मकर संक्रांति का पर्व एवं 28 सालों बाद तीन दुर्लभ महासंयोग की अकथ कथा ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे की जुबानी
संस्कृत प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।" सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह भीष्म ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
रंग-बिरंगा त्योहार मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।
धर्मग्रंथों में मकर संक्रांति की क्या है मान्यता..?
यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। महाभारत महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह भीष्म पांडवों और कौरवों के बीच हुए कुरुक्षेत्र युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर अर्जुन द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े वे उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली जिससे उनका पुनर्जन्म न हो।
सूर्य के उत्तरायण होने का महापर्व
माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्तिÓ पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर–संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्राय: 14 जनवरी को पड़ती है।
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।
तिल संक्रान्ति में तिल का महत्त्व:
मकर संक्रान्ति के दिन, खिचड़ी के साथ–साथ तिल का प्रयोग भी अति महत्त्वपूर्ण है। तिल के गोल–गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। मालिश के लिए भी तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग हमें सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और निरोग रखता है।
इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।
संक्रान्ति जन्य पुण्यकाल में दान और पुण्य का महत्त्व:
संक्रान्ति काल अति पुण्य माना गया है। इस दिन गंगा तट पर स्नान व दान का विशेष महत्त्व है। इस दिन किए गए अच्छे कर्मों का फल अति शुभ होता है। वस्त्रों व कम्बल का दान, इस जन्म में नहीं; अपितु जन्म–जन्मांतर में भी पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन घृत, तिल व चावल के दान का विशेष महत्त्व है। इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त करता है - ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
उत्तर प्रदेश में इस दिन तिल दान का विशेष महत्त्व है। महाराष्ट्र में नवविवाहिता स्त्रियाँ प्रथम संक्रान्ति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएँ सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। बंगाल में भी इस दिन तिल दान का महत्त्व है। राजस्थान में सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस दिन तिल के लड्डू, घेवर तथा मोतीचूर के लड्डू आदि पर रुपये रखकर, "वायन" के रूप में अपनी सास को प्रणाम करके देती है तथा किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प करके चौदह ब्राह्मणों को दान करती है।
गंगास्नान व सूर्य पूजा
मकर संक्राति के अवसर पर गंगास्नान करते श्रद्धालु
पवित्र गंगा में नहाना व सूर्य उपासना संक्रान्ति के दिन अत्यन्त पवित्र कर्म माने गए हैं। संक्रान्ति के पावन अवसर पर हज़ारों लोग इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करते हैं। गुड़ व श्वेत तिल के पकवान सूर्य को अर्पित कर सभी में बाँटें जाते हैं। गंगासागर में पवित्र स्नान के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं की एक बड़ी भीड़ उमड़ पड़ती है।
पुण्यकाल के शुभारम्भ का प्रतीक
मकर संक्रान्ति के आगामी दिन जब सूर्य की गति उत्तर की ओर होती है, तो बहुत से पर्व प्रारम्भ होने लगते हैं। इन्हीं दिनों में ऐसा प्रतीत होता है कि वातावरण व पर्यावरण स्वयं ही अच्छे होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस समय जन्मे शिशु प्रगतिशील विचारों के, सुसंस्कृत, विनम्र स्वभाव के तथा अच्छे विचारों से पूर्ण होते हैं। यही विशेष कारण है, जो सूर्य की उत्तरायण गति को पवित्र बनाते हैं और मकर संक्रान्ति का दिन सबसे पवित्र दिन बन जाता है।
पंजाब में लोढ़़ी
मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे लोढ़़ी कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहन्दी रचती हैं।
बंगाल में मकर-सक्रांति
पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं , जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे गंगासागर मेला कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है।
कर्नाटक में मकर-सक्रांति
कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।
गुजरात में मकर-सक्रांति
गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।
केरल में मकर-सक्रांति
केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा 'मकर ज्योतिÓ दिखाई पड़ती है।
मकर संक्रान्ति भारत के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है यदि दीपावली ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।
ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव
हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते है कि मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है और वह भी लगभग प्रतिवर्ष १३/14/१५/१६ जनवरी को ही क्यों? हालाकि कुछ वर्षंो में 13 या 15 अथवा 16 को भी यह पर्व मनाया जा चुका है जैसे इस बार भी 15 जनवरी को मनाया जाना तय है, हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है। यहाँ स्थान परिवर्तन से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण से है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते है। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है।
किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती है जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के सहारे ही गणना करके वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है। इस काल गणना में एक गणना 'अयनÓ के संबंध में भी की जाती है। इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।
संक्रमणकाल और मकर संक्रांति
इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है। चूँकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अत: मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही मनायी जाती है। चूँकि हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्य रेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलाद्र्ध में ही आता है, अत: मकर संक्रांति को ही विशेष महत्व दिया गया।
भारतीय ज्योतिष पद्धति में मकर राशि का प्रतीक घडिय़ाल को माना गया है जिसका सिर एक हिरण जैसा होता है, किंतु पाश्चात्य ज्योतिषी मकर राशि का प्रतीक बकरे को मानते हैं। हिंदू धर्म में मकर (घडिय़ाल) को एक पवित्र पशु माना जाता है।
चूँकि हिंदुओं में अधिकांश देवताओं का पदार्पण उत्तरी गोलाद्र्ध में ही हुआ है, इसलिए सूर्य की उत्तरायण स्थिति को ये लोग शुभ मानते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है। इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है। चूँकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है, अत: इस दिन से दिन में वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने की व्यवस्था हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा की गई है।
2012 का पहला दुर्लभ महासंयोग, 28 साल बाद तीन शुभ योग एक साथ
कब और कितनी बजे बदलेगा सूर्य-
14 जनवरी की रात को सूर्य रात्रि शेष (यानी भोर में) 06:08:36 सेकेन्ड बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा और 15 जनवरी की सुबह 06:52:56 से. बजे सूर्योदय से स्नान-दान के लिए पुण्यकाल शुरू होगा, जो शाम 05:47 मिनट तक रहेगा।
क्या फल देते हैं ये तीन शुभ योग
अमृत सिद्धि योग: इस शुभ योग मेंं किए गए किसी भी काम काम का पूरा फल मिलता है। इस शुभ योग मेंंंंंं शुरू किए गए काम का फल लंबे समय तक बना रहता है।
सर्वार्थ सिद्धि योग: ज्योतिष के अनुसार इस योग में कोई भी काम करने से हर काम पूरा होता है। समस्त कार्य सिद्धि के लिए और शुभ फल प्राप्त करने के लिए यह योग
शुभ माना जाता है। इस योग में खरीददारी करने का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में खरीददारी करने से लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
रवि योग: यह योग हर काम का पूरा फल देने वाला है। इस योग को अशुभ फल नष्ट कर के शुभ फल देेने वाला माना जाता है।
आईये अब राशियों के अनुसार क्या फल होगा इस दुर्लभ संक्रंाती के महा संयोग का..
ग्रहाचार:
संक्रंाति का पूरा वक्त कन्या राशि पर चन्द्र संचरम करते रहे होंगे, अत: मेषादि राशियों का शुभाशुभ प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा।
मेष :- आपके छठें चन्द्र हैं अत: आपको नये कार्य में सावधानी पूर्वक निवेश करना चाहिए शत्रुओं से बचें। न्यायालयीन प्रकरणों में आपको सफलता मिलने का योग है।
वृष :- पंचम चन्द्र आपको किसी यात्रा की ओर इशारा कर रहे हैं, परंतु आपका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव से नकारा भी नहीं जा सकता अतएव सावधानी बरतें। बच्चों से प्यार करें। वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल होंगे अथवा घर में ही यह शुभ कार्य होने की आशा है।
मिथुन :- चौथे चंद्र आपके रूके काम बनायेंगे। नौकरी में प्रमोटेड वेतन में इ•ााफा होगा। वाहन से सावधानी बरतें। पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
कर्क :- यह संक्रंाती आपके सपने पूरा करेगी और व्यापार में अच्छा साथी मिलेगा। दक्षिण दिशा से आकस्मिक लाभ का योग है।
सिंह :- धन के आगमन में हो रही देरी अब द्रुत गति से लाभ की उम्मीद है। पश्चिम दिशा में अथवा भूमि में निवेश से बचें नुकसान होने का अंदेशा है।
कन्या :- घर को रंग रोगन करें आपके घर में नकारात्मक उर्जा बढ़ायेगें इस संक्रंति के सूर्यदेव। आपके संक्रमण कालिक चन्द्र देव आपको गफलत में डाल सकते हैं अत: ऐसी परीस्थिति में बड़ों का सलाह माने तो अच्छा होगा।
तुला :- बारहवें चंद्र आपके बनते हुए काम पर बुरी नजर डाले हुए हैं अत: लगन व मेहनत ही आपको उबार सकता है। उत्तर दिशा की यात्र होना तय है लेकिन सामानों पर ध्यान देना अनिवार्य है, खोने की आशंका है।
वृश्चिक :- आपको इस वर्ष विशेष उपलब्धी मिलने के योग हैं अत: संयम बरतना आवश्यक है। बड़बोलापन आपकी हानि करा सकता है। माता के तबीयत को लेकर चिन्ता अवश्य बनी रहेगी।
