ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 18 अगस्त 2011

फैशन शो है या नंगा नाच

फैशन शो है या नंगा नाच 
फैशन एक महत्वपूर्ण व्यवहार ही नही बल्कि आधुनिक समाज की एक महत्वपूर्ण समस्या भी है. फैशन के कारण ही प्रतिक्षण करोड़ों रूपये खर्च होते हैं. इस व्यवहार को गांव और शहर में सभी व्यक्तियों मे देखा जा सकता है. प्रत्येक वर्ग में फैशन महत्वपूर्ण रहा है और रहेगा। फैशन एक सम्प्रत्यय है जिसका प्रचलन समस्त देशों में है। फैशन वह सामूहिक व्यवहार है जिसमें प्रचलित बात से कुछ भिन्नता होती है और समाज के लोग भिन्नता के प्ति आकर्षित होते हैं. आकर्षण केकारण ही फैशन फैलता है और फैलते-फैलते इतना बढ़ जाता है कि फैशन की बात सामान्य व्यवहार की बात बन जाती है. और इस तरह फैशन धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है. फैशन कपड़ों और आभूषणों का ही नही होता है. अपितु फैशन के दर्शन व्यवहार के प्रत्येक पहलु के क्षेत्र मे ंकिये जा सकते हैं. फैशन की दौड़ या गति तीव्र होती है. जब तक लोग एक प्रकार का फैशन अपनाते हैं तब तक फैशन बदल जाता है.
मनौवैज्ञानिक ने बताया है कि फैशन साधारण से थोड़ा सा मामूली परिवर्तित तथा एक नयी रीति है इसमें समाज में कुछ समय तक एकता रहने की प्रवृत्ति होती है समाजिक रूप से देखा जाय तो सबसे महत्वपूर्ण समस्या सामने आती है कि लोग फैशन क्यों करते हैं और इसका क्या कारण है,तो इसके संबंध में तमाम बाते स्पष्ट होती है. जिसमें एक प्रत्यय है समरूम दिखने की भावना।समाज के अधिकांश व्यक्ति रीति-रिवाजों, आदर्शो, मूल्यों तथा व्यवहारों आदि का पालन करते हैं और इसके वजह से ही समाज के व्यक्ति के व्यवहारों में समरूपता पाई जाती है. इसके साथ ही साथ एक और महत्वपूर्ण प्रत्यय है दूसरों से अलग दिखना और अनोखा दिखना, दूसरों से भिन्न दिखना इसके पीछे यह तकर्ई है कि इस प्रकार जब व्यक्ति अलग दिखाई देगा और दूसरों की अपेक्षा विशीष्ट दिखार्इ देगा  तो वह अन्य लोगों से पृथक होगा और उसका अन्यलोगं की अपेक्षा अलग असित्व होगा और पैशन का आविष्कार व्यक्तिवादी प्रतिष्ठित समूहों के ्दवारा किया जाता है. कुछ लोगों का तर्क है कि परिवर्तन और नवीनता की इच्छा भी फैशन को प्रेरित करते हैं. यह देखा गया है कि जब व्यक्ति एक प्रकार के वस्तु, आभूषण या वस्तुओं का प्रयोग अधिक समय तक करता है तो वह पून: नये आभूषण और नयी वस्तुयें चाहता है. नयी वस्तु के अपनाने में वह प्रचलित से कुछ भिन्न प्रकार की वस्तुयें अपना कर फैशन की धारा  की ओर बढ़ जाता है. बहुधा फैशन का कारण दोषों को छिपाना भी हुआ करता है. जौसे कुछ सालों पूर्व छोटे कद वाले ही लोग हिल वाले जूते और सैंडिल का प्रयोग करते थे परन्तु वर्तमान समय में लोग हिल की सैडिंल इसलिए पहनते है कि वे दूसरों से लम्बे दिखाई दे। कुछ लोग फैशन विपरीत लिंग के लोगों का आकर्षित करने के लिए भी करते हैं.कम नीची साड़ी पहनना, अधिक खुले गर्ल के ब्लाउज पहनना आदि इन सभी स्टाइलों का उददेश्य आत्म प्रदर्शन या यौन आकर्षण होता है. कहा जाता है कि स्त्रियाँ अधिकांशत: फैशन इसलिए करती है कि पुरुष उनकी ओर आकृष्ट हों जैसे होंठो पर अधिक चटकीली रंग की लिपिस्टक लगाने का फैशन यौन आकर्षण के अलावा कोई और औचित्य दिखायी नही देता है। फैशन काएक कारण अनुकरण भी है. दूसरों के फैशन को देखकर उनका अनुकरण कर फैशन करना भी फैशन का मुख्य कारण है.  विद्वानों का मानना है कि फैशन हमेशा एक सा नही रहता है। उनमें चक्रीय परिवर्तन होता है. पुराने फैशन पुन: लौट कर आने की कोई निश्चित अवधि नही है. क्रोबर (1940) के अनुसार पुराने समय में स्कर्ट की लम्बाई धीरे-धीरे बढ़ती गई यहां तक की पैर की पंजो तक आ गई और फिर इसकी लम्बाई धीरे-धीरे कम होने लगी। क्रोबर के अनुसार 35 वर्ष बाद स्कर्ट का फैशन पुन: लौट आता है। इस प्रकार देखा जाय तो फैशन और संस्कृति भी घनिष्ट रूप से एक दूसरे से सम्बन्धित है। विभिन्न संस्कृतियों में लोग फैशन अलग-अलग तरहसे करते हैं. चूंकि संस्कृति सम्पूर्ण व्यक्ति और व्यवहार को प्रभावित करती है. इसी प्रकार फैशन भी एक प्रकार का व्यवहार है अत: इसका संस्कृति से प्रभावित होना महत्वपूर्ण है।
अत: हम संक्षेप रूप में यह कह सकते हैं कि फैशन उसी सीमा तक बदलते हैं जितनी सीमा संस्कृति के आधारभूत मान्यताओं द्वारा मान्य होती है। संस्कृति और सीमा के विरूद्ध कम ही लोग फैशन अपनाते हैं।

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