ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 15 जनवरी 2018

सामाजिक गणित !! अंतर दांव लगी रहै...+ घर फोड़वा परिवार = विषकुंभम् पयोमुखम्

अंतर दांव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय ... और 'विष कुंभम् पयोमुखम्' वाले कथित 'व्यास-वर्णी' घर फोड़वा अराजक तत्वों से सावधान रहें......

मैं किसी अवसाद ग्रस्त लेख या आलेख प्राय: न लिखता हुं, न ही स्वीकार करता हुं, परन्तु समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो 'उदारता' को 'कमजोरी' समझने की मूर्खता करते हुए किसी भी परिवार को तोड़ने का कुटिल यत्न करते रहते हैं ऐसे 'अमानुष-धूम्र-वर्णी-हृदय-पटल' वाले कथित 'धुआँ-सदृश शरीर धारी-व्यास' रुपी 'घर फोड़वा' लोगों से समाज को आगाह करना मेरा परम कर्तव्य है ! क्योंकि मैं भिलाई के शांति नगर में निवास करता हुं, समय - समय पर कुछ ऐसे अराजक तत्वों को देखकर  ऐसा प्रतीत होता है की ऐसे व्यक्ति हर तबके में जरूर होते होंगे,  प्रत्येक १० घरों के बीच में एकाध ऐसे 'अराजक तत्व' अवश्य होते ही होंगे, जिनसे कभी 'प्रीति' नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसे लोग केवल 'पीड़ा प्रदायक' ही होते हैं ! इनका मौलिक सिद्धांत प्रमुख रुप से चार स्तंभों पर विराजित होता है, कपट, स्वार्थ, कुटील एवं ईर्ष्या ! 
दुरात्मनों को 'प्रीति' का भला अहसास कहां, उनके स्वार्थ की पूर्ती भर होना चाहिये ! ऐसे स्वार्थियों से सावधान रहना चाहिये, यह केवल पीड़ा देने वाले तो होते ही हैं, साथ ही ऐसे 'दुरात्मन' संयुक्त परिवार को तोड़ने वाले 'घर फोड़वा' के रुप प्रसिद्ध हो समाज में 'शुक्ल वर्णी यानी श्वेत वर्णी ' !
जबकी ऐसे 'व्यास-वर्ण-हृदयी' (काला हृदय वाला) लोगों को 'नीच' कहा जाना प्रासंगिक होगा, ऐसे 'स्वजन' होने का 'स्वांग' रचने वाले 'पीड़ादायी-कृष्ण-वर्ण-हृदयी-पुरुष' यानी 'व्यास-वर्णी' व्यक्ति,  यह 'व्यास' कोई पौराणिक पुरुष नहीं है, बल्कि 'घर-फोड़वा' प्रजाति का एक अराजक तत्व है, जो विशेषकर हमारे आस-पास के ही होते हैं जो 'प्रीति' करने का स्वांग रचते हैं, क्योंकी इनके कथित 'प्रीति' के गर्भ में केवल धुआँ रुपी 'पीड़ा' ही भरा रहता है ! यह भी कह सकते हैं 'विष कुंभम् पयोमुखम्'' !!  आईए कबीरदास जी के इस दोहे से 'प्रीति' और 'पीड़ा' में अन्तर समझें !

अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय !!
कै जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय !!

-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)
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