सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्त्व है......
आज दिनांक 10/7/2017 को प्रथम दिवस सोमवार से सावन माह प्रारंभ हुआ पूरा ब्रह्माण्ड शिवमय हो कर डमरु के ताल पर नटराज नृत्य करता हुआ 'बोल बम' ...'बोल बम' का निनाद चहुंओर गूंज रहा है.. इस सावन माह की विशीष्टता कई मायने में बेहद अहम है क्योंकि इस सावन में पांच सोमवार का होना और दूसरा रक्षाबंधन यानी श्रावणी अर्थात् श्रावण पुर्णिमा के दिन खण्ड चन्द्र ग्रहण का होना विशेष दुर्लभ संयोग का विषय है..क्योंकि शैव संप्रदाय के सशक्त मेंबर यानी भक्त 'शशी' यानी चन्द्र को ''विधुरपि विधीयोगात् ग्रस्यते राहुणाअसौ" राहु ग्रसेगा..यानी 'खण्ड चन्द्र ग्रहण' हो रहा है अत: यह रोचक पहलु है! आईये अब थोड़ा विस्तृत चर्चा करें....
पांच सोमवार.. !
१- आज ही है , २- १७ जुलाई २०१७ को, ३- २६ जुलाई २०१७, ४- ३१ जुलाई २०१७ को और अन्तिम यानी ५- वाँ सोमवार ७अगस्त २०१७ श्रावण की पुर्णिमा को हो रहा है...यानी सावन की शुरुआत भी सोमवार से औऱ समापन भी सोमवार को है, जो अपने आप में बेहद फलप्रद है !
रक्षाबंधन में भद्रा का पृथ्वी पर कोई प्रभाव नहीं है .....
कॉपी पेस्ट में पारंगत कुछ कथित गुगल पण्डितों द्वारा भद्रा को लेकर एक बार फिर भ्रम फैलाया जा रहा है कि ७ अगस्त २०१७ को भद्रा है जिसकी वजह से रक्षाबंधन का मुहूर्त अल्प काल का ही है लेकिन ऐसा उनका " पोंगा पाण्डित्य" है मैं पण्डित विनोद चौबे, भिलाई बहुत ही जिम्मेदारी से कहना का चाहता हुं की "श्रावणी उपाकर्म या सावन पुर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र का होना नितांत आवश्यक है, जैसे हरितालिका व्रत में हस्त नक्षत्र का होना स्वाभाविक है" ऐसे में श्रवण नक्षत्र यानी ७ अगस्त २०१७ को मकरगत चंद्र होंगे जबकि 'मेष मकर वृष कर्कट स्वर्गे' के अनुसार भद्रा का निवास स्वर्ग लोक में रहेगा अर्थात् भद्रा का कोई प्रभाव रक्षाबंधन पर नहीं होगा अत: प्रात: काल से दोपहर १बजकर ५० मिनट तक राखी बांधने का शुभ मुहूर्त रहेगा क्योंकि इसके बाद खण्ड चन्द्र ग्रहण का सूतक लग जायेगा ९घंटे के सूतक के उपरांत रात्रि १० बजकर ५० मिनट से ग्रहण का स्पर्श होगा औऱ रात्रि १२ बजकर ५० मिनट पर ग्रहण का मोक्ष यानी समापन होगा! ग्रहण में या सूतक में किसी भी प्रकार का शुभ कर्म वर्जित है....!
भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही ग्रह जनित दोषों और रोगों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद अनुसार शिव हैं –सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। भगवान शंकर सर्व कल्याणकारी देव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं।
भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषियों ने शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है यथा –
यजुर्मयो हृदयं देवो यजुर्भिः शत्रुद्रियैः।
पूजनीयो महारुद्रो सन्ततिश्रेयमिच्छता।।
शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है ।जाबालोपनिषद में याज्ञवल्क्य ने कहा –शतरुद्रियेणेति अर्थात शतरुद्रिय के सतत पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। परन्तु जो भक्त यजुर्वेदीय विधि-विधान से पूजा करने में असमर्थ हैं या इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान शिव के षडाक्षरी मंत्र– ॐ नम:शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है।महाशिवरात्रि पर शिव-आराधना करने से महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होते है। शिव भक्त इस दिन अवश्य ही शिवजी का अभिषेक करते हैं।
क्या है ? रुद्राभिषेक ...??
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।
रुद्राभिषेक क्यों करते हैं?
रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।
रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार ––
एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता रपार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।
रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ?
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा!
पुराणों में रूद्राभिषेक द्रव्य पदार्थों का अलग अलग फल...
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जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।
जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है।
कुशा जल से अभिषेक करने पर — रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए।
तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है ।
दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण
गंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है।
दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।
घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू।
इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं।
रक्षाबंधन कब मनायें.?
सर्व प्रथम नित्य किये जाने वाले पूजन अर्चन संपन्न होने के बाद अपने कुल पुरोहित के द्वारा प्रथम रक्षा सूत्र बंधवाना चाहिये तदुपरान्त बहने अपने भाईयों को नीचे दिये गये मंत्र को बोलते हुए...
''येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल: !
तेन त्वामि प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल !!"
इसी मंत्र का उच्चारण करते हुए ७अगस्त २०१७ सोमवार को निर्विवाद रुप से प्रात:काल से दोपहर १ बजकर ५० मिनट तक शुभ मुहूर्त इसी शुभ समय में राखी बांधना चाहिये ! इस विषय की विस्तृत चर्चा मैंने प्रारंभ में ही कर दी है!
http://jyotishkasurya.blogspot.in/2017/07/blog-post.html
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, सड़क-२६, शांति नगर, भिलाई, जिला-दुर्ग ,छत्तीसगढ़
दूरभाष क्रमांक- ९८२७१९८८२८
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