ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

बुधवार, 24 अगस्त 2011

रूद्राक्ष सर्व सुखमय मंगलकारियों के लिए


रूद्राक्ष अमूल्यवान अमृत तुल्य फल है। यह भगवान शिव की अमूल्य देन है। माना जाता है कि भगवान शिव की उपासना द्वारा नेत्रों से गिरे आंसुओं की बूंदों से उत्पन्न हुआ।
 रूद्राक्ष सर्व सुखमय मंगलकारियों के लिए अति लाभकारी सिध्द हुआ है। ऐसी मान्यता है कि रूद्राक्ष का धारण करने वाला साक्षात् रूद्र (शिव) को धारण करता है।
रूद्राक्ष पर पड़ी धारियों के आधार पर ही इनके मुखों की गणना की जाती है। रूद्राक्ष एकमुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक होते हैं, किंतु प्राय: एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक ही प्राप्त होते है। चौदह मुखी तक से अधिक रूद्राक्ष प्राय: दुर्लभ वस्तु है। अत: हम यहां पर एक से लेकर चौदह मुखी तक के रूद्राक्षों का अलग-अलग महत्व व उनकी उपयोगिता का वर्णन कर रहे हैं:-
एकमुखी:- साक्षात् भगवान शंकर का स्वरूप है जो कि सर्वश्रेष्ठ है।  इससे भक्ति व मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। धारक प्रतिदिन पवित्र व पापों से शुध्द होता है। जिन्होंने इसे पा लिया उसके बड़े भाग्य हैं। जहां यह होगा वहां लौकिक एवं आध्यात्मिक सुखों का वास होगा। इसको धारण करने से समस्त प्रकार के कष्टों व दु:खों का स्वत: ही नाश हो जाता है।
दोमुखी:- शिव और शक्ति का स्वरूप है। इसे धारण करने वाले सम्पत्ति, धन-धान्य और सत्संगति से युक्त होकर शांत व पवित्र गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हैं। वैवाहिक क्लेश व मनमुटाव आदि के निवारण हेतु धारण किया जाता है।
तीनमुखी:- साक्षात् अग्नि का विग्रह है। इसे धारण करने से सभी मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं। साक्षात्कार में सफलता प्राप्ति में सहायक है।
चारमुखी:-ब्रह्मा का स्वरूप है। इसे धारण करने से सभी मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं।  इसका धारण महान धनाढय, आरोग्यवान व श्रेष्ठ माना जाता है।
पांचमुखी:- पंचब्रह्म स्वरूप है।  इसे पास रखने वाले प्राणी को कोई दु:ख नहीं सताता व सब प्रकार के पाप मिट जाते हैं। रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है। प्राय: माला इसी की बनाई जाती है।
छहमुखी:- स्कन्द के समान है। विद्या प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ है। बुध्दि व स्मरण शक्ति में वृध्दि होती है।
सातमुखी:- लक्ष्मी जी का स्वरूप है। धन, सम्पत्ति, कीर्ति प्रदान करने वाला होता है। सात मुखी माला बड़ी मुश्किल से प्राप्त होती है। इसे धारण करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
आठमुखी:- गणेश जी का स्वरूप है।  विजयश्री प्रदान करने वाला माना गया है। इसे धारण करने से विरोधियों की समाप्ति हो जाती है अर्थात् उनका मन बदल जाता है। मुकदमे आदि में सफलता प्रदान करता है। यह आयु बढ़ाने वाला है।
नौमुखी:- धर्मराज का स्वरूप है। इसे धारण करने से सहनशीलता, वीरता, साहस, कर्मठता में वृध्दि होती है। संकल्प में दृढ़ता आती है व यमराज का भय नहीं रहता। स्त्री रोग, गर्भपात व संतान प्राप्ति की बाधा दूर करने में सहायक होता है।
दसमुखी:- भगवान विष्णु का स्वरूप है। इससे सर्व ग्रह शांत होते हैं। ग्रह बाधा के कारण यदि भाग्य साथ न देता हो तो अवश्य धारण करें। भूत, पिशाच, सर्प आदि का भय नहीं रहता।
ग्यारहमुखी:- ग्यारह रूद्रों की प्रतिमा होती है। भाग्यवृध्दि, धनवृध्दि व भगवान शंकर की कृपा पाने के लिए सर्र्वोत्तम है इसे धारण करने से सदा सुख की सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पति की दीर्घायु, उनकी सुरक्षा व उन्नति तथा सौभाग्य प्राप्ति में यह रूद्राक्ष बहुत उपयोगी है।
बारहमुखी:- आदित्य का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से गौ हत्या, मनुष्य हत्या व रत्नों की चोरी जैसे पाप दूर होते हैं। इससे व्यक्ति कार्य करने में दक्ष हो जाता है। धारक अपनी भावनाओं तथा अपने कथन को सुन्दर व व्यवस्थित तरीके से व्यक्त करने में समर्थ होते हैं। अत: सामने वाले को चतुर वाणी से अपने पक्ष में कर लेने की क्षमता उत्पन्न होती है।
तेरहमुखी:- स्वामी कार्तिकेय के समान है। राज्य में पद प्राप्त व्यक्तियों को सफलता दिलाकर सम्मान में वृध्दि करता है। सम्पूर्ण कामनाओं व सिध्दियों को देने वाला है।  हर सांसारिक मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन है। धन, यश, मान प्रतिष्ठा में वृध्दि करता है।
चौदहमुखी:- यह हनुमान जी का स्वरूप है तथा अति दुर्लभ, परम प्रभावशाली व अल्प समय में ही शिवजी का सान्निध्य प्रदान करने वाला है। हानि, दुर्घटना, रोग व चिंता से मुक्त रखकर, साधक की सुरक्षा समृध्दि करना इसका विशेष गुण है। जो रोग ठीक नहीं होते यह उनको भी ठीक कर देता है। एक मुखी रूद्राक्ष के बाद यही रूद्राक्ष सबसे अधिक प्रभावशाली माना गया है।

कोई टिप्पणी नहीं: