ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 8 अगस्त 2011

चमकते चांद को......

बड़ा दिलकश बड़ा रंगीन है ये शहर कहते हैं,
यहां पर हैं हजारों घर, घरों में लोग रहते हैं,
मुझे इस शहर ने गलियों का बंजारा बना डाला,
मैं इस दुनिया को अक्सर देख कर हैरान हूं,
ना मैं बना सका छोटा सा घर दिन रात रोता हूं,
खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला,
मेरे मालिक मेरा दिल क्यों तड़पता है, सुलगता है,
तेरी मर्जी पे किसका जोर चलता है,
किसी को गुल किसी को तुने अंगारा बना डाला,
यही आगाज था मेरा, यही अंजाम होना था,
मुझे बरबाद होना था, मुझे नाकाम होना था,
मुझे तकदीर ने तकदीर का मारा बना डाला,
चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला।
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला।।

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