ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 7 मार्च 2018

भाग्येश का राशि रत्न धनवान, और पंचमेश का राशि रत्न लोकप्रिय बनाता है

मित्रों, मैं कभी-कभी देखता हूँ लोगों को की कोई भी रत्न कहीं से भी लेकर पहन लेते हैं । रत्न कोई सुन्दरता की नहीं अपितु हमारे जीवन के लिये प्राणवान एवं उर्जा के स्रोत होते हैं । जन्मकुण्डली के माध्यम से हम ये जान सकते हैं, कि हमें कौन सा रत्न पहनना चाहिए और कौन सा रत्न नहीं पहनना चाहिए । कोई भी रत्न कोई भी धारण नहीं कर सकता, कारण की सभी रत्न सबके लिए एक समान नहीं होते ।।

जन्मकुण्डली में शुभ ग्रहों और लग्न की राशी के अनुसार ही रत्नों का चयन करना चाहिए अन्यथा रत्न फायदे की जगह नुकसान भी कर सकते हैं । कई रत्न तो बड़े ही प्रभावशाली होते हैं और वे अपना असर बहुत ही जल्द दिखा देते हैं । किसी भी एक विद्वान ज्योतिषी को चाहिये की किसी भी रत्न को किसी जातक को पहनाने से पहले उसके कुण्डली में दशा-महादशाओं का अध्ययन अवश्य करे ।।

मित्रों, सामान्यतया किसी केन्द्र अथवा त्रिकोण के स्वामी ग्रह की महादशा में उसका रत्न पहनने पर वो ज्यादा फायदेमन्द सिद्ध होते हैं । किसी भी कुण्डली का त्रिकोण भाव जातक को सदैव लाभ ही देता है वो कभी भी किसी भी अवस्था में नुकशानदायक नहीं होता । जैसे लग्नेश, पंचमेश एवं नवमेश जिन्हें त्रिकोण भाव का स्वामी ग्रह कहा जाता है का रत्न धारण किया जा सकता है ।।

हाँ यदि इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशी में हो तो रत्न धारण करना आवश्यक नहीं होता । कोई भी शुभ ग्रह कुण्डली में यदि अस्त हो या फिर निर्बल हो तो उसका रत्न पहन सकते हैं । निर्बल ग्रहों का रत्न धारण करने से उनका प्रभाव बढ जाता है और वो ग्रह जातक को शुभ फल देते हैं । लग्न अथवा लग्नेश अस्त होने की स्थिति में लग्नेश का रत्न पहनना श्रेयस्कर होता है ।।

भाग्येश निर्बल या अस्त हो तो भाग्येश का रत्न पहन सकते हैं । लग्न भाव को आत्मा कहा जाता है इसलिए लग्नेश का रत्न जीवन-रत्न कहलाता है । पंचमेश को कारक ग्रह तथा उसके रत्न को कारक रत्न कहा जाता है । इसी प्रकार नवमेश के रत्न को भाग्य-रत्न कहा जाता है । यदि किसी त्रिकोण भाव का स्वामी ग्रह नीच का हो तो इस स्थिति में उसका रत्न नहीं पहनना चाहिये । किसी मारकेश ग्रह, बाधक ग्रह, नीच या अशुभ ग्रह का रत्न भी नहीं पहनना चाहिये ।। अगर आपको शुद्ध एवं वैदिक मंत्रों से प्रतिष्ठित (सिद्ध) किया हुआ राशि रत्न आप हमारे संस्थान 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका,भिलाई मोबा.नं. 9827198828 द्वारा उचित मूल्य में प्राप्त करें ! अब आईए राशि रत्नों को धारण करने के लिये किन धातुओं का उपयोग करें इसे समझने का प्रयास करते हैं !

मित्रों, किसी भी रत्न को उसके कारक धातु में जड़वाकर मन्त्र जप से सिद्ध करके शुक्ल पक्ष में निर्धारित वार को ही पहनना श्रेयस्कर होता है । रत्न धारण करने में हाथों का भी चयन करना आवश्यक होता है, कि किस हाथ की कौन सी अंगुली में कौन से ग्रह का रत्न धारण करना चाहिये । अगर चिकित्सा शास्त्र की बात करें तो पुरुष का दाहिना एवं महिलाओं का बायां हाथ गरम होता है । इसी तरह से पुरुष का बांया एवं महिलाओं का दाहिना हाथ ठंडा होता है ।।

जैसे अपनी प्रकृति के अनुसार रत्न भी ठंडे या गरम होते हैं ठीक वैसे ही यदि ठंडे हाथ में डंडे रत्न एवं गरम हाथ में गरम रत्न धारण किये जायें तो उम्मीद से अधिक लाभ मिलता है । अपनी प्रकृति के अनुसार पुखराज, हीरा, माणिक्य तथा मूंगा को गर्म रत्न कहा गया है । मोती, पन्ना, नीलम, गोमेद और लहसुनिया ठंडे रत्न होते हैं । रत्नों को धारण करने के बाद उनकी मर्यादा बनाकर रखनी चाहिए ।।

मित्रों, मर्यादा से अभिप्राय है कुछ नियम पालन जैसे रत्न पहन कर अशुभ स्थानों एवं दाह-संस्कार आदि में नहीं जाना चाहिए । अगर ऐसे स्थान पर जाना पड़े तो रत्न उतारकर जाना चाहिए । रत्न उतारकर घर के ही देवस्थल पर रख दें और दोबारा निर्धारित समय में ही रत्न को वापस धारण कर लेना चाहिए । रत्न को दोबारा से धारण करना हो तो शुक्ल पक्ष में निर्धारित वार और उसी की होरा में धारण करना चाहिए । जो रत्न खंडित हो उसे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए ।।

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, जिला- दुर्ग (..) मोबा. नं. 9827198828

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