*आपके कामनापरक यज्ञों के मुताबिक कैसी हो कुण्ड की आकृति और क्या हो 'परिमाप'*...
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आपक यज्ञ
*अन्तर्नाद* के साथियों/विद्वत्जनों आपने देखा होगा की सनातन श्रृंखला श्रौत सूत्र एवं स्मार्त संविधान सूत्रों में सर्वत्र व्यापक रुप से *यज्ञ* की बहुत प्रशंसा की गई है, *यज्ञ* शब्द की व्याख्या तो बहुत ही व्यापक है, फिर भी सूक्ष्म रुप से अवश्य समझना चाहिये !
यज्ञ का सीधा व सरल अर्थ है *यज्ञ यानी यजन* करने को यज्ञ कहते हैं ! वैदिक काल से ही यज्ञों में सर्वाधिक प्रभावशाली देवताओं में *अग्नि* देव को ही प्राथमिकता देते हुए उन्हें बेहद शक्तिशाली देवता बताया गया !
किन्तु किसी भी यज्ञ में चाहे वह कामनापरक हो या निष्कामपरक यज्ञ सभी में सबसे महत्वपूर्ण होता है कि आप *कौन सा यज्ञ कर रहे हैं ? और आपकी मनोकामना क्या है ? तदनुसार यज्ञ करने हेतु *यज्ञ कुण्ड* का यानी यज्ञकुण्ड का परिमाप एवं उसका आकार, प्रकार जितना ही सही रहेगा उतना ही शिघ्र आपके परिलक्षित कार्य की सिद्ध होता है, तो आईये उसी विषय पर संक्षिप्त चर्चा करते हैं...
*ऐन्द्रे स्तम्भे चतुष्कोणनग्नौ भोगे भगाकृति ।*
*चन्द्रार्ध मारणे याम्ये, नैऋेते हि* *त्रिकतोणकम्॥*
*वारुण्यां शान्तिके वृत्तं,* *षडस्त्युच्चाटनेऽनिले ।*
*उदीच्यां पौष्टि के पद्मं रौद्रयामष्टा समुक्ति दम ।*
स्तम्भ करने के लिये पूर्व दिशा में चतुरस्र, भोगप्राप्ति के लिए अग्निकोण में योनि के आकार वाला, मारण के लिए दक्षिण दिशा में अर्धचन्द्र अथवा नैर्ऋत्यकोण में त्रिकोण, शान्ति के लिए पश्चिम में वृत्त, उच्चाटन के लिए वायव्यकोण में षडस्र, पौष्टिक कर्म के लिए उत्तर में पद्माकृति और मुक्ति के लिये ईशान में अष्टास्र कुण्ड हितावह है । इनमें कुछ विशिष्ट कार्यों के लिए भी प्रयुक्त होते हैं यथा-
वाचस्पत्यकोष के अनुसार-
पुत्र प्राप्ति के लिए योनिकुण्ड, भूत-प्रेत और ग्रहबाधा-विनाश के लिए पंचास्र अथवा धनुर्ज्या वृत्ति, अभिचार दोष का शमन करने के लिए सप्तास्र इत्यादि ।
*आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई मोबा.नं. 9827198828*
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