धनु :- वायु यात्र, बस यात्रा अथवा तीर्थयात्रा में आपको किसी महिला से मुलाकात होगी जो आपका नुकसान कर सकती है। व्यापारीक निवेश आपका लाभप्रद है, लेकिन सोना खरीदी आपको घाटे में डाल सकता है।
मकर :- शनि की राशि होने के कारण और आपके राशि के नौवें चन्द्र की स्थिति आपको इस वर्ष अच्छा प्रतिसाद दिलायेगी। आगामी दो मांह आपको वाहनादि निवेश से सचेत रहना होगा।
कुम्भ :- कुमित्रों से बचे क्योकि आप उपर कलंक के छिंटे पड़ सकते है जिससे सामाजिक ह्रास होगा। राज्यशासन से आपको राहत मिलेगी। विवादों के पचड़े से बचें। पूर्वी धार्मिक स्थल मे जाने से आपका भाग्य बढ़ेगा ।
मीन :- इस संक्रांति के प्रभाव से आपको उम्र दराज बेटे या बेटियों के रिश्तेदारों से अपयश मिल सकता है 7 अगर ऐसी स्थिति आए तो सरसों के तेल से भरा हुआ बर्तन पानी के भीतर ज़मीन के नीचे दबाने से फ़ायदा होगा ।
प्रगति का पर्व
गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट किया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि 'हे भरतश्रेष्ठ! ऐसे लोग जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो, अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होता है, दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं, पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है। जो योगी रात के अंधेरे में, कृष्ण पक्ष में, धूम्र देवता के प्रभाव से दक्षिणायन में अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे चंद्रलोक में जाकर पुन: जन्म लेते हैं। वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोडऩेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है और सूर्य की यह उत्तरायण स्थिति चूँकि मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है, यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने का प्रावधान हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया और इसे प्रगति तथा ओजस्विता का पर्व माना गया जो कि सूर्योत्सव का द्योतक है।
संस्कृत प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।" सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह भीष्म ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
रंग-बिरंगा त्योहार मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।
धर्मग्रंथों में मकर संक्रांति की क्या है मान्यता..?
यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। महाभारत महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह भीष्म पांडवों और कौरवों के बीच हुए कुरुक्षेत्र युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर अर्जुन द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े वे उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली जिससे उनका पुनर्जन्म न हो।
सूर्य के उत्तरायण होने का महापर्व
माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्तिÓ पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर–संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्राय: 14 जनवरी को पड़ती है।
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।
तिल संक्रान्ति में तिल का महत्त्व:
मकर संक्रान्ति के दिन, खिचड़ी के साथ–साथ तिल का प्रयोग भी अति महत्त्वपूर्ण है। तिल के गोल–गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। मालिश के लिए भी तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग हमें सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और निरोग रखता है।
इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।
संक्रान्ति जन्य पुण्यकाल में दान और पुण्य का महत्त्व:
संक्रान्ति काल अति पुण्य माना गया है। इस दिन गंगा तट पर स्नान व दान का विशेष महत्त्व है। इस दिन किए गए अच्छे कर्मों का फल अति शुभ होता है। वस्त्रों व कम्बल का दान, इस जन्म में नहीं; अपितु जन्म–जन्मांतर में भी पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन घृत, तिल व चावल के दान का विशेष महत्त्व है। इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त करता है - ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
उत्तर प्रदेश में इस दिन तिल दान का विशेष महत्त्व है। महाराष्ट्र में नवविवाहिता स्त्रियाँ प्रथम संक्रान्ति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएँ सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। बंगाल में भी इस दिन तिल दान का महत्त्व है। राजस्थान में सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस दिन तिल के लड्डू, घेवर तथा मोतीचूर के लड्डू आदि पर रुपये रखकर, "वायन" के रूप में अपनी सास को प्रणाम करके देती है तथा किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प करके चौदह ब्राह्मणों को दान करती है।
गंगास्नान व सूर्य पूजा
मकर संक्राति के अवसर पर गंगास्नान करते श्रद्धालु
पवित्र गंगा में नहाना व सूर्य उपासना संक्रान्ति के दिन अत्यन्त पवित्र कर्म माने गए हैं। संक्रान्ति के पावन अवसर पर हज़ारों लोग इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करते हैं। गुड़ व श्वेत तिल के पकवान सूर्य को अर्पित कर सभी में बाँटें जाते हैं। गंगासागर में पवित्र स्नान के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं की एक बड़ी भीड़ उमड़ पड़ती है।
