गद्दी के लिए हम कुछ भी करेंगे
देश की वर्तमान स्थिति को देख कर आज हर जागरूक देशवासी यही अनुभव कर रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री जिनके कमजोर कन्धों पर देश चलाने का उत्तरदायित्व है,अपनी गद्दी बचाए रखने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। आखिर जिनकी कृपा से वो इस पद तक पहुंचें हैं उनको रुष्ट कर कैसे अपनी गद्दी सुरक्षित रख सकते हैं? सबसे दिलचस्प बात यह है कि भ्रष्टाचार में लिप्त घोटालेबाज नेताओं को जिस तिहाड़ जेल में रखा गया है उसी जेल के एक दूसरे वार्ड में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन करने वाले समाज सेवी एवं गांधी वादी नेता अण्णा हजारे को सात दिन की हिरासत में रखे जाने का ऐलान दिल्ली पुलिस द्वारा आसानी से कर दिया गया था लेकिन तिहाड़ के पास लाखों लोगों के हुजूम को देखकर तत्काल कांग्रेस की बैठक बुलाई गई जिसकी अगुवाई राहुल गांधी ने की और अन्तत: अण्णा को रिहा करना पड़ा। जिस कांग्रेस ने अण्णा को गिरफ्तार करने का फैसला किया था वह फैसला उसी की धज्जी उड़ाने वाला साबित हुआ। क्या लोकतंत्र में सरकार विरोधी आवाज उठाने वाले के साथ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है...? इसी प्रकार कालाधन एवं भ्रष्टाचार को लेकर योगगुरू बाबा रामदेव के साथ दिल्ली के राम लीला मैदान में 4 जून 2011 की आधी रात बर्बरता पूर्वक कार्रवाई मानवता के नाम पर कलंक ही थी जिसकी निन्दा देश-विदेश में सर्वत्र की गयी। अब सरकार ने आमने सामने आकर अण्णा पर भी जैसा हल्ला बोला यदि वास्तव में अण्णा में तनिक भी दाग होता तो सरकार इनको बाबा रामदेव जैसा ही निगल जाती..........सरकार को इसमें विफलता मिली तो कांग्रेस के कपिल सिब्बल और चिदम्बरम के आलावा दिग्विजय सिंह ने तो मोर्चा खोला ही था...लेकिन हद तो तब हो गयी जब 73 वर्षिय अण्णा जी के लिये कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने जो बयान दिया वह देश के शीर्षस्थ नेतृत्व को शर्मसार कर गया...क्या यह तानाशाही रवैया नहीं है...आखिरकार यह नौबत आयी ही क्यों...?
देश की वर्तमान स्थिति को देख कर आज हर जागरूक देशवासी यही अनुभव कर रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री जिनके कमजोर कन्धों पर देश चलाने का उत्तरदायित्व है,अपनी गद्दी बचाए रखने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। आखिर जिनकी कृपा से वो इस पद तक पहुंचें हैं उनको रुष्ट कर कैसे अपनी गद्दी सुरक्षित रख सकते हैं? सबसे दिलचस्प बात यह है कि भ्रष्टाचार में लिप्त घोटालेबाज नेताओं को जिस तिहाड़ जेल में रखा गया है उसी जेल के एक दूसरे वार्ड में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन करने वाले समाज सेवी एवं गांधी वादी नेता अण्णा हजारे को सात दिन की हिरासत में रखे जाने का ऐलान दिल्ली पुलिस द्वारा आसानी से कर दिया गया था लेकिन तिहाड़ के पास लाखों लोगों के हुजूम को देखकर तत्काल कांग्रेस की बैठक बुलाई गई जिसकी अगुवाई राहुल गांधी ने की और अन्तत: अण्णा को रिहा करना पड़ा। जिस कांग्रेस ने अण्णा को गिरफ्तार करने का फैसला किया था वह फैसला उसी की धज्जी उड़ाने वाला साबित हुआ। क्या लोकतंत्र में सरकार विरोधी आवाज उठाने वाले के साथ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है...? इसी प्रकार कालाधन एवं भ्रष्टाचार को लेकर योगगुरू बाबा रामदेव के साथ दिल्ली के राम लीला मैदान में 4 जून 2011 की आधी रात बर्बरता पूर्वक कार्रवाई मानवता के नाम पर कलंक ही थी जिसकी निन्दा देश-विदेश में सर्वत्र की गयी। अब सरकार ने आमने सामने आकर अण्णा पर भी जैसा हल्ला बोला यदि वास्तव में अण्णा में तनिक भी दाग होता तो सरकार इनको बाबा रामदेव जैसा ही निगल जाती..........सरकार को इसमें विफलता मिली तो कांग्रेस के कपिल सिब्बल और चिदम्बरम के आलावा दिग्विजय सिंह ने तो मोर्चा खोला ही था...लेकिन हद तो तब हो गयी जब 73 वर्षिय अण्णा जी के लिये कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने जो बयान दिया वह देश के शीर्षस्थ नेतृत्व को शर्मसार कर गया...क्या यह तानाशाही रवैया नहीं है...आखिरकार यह नौबत आयी ही क्यों...?
