ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 2 अगस्त 2011

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में बनेगी शिल्प वाटिका


Akashat kaushal choubey

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में बनेगी शिल्प वाटिका

रायपुर, 31 जुलाई 2011
    परम्परागत हस्तशिल्पियों के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द तीर्थ डोंगरगढ़ में लगभग चालीस एकड़ के रकबे में 'शिल्प वाटिका' की स्थापना की जाएगी। यह शिल्प वाटिका राजधानी रायपुर के पण्डरी स्थित छत्तीसगढ़ हाट की तर्ज पर होगी। उल्लेखनीय है कि राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में ऊंची पहाड़ी पर मां बम्लेश्वरी का अत्यन्त प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर स्थित है, जहां हर साल लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री आते-जाते हैं। भक्तों की यह संख्या प्रतिदिन दस हजार के आस-पास होती है, जो रविवार और अन्य सरकारी सार्वजनिक छुट्टियों के दिनों में इससे भी अधिक होती है। शारदीय और चैत्र नव-रात्रि में इस तीर्थ भूमि में श्रध्दालुओं की चहल-पहल काफी बढ़ जाती है।
    मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वहां तीर्थ यात्रियों के बीच प्रदेश के हस्तशिल्प का आकर्षण बढ़ाने के लिए 'शिल्प वाटिका' की स्थापना के लिए छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड को कार्य योजना बनाने के निर्देश दिए थे, ताकि प्रदेष के काष्ठ शिल्पियों, बांस शिल्पियों, बेल मेटल और ढोकरा शिल्पियों और कोसे के कलात्मक कपड़े बनाने वाले हाथ करघा बुनकरों को अपने सामानों के लिए बेहतर बाजार और पर्याप्त संख्या में ग्राहक मिल सकें। इसी तारतम्य में बोर्ड के अध्यक्ष मेजर अनिल सिंह ने कल डोंगरगढ़ का दौरा किया। दौरे में बोर्ड के प्रबंध संचालक तथा प्रमुख सचिव ग्रामोद्योग श्री पी. रमेश कुमार और बोर्ड के मुख्य महाप्रबंधक श्री सुनील अवस्थी सहित सरगुजा, दुर्ग और बस्तर जिले के कुछ हस्त शिल्पी भी उनके साथ थे। बोर्ड अध्यक्ष ने डोंगरगढ़ में शिल्प वाटिका के लिए अधिकारियों और शिल्पियों के साथ विचार-विमर्श कर स्थल चिन्हांकित किया। उन्होंने बताया कि बोर्ड की इस नयी परियोजना के तहत प्रस्तावित शिल्प वाटिका में लगभग चालीस एकड़ भूमि पर झरने, झील और शिल्पियों के लिए कुटीर भी बनवाए जाएंगे, जहां रहकर वे अपनी कलाकृतियों की बिक्री कर सकेंगे। चिन्हांकित भूमि पर 'शिल्प वाटिका' के निर्माण से छत्तीसगढ़ के इस तीर्थ क्षेत्र का सौंदर्य और भी अधिक बढ़ जाएगा। पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी के मंदिर प्रांगण से 'शिल्प वाटिका' का नजारा भी श्रध्दालुओं को काफी पसंद आएगा। हस्तशिल्प विकास बोर्ड के अध्यक्ष मेजर अनिल सिंह ने डोंगरगढ़ से लौटते हुए राजनांदगांव के कुष्ठ प्रभावितों की कॉलोनी 'आशा नगर' का भी दौरा किया, जहां उन्होंने 80 महिलाओं को कसीदाकारी और गोदना शिल्प में प्रशिक्षण दिलाने का ऐलान किया। बोर्ड अध्यक्ष ने कहा कि ये महिलाएं प्रशिक्शित होकर जिन कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करेंगी, उनकी बिक्री की व्यवस्था बोर्ड की ओर से की जाएगी।
    यह भी उल्लेखनीय है कि सैकड़ों वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने हाथों के हुनर के जरिए काष्ठकला, मूर्तिकला और सुरूचि पूर्ण वस्त्र निर्माण कला को रोजी-रोटी का माध्यम बनाकर जीवन यापन कर रहे छत्तीसगढ़ के हजारों हस्तशिल्पियों को राज्य सरकार द्वारा आधुनिक बाजार व्यवस्था से भी जोड़ने की जोरदार पहल की जा रही है, ताकि उन्हें अच्छी आमदनी मिल सके। राज्य में हस्तशिल्प की समृध्द परम्परा को आधुनिकता से जोड़ने के लिए चल रहे प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मंशा के अनुरूप इन ग्रामीण कारीगरों की कलाकृतियों को थ्री-डी होलोग्राम से चिन्हांकित किया जा रहा है, वहीं उनमें कम्प्यूटर के जरिए बारकोडिंग भी की जा रही है। इससे छत्तीसगढ़ के शिल्पकारों की इन कलाकृतियों को जहां अलग से पहचाना जा सकेगा, वहीं ग्राहकों को शुध्द और गुणवत्ता वाली कलाकृतियां भी मिल सकेंगी। मुख्यमंत्री की विशेष पहल पर राजधानी रायपुर में अब तक चार 'शबरी एम्पोरियम' भी खोले जा चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कल देर रात यहां आमापारा में थ्री-डी होलोग्राम और बारकोडिंग वाली इन कलाकृतियों से सुसज्जित दुकान 'शबरी एम्पोरियम' का शुभारंभ किया। छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड द्वारा राजधानी रायपुर के पंडरी स्थित छत्तीसगढ़ हाट, माना विमानतल और पुरखौती मुक्तांगन में संचालित किए जा रहे शबरी एम्पोरियमों की श्रृंखला में यह चौथा एम्पोरियम है जो लगभग 1200 वर्ग फीट क्षेत्रफल वाले भवन में शुरू किया गया है, जहां छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के कारीगरों के ढोकरा शिल्प, लौह शिल्प, टेराकोटा, बांस और काष्ठ शिल्प, सीसल, गोदना, कौड़ी तथा आरी शिल्प की कलाकृतियां आम नागरिकों को उचित मूल्य पर उपलब्ध होगी। कोसे के कलात्मक कपड़े भी इस एम्पोरियम में उपलब्ध रहेंगे। यहां पर खरीदे जाने वाले सामानों की कीमतों में ग्राहकों को बीस प्रतिशत की विशेष रियायत भी दी जाएगी।

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