चमत्कारी अंक है 786
प्रत्येक धर्मो मेे स ृष्टिï रचना और मानव विकास के बारे में पृथक-पृथक उल्लेख मिलता है. और इन्हें पढऩे वाले पृथक से कुछ नही सोचते किन्तु यदि समग्र रूप से विचार किया जाए, तो हमारी संस्कृति, सभ्यता और धर्म में काफी समानता मिलती है। यहां प्रस्तुत है उनका उल्लेख : मुस्लिम सम्प्रदाय को ही लीजिए। चलते हैं हिन्दू विचारो से 786 क्या है :
7 (सात) सृष्टिï के निर्माता ब्रम्हा।8 (आठ) पालनहार विष्णु है।
6 (छ:) महेश संहारक है।
ओम के तीन शब्द अ .. ऊ..म अर्थात 786 तीनों लोक स्वर्गलोग, पृथ्वीलोक और पाताल लोक अर्थात 786 है. तीन काल भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल 786 है. अब पृथक-पृथक अंकों के हिन्दूशास्त्रों मे अर्थ निम्रानुसार है।
7 सप्तश्लोकी दुर्गा के सात श्लोक। दुर्गासप्तशति के सात सौ श्लोक (गीताजी के सात सौ श्लोक) हिन्दू पद्धति से विवाह संस्कार में सात जन्मों तक साथ निभाने के लिए अग्नि के सात फेरे। सात समुन्द्र यथा ह्दि महासागर, प्रशान्त महासागर, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, नील सागर, अटलांटिक सागर. सात आसमान, सात ऋषि यथा ब्रम्हा के सात मानस पुत्र-मरीची, अत्रि, पुलह, पुलस्त्य, क्रतु, अंगिरा, वशिष्ठï। सात नाड़ी चक्र संगीत के सात स्वर यशा सा रे गा म प थ नि। सप्तग्रही एक ही राशि में सात ग्रहों का एकत्रित होना. काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, उग्र, प्रदीप्ता आदि सप्तग्रही। पृथ्वी पर उपस्थित सात विदप यथा जम्बू, कुश प्लक्ष, शाल्मलि, क्रौच, पुष्कर तथा शाक। शरीर की सात धातुएं यथा रस, रक्त, मांस वसा, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र, सप्तकाल यथा अतल, वितल, सुतल रसातल, तलातल, महातल और पाताल. भारत में स्थित हिन्दूओं की सात पुरियां यथा काशी, कांची, उज्जयिनी, हरिद्वार,अयोध्या, मथुरा और द्वारका आदि सात शक्तियां जिनका पूजादि शुभ कर्मो में उपयोग होता है ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, ऐन्द्री तथा चामुण्डा आदि। सात दिन का सप्ताह आदि।
8 देवी देवाताओंकी स्तुतिवाले अष्टïक स्त्रोत। चतुुर्भुज ब्रम्हा के अष्टïकर्ण आठ हाथ। हठयोग के अनुसार मूलाधार से ललाट तक भिन्न-भिन्न स्थानों के आठ कमल होते हैं. सर्प के आठ कुल यथा शेष, वासुकि, कम्बल, कर्कोटक पदम, महापदम, शंख तथा कुलिक। श्री कृष्ण की आठ मूर्तियां श्रीनाथ, नवनीतप्रिय, मधुरानाथ, वि_ïलनाथ, द्वारकानाथ, गोकुलनाथ, गोकुलचन्द्रमा तथा मदनमोहन (अष्टïकोण) अष्टïगंध जो पूजन के कार्य में आता है। हवन में प्रयुक्त आठ प्रकार के द्रव्य यथा अश्वत्थ(पीपल), गूलर, सीकर, वट, तिल, सरसो, खीर तथा घृत। सोना, चंादी, तांबा, रांका, जस्ता, सीसा, लोहा तथा पारा आदि अष्टïधातुएं। अष्टïभुजाधारी देवी। आठ प्रकार के मंगल प्रव्य यथा सिंह, हाथी, कलश, चामर, वैजन्ती, भेरी, दीपक तथा वृष। देवाधिदेव की अष्टïमूर्तियां-शर्वं, भव, रूद्र, भीम, उग्र, पशुपति, ईशान, महादेव, योग क्रियाओं के आठ योग यथा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान तथा समाधि।आठ प्रकार की औषधियों का वर्ग यथा मेदा, महामेदा, ऋद्धि, वृद्धि, जीवक, ऋषभक, काकोली तथा भीरकाकोला। देवताओं और सिद्ध पुरुषों की आठ प्रकार की सिद्धियां यथा अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व तथा कामावशायिता। अष्टाचक्र नाम के एक महाविद्वान जिन्होने अष्टïावक्रगीता की रचना की।
6 ब्राम्हणों के छ: प्रकार की कर्म यथा वजन, याजन, अध्ययन, दान और प्रतिग्रह। छ: कोणों की आकृति षटकोण कहलाती है. हठयोग के अनुसार कुंडलियों के ऊपर के छ: चक्र। संगीत के छ: राग यथा भैरव, मल्हार, श्री, हिंडोला, मालकोस तथा दीपक बखेड़ा। वेद के अंगभूत छ: शास्त्र यथा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छंद। कर्मकांड के अनुसार छ: प्रकार की अग्रियां यथा गार्हपत्य। आहवनीय, दक्षिणाग्रि, आपसथ्य, सम्याग्रि और औकासनाग्रि। हिन्दू शास्त्र के अनुसार मनुष्य में छ: गुण पाये जाते हैं. यथा ऐश्वर्य, ज्ञान, यश, श्री वैराग्य और धर्म। हिन्दूशास्त्रों में छ: प्रकार के दर्शनशास्त्र प्रचलित है न्याय, वैशषिक, सांख्य, वेदान्त, मीमांसा और योग। मनुष्य और प्राणीमात्र छ: प्रकार के स्वाद का आनन्द लेते हैं.
सच्चिदानन्दघन परब्रम्ह परमात्मा पूर्णवतार में श्रीकृष्ण ने बांसूरी के सात छिद्रों से सात स्वरों के साथ हाथों की तीन-तीन अंगुलियों से यानी छ: अंगुलियों से बांसुरी बजाकर गांवों को मुग्ध कर दिया करते रहे।
(7) सात छिद्रोंं और सात स्वरों वाली बंासुरी को देवकी के आठवें (8) पुत्र प्रिय श्रीकृष्ण ने अपनी (6) अंगुलिोयं से बजाकर समस्त चराचर को मंत्रमुग्ध कर दिया था. इस तरह श्रीकृष्ण और 786 अंक का महत्व जितना मुस्लिम सम्प्रदाय में है. उतनी ही हमारे हिन्दू धर्म में भी है। अंक ज्योतिष के अनुसार 786 को परस्पर में जोड़ते है तो 7+8+6=21 होता है. 21 को भ परस्पर जोड़ा जाय तो 2+1=31 अंक हुआ अर्थात तिन उच्च महाश्क्तियां ब्रम्हा, विष्णु, महेश होते हैं. अर्थात हिन्दू धर्म एवं मुस्लिम धर्म दोनो का परस्पर मधुर मिलन लाजमी है। ***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें