ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 31 जनवरी 2018

शिव जी के कैलाश पर्वत को 'अजेय पर्वत' होने का दुर्लभ रहस्य.....

दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत,
अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डारक !!

कैलाश पर्वत .......
दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत,
अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डारक

Axis Mundi (एक्सिस मुंडी ) .............
प्रश्न पहेली रहस्य ...

एक्सिस मुंडी को ब्रह्मांड का केंद्र,
दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव
और भौगोलिक ध्रुव के रूप में,यह
आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध
का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं
मिल जाती हैं।

और यह नाम,असली और महान,
दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे
रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश
पर्वत से सम्बंधित हैं।

एक्सिस मुंडी वह स्थान है अलौकिक
शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन
शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।

रसिया (USSR) के वैज्ञानिक ने वह
स्थान कैलाश पर्वत बताया है।

भूगोल और पौराणिक रूप से कैलाश
पर्वत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।

इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई
6714 मीटर है।

और यह पास की हिमालय सीमा की
चोटियों जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ
प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता पर इसकी
भव्यता ऊंचाई में नहीं,लेकिन अपनी
विशिष्ट आकार में निहित है।

कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के
चार दिक् बिन्दुओं के सामान है और
एकान्त स्थान पर स्थित है जहाँ कोई
भी बड़ा पर्वत नहीं है।

कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है,यह
अजेय पर्वत है पर 11वीं सदी में एक
तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस
पर चढ़ने का प्रयास किया

शिव-पार्वती का घर है कैलाश
मानसरोवर !!

प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि हिमालय
जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है।

यहां भगवान का निवास है क्योंकि यहां
कैलाश और मानसरोवर स्थित हैं।

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का
घर माना जाता है।

सदियों से देवता,दानव,योगी,मुनि और
सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं।

कैलाश पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से
लगभग 20 हजार फीट है।

इसलिए तीर्थयात्रियों को कई पर्वत
ऋंखलाएं पार करनी पड़ती हैं।

यह यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती
है हिन्दू धर्मं के अनुसार कहते है की
जिसको भोले बाबा का बुलावा होता
है वही इस यात्रा को कर सकता है।

भारत सरकार के सौजन्य से हर वर्ष
मई-जून में सैकड़ों तीर्थयात्री कैलाश
मानसरोवर की यात्रा करते हैं।

इसके लिए उन्हें भारत की सीमा लांघ
कर चीन में प्रवेश करना पड़ता है,
क्योंकि यात्रा का यह भाग चीन में है।

सामान्यतया यह यात्रा 28 दिन में
पूरी होती है।

भारतीय भू भाग में चोथे दिन से पैदल
यात्रा शुरू होती है।

भारतीय सीमा में कुमाउ मंडल विकास
निगम इस यात्रा को संपन्न कराती है।

कैलाश पर्वत चार महान नदियों के
स्त्रोतों से घिरा है सिंध,ब्रह्मपुत्र,सतलज
और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर
इसके आधार हैं।

पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध
पानी की उच्चतम झीलों में से एक है
और जिसका आकर सूर्य के सामान है।

पवित्र झील 'मानसरोवर'

मानसरोवर यह पवित्र झील समुद्र तल
से लगभग 4 हजार फीट की ऊंचाई पर
स्थित है और लगभग 320 बर्ग किलो
मीटर में फैली हुई है।

यहीं से एशिया की चार प्रमुख नदियां,
ब्रह्मपुत्र, करनाली, सिंधु और सतलज
निकलती हैं।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार,जो
व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को
छू लेता है,वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में
पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का
पानी पी लेता है,उसे भगवान शिव के
बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल
जाता है।

जनश्रुतियां हैं कि ब्रह्मा ने अपने मन
-मस्तिष्क से मानसरोवर बनाया है।

दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस
(मस्तिष्क) और सरोवर (झील)शब्द से
बना है।

मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त में देवता गण
यहां स्नान करते हैं।

शक्त ग्रंथ के अनुसार, सती का हाथ
इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह
झील तैयार हुई।

इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से
एक माना गया है।

गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की
बर्फ पिघलती है,तो एक प्रकार की
आवाज भी सुनाई देती है।