विकास की बड़ी-बड़ी बात करने वाली मनमोहन सरकार आज केवल घोटालेबाज सरकार बनकर रह गयी है। एक तरफ महंगाई तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों को किनारे लगा दूसरे की खोज-बीन में लगी मनमोहन सरकार की अण्णा की सिविल सोसायटी ने नींद हराम कर दी। देश की जागरूक जनता का मानना है कि यूपीए-2 केवल गद्दी हमारी बची रहे देश जाय भाड़ में इसी पर आमादा है।
ज्ञात हो कि अन्ना हजारे ने विगत 20 वर्षों से करप्सन के विरूद्ध अभियान छेड़ रखा है। जो महाराष्ट्र के रास्ते पिछले 9 माह में दिल्ली तक पहुंच ही गया। एक बार किसी राज्य में उत्तराधिकारी को लेकर कुछ उहापोह थी, वास्तविकता यह थी कि राज्य में बहुत सारी समस्याएँ थीं, राजा को गद्दी सम्हालने का अवसर मिला, राजा था चतुर.....उसने विचार किया कि देश को सम्हालना भी आवश्यक है और अभी माहौल भी अनुकूल नहीं है,अत: उसने घोषणा की कि राजा अपने किसी सिपहसालार को गद्दी सौंपना चाहता है सब अपनी भक्ति का प्रदर्शन करें ,उचित व्यक्ति को गद्दी सौंपी जायेगी। राजा के एक सेनापति पर सबकी दृष्टि टिक गयी जो बुद्धिमान था, ईमानदार था (सबकी नजऱ में) अनुभवी था, और उसका सबसे बड़ा गुण था कि यदि राजा उसको पूरी रात एक पैर पर खड़े होने का आदेश देता तो भी वह चूकता नहीं। राजा को भी मुहं माँगी मुराद मिल गयी, एक तीर से कई शिकार किये राजा ने, राजा को अपने प्रजाजनों में एक त्यागी,निर्पेक्ष, निर्लोभी राजा का खिताब मिला और साथ ही कोई बुराई भलाई उसके सर पर नहीं थी। राज्य की बागडोर राजा के हाथ में थी और रिमोट से संचालित एक रोबोट राजा को मिला। जैसे चाहे फैसले लिए जाएँ, जिसको चाहे पुरस्कार दिया जाय, चैन की निंद्रा लो, वैसे भी यह रोबोट राजा के एहसान तले दबा था कि इतने सारे सेवकों में से राजा का कृपा पात्र वह बना है, मज़े में चल रहा था सब स्याह सफेद सा। धीरे धीरे सब उस रोबोट को कहने लगे कि यह तो राजा की कठपुतली है, रोबोट बेचारा बार-बार सफाई देता मैं कठपुतली नहीं हूँ, परन्तु सब हँसते और कोई उसकी बात का विश्वास नहीं करता, स्थिति यहाँ तक पहुँची कि रोबोट का एक काम प्रमुख रूप से यही बन गया-सबको अपनी सफाई देना, मेरा स्वतंत्र अस्तित्व है, मैं अपने निर्णय लेने में स्वयं सक्षम हूँ, परन्तु "राई का पहाड़" तो बनता है, यहाँ तो पहाड़ ही पहाड़ था अर्थात सारे आरोप खरे थे। भूमिका अधिक बड़ी हो गयी है, परन्तु है यथार्थ। यह है कि शिक्षण क्षेत्र में अग्रणी,आर्थिक क्षेत्र में महारथी माने जाने वाले,रिजर्व बैंक,योजना आयोग,एशियाई विकास बैंक,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रो कोष आदि शीर्ष संस्थाओं में प्रमुख पदों पर आसीन रहकर, विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित मनमोहन जी की कुछ और भी विशेषताएं हैं, जिनमें प्रमुख हैं उनकी तथाकथित ईमानदारी, विद्वता और आर्थिक विषयों में महारथ के साथ ही उनकी चिर-परिचित मुस्कान और स्वामिभक्ति। 