ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 31 अगस्त 2011

मयूरेशस्तोत्रम चिन्ता एवं रोग निवारण के लिये

चिन्ता एवं रोग निवारण के लिये मयूरेशस्तोत्रम
ब्रम्होवाच
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं
नमाम्यहम्।।
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि
स्थितम्। गुणातीतं गुणमयं
मयूरेशं नमाम्यहम् ।।
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं
निजेेच्छया। सर्व विघ्नहरं देवं
मयूरेशं नमाम्यहम्।।
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि विभ्रतम्। नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्।।
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरमिष्टुतमहार्निशम्। सद्सद्वयक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
सर्वशक्तिमयंदेवं सर्वरूपधर विभूम्। सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
पार्वतीनन्दन शम्भोरानन्द परिवर्धनम्। भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्। समाष्टिव्यष्टिरूपं त्वा मयूरेशं नमाम्यहम्।।
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्। सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
अनेककोटिब्रम्हाण्डनायकं जगदीश्वरम्। अनन्तविभवं विष्णु मयूरेशं नमाम्यहम्।।
मयूरेश उवाच।
इदंब्रम्हकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्।।
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् । आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्।।
अर्थ-ब्रम्हाजी बोले जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएं करते हैं जो माया के स्वामी हैं. तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य (अचिन्त्य) है उन मयूरेश गणेश को मंै प्रणाम करता हूं। जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार संसार की सृष्टि,पालन और संहार करते हैं. उन सर्वविचन्हारा देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं. जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाथ एक है.और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं. उन नाना अस्त्र शस्त्रधारी मयूरेश को मै भक्तिभाव से नमस्कार करता हूँ इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन रात जिनका स्तवन करता है तथा जो सत् असत्, व्यक्त और अव्यक्तरूप हैं उन मयूरेश को मै प्रणाम करता हूँ जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं.उन भगवान मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं। जो पार्वतीजी को पुत्ररूप से आनन्द प्रदान करने और भगवान शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं. उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ । मुनि जिनका ध्यान करते मुनि जिनके गुण गीत गाते तथा जो मुनियों  की कामना पूर्ण करते हैं. उन समष्टि व्यष्टिरूप मयूरेश को मै प्रणाम करता हूं जो समस्त वस्तु विषयक अज्ञान के निवारक सम्पूर्ण ज्ञान के उद्वारक, पवित्र, सत्य ज्ञानस्वरूप तथा सत्यनामचारी है. उन मयूरेश को मै नमस्कार करता हूं जो अनेक कोटि ब्रम्हाण्ड के नायक जगदीश्वर, अनन्त वैभव सम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरूप हैं. उन मयूरेश को मै प्रणाम करता हूं.
मयूरेश ने कहा यह स्तोत्र ब्रम्हभाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों का नाशक है. मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देनेवाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करनेवाला है. सात दिन इसका पाठ किया जाय तो कारागार में पडे हुए मनुष्यों को भी छुडा़ जाता है. यह शुभ स्तोत्र आदि (मानसिक चिन्ता) तथा व्याधि (शरीरगत रोगों को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है.

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