15 जनवरी को ही मकर संक्रांति है, आपको बधाई एवं इस महापर्व पर गंभीर हो विचार किजीए..
मित्रो मकरसंक्रांति एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण चंद्र की गति से न होकर सूर्य की गति से होता है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करते है उससे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है, मित्रों, आज मैं बहुत चिंतित हुं, कि पंचांग में तिथि-भेद की वजह से इस बार मकर संक्रांति को लेकर हमारे पास पूरे भारत से लगभग डेढ़ सौ से अधिक फोन आये, एसएमएस आये की आखिरकार मकर संक्रांति 14 जनवरी को या 15 जनवरी को ? गैर उत्तर भारतीय पंचांगों में 14 को दोपहर 1 बजकर 47 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं उसके अनुसार तो अपराह्न व्यापिनी 14 को ही मकर संक्रांति मान्य होगा, परन्तु उत्तर भारतीय काशीस्थ पंचांगों में 14 को ही रात्रि 8 बजे (हृषिकेष ) एवं महावीर पंचांग में रात्रि 7 बजकर 48 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं । अर्थात इन पंचांगों के मुताबिक दूसरे दिन यानी 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाया जा रही है, जिसका मैं भी समर्थन करता हुं। ...कुल मिलाकर मेरे पोस्ट का मतलब यह था की 7 से 8 घंटे का अन्तर क्यों आ गया क्या यह विषय गंभीर नहीं है??? हालॉकी मैं व्यक्तिगत तौर पर 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाये जाने के लिये सहमत हुं ! आप लोग स्वविवेक से निर्णय ले सकते हैं ! लेकिन मुझे दु:ख इस बात का होता है कि इन पंचांगकारों के नियमित ग्राहक अधिकतर वे होते हैं जो पूरोहित कर्म से जुड़े होते हैं, और इन्हीं लोगों को लोगों द्वारा कड़े प्रतिक्रियाओं को सुनना पड़ता है, जबकी जवाबदार पंचांगकार हैं परन्तु, उनके पंचांगों में दिये नंबरों पर फोन लगावो तो मोबाईल या फोन तक नहीं उठाते तक नहीं ! खैर जो भी हो परेशान तो वे होते हैं जिन्होंने पंचांग खरीदकर आम लोगों को बताते हैं ! एक पंडितजी फेसबुक पर कहा की - आप क्यों टेंशन लेते हैं लोगों को 14 या 15 तारीख दोनों दिन मकर संक्रांति मनाने दिजीए ! मैंने कहा आदरणीय पंडित जी
मकर संक्रांति महापर्व के तिथि-भेद को लेकर इतना बड़ा प्रश्न उठ रहा हैं...आप हास्यास्पद बात कर रहे हैं ! बिल्कुल टेंशन का विषय है....यह बात अलग है आप जैसे विद्वानों को ना हो परन्तु हम जैसे छोटे पंडितो को इस बात का टेंशन है कि ....लोग मजाक उड़ाते हुए गालियां बक रहे हैं इन पंचांगकारों को....और वह गालियां ये पंचांगकार नहीं सुनते , गालियां तो सुनते बेचारे मंदिरों के पुजारी और ग्रामिण अंचल के पूरोहित जिनकी पंडिताई ही वृत्ती है ! मित्रों यह बहुत बड़ी पीड़ा है इस विषय पर गंभीर होने की आवश्य कता है !
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ',ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई मोबा.9827198828
http://ptvinodchoubey.blogspot.com/2018/01/15.html
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