2004 के आम चुनाव में सर्वाधिक सीट्स के साथ सत्ता में आने वाली कांग्रेस ने चुनाव श्रीमती सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में लड़ा था, परन्तु देश के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह की घोषणा कर सबको चौंकाया तथा सरदार जी को भी बाग़ बाग़ कर दिया जबकि वो कभी लोकसभा का चुनाव जीत कर लोक प्रतिनिधि नहीं बन सके थे।
अब प्रश्न उठता है कि सरदार जी की जिन विशेषताओं के कारण उनको विशेष सम्मान मिला या जनता ऩे उनसे जो आशाएं लगाई थीं, वो किस सीमा तक पूर्ण हो सकीं?
मनमोहन जी को आर्थिक विशेषज्ञ माना जाता है, आर्थिक विषयों में विशेषज्ञता की चर्चा की जाये तो सर्वप्रथम विषय आता है महंगाई, सभी जानते हैं कि महंगाई की मार से आज सभी त्रस्त हैं,स्वयं प्रधानमन्त्री मान चुके हैं,चीनी के मूल्य बढऩे के संदर्भ में कि हमारी कुछ कमियों के कारण चीनी बेलगाम हुई। आम आदमी के मुख से छिनता दाल विहीन निवाला, महंगी चीनी के कारण छोटी किन्तु महंगी होती चाय की प्याली, आये दिन गैस, डीजल पेट्रोल के कारण महंगा होता सफऱ,अन्य प्रभावित उपभोक्ता वस्तुएं, देसी घी दूध ,दही के लिए तरसता आमजन, मिलावटी रिफाइंड ,सरसों ,वनस्पति घी के आसमान छूते मूल्यज्आदि आदि। और इन सबसे बढ़ कर,अपनी कमी मानने के स्थान पर कभी गठबंधन सरकार की मजबूरियां गिनाना, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का हवाला देना और कभी जादुई छड़ी न होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेना। इतना ही नहीं हमारे गृहमंत्री वांछित आतंकवादियों की गलत सूची थमा कर देश का उपहास उड़वाते हैं, आतंकवादियों को सजा नहीं देते उनको सरकारी दामाद बनाकर करोड़ों रुपया लुटा देते हैं, पुरुलिया में हथियार गिराने के आरोपी डेनमार्क के अपराधी को पर्याप्त प्रमाण उपस्थित होने पर भी नाकारा सीबीआई प्रस्तुत नहीं कर सकती तथा उसके प्रत्यर्पण की आशा ही समाप्त कर देती है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का जहाँ तक प्रश्न है, स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात आज तक का सबसे भ्रष्ट मंत्रिमंडल मनमोहन सिंह का है। कॉमन वेल्थ खेल घोटाला, सिविल सोसाईटी, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, हसन अली का मामला, विदेशी बैंको में हमारी अथाह धन राशि (ये तो लेटेस्ट है) यदि