श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की
आवाज है।

मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति
मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा
ले,तो वह रुद्रलोक पहुंच सकता है।

तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे
पानी की उच्चतम झीलों में से एक है
और जिसका आकार चन्द्र के सामान है।

राक्षस ताल

मानसरोवर के बाद आप राक्षस ताल
की यात्रा करेंगे।

यह लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र
में फैला है।

प्रचलित है कि रावण ने यहां पर शिव
की आराधना की थी।

इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद
भी कहते हैं।

एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों
को जोड़ती है।

हिंदू के अलावा, बौद्ध और जैन धर्म में
भी कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थ
स्थान के रूप में देखा जाता है।

बौद्ध समुदाय कैलाश पर्वत को कांग
रिनपोचे पर्वत भी कहते हैं।

उनका मानना है कि यहां उन्हें
आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है।

कहा जाता है कि मानसरोवर के पास
ही भगवान बुद्ध महारानी माया के गर्भ
में आये।

जैन धर्म में कैलाश को अष्टपद पर्वत
कहा जाता है।

जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि
जैन धर्म गुरु ऋषभनाथ को यहीं
पर आध्यात्मिक ज्ञान मिला था।

ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को
प्रदर्शित करते हैं जिसका सम्बन्ध
सकारात्मक और नकारात्मक
उर्जा से है।

जब दक्षिण चेहरे से देखते हैं तो एक
स्वस्तिक चिन्ह वास्तव में देखा जा
सकता है।

गौरीकुंड

कैलाश पर्वत की परिक्रमा के दौरान
आपको एक किलोमीटर परिधि वाला
गौरीकुंड भी मिलेगा।

यह कुंड हमेशा बर्फ से ढंका रहता है,
लेकिन तीर्थयात्री बर्फ हटाकर इस कुंड
के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते।

हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि
गौरीकुंड में स्नान करने पर मोक्ष की
प्राप्ति होती है।

कैलाश पर्वत और उसके आस पास
के वातावरण पर अध्ययन कर रहे
रसिया(USSR) के वैज्ञानिक Tsar
Nikolai Romanov और उनकी
टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं
से मुलाकात की उन्होंने बताया कैलाश
पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति
का प्रवाह होता है जिसमे तपस्वी आज भी
आध्यात्मिक गुरुओं के साथ telepathic
संपर्क करते है।

" In shape it (Mount Kailas)
resembles a vast cathedral…
the sides of the mountain are
perpendicular and fall sheer
for hundreds of feet,the strata
horizontal,the layers of stone
varying slightly in colour,and
the dividing lines showing up
clear and distinct...... which
give to the entire mountain
the appearance of having
been built by giant hands,
of huge blocks of reddish
stone. "

(G.C. Rawling,The Great
Plateau,London,1905).

रसिया के वैज्ञानिकों का दावा है
की कैलाश पर्वत प्रकृति द्वारा
निर्मित सबसे उच्चतम पिरामिड है।

जिसको तीन साल पहले चाइना के
वैज्ञानिकों द्वारा सरकारी चाइनीज़ प्रेस
में इसे नकार दिया था।

आगे कहते हैं #कैलाशपर्वत दुनिया
का सबसे बड़ा रहस्यमयी,पवित्र स्थान
है जिसके आस पास अप्राकृतिक शक्तियों
का भण्डार है।

इस पवित्र पर्वत सभी धर्मों ने अलग
अलग नाम दिए हैं। "

USSR के वैज्ञानिकों की यह
रिपोर्ट UNSpecial! Magzine
में प्रकाशित की गयी थी।

With deep thanks to Mr. Wolf Scott, former Deputy Director of UNRISD,
======

।। जयतु संस्‍कृतम् ।
जयतु भारतम् ।।★
👍👍👍👍👍
#साभार_संकलित★
★★★★★★★★

जयति पुण्य सनातन संस्कृति★
जयति पुण्य भूमि भारत★

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनभं
चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं
परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्र
कृत्तिंवसानं विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिल
भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रीनेत्रम्।।

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः।।

नमः सर्वहितार्थाय जगदाधार हेतवे।
साष्टांङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः।।

पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव।।

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