ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 24 अगस्त 2011

अन्ना की अगस्त क्रांति परिवर्तन,'ज्योतिष का सूर्य'

अन्ना की अगस्त क्रांति परिवर्तन,'ज्योतिष का सूर्य'

सुधी पाठक बन्धुओं,
अत्यन्त हर्ष का विषय है कि आप सभी के अगाध प्रेम से हम दो वर्ष पूर्ण करने के साथ ही  तिसरे वर्ष का यह 25 वां अंक आपके हाथों में है। आज सम-सामयिक देश की चर्चा की जाय तो पूरे देश में अन्ना की लहर है बाकी सभी मुद्दे भ्रष्टाचार के इस अन्ना महायज्ञ में भस्मीभूत हो..इस यज्ञ वेदी के हवन कुण्ड से केवल एक ही आग की लपट निकल रही है, जिसका रंग भी अन्ना, रूप भी अन्ना है, अर्थात दिल्ली के रामलीला मैदान से लेकर भारत के समुच्चय भू-भाग पर केवल अन्ना ही अन्ना दिखाई दे रहे हैं। ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी एक आंदोलन पर जलीयांवाला बाग और इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर उस आंदोलन को कुचल दिया गया था। फिर वही हथकंडा केंद्र सरकार ने अपनाया और  एक नेता जी के इशारे पर अन्ना को 16 अगस्त को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर भ्रष्टाचारियों के बीच में तिहाड़ भेज दिया गया। अब कई सवाल पैदा होता है -क्या यह सत्ता का दुरूपयोग नहीं है..? देश के कोने-कोने से मिल रहे जन-समर्थन को कुचलना सामंतवाद नहीं है..? क्या भारत आजाद होने के बाद भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं के बीच सिमट कर रह गयी है..?
घोटालेबाज नेताओं को प्रश्रय देकर उनको टिकट देकर पहले सांसद और मंत्री बना दिया जाता है, ऐसे संसद की गरिमा को तवज्जो देने की बात करने वाले सम्मानित राजनेताओं से मैं एक सवाल करना चाहता हुं कि एक ही संसदीय क्षेत्र से सभी पार्टियां अपने-अपने तरफ ऐसे भ्रष्ट नेताओं को ही टिकट देकर मैदान में उतारी है तो जनता किसको चुनेगी..? ऐसे तमाम यक्ष प्रश्न हैं।
आईए थोड़ा नजर डालते हैं अपनी कुछ कमियों पर जो स्वतंत्रता के बाद आज इस भ्रष्टाचार रूपी विभत्स परिवर्तन की । हमने हर मूल्यों से समझौता कर लिया। तंत्र हमने किसी और देश से लिया तो मैकाले-शिक्षा नीति किसी और देश से ली जो पूर्णत: परीक्षण पर आधारित थी न कि प्रशिक्षण पर। सच मानिए मुझे आज तक यह नहीं पता चल पाया कि वेद व्यास, तुलसीदास, कालिदास आदि जैसे प्रकाण्ड विद्वानों ने किस विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी या कौन सी डिग्री ली थी ? जब हमारे देश में ऐसे मार्गदर्शक थे ही तो दूसरे देश की शिक्षा नीति को देश की जनता पर क्यों थोपा गया..?
परिणाम आपके सामने है कि च्सेवाया:परमो धर्म:ज् को भूल कर च्सूकर  शावका:ज् सुअर केवल अपने शावक यानी बच्चों के ही पेट भरने का मात्र प्रयोजन करती है ठीक उसी प्रकार हमअपनी सेवा में लिप्त होते चले गये। आज च्भ्रस्ट आचारा भा संसाराज् की मुहीम में हमारा देश भी प्रमुख स्थान पर पहुंच गया। धर्म, समाज, अर्थ आदि सभी में राजनीति का प्रवेश है। सभी पर राजनीति हावी है। सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षति पूर्ति) विधेयक-2011 जैसा कानून लाया जाता है। आज इस स्वाधीन भारत में अगर ऊपर से नीचे तक अर्थात मंत्री से लेकर संतरी तक सुरसा की भांति फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ अगर कोई आवाज़ उठाता है तो उस पर जलियावालां बाग़ जैसा हमला होता है , आजकल के कुछ आदर्श राजनेता सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कभी गरीबों की झोपड़ी में रात बिताते हैं तो कभी किसानों व गरीबों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए मीडिया से अपनी ब्रांडिंग करवाते हंै। देश की लोक लुभावने योजनाओं का हवाला देकर भ्रस्ट लोगों को टिकट देकर जनता के मत्थे थोपने के बाद अन्ना जैसे संत महापुरूषों के जनांदोलन अपना आवाज बुलंद करने वाली देश की जनता का मखौल उड़ाया जाना और ए राजा, कलमाड़ी, कनिमोझी,येदुरप्पा जैसे भ्रष्ट नेताओं के बीच में गांधीवादी व निरपराध श्री अन्ना हजारे को तिहाड़ जेल भेजना कौन सा लोकतंत्र है...?
जाते.. जाते..एक पंक्ति आपके लिए छोड़ जाता हुं..... तेरे मेरे घर हैं सीसे के मैं भी फोड़ूं तू भी फोड़ ।।

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