सब घोटालों की गणना की जाये तो एक लिस्ट शायद घोटालों की ही होगी, ऐसे में गठबंधन सरकार की मजबूरी बताकर तथा उन मंत्रियों को दोषी ठहरा कर प्रधान मंत्री सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को कैसे भूल जाते हैं....? क्या उनको याद दिलाना होगा कि गठबंधन दल का नेता होने के कारण वो भी उतने ही उत्तरदायी हैं इन सभी काले कारनामों के लिए। संसदीय व्यवस्था का एक प्रमुख सिद्धांत है सामूहिक उत्तरदायित्व। ईमानदारी की यदि बात की जायी तो हमारे प्रधानमन्त्री उस कसौटी पर भी खरे नहीं उतरते। बेईमानों, भ्रष्ट मंत्रियों में प्रधान पद पर रहते हुए स्वयं को ईमानदार होने का दावा कैसे कर सकते हैं? मंत्रिमंडल उनकी अध्यक्षता में चल रहा है तो क्या वो इतने बेखबर हैं कि उनको कुछ भी पता नहीं था तो फिर ऐसे सुप्त, निष्क्रिय प्रधानमंत्री से देश क्या आशा रख सकता है...?
जब हमारे देश के कुछ लोगों ने उनको तथा देशवासियों को जगाना चाहा तो उन्होंने पहले तो अण्णा हजारे को धोखा दिया और फिर अपनी असलियत दिखा दी। निहत्थे प्रजाजनों को प्रताडि़त करके और फिर अपनी सफाई प्रस्तुत करने को झट-पट एक सम्मेलन आहूत किया परन्तु अपनी धूमिल होती छवि को और भी विकृत बना लिया। ऐसा नहीं की उनमें कोई गुण है ही नहीं, उनकी सर्व महत्वपूर्ण विशेषता जिसके लिए उनको 100 अंक दिए जा सकते हैं वह है उनकी सोनिया गाँधी के प्रति स्वामिभक्ति, प्रतिबद्धता। जैसा कि ऊपर लिखा भी है कि अपनी इसी निर्विवाद विशेषता के कारण वो आज तक सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने हुए हैं। उन पर चाहे जितने भी आरोप लगें उन्होंने कभी अपना मुख खोलने की आवश्यकता नहीं समझी। यहाँ तक की अपने दागी मंत्रियों पर भी न्यायालय के आदेश पर कार्यवाही करने को विवश हुए प्रधानमंत्री। समस्या तो ये है कि प्रधानमंत्री के लिए भारत या भारतीयों का हित कोई महत्व नहीं रखता, महत्वपूर्ण है अपनी आका सोनिया गाँधी के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता स्वामिभक्ति। जिसके कारण रसातल में जाता हमारा देश और कितनी कीमत चुकाएगा, यह भी यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है..............।
ज्ञात हो कि अन्ना हजारे ने विगत 20 वर्षों से करप्सन के विरूद्ध अभियान छेड़ रखा है। जो महाराष्ट्र के रास्ते पिछले 9 माह में दिल्ली तक पहुंच ही गया। एक बार किसी राज्य में उत्तराधिकारी को लेकर कुछ उहापोह थी, वास्तविकता यह थी कि राज्य में बहुत सारी समस्याएँ थीं, राजा को गद्दी सम्हालने का अवसर मिला, राजा था चतुर.....