ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 26 जुलाई 2017

'उपकृत', 'उपक्रमण' एवं 'समर्पण' का महापर्व है ''श्रावणी उपाकर्म'' और ''रक्षाबंधन''

'उपकृत', 'उपक्रमण' एवं 'समर्पण' का महापर्व है ''श्रावणी उपाकर्म'' नागपंचमी को हस्त नक्षत्र में  एवं ''रक्षाबंधन'' 7अगस्त को सूर्योदय से दोपहर तक धूमधाम से मनावें... तिथि व समय को लेकर कोई भ्रम की कोई स्थिति नहीं है....

रक्षाबंधन पुर्णिमा को, और श्रावणी उपाकर्म नागपंचमी को किया जाना चाहिये...

रक्षाबंधन में भद्रा का कोई प्रभाव नहीं होगा.....सूर्योदय से दोपहर तक धूमधाम से मनायें राखी का महापर्व.....

ऋषियों द्वारा हमें वेद-शिक्षा देकर उन्येहोंने हमें 'उपकृत' किया तथा 'रिश्तों की डोर' यानी रक्षाबंधन का ऐतिहासिक 'उपक्रमण' एवं अपने पूर्वज ऋषियों के प्रति 'समर्पण' का महापर्व है ''श्रावणी उपाकर्म'' !

-पण्डित विनोद चौबे

हमारा भारत व्रत-पर्वों से समृद्ध पूरे विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश देता हुआ कंदराओं में कंद-मूल फल तथा पुष्टिवर्धन वनस्पतियों का चर्वण करता हुआ ''भद्रं कर्णेभि: श्रृणुयाम देवा:....." का गायन कर ''योगक्षेमम् वहाम्यहम्" के उद्घोषक महान ऋषिओं का देश है भारत ! उन्हीं ऋषि-महर्षियों का पावन पवित्र महापर्व 'श्रावणी उपाकर्म' है, जो 'गुरू शिष्य को 'उपकृत' करते हैं, वहीं दानवीर राजा बलि मां लक्ष्मी द्वारा राखी बांधे जाने पर उपहार स्वरुप प्रभु विष्णु को अपने राजमहल से मां लक्ष्मी के साथ जाने के लिये छोड़कर एक भाई अपनी बहन को उपकृत करता है! कालखण्ड के मुताबिक ऐतिहासिकता का इस पर्व पर 'उपक्रम रक्षाबंधन के रूप में हुआ जबकी यह पावन पर्व 'उपाकर्म' के रूप में वैदीक-महापर्व के रुप में ही प्रचलित था ! कुल मिलाकर उपकृत, उपक्रमण तथा ऋषियों के प्रति या यूं कहें रिश्तों की डोर की प्रति 'समर्पण' का महापर्व है! 

7-8-2017 को ग्रहण का विवरण

यह ग्रहण श्रावण पूर्णिमा को 7 एवं 8 अगस्त 2017 की मध्यगत रात्रि को सम्पूर्ण भारत में खंडग्रास के रुप में दिखाई देगा 

विवरण इस प्रकार है

ग्रहण का प्रारंभ

 10:52:56pm 7-8-2017

ग्रहण का मध्य

11:50:29pm  7-8-2017

ग्रहण का मोक्ष( समाप्त) 12:48:09 am 8-8-2017

सूतक का निर्णय

7-8-2017   दोपहर 1:53 से  लगेंगे

अतः आप सभी रक्षाबंधन प्रात: से  दोपहर 1:53  से पहले धूमधाम से मनाया जाना चाहिये क्योंकि इस दिन  भद्रा का विचार नहीं किया जाना चाहिये! ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे ने बताया की धर्म शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास में पुर्णिमा को श्रवण नक्षत्र का होना स्वाभाविक है और इसीलिये इसी दिन 'श्रावणी उपाकर्म' आभ्यंग स्नान व व्रत किया जाता है, किन्तु निर्णय सिंधु के मुताबिक 'श्रवण' नक्षत्र में चंद्रग्रहण होने की वजह से इस वर्ष 'श्रावणी उपाकर्म' 7 /8/2017 की बजाय नागपंचमी 28/7/2017 को हस्त नक्षत्र में प्रात: 8:11 से 9:13 मिनट के मध्य किसी नदी या सरोवर तट पर 'श्रावणी उपाकर्म' किया जायेगा ! 

    ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे ने बताया की 7/8/2017 को रक्षाबंधन  के दिन श्रवण नक्षत्र पर चंद्र के होने के कारण 'मकर' राशि पर चंद्र विराजमान होंगे और जब 'मकर' राशि पर चंद्र होते हैं तो उस दिन 'भद्रा' का निवास पृथ्वी पर नहीं होता इस वज़ह से रक्षाबंधन का त्योहार सूर्योदय से दोपहर 1:53 तक हर्षोल्लास पूर्वक निर्बाध रुप से मनायें !दोपहर 1:53 के बाद 'चंद्रग्रहण का सूतक आरंभ हो जायेगा, अतएव इसके बाद रक्षाबंधन किया जाना सद्य: वर्जित है' !

अब मैं आप लोगों को 'रक्षाबंधन' एवं 'श्रावणी उपाकर्म' की तिथियों को लेकर भ्रम तथा 'श्रवण नक्षत्र में चंद्र ग्रहण को लेकर ऊहा-पोह की स्थिति को व्रत-पर्व निर्धारण करने वाले धर्मग्रंथो के आधार पर प्रमाणित चिंतन करते हैं' हालॉकि इस विषय हमने ''ज्योतिष का सूर्य'' मासिक पत्रिका के जुलाई माह के अंक में विस्तृत चर्चा की है, मैं पिछले कई दिनों से फेसबुक, व्हाट्सएप पर कई ऐसे लेख पढ़ रहा हुं की उससे लोगों में रक्षाबंधन एवं श्रावणी उपाकर्म' को लेकर भ्रम होना लाज़मी है तो आईए 'सोशल मीडिया' पर चल रहे 'कॉपी-पेस्ट-कथित ज्योतिषियों' से दूर ''धर्मशास्त्र सम्मत व यथार्थ चिन्तन करें'' 

ग्रहयोगो गुरुं हन्ति संक्रान्तिः शिष्यघातिनी...........

'श्रावणी उपाकर्म' पर विस्तृत विवेचन :

इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा में श्रवण नक्षत्र में चंद्रग्रहण होने के कारण यह श्रावणी उपाकर्म के लिए उपयुक्त नहीं है। 'निर्णय सिंधुुुु' में हेमाद्रि का निषेधवाक्य है -उपाकर्म न कुर्वन्ति क्रमात्सामर्ग्यजुर्विदः। ग्रहसंक्रान्तियुक्तेषु हस्तश्रवण पर्वसु।। (निसि द्विप)

अर्थात पूर्णिमा में श्रवण अथवा हस्त नक्षत्र में ग्रहण, संक्रांति हो तो क्रम से सामवेदी ऋग्वेदी और यजुर्वेदी यह तीन उपाकर्म नहीं करते हैं।

इसके साथ निगम का वाक्य है कि उपाकर्म में ग्रहण का योग गुरु को और और संक्रांति का योग शिष्य को नष्ट करता है-

ग्रहयोगो गुरुं हन्ति संक्रान्तिः शिष्यघातिनी।

इसके अलावा 'प्रयोगपारिजात' में वृद्ध मनु और 'कात्यायन' ने लिखा है कि यदि पूर्णिमा में अर्धरात्रि से पूर्व संक्रांति या ग्रहण हो तो उस दिन उपाकर्म न करें-

अर्धरात्रादधस्ताच्चेत्संक्रांतिग्रहणन्तदा। उपाकर्म न कुर्वीत।

 (चंद्र ग्रहण का स्पर्श रात्रि 10:52 पर है, जबकी श्रवण नक्षत्र 7 की अर्धरात्रि और 8/8/2017 की भोर में 4 बजकर 6 मिनट रात्रि तक रहेगा ! ऐसी स्थिति में पूर्णिमा उपाकर्म के लिए दूषित हो गई है। अतः  7/8/2017  को पूर्णिमा में उपाकर्म करने की बजाय नागपंचमी यानी श्रावण सुदी पंचमी को हस्तभे में श्रावणी करना श्रेयस्कर होगा। जैसे नीचे दिये गये कुछ ''शास्त्र संदर्भ सूत्रों को देखें.....

