृष्म ऋतु) रहेगा और वर्तमान में भारतीय मौसम ठण्डक रहेगी।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कलैंडर सुधार समिति की रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा था, हमने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है। यह वांछनीय होगा कि हमारे नागरिक सामाजिक और अन्य कार्यों में काम आने वाले कलैंडर में कुछ समानता हो और इस समस्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिया जाना चाहिएच्ज् लेकिन उनके बाद कभी इतने बड़े राजनेता या समर्पित वैज्ञानिक प्रो.मेघनाद साहा और किसी भारतीय ज्योतिषाचार्यों का इस विषय ध्यान नहीं गया।
जरुरत है शासन को इस ओर ध्यान देने की, जिससे देश के वैज्ञानिक,ज्योषियों को एकजूट कर पुन: भारतीय-पंचांगों का गणितिय परिशोधन हो सके ।
-ज्योतिषाचार्य.पं विनोद चौबे महाराज
(''ज्योतिष का सूर्य '' हिन्दी मासिक पत्रिका के सम्पादक) जीवन ज्योतिष भवन,शान्ति नगर भिलाई दुर्ग (छ.ग.) मोब.नं. 09827198828
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