गणेश उपासना
सर्वप्रथम पूजे जाने वाले मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश के पूजन अर्चन से ही सभी प्रकार की गतिविधियों की शुरूआत आदिकाल से होती रही है। किसी भी प्रकार की साधना हो, गणेशजी का स्मरण करने के बाद ही इनकी सारी प्रत्रि*या आरंभ होती है।
साधना के जरिये ईश्वर की कृपा प्राप्ति और साक्षात्कार के मुमुक्षुओं के लिए गणेश उपासना नितान्त अनिवार्य है। इसके बगैर न तो जीवन में और न ही साधना में कोई सफल हो सकता है।
श्री गुरु चरणों की अनुकंपा प्राप्त कर साधना पथ की ओर अग्रसर होने वाले साधकों के लिए महागणपति की साधना नितान्त आवश्यक है क्योंकि जिस मार्ग पर चल कर हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचना है उसमें आने वाले विघ्नों, अपसारण तथा कण्टाकीर्ण पथ को कुसुम कोमल बनाने के लिए भगवान गणपति का मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त कर लेना साधक का सर्वप्रथम कर्त्तव्य बन जाता है।
गणपति केवल विघ्न दूर करने वाले देव ही नहीं हैं वरन् ऋद्धि सिद्धि के दाता, विद्याप्रदाता, मांगलिक कार्यों के पूरक, संग्राम संकट के निवारक तथा सर्व विध मंगलकारी हैं। यौगिक साधना की पूर्ति में भी महागणपति की कृपा प्राप्ति अत्यावश्यक है।
गणेश उपासना पुरातन काल से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रही है और इसीलिये सभी प्रकार की उपासना पद्धतियों में गणेशजी पर विस्तार से जानकारी का समावेश है। गणेश उपासना के अनेक प्रकार हैं। स्वतंर्त देव के अतिरिक्त इन्हें षट्कुमार, पंच बालक, सप्तबालक आदि गणों में भी स मलित माना गया है।
गणपति की साधना के अनेक प्रकार हैं। पार्थिव गणेश प्रयोग 42 दिन तक किया जाता है। गणपति तर्पण प्रयोग भी अपने आप में अनेक कामनाओं की पूर्ति करने वाला है।
गणेश उपासना के अन्य प्रयोगों में एकाक्षर गणेश, हरिद्रा गणेश, विरिन्चि विघ्नेश, शक्ति गणेश, चतुरक्षर सिद्धि गणेश, लक्ष्मी गणेश, क्षिप्रप्रसादन गणेश, हेर ब गणेश, सुब्रह््मण्यम गणेश, वऋतुण्ड गणेश, उच्छिष्ट गणेश आदि के प्रयोग अति महत्त्वपूर्ण हैं।
इन मंर्तों के जाप, हवन और तर्पण के प्रयोगों के माध्यम से षट् कर्म सिद्धि, तिलक सिद्धि, अणिमादि अष्ट सिद्धि एवं स्वर्ण, यश, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति के उपाय भी बताये गए हैं। इन्हीं में चूर्ण साधन, धूप साधन, यंर्त धारण एवं निर्माण आदि विद्याएं भी स मलित हैं। पृथक पृथक कार्य साधन के लिए गणेश जी की विविध पदार्थों की मूर्तियों के निर्माण का विधान है।
पौराणिक उक्ति ’’कलौ चण्डी विनायकौ’’ के अनुसार कलियुग में गणेश साधना का खास महत्त्व है। कलियुग में गणेशजी एवं चण्डी की साधना तत्काल कार्य सिद्ध करने वाली है।
गणपति की साधना गुरु या विद्वान ब्राह्मण से पूर्ण समझकर करने से सभी कार्यों की शीघ्र सिद्धि होती है। इसी प्रकार साधक को साधना काल में भी किसी भी प्रकार के आकस्मिक विघ्नों के उपस्थित हो जाने पर भगवान गणपति की मामूली साधना और स्मरण कर लिया जाना चाहिए।
गणेशजी की कृपा प्राप्ति के लिए इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह गणेशजी के किसी भी छोटे से मंत्र या स्तोत्र का अधिक से अधिक जप करे तथा मूलाधार चऋ में गणेशजी के विराजमान होने का स्मरण हमेशा बनाए रखे। इससे कुछ ही दिन में गणेशजी की कृपा का स्वतः अनुभव होने लगेगा।
