ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 17 मार्च 2018

स्वागत है नव संवत २०७५..जानिए 'दुर्गा सप्तशती' के रहस्य को

  'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका की ओर से आप सभी सनातनी मित्रों/सुधी पाठकों को सनातन नव वर्ष सम्वत् २०७५ की मंगलप्रद हार्दिक शुभ कामनायें                                                                       कल्पारम्भ से १९५५८८५११९ वां वर्ष कलियुग प्रारम्भ  से ५११९ वां वर्ष विक्रमादित्य के सिंहासन आरोहण काल से २०७५ वां वर्ष शक काल से १९४० वां वर्ष (ईसाई वर्ष २०१८ एवं २०१९) सनातन संस्कृति एवं धर्मावलम्बियों का नूतन वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा  (तदनुसार 18 मार्च 2018 से 5 अप्रैल 2019 तक ) प्रारम्भ होगा! उक्त सम्वत् २०७५ में विरोध कृत /परिधावी सम्वत्सर होगा! जगत संचालन परिषद में सूर्य राजा तथा मंत्री शनि देव होंगे! सम्वत्सर (समय)का निवास वैश्य के घर मे होगा फलतः महँगाई होने की प्रबल सम्भवना! वर्षा सामान्य से कम!
                                   
मित्रों, हमने अलग अलग १२ राशियों का सांवत्सरिक राशिफल फेसबुक लाईव के माध्यम से आपके समक्ष रखा, आप सभी की प्रतिक्रियाएं भी आईं ! मुझे बेहद अच्छा लगा !
️ उक्त नूतन वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार से प्रारम्भ होगा! इसी दिवस वासन्तीक नवरात्र भी प्रारम्भ होंगे!
इस नवरात्र में शक्ति की आराधना की जाती है, विशेष तौर पर 'ज्योति कलश' और वारुणी 'मंगल कलश' की स्थापना कर हम अपने घर के मुख्य दरवाजे पर रंगोली से सनातनी नव वर्ष का स्वागत करते हैं ! मानो प्रकृति भी नव पल्लवित हो नव वर्ष का मुदित मन से स्वागत करती हुयी, किसानों के घर नये अन्न का भण्डारण हो हर्षवती कर देती है !

भगवा ध्वज की महत्ता :

भगवा ध्वज जहां शौर्य, साहस और विजय तथा शक्ति का परिचायक है वहीं यह ध्वज हमें पुराने वर्ष के भूत:शेष की विदायी और नव वर्ष के संक्रमण काल का प्रतीक भी है जिसे हर सनातनियों को अपने घर के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थापित कर पजनोपरांत 'भगवा-ध्वजारोहण' करना चाहिये !
सर्व सनातनी जन नूतन वर्ष पर वर्षपति सह इष्टदेव का पूजार्चन करें! देव परिषद के राजा सूर्य का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें! अपने घरों पर धर्म ध्वजारोहण करें! सम्वत्सर फल श्रवण करें! सम्भव हो तो सामूहिक नव सम्वत्सर का उत्सव मनायें! संगठनों द्वारा आयोजित नव सम्वत्सर उत्सवों में भी सम्मिलित हों, क्योकि संघे शक्ति कलौयुगे, अर्थात् कलियुग में सनातनी (हिन्दू ) जनों का हित एकता में ही सन्निहित हैं!

कलश स्थापन करने का शुभ मुहूर्त :

अभिजित मुहूर्त :
दोपहर 12:11 -12:59 तक

कुछ पंचांगो के अनुसार दिन में 11:32 से 12:24 दोपहर तक अभिजित मुहूर्त है !

(इस दौरान शक्ति आराधना ही ८ मंगल कलश की स्थापना एवं नव संवत्सर 'विरोधकृत' का विधिवत् पूजन करते हुए घर में भगवा ध्वज की स्थापना करना  चाहिये )

'मंगल कलश' या 'ज्योति कलश' स्थापित करने का चौघड़िया मुहूर्त :

चल  07:58:55 -   09:29:17
लाभ  09:29:17 -   10:59:38
अमृत  10:59:38 -   12:30:00
शुभ  14:00:22 -   15:30:43

'नवरात्रि में देवी-आराधना हेतु किये जाने दुर्गा सप्तशती के  बारे में कुछ रोचक जानकारियां'...
दुर्गा सप्तशती के अंग और श्लोक संख्या-

पराशक्ति का 3-3 में विभाजन हुआ है। अव्यक्त के बाद महाकाली प्रथम रूप है तथा उस चरित्र में केवल 1 अध्याय है। महालक्ष्मी में 3  तथा महा सरस्वती चरित्र में 3×3 अध्याय हैं।

इसी प्रकार मूल अथर्ववेद की 3 शाखायें हुई-ऋक्, यजु, साम। मूल भी बचा रहा, अतः त्रयी का अर्थ 4 वेद है, 1 मूल + 3 शाखा। (मुण्डक उपनिषद्, 1/1/1-5)।  इसका प्रतीक पलास दण्ड का प्रयोग उपनयन के समय वेदारम्भ संस्कार में होता है। उसमें भी 1 शाखा से 3 पत्ते निकलते हैं। यह ब्रह्मा का प्रतीक है।

सप्तशती के तीन चरित्र 3 शाखा वेदों ऋक्, यजु, साम के स्वरूप हैं। मूल अथर्ववेद का स्वरूप देवी अथर्व शीर्ष है। देवी अथर्व शीर्ष के अलग-अलग छन्दों में श्लोक संख्या गिनें। उसके बाद प्रथम चरित्र के निर्दिष्ट छन्द गायत्री में, द्वितीय चरित्र की उष्णिक् तथा तृतीय चरित्र की अनुष्टुप् में श्लोक संख्या गिनें। इनमें 3 एकाक्षरी मन्त्रों ऐं, ह्रीं, क्लीं की 3 संख्या जोड़ दें। ठीक 700 श्लोक होंगे।

इसके पूर्व कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करते हैं। घर के प्रसंग में उसकी दीवाल कवच है, दरवाजा अर्गला है तथा उसका ताला कीलक है। कीलक से अंग्रेजी में key-lock हुआ है। मनुष्य शरीर के लिए शरीर ही कवच है जिसे पञ्जर या पिंजड़ा भी कहा गया है। 9 रन्ध्र द्वार हैं, दशम द्वार ब्रह्म रन्ध्र है। तीन चरित्र 3 ग्रन्थियों का भेदन करते हैं-ब्रह्म ग्रन्थि, मणिपूर तक (सूर्य द्वारा, विरजा), विष्णु ग्रन्थि (अनाहत से विशुद्धि तक), रुद्र ग्रन्थि आज्ञा से सहस्त्रार के ब्रह्म रन्ध्र तक)। इन ग्रन्थि भेदों का उल्लेख मुण्डकोपनिषद् के 3 मुण्डकों में है जिन्हें कोई भी जिज्ञासु खोज सकता है। ग्रन्थि भेद ही कीलक हैं। इस सन्दर्भ में कवच अर्गला कीलक के वर्णन तथा दुर्गा नामों पर चिन्तन करें। ताले 3 हैं, सबकी एक ही कुन्जी को कुञ्जिका स्तोत्र कहा गया है।
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, सम्पादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई, मोबा.नं. 9827198828

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