पुष्कल
योग : वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि
किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो
तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के
किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर
लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली
में पुष्कल योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा
सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।
अन्य शुभ योगों की भांति ही पुष्कल योग के भी किसी कुंडली में बनने तथा
शुभ फल प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि पुष्कल योग का किसी कुंडली में
निर्माण करने वाले सभी ग्रह शुभ हों तथा इनमें से एक अथवा एक से अधिक
ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाला पुष्कल योग बलहीन
हो जाता है अथवा ऐसे अशुभ ग्रहों का संयोग कुंडली में पुष्कल योग न बना कर
कोई अशुभ योग भी बना सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में इन सभी ग्रहों का
बल तथा स्थिति आदि का भी भली भांति निरीक्षण करना चाहिए तथा इन सभी ग्रहों
पर कुंडली के अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी अध्ययन करना चाहिए तथा
तत्पश्चात ही किसी कुंडली में पुष्कल योग के बनने या न बनने का तथा इस योग
के बनने की स्थिति में इसके शुभ फलों का निर्णय करना चाहिए।
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई 9827198828
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ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
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