सर्वप्रथम पूजे जाने वाले मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश के पूजन अर्चन से ही सभी प्रकार की गतिविधियों की शुरूआत आदिकाल से होती रही है। किसी भी प्रकार की साधना हो, गणेशजी का स्मरण करने के बाद ही इनकी सारी प्रत्रि*या आरंभ होती है।
साधना के जरिये ईश्वर की कृपा प्राप्ति और साक्षात्कार के मुमुक्षुओं के लिए गणेश उपासना नितान्त अनिवार्य है। इसके बगैर न तो जीवन में और न ही साधना में कोई सफल हो सकता है।
श्री गुरु चरणों की अनुकंपा प्राप्त कर साधना पथ की ओर अग्रसर होने वाले साधकों के लिए महागणपति की साधना नितान्त आवश्यक है क्योंकि जिस मार्ग पर चल कर हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचना है उसमें आने वाले विघ्नों, अपसारण तथा कण्टाकीर्ण पथ को कुसुम कोमल बनाने के लिए भगवान गणपति का मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त कर लेना साधक का सर्वप्रथम कर्त्तव्य बन जाता है।
गणपति केवल विघ्न दूर करने वाले देव ही नहीं हैं वरन् ऋद्धि सिद्धि के दाता, विद्याप्रदाता, मांगलिक कार्यों के पूरक, संग्राम संकट के निवारक तथा सर्व विध मंगलकारी हैं। यौगिक साधना की पूर्ति में भी महागणपति की कृपा प्राप्ति अत्यावश्यक है।
गणेश उपासना पुरातन काल से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रही है और इसीलिये सभी प्रकार की उपासना पद्धतियों में गणेशजी पर विस्तार से जानकारी का समावेश है। गणेश उपासना के अनेक प्रकार हैं। स्वतंर्त देव के अतिरिक्त इन्हें षट्कुमार, पंच बालक, सप्तबालक आदि गणों में भी स मलित माना गया है।
गणपति की साधना के अनेक प्रकार हैं। पार्थिव गणेश प्रयोग 42 दिन तक किया जाता है। गणपति तर्पण प्रयोग भी अपने आप में अनेक कामनाओं की पूर्ति करने वाला है।
गणेश उपासना के अन्य प्रयोगों में एकाक्षर गणेश, हरिद्रा गणेश, विरिन्चि विघ्नेश, शक्ति गणेश, चतुरक्षर सिद्धि गणेश, लक्ष्मी गणेश, क्षिप्रप्रसादन गणेश, हेर ब गणेश, सुब्रह््मण्यम गणेश, वऋतुण्ड गणेश, उच्छिष्ट गणेश आदि के प्रयोग अति महत्त्वपूर्ण हैं।
इन मंर्तों के जाप, हवन और तर्पण के प्रयोगों के माध्यम से षट् कर्म सिद्धि, तिलक सिद्धि, अणिमादि अष्ट सिद्धि एवं स्वर्ण, यश, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति के उपाय भी बताये गए हैं। इन्हीं में चूर्ण साधन, धूप साधन, यंर्त धारण एवं निर्माण आदि विद्याएं भी स मलित हैं। पृथक पृथक कार्य साधन के लिए गणेश जी की विविध पदार्थों की मूर्तियों के निर्माण का विधान है।
पौराणिक उक्ति ’’कलौ चण्डी विनायकौ’’ के अनुसार कलियुग में गणेश साधना का खास महत्त्व है। कलियुग में गणेशजी एवं चण्डी की साधना तत्काल कार्य सिद्ध करने वाली है।
गणपति की साधना गुरु या विद्वान ब्राह्मण से पूर्ण समझकर करने से सभी कार्यों की शीघ्र सिद्धि होती है। इसी प्रकार साधक को साधना काल में भी किसी भी प्रकार के आकस्मिक विघ्नों के उपस्थित हो जाने पर भगवान गणपति की मामूली साधना और स्मरण कर लिया जाना चाहिए।
गणेशजी की कृपा प्राप्ति के लिए इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह गणेशजी के किसी भी छोटे से मंत्र या स्तोत्र का अधिक से अधिक जप करे तथा मूलाधार चऋ में गणेशजी के विराजमान होने का स्मरण हमेशा बनाए रखे। इससे कुछ ही दिन में गणेशजी की कृपा का स्वतः अनुभव होने लगेगा।
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