कब होगा भाग्योदय ..........?
ज्योतिषशास्त्र द्वारा उस रहस्य के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है. जो इन्द्रियों के द्वारा असम्भव है। इसके द्वारा मानव जीवन के प्रत्येक पहलू पर सूक्ष्म जानकारी प्राप्त की जा सकती है. ज्योतिष द्वारा मानव जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु जन्मांग चक्र एक प्रमुख आधार है. जन्मांग चक्र के बारह भावों में से प्रत्येक भाव द्वारा अलग-अलग कारकत्वों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है. जन्मकुण्डली के नवम भाव से धर्म, दान, तीर्थाटन, तप, गुरु, यात्रा, भाग्य, पिता,ऐश्वर्य एवं धार्मिक कृत्यों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है. भावत् भावम् के सिद्धान्तानुसार नवम से नवम अर्थात पंचम भाव से भी इन कारकों का अध्ययन किया जाता है. प्रत्येक जातक की यह जानने की इच्छा होती है कि उसका भाग्योदय कब, कैसा एवं किस क्षेत्र में, किसके सहयोग से होगा ? इस हेतु जातक की जन्मकुण्डली के भाव एवं ग्रहों के विशेष योग द्वारा जाना जाता है. कहते है-औषधि मणि मन्त्राणां, ग्रह नक्षत्र तारिका।
भाग्यकाले भवेत्सिद्धि अभाग्यं निष्फलं भवेत।।
अर्थात औषधि, रत्न, मंत्र, ग्रह नक्षत्रों के योग भाग्यकाल में ही उपयुक्त फलदेने में समर्थ होते हैं. लेकिन विपरीत भाग्य होने पर येसब निष्फल रहते हैं.
़भाग्य भाव में स्थित ग्रहो एवं भाग्योदय कारक ग्रह भावेश से भाग्योदय के वर्ष का निश्चय किया जा सकता है. यदि भाग्येश या भाग्य भाव में सूर्य हो तो 22वें वर्ष में जातक का भाग्योदय होता है. चन्द्र से 24वें वर्ष या बचपन में ही, मंगल से 28वें वर्ष में, बुध 32वें वर्ष में, वृहस्पति 16वें वर्ष में, शुक्र से 26वें वर्ष में ,शनि से 36वें वर्ष में व राहू-केतू होने पर 42 वें वर्ष में भाग्योदय होता है. यदि भाग्य भाव में स्थित ग्रह उच्च,स्वक्षेत्री, मूल त्रिकोणी, मित्रक्षेत्री होकर स्थित हों तो भाग्य प्रबल रहता है. भाग्य भाव से केन्द्र त्रिकोण में भी स्थित कोई ग्रह यदि उच्च, स्वक्षेत्री,मूल त्रिकोणी एवं भाग्येश का मित्र हो या कोई शुभ ग्रह जो सम होकर स्थित हो तो भी जातक का भाग्य अच्छा रहता है। भाग्य भाव या भाग्य भाव से केन्द्र त्रिकोण में स्थित ग्रह यदि नीच राशि, नीच नवांश, शत्रुराशि, पापग्रहों से युक्त, निर्बल, अस्त, षडवर्ग बलहीन होकर भी स्थित हो तो जातक अपने भाग्य को कोसता रहता है. इस स्थिति में जातक द्वारा किये गये कर्मो का पूर्ण शुभ फल प्राप्त नही हो पाता. भला चाहने पर भी बुरा ही होता है. जातक की जिन्दगी एक खिलौना बनकर रह जाती है. जिससे गोचरवंश भ्रमण करते हुए ग्रह खेलते रहते हैं. यदि भाग्येश स्वक्षेत्री हो या षडवर्ग में ज्यादातर अनुकूल हो तो भाग्योदय स्वदेश में ही हो जाता है. शत्रुक्षेत्री होने एवं षडवर्ग में भी यही स्थिति या दूसरों के वर्ग में हो तो जातक का भाग्योदय परदेश में होता है. जहां पर उसके मित्र भी कम ही रहते हैं. जातक पारिजात के अनुसार
पापारिनीचरविल्प्तकरा नभोगा।
भाग्यस्थिता यदि यशोधनधर्महीना:।।
अर्थात यदि कोई पापग्रह नीच राशि शत्रु राशि या सूर्य के सान्निध्य के कारण अस्त ग्रह यदि भाग्य भाव में बैठे तो जातक यश, धर्म, धन से हीन होता है. अर्थात पापग्रह बैठकर भाग्य को बिगाड़ते हैं.
