बसन्ती नवरात्र : दूसरे दिन मां
ब्रह्मचारिणी की पूजा,अर्चना का
विधान !
शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन
पूरे भारत में माता शैलपुत्री की
पूजा की गई और घट स्थापना
भी की गई।
नवरात्र के दूसरे दिन माता के
ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा
की जाती है।
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों
का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी
का है।
ब्रह्म का अर्थ है,तपस्या,तप
का आचरण करने वाली
भगवती,जिस कारण उन्हें
ब्रह्मचारिणी कहा गया,
वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म,वेद,
तत्व और ताप [ब्रह्म]
अर्थ है।
ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप
पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त
भव्य है,इनके दाहिने हाथ में
जप की माला एवं बायें हाथ
में कमण्डल रहता है।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा
और साधना करने से कुंडलिनी
शक्ति जागृत होती है।
ऐसा भक्त इसलिए करते हैं
ताकि उनका जीवन सफल
हो सके और अपने सामने
आने वाली किसी भी प्रकार
की बाधा का सामना आसानी
से कर सकें।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना
करने का मंत्र बहुत ही आसान
है।
मां जगदम्बे की भक्ति पाने के
लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि
में द्वितीय दिन इसका जाप
करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ
ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नम:।।
अर्थ: हे माँ! सर्वत्र विराजमान
और ब्रह्मचारिणी के रूप में
प्रसिद्ध अम्बे,आपको मेरा
बार-बार प्रणाम है।
या मैं आपको बारंबार
प्रणाम करता हूँ।
वन्दे वांच्छितलाभाय
चन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु
धराब्रह्मचारिणी शुभम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठाना स्थितां
द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपां
पुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातं
कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखी
निम्न नाभि नितम्बनीम्॥
तपश्चारिणीत्वंहि
तापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी
प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहि
नवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी
प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहि
भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,
ब्रह्मचारिणी
प्रणमाम्यहम्।
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटे
पातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रो
अर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातु
मध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुना
भोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत
पातुब्रह्मचारिणी॥
साधक-योगी आज के दिन
अपने मन को मां के श्री चरणों
मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान
चक्र में स्थित करते हैं और मां
की कृपा प्राप्त करते हैं।
ब्रह्म शब्द का मतलब
(तपस्या) है।
ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य
‘तप का आचरण’ करने
वाली ब्रह्मचारिणी देवी
का स्वरूप ज्योतिर्मय
एवं महान है।
मां के दाहिने हाथ में जप माला
एवं बाएं हाथ में कमंडल
सुशोभित रहता है।
अपने पूर्व जन्म में वे हिमालय
(पर्वतराज) के घर कन्या रूप
में प्रकट हुई थीं।
तब इन्होंने देवर्षि नारद जी के
उपदेशानुसार कठिन तपस्या
करके भगवान शंकर को अपने
पति के रूप में प्राप्त किया था।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना
से मनोरथ सिद्धि,विजय एवं
निरोगता की प्राप्ति होती है
तथा मां के निर्मल स्वरूप
के दर्शन प्राप्त होते हैं।
प्रेम युक्त की गई भक्ति से
साधक का सर्व प्रकार से
दु:ख-दारिद्र का विनाश
एवं सुख-सौभाग्य की
प्राप्ति होती है।
जगदम्बा भगवती के उपासक
श्रद्धा भाव से उनके ब्रह्मचारिणी
स्वरूप की पूजा कर उनके
आशीर्वाद से अपने जीवन
को कृतार्थ करते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या
तस्वीर को लकड़ी के पट्टे पर
लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित
करें।
उस पर हल्दी से रंगे हुए पीले
चावल की ढेरी लगाकर उसके
ऊपर हकीक पत्थर की 108
मनकों की माला रखें।
परिवार या व्यक्ति विशेष
के आरोग्य के लिए एवं
अन्य मनोकामनाओं की
पूर्ति के लिए मनोकामना
गुटिका रखकर हाथ में
लाल पुष्प लेकर मां
ब्रह्मचारिणी का
ध्यान करें।
मनोकामना गुटिका पर
पुष्पांजलि अर्पित कर
उसका पंचोपचार विधि
से पूजन करें।
तदुपरांत दूध से निर्मित नैवेद्य
मां ब्रह्मचारिणी को अर्पित करें।
देशी घी से दीप प्रज्जवलित
रहे।
माला से 108 बार मंत्र
का जाप करें:-
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे
ओम् ब्रह्मचारिण्यै नम:
मंत्र पूर्ण होने पर मां से अपने
अभीष्ट के लिए पूर्ण भक्ति भाव
से प्रार्थना करें।
इसके बाद मां की आरती
करें तथा कीर्तन करें।
नवरात्र का दूसरा दिन मां
ब्रह्मचारिणी का दिन है।
इस दिन पूजन करके भगवती
जगदम्बा को मिश्री,खांड या
गुड का भोग लगाएं।
ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु
होता है।
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
माता ब्रह्मचारिणी समस्त
चराचर प्राणियों एवं सकल
विश्व का कल्याण करें,,,,,
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