अब सवाल उठता है श्तरावण सुदी पंचमी को उपाकर्म करने का प्रमाण क्या है.......तो हेमाद्रि ने इसका विकल्प श्रावण शुक्ल पंचमी को दिया है-

"हेमाद्रौ निषेधात्पंचम्यादयो ग्राह्याः।"

मदनरत्न भी विकल्पतः श्रावण शुक्ल पंचमी को ही उपयुक्त मानते हैं-

"यदि स्याच्छ्रवणपर्वसंक्रांतिदूषितम्। स्यादुपाकरणं शुक्लपंचम्यां श्रावनस्य तु।।" स्मृतिमहार्णव में भी यही कहा है कि यदि पर्व के दिन ग्रहण या संक्रांति हो तो उसी महीने हस्त नक्षत्र पंचमी के दिन उपाकर्म करना चाहिए-

संक्रांतिग्रहणं वापि यदि पर्वणि जायते। तन्मासे हस्तयुक्तायां पंचम्यां वा तदिष्यते।।

इन वचनों से सिद्ध हो जाता है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को श्रवण नक्षत्र में उपाकर्म किया जाना चाहिए।

अस्तु इस बार शुक्ल पंचमी और हस्त की युति प्रातः 8:00 से 09:03 के मध्य है, अतः इस योगकाल में ही श्रावणी उपाकर्म किया जाना चाहिए। यही धर्मशास्त्रसम्मत है। आगे अब रक्षाबंधन पर्व दिन विशेष तिथि पर चर्चा करते हैं...

रक्षाबंधन का निर्णय:- 

    निर्णयसिंधु एवं धर्मसिंधु के अनुसार रक्षाबंधन ग्रहण और संक्रांति में भी किया जा सकता है परंतु भद्रा में नहीं किया जाता और तीन मुहूर्त से अधिक मान वाली पूर्णिमा होनी चाहिए और यह रक्षाबंधन पर अपराह्न काल अथवा प्रदोष काल में होता है-

अस्यामेव पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहूर्ताधिकोदयव्यापिन्यामपराह्णे प्रदोषे वा कार्यम्। इयं ग्रहणसंक्रातिदिनेपि कर्तव्यम्। (धसि द्विप)

इस बार पूर्णिमा में भद्रा की समाप्ति दिन में 10:31 पर होगी। पूर्णिमा रात्रि 10:50 तक होने से जो स्वतः त्रिमुहूर्तव्यापिनी सिद्ध हुई। प्रदोष काल सूतकयुक्त है, अतः अपराह्नकाल में सूतक के पूर्व दिन में 12:00 से 01:55 के मध्य या ' मकर राशिगत चंद्र होने की वजह से भद्रा का वास पृथ्वी पर नहीं है अत: सूर्योदय से ग्रहण सूतकारंभ के पूर्व रक्षाबंधन श्रेयस्कर होगा।

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई

9827198828

नोट - उपरोक्त लेख को वगैर अनुमति कॉपी-पेस्ट करना दण्डनीय अपराध है 'ऐसा करते हुए पाये जाने पर 'ज्योतिष का सूर्य' आपके उपर दाण्डिक कार्वाही कराने हेतु बाध्य हो जायेगा, साथ ही ज्योतिषीय परामर्श सशुल्क है और यह फोन पर परामर्श नहीं दी जाती, अत: फोन करके बेवजह समय नष्ट ना करें)

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