पापोस्पि तुड्गनिजमित्र गृहोपगŸ्चेद।
भाग्ये तु भाग्यफलद: सततं नराणाम।।
अर्थात पापग्रह भी यदि अपने उच्च राशि का या मित्रराशि यास्वराशि में बैठे तो उसको भाग्यशाली बनाता है. किसी जातक के बारे में भाग्यफल की जानकारी हेतु प्रमुख योग इस प्रकार से देखे जा सकते हैं।
1. नवमेश, वृहस्पति एवं शुक्र यदि केन्द्र त्रिकोण में बली होकर शुभ राशियों में स्थित हो तो जातक बहुत भाग्यवान होता है. विपरीत होने पर अर्थात भाग्य भावसे त्रिक, षडवर्ग बलहीन, शत्रुराशि या अस्तगत हो तो जातक भाग्यहीन होता है. सभी प्रकार से विपरीत होने पर ऐसे जातकों के मित्र पर भी प्रभाव रहता है.
भाग्य स्थान में वृहस्पति हो तथा भाग्येश केन्द्र में हो, लग्नेश बली हो या भाग्य भाव में कोई शुभ ग्रह बृहस्पति लग्न में स्थित हो तो जातक बहुत भाग्यशाली होता है.
भाग्येश व लग्नेश में परस्पर युति दृषि सम्बन्ध हो या दोनो एक दूसरे की राशि में स्थित हो, दोनों कारक ग्रह बली हो तो जातक भाग्यशाली होता है।
दशमेश व निर्बल तृतीयेश युति कर स्थित हो एवं भाग्येश नीच राशि, नवांश में या अस्तगत हो तो जातक भाग्यहीन होता है.
यदि पंचम स्थान में राहू हो, पंचमेश व भाग्येश अष्टम भाव में नीचे राशि पापग्रहों से पीडि़त या अस्त होकर स्थित हो तो जातक भाग्य का सपना देखता रहता है।
भाग्य भाव में शनि चन्द्र हो, लग्नेश व भाग्येश दोनों नीच राशि या नीच नवांश में स्थित हो तो जातक भिखारी होता है।
यदि शुक्र अपने परमोच्च पर हो, नवमेश से युति कर एवं शनि तृतीय भाव में हो या नवम में वृहस्पति, नवमेश केन्द्र में स्थित हो तो जातक बहुत भाग्यशाली होता है. 20 वर्ष की आयु से ही उसका भाग्य चमकने लगता है।
यदि बुध परमोच्च में हो एवं भाग्येश भाग्य में हो तो 26 वर्ष की आयु में जातक का प्रबल भाग्योदय होता है. लग्नेश व भाग्येश में परस्पर व्यत्यय योग हो व बृहस्पति सप्तम में स्थित हो तो जातक को जीवन भर धन व वाहन का लाभ होता रहता है।
चतुर्थेश अष्टम में हो तो जातक भाग्यहीन होता है. लग्नेश, द्वितीय व सप्तमेश त्रिक भावों में स्थित हो तो जातक का विवाह होते ही भाग्य अपना खेल दिखाकर सब कुछ बर्बाद करवा देता है।
दशमेश व लाभेश भाग्य भाव में बली होकर शुभ ग्रह या अपने मित्र ग्रह की राशि से युति करे या एकादशेश भाग्य में व द्वितीयेश एकादश में, नवमेश द्वितीय स्थान में हो और दशमेश से युत या दुष्ट हो तो जातक बहुत भाग्यशाली होता है।
भाग्येश द्वितीय भाव में दशमेश से युति करे या नवम स्थान में बृहस्पति व शुक्र से युति दृष्टि सम्बन्ध बनाये तो जातक भाग्यशाली होता है।
नवमेश व एकादशेश परस्पर व्यत्यय योग करें या लग्नेश व द्वितीयेश पंचम भाव में युति करके स्थित हों तो जातक भाग्यशाली होता है।
लग्न, तृतीय व पंचम में सभी ग्रह स्थित हो तो जातक भाग्यसाली होता है.
नवमेश षष्ठ भाव में शत्रु ग्रह से युति दृष्टि सम्बन्ध बनाये या किसी पाप ग्रह के प्रभाव में हो तो जातक भाग्यहीन होता है।
भाग्येश यदि क्रूर षष्ठयांश में हो या स्वयं नीच राशि या नीच नवांश में हो एवं लग्नेश निर्बल हो या केन्द्रस्थ शनि पर बृहस्पति व चन्द्र में से किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक भाग्यहीन होता है.