पुण्यकाल के शुभारम्भ का प्रतीक
मकर संक्रान्ति के आगामी दिन जब सूर्य की गति उत्तर की ओर होती है, तो बहुत से पर्व प्रारम्भ होने लगते हैं। इन्हीं दिनों में ऐसा प्रतीत होता है कि वातावरण व पर्यावरण स्वयं ही अच्छे होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस समय जन्मे शिशु प्रगतिशील विचारों के, सुसंस्कृत, विनम्र स्वभाव के तथा अच्छे विचारों से पूर्ण होते हैं। यही विशेष कारण है, जो सूर्य की उत्तरायण गति को पवित्र बनाते हैं और मकर संक्रान्ति का दिन सबसे पवित्र दिन बन जाता है।
पंजाब में लोढ़़ी
मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे लोढ़़ी कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहन्दी रचती हैं।
बंगाल में मकर-सक्रांति
पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं , जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे गंगासागर मेला कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है।
कर्नाटक में मकर-सक्रांति
कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।
गुजरात में मकर-सक्रांति
गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।
केरल में मकर-सक्रांति
केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा 'मकर ज्योतिÓ दिखाई पड़ती है।
मकर संक्रान्ति भारत के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है यदि दीपावली ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।
ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव
हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते है कि मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है और वह भी लगभग प्रतिवर्ष १३/14/१५/१६ जनवरी को ही क्यों? हालाकि कुछ वर्षंो में 13 या 15 अथवा 16 को भी यह पर्व मनाया जा चुका है जैसे इस बार भी 15 जनवरी को मनाया जाना तय है, हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है। यहाँ स्थान परिवर्तन से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण से है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते है। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है।
किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती है जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के सहारे ही गणना करके वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है। इस काल गणना में एक गणना 'अयनÓ के संबंध में भी की जाती है। इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।
संक्रमणकाल और मकर संक्रांति
इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है। चूँकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अत: मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही मनायी जाती है। चूँकि हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्य रेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलाद्र्ध में ही आता है, अत: मकर संक्रांति को ही विशेष महत्व दिया गया।
भारतीय ज्योतिष पद्धति में मकर राशि का प्रतीक घडिय़ाल को माना गया है जिसका सिर एक हिरण जैसा होता है, किंतु पाश्चात्य ज्योतिषी मकर राशि का प्रतीक बकरे को मानते हैं। हिंदू धर्म में मकर (घडिय़ाल) को एक पवित्र पशु माना जाता है।
चूँकि हिंदुओं में अधिकांश देवताओं का पदार्पण उत्तरी गोलाद्र्ध में ही हुआ है, इसलिए सूर्य की उत्तरायण स्थिति को ये लोग शुभ मानते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है। इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है। चूँकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है, अत: इस दिन से दिन में वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने की व्यवस्था हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा की गई है।
2012 का पहला दुर्लभ महासंयोग, 28 साल बाद तीन शुभ योग एक साथ
कब और कितनी बजे बदलेगा सूर्य-
14 जनवरी की रात को सूर्य रात्रि शेष (यानी भोर में) 06:08:36 सेकेन्ड बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा और 15 जनवरी की सुबह 06:52:56 से. बजे सूर्योदय से स्नान-दान के लिए पुण्यकाल शुरू होगा, जो शाम 05:47 मिनट तक रहेगा।
क्या फल देते हैं ये तीन शुभ योग
अमृत सिद्धि योग: इस शुभ योग मेंं किए गए किसी भी काम काम का पूरा फल मिलता है। इस शुभ योग मेंंंंंं शुरू किए गए काम का फल लंबे समय तक बना रहता है।
सर्वार्थ सिद्धि योग: ज्योतिष के अनुसार इस योग में कोई भी काम करने से हर काम पूरा होता है। समस्त कार्य सिद्धि के लिए और शुभ फल प्राप्त करने के लिए यह योग
शुभ माना जाता है। इस योग में खरीददारी करने का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में खरीददारी करने से लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
रवि योग: यह योग हर काम का पूरा फल देने वाला है। इस योग को अशुभ फल नष्ट कर के शुभ फल देेने वाला माना जाता है।
आईये अब राशियों के अनुसार क्या फल होगा इस दुर्लभ संक्रंाती के महा संयोग का..
