ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

गुरुपुर्णीमा के पावन अवसर पर आप सभी को बहुत बहुत बधाई....

!!गुरुस्तोत्र ॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ २॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३॥

स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ४॥

चिन्मयं व्यापि यत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ५॥

सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजितपदाम्बुजः । वेदान्ताम्बुजसूर्यो यः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ६॥

चैतन्यश्शाश्वतश्शान्तः व्योमातीतो निरञ्जनः । बिन्दुनादकलातीतः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ७॥

ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः । भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ८॥
अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मबन्धविदाहिने । आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ९॥

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापनं सारसम्पदः । गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १०॥

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः । तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ११॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः । मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १२॥

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् । गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १३॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव । त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥ १४॥ ॥

!! इति श्रीगुरुस्तोत्रम् ॥

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