यदि पांच ग्रह अपनी उच्च राशि में स्वराशि, स्वनवांश में, वैशैषिकांश में भाग्य स्थान में हो तथा उन पर नवमेश की दृष्टि या योग हो तो जातक राजा होता है. एवं बहुत भाग्यवान होता है।
यदि चार ग्रह बली होकर भाग्य भाव में हो तो भाग्य अच्छा रहता है एवं जातक बहुत सी सम्पत्ति का मालिक होता है. यदि ये भाग्यकर्ता ग्रह स्वनवांश में हो तो अपने देश में भाग्योदय करते हैं एवं यदि अन्य नवांश में हो तो जातक का भाग्योदय परदेश में होता है।
यदि सूर्य, चन्द्र एवं शुक्र तीनों एक साथ नवें घर बैठे हों तो जातक राजप्रिय होता है किन्तु धन का नाश करता है एवं स्त्री से कलह रहता है।
यदि सूर्य, चन्द्र और शनि एक साथ नवें घर में हो तो जातक दूसरों का नौकर होता है एवं सज्जन लोगों से विरोध करता है. यदि सूर्य, मंगल एवं बुध एक साथ नवम में हो तो देवता एवं पितरों का प्यारा होता है. ऐसे जातक को देवताओं एवं पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण स्त्री-पुरुष सुख से युक्त एवं समृद्धशाली होता है.
यदि भाग्य भाव पर भाग्येश की दृष्टि हो या किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो भाग्यशाली होता है. नवमस्थ बृहस्पति पर सूर्य की दृष्टि हो तो धनवान, शुक्र की दृष्टि हो तो अनेक सवारी यान वाला, चन्द्र देखें तो सुखी एवं शनि से दृष्ट हो तो पशुधन से युक्त होता है. अर्थात भाग्य भाव पर शुभग्रहों या बलवान ग्रह की दृष्टि जातक को भाग्यशाली एवं पापी कमजोर ग्रहों का प्रभाव जातक की भाग्यहीन बनाता है. आइये, कुछ उदाहरण कुण्डलियों द्वारा जानकारी प्राप्त करें।
कुण्डली संख्या (1)
जन्म दिनांक 20/21.6.1976
जन्म समय : 12.30 प्रात:काल
जन्म स्थान : जम्मू
विश्लेषण-प्रस्तुत उदाहरण कुण्डली संख्या -1 में भाग्येश मंगल पंचम भाव में नीच राशि मे एवं भाग्य पर बुध की दृष्टि है. मंगल एवं बुध का भाग्य भाव से सम्बन्ध हो तो 28 से 32वें वर्ष में भाग्योदय होता है। प्रस्तुत कुण्डली मे नवमेश मंगल नीच राशि में एवं बुध मित्र राशि में वर्गोत्तमी होकर स्थित है। जातक वर्तमान में शुक्र की महादशा से गुजर रहा है. शुक्र पराक्रमेश एवं अष्टमेश होकर चतुर्थ भाव में सूर्य से अस्त होकर स्थित है. इसलिये भाग्योदय 32 वर्ष की आयु तक होने के आसार बन रहे हैं. एवं भाग्योदय साधारण स्तर का ही रहेगा।
कुण्डली संख्या-2
जन्म दिनांक : 14.7.1971
जन्म स्थान : झालरापाटन (राज.)
विश्लेषण-प्रस्तुत कुण्डली में नवमं भाव पर चार पापग्रहों का प्रबल प्रभाव बन रहा है. शुभ ग्रहों के रूप में केवल बृहस्पति का दृष्टि प्रभाव एवं नवमेश चन्द्र शुभ ग्रह है। भाग्य भाव पर पापग्रहों का अधिक प्रभाव होने के कारण भाग्योदय हेतु प्रबल संघर्ष के संकेत बन रहे है. नवमेश चन्द्र पंचम भाव में स्थित है। चन्द्र के आगे व पीछे कोई ग्रह स्थित नहीं है. लग्नेश मंगल एवं लग्नस्थ बृहस्पति दोनों वक्री होकर स्थित है. इसलिये भाग्य में उतार-चढ़ाव रहेगा अर्थात जन्मकुण्डली का विश्लेषण कर जाना जा सकता है कि भाग्य कैसा एवं कब होगा ? इसके लिए ग्रह योग प्रमुख भूमिका का निर्वाह करते हैं। पपप
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