उसने विचार किया कि देश को सम्हालना भी आवश्यक है और अभी माहौल भी अनुकूल नहीं है,अत: उसने घोषणा की कि राजा अपने किसी सिपहसालार को गद्दी सौंपना चाहता है सब अपनी भक्ति का प्रदर्शन करें ,उचित व्यक्ति को गद्दी सौंपी जायेगी। राजा के एक सेनापति पर सबकी दृष्टि टिक गयी जो बुद्धिमान था, ईमानदार था (सबकी नजऱ में) अनुभवी था, और उसका सबसे बड़ा गुण था कि यदि राजा उसको पूरी रात एक पैर पर खड़े होने का आदेश देता तो भी वह चूकता नहीं। राजा को भी मुहं माँगी मुराद मिल गयी, एक तीर से कई शिकार किये राजा ने, राजा को अपने प्रजाजनों में एक त्यागी,निर्पेक्ष, निर्लोभी राजा का खिताब मिला और साथ ही कोई बुराई भलाई उसके सर पर नहीं थी। राज्य की बागडोर राजा के हाथ में थी और रिमोट से संचालित एक रोबोट राजा को मिला। जैसे चाहे फैसले लिए जाएँ, जिसको चाहे पुरस्कार दिया जाय, चैन की निंद्रा लो, वैसे भी यह रोबोट राजा के एहसान तले दबा था कि इतने सारे सेवकों में से राजा का कृपा पात्र वह बना है, मज़े में चल रहा था सब स्याह सफेद सा। धीरे धीरे सब उस रोबोट को कहने लगे कि यह तो राजा की कठपुतली है, रोबोट बेचारा बार-बार सफाई देता मैं कठपुतली नहीं हूँ, परन्तु सब हँसते और कोई उसकी बात का विश्वास नहीं करता, स्थिति यहाँ तक पहुँची कि रोबोट का एक काम प्रमुख रूप से यही बन गया-सबको अपनी सफाई देना, मेरा स्वतंत्र अस्तित्व है, मैं अपने निर्णय लेने में स्वयं सक्षम हूँ, परन्तु "राई का पहाड़" तो बनता है, यहाँ तो पहाड़ ही पहाड़ था अर्थात सारे आरोप खरे थे। भूमिका अधिक बड़ी हो गयी है, परन्तु है यथार्थ। यह है कि शिक्षण क्षेत्र में अग्रणी,आर्थिक क्षेत्र में महारथी माने जाने वाले,रिजर्व बैंक,योजना आयोग,एशियाई विकास बैंक,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रो कोष आदि शीर्ष संस्थाओं में प्रमुख पदों पर आसीन रहकर, विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित मनमोहन जी की कुछ और भी विशेषताएं हैं, जिनमें प्रमुख हैं उनकी तथाकथित ईमानदारी, विद्वता और आर्थिक विषयों में महारथ के साथ ही उनकी चिर-परिचित मुस्कान और स्वामिभक्ति। 2004 के आम चुनाव में सर्वाधिक सीट्स के साथ सत्ता में आने वाली कांग्रेस ने चुनाव श्रीमती सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में लड़ा था, परन्तु देश के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह की घोषणा कर सबको चौंकाया तथा सरदार जी को भी बाग़ बाग़ कर दिया जबकि वो कभी लोकसभा का चुनाव जीत कर लोक प्रतिनिधि नहीं बन सके थे।
अब प्रश्न उठता है कि सरदार जी की जिन विशेषताओं के कारण उनको विशेष सम्मान मिला या जनता ऩे उनसे जो आशाएं लगाई थीं, वो किस सीमा तक पूर्ण हो सकीं?
