मैं अक्सर इस बात को कहता रहता हुं कि - ''भाग्यम् फलति सर्वदा, न च विद्या न च पौरुषम्'' इसका कत्तई यह मतलब नहीं की मैं आपको भाग्यवादी बना रहा हुं, हां लेकिन कर्म तो सभी करते हैं किन्तु सफल कुछ लोग ही होते हैं तो यह सोचने को विवश होना पड़ता है.. देखिए ना ...
जातक के जन्मांक में सौम्य ग्रह यदि केन्द्रेश हैं तो भी शुभ फल नहीं दे पाते जिसकी वजह से भाग्यभाव प्रभावित हो जाता है और वह व्यक्ति उतना विकास/उन्नति नहीं कर पाता, जितना साधारण जन्मांक के समीक्षा के आधार पर देखा जा सकता है !
इस विषय पर महर्षि पाराशर बताते हैं....सौम्य ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र और पूर्ण चंद्र) यदि केन्द्रों के स्वामी हो तो शुभ फल नहीं देते हैं। क्रूर ग्रह (रवि, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र और पापग्रस्त बुध) यदि केन्द्र के अधिपति हों तो वे अशुभ फल नहीं देते हैं। ये अधिपति भी उत्तरोतर क्रम में बली हैं। (यानी चतुर्थ भाव से सातवां भाव अधिक बली, तीसरे भाव से छठा भाव अधिक बली) लग्न से दूसरे अथवा बारहवें भाव के स्वामी दूसरे ग्रहों के सहचर्य से शुभ अथवा अशुभ फल देने में सक्षम होते हैं। इसी प्रकार अगर वे स्व स्थान पर होने के बजाय अन्य भावों में हो तो उस भाव के अनुसार फल देते हैं ! और वाकई मैंने ऐसी कई कुण्डलियों में पाया है, और उसे अपने भिलाई स्थित 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका (9827198828) के कार्यालय में अनुसन्धान के लिये रखा गया है ! उन कुण्डलियों के मुताबिक जिनके भाग्योदय 26 वर्ष में होने वाले थे उनके केन्द्रस्थ सौम्य ग्रहों के योग के बावजूद 35 वें वर्ष में भाग्योदय हुए, मैं आपको एक वाकया बताता हुं एक बिलासपुर (छ.ग.) का 'रमेश चन्द्राकर' (परिवर्तित नाम) नामक जातक को तब नौकरी मिली जब शासकीय नौकरी के लिये अन्तिम वर्ष के दो दिन ही शेष बच गये थे, तबतक वह जातक दर दर की ठोकरें खाता रहा और तयशुदा वर्ष से 9 साल बाद अचानक शासकीय नौकरी मिली!
अब आईए आपको कुण्डलियों में ग्रहों का भाग्योदय में बाधक बनने के कुछ ज्योतिषिय सिद्धांतो को समझने का प्रयास करते हैं :-
@ यदि लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
@ यदि लग्नेश सूर्य चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
@ यदि लग्नेश यदि तुला राशि के सूर्य तथा शनि के साथ छठे, 8वें में हो तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता।
@ यदि पंचम भाव का स्वामी तथा नवमेश यदि नीच के होकर छठे भाव में हो तो शत्रुओं द्वारा बाधा आती है।
@ यदि पंचम भाव पर राहु, केतु तथा सूर्य का प्रभाव हो लग्नेश छठे भाव में हो पितृदोष के कारण भाग्य में बाधा आती है। कभी कभी तो मैंने देखा है कि पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति पैतृक सम्पत्ति को नष्ट करके नशे के आगोश में आ जाते हैं। अत: उस समय नारायण नाग बली कराना चाहिये, यदि और विस्तृत जानकारी लेनी हो या पितृ दोष शांति कराना हो तो आप संपर्क करें : - ,आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई मोबा.नं. 9827198828
(क्रमश: और अगले अंक में ''भाग्योदय में बाधक शुभग्रहों के उपाय'' -२)
.......मकर राशि का गुरु पंचम भाव में यदि हो तो भाग्य के धक्के सहने पड़ते हैं।.....
(पढ़ते रहिए...और आपको लेख यह कैसा लगा ..??)
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