ग्रहाचार:
संक्रंाति का पूरा वक्त कन्या राशि पर चन्द्र संचरम करते रहे होंगे, अत: मेषादि राशियों का शुभाशुभ प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा।
मेष :- आपके छठें चन्द्र हैं अत: आपको नये कार्य में सावधानी पूर्वक निवेश करना चाहिए शत्रुओं से बचें। न्यायालयीन प्रकरणों में आपको सफलता मिलने का योग है।
वृष :- पंचम चन्द्र आपको किसी यात्रा की ओर इशारा कर रहे हैं, परंतु आपका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव से नकारा भी नहीं जा सकता अतएव सावधानी बरतें। बच्चों से प्यार करें। वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल होंगे अथवा घर में ही यह शुभ कार्य होने की आशा है।
मिथुन :- चौथे चंद्र आपके रूके काम बनायेंगे। नौकरी में प्रमोटेड वेतन में इ•ााफा होगा। वाहन से सावधानी बरतें। पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
कर्क :- यह संक्रंाती आपके सपने पूरा करेगी और व्यापार में अच्छा साथी मिलेगा। दक्षिण दिशा से आकस्मिक लाभ का योग है।
सिंह :- धन के आगमन में हो रही देरी अब द्रुत गति से लाभ की उम्मीद है। पश्चिम दिशा में अथवा भूमि में निवेश से बचें नुकसान होने का अंदेशा है।
कन्या :- घर को रंग रोगन करें आपके घर में नकारात्मक उर्जा बढ़ायेगें इस संक्रंति के सूर्यदेव। आपके संक्रमण कालिक चन्द्र देव आपको गफलत में डाल सकते हैं अत: ऐसी परीस्थिति में बड़ों का सलाह माने तो अच्छा होगा।
तुला :- बारहवें चंद्र आपके बनते हुए काम पर बुरी नजर डाले हुए हैं अत: लगन व मेहनत ही आपको उबार सकता है। उत्तर दिशा की यात्र होना तय है लेकिन सामानों पर ध्यान देना अनिवार्य है, खोने की आशंका है।
वृश्चिक :- आपको इस वर्ष विशेष उपलब्धी मिलने के योग हैं अत: संयम बरतना आवश्यक है। बड़बोलापन आपकी हानि करा सकता है। माता के तबीयत को लेकर चिन्ता अवश्य बनी रहेगी।
धनु :- वायु यात्र, बस यात्रा अथवा तीर्थयात्रा में आपको किसी महिला से मुलाकात होगी जो आपका नुकसान कर सकती है। व्यापारीक निवेश आपका लाभप्रद है, लेकिन सोना खरीदी आपको घाटे में डाल सकता है।
मकर :- शनि की राशि होने के कारण और आपके राशि के नौवें चन्द्र की स्थिति आपको इस वर्ष अच्छा प्रतिसाद दिलायेगी। आगामी दो मांह आपको वाहनादि निवेश से सचेत रहना होगा।
कुम्भ :- कुमित्रों से बचे क्योकि आप उपर कलंक के छिंटे पड़ सकते है जिससे सामाजिक ह्रास होगा। राज्यशासन से आपको राहत मिलेगी। विवादों के पचड़े से बचें। पूर्वी धार्मिक स्थल मे जाने से आपका भाग्य बढ़ेगा ।
मीन :- इस संक्रांति के प्रभाव से आपको उम्र दराज बेटे या बेटियों के रिश्तेदारों से अपयश मिल सकता है 7 अगर ऐसी स्थिति आए तो सरसों के तेल से भरा हुआ बर्तन पानी के भीतर ज़मीन के नीचे दबाने से फ़ायदा होगा ।
प्रगति का पर्व
गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट किया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि 'हे भरतश्रेष्ठ! ऐसे लोग जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो, अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होता है, दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं, पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है। जो योगी रात के अंधेरे में, कृष्ण पक्ष में, धूम्र देवता के प्रभाव से दक्षिणायन में अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे चंद्रलोक में जाकर पुन: जन्म लेते हैं। वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोडऩेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है और सूर्य की यह उत्तरायण स्थिति चूँकि मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है, यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने का प्रावधान हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया और इसे प्रगति तथा ओजस्विता का पर्व माना गया जो कि सूर्योत्सव का द्योतक है।
नोट: इस आलेख को कापी करना सख्त मना है, यदि कोई पत्र-पत्रिका अथवा समाचार एजेन्सीज इस आर्टिकल को अपने वेब में अथवा समाचार पत्र में हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं। वैसे इस पर पूरा अधिकार तहलका न्यूज डॉट काम और ज्योतिष का सूर्य, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका का ही मान्य है।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
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