मनमोहन जी को आर्थिक विशेषज्ञ माना जाता है, आर्थिक विषयों में विशेषज्ञता की चर्चा की जाये तो सर्वप्रथम विषय आता है महंगाई, सभी जानते हैं कि महंगाई की मार से आज सभी त्रस्त हैं,स्वयं प्रधानमन्त्री मान चुके हैं,चीनी के मूल्य बढऩे के संदर्भ में कि हमारी कुछ कमियों के कारण चीनी बेलगाम हुई। आम आदमी के मुख से छिनता दाल विहीन निवाला, महंगी चीनी के कारण छोटी किन्तु महंगी होती चाय की प्याली, आये दिन गैस, डीजल पेट्रोल के कारण महंगा होता सफऱ,अन्य प्रभावित उपभोक्ता वस्तुएं, देसी घी दूध ,दही के लिए तरसता आमजन, मिलावटी रिफाइंड ,सरसों ,वनस्पति घी के आसमान छूते मूल्यज्आदि आदि। और इन सबसे बढ़ कर,अपनी कमी मानने के स्थान पर कभी गठबंधन सरकार की मजबूरियां गिनाना, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का हवाला देना और कभी जादुई छड़ी न होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेना। इतना ही नहीं हमारे गृहमंत्री वांछित आतंकवादियों की गलत सूची थमा कर देश का उपहास उड़वाते हैं, आतंकवादियों को सजा नहीं देते उनको सरकारी दामाद बनाकर करोड़ों रुपया लुटा देते हैं, पुरुलिया में हथियार गिराने के आरोपी डेनमार्क के अपराधी को पर्याप्त प्रमाण उपस्थित होने पर भी नाकारा सीबीआई प्रस्तुत नहीं कर सकती तथा उसके प्रत्यर्पण की आशा ही समाप्त कर देती है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का जहाँ तक प्रश्न है, स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात आज तक का सबसे भ्रष्ट मंत्रिमंडल मनमोहन सिंह का है। कॉमन वेल्थ खेल घोटाला, सिविल सोसाईटी, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, हसन अली का मामला, विदेशी बैंको में हमारी अथाह धन राशि (ये तो लेटेस्ट है) यदि सब घोटालों की गणना की जाये तो एक लिस्ट शायद घोटालों की ही होगी, ऐसे में गठबंधन सरकार की मजबूरी बताकर तथा उन मंत्रियों को दोषी ठहरा कर प्रधान मंत्री सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को कैसे भूल जाते हैं....? क्या उनको याद दिलाना होगा कि गठबंधन दल का नेता होने के कारण वो भी उतने ही उत्तरदायी हैं इन सभी काले कारनामों के लिए। संसदीय व्यवस्था का एक प्रमुख सिद्धांत है सामूहिक उत्तरदायित्व। ईमानदारी की यदि बात की जायी तो हमारे प्रधानमन्त्री उस कसौटी पर भी खरे नहीं उतरते। बेईमानों, भ्रष्ट मंत्रियों में प्रधान पद पर रहते हुए स्वयं को ईमानदार होने का दावा कैसे कर सकते हैं? मंत्रिमंडल उनकी अध्यक्षता में चल रहा है तो क्या वो इतने बेखबर हैं कि उनको कुछ भी पता नहीं था तो फिर ऐसे सुप्त, निष्क्रिय प्रधानमंत्री से देश क्या आशा रख सकता है...?
जब हमारे देश के कुछ लोगों ने उनको तथा देशवासियों को जगाना चाहा तो उन्होंने पहले तो अण्णा हजारे को धोखा दिया और फिर अपनी असलियत दिखा दी। निहत्थे प्रजाजनों को प्रताडि़त करके और फिर अपनी सफाई प्रस्तुत करने को झट-पट एक सम्मेलन आहूत किया परन्तु अपनी धूमिल होती छवि को और भी विकृत बना लिया। ऐसा नहीं की उनमें कोई गुण है ही नहीं, उनकी सर्व महत्वपूर्ण विशेषता जिसके लिए उनको 100 अंक दिए जा सकते हैं वह है उनकी सोनिया गाँधी के प्रति स्वामिभक्ति, प्रतिबद्धता। जैसा कि ऊपर लिखा भी है कि अपनी इसी निर्विवाद विशेषता के कारण वो आज तक सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने हुए हैं। उन पर चाहे जितने भी आरोप लगें उन्होंने कभी अपना मुख खोलने की आवश्यकता नहीं समझी। यहाँ तक की अपने दागी मंत्रियों पर भी न्यायालय के आदेश पर कार्यवाही करने को विवश हुए प्रधानमंत्री। समस्या तो ये है कि प्रधानमंत्री के लिए भारत या भारतीयों का हित कोई महत्व नहीं रखता, महत्वपूर्ण है अपनी आका सोनिया गाँधी के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता स्वामिभक्ति। जिसके कारण रसातल में जाता हमारा देश और कितनी कीमत चुकाएगा, यह भी यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है..............।
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