श्रीधर्मसम्राट् स्वामी करपात्री जी महाराज चालीसा
गुरु के वचन प्रकाश सों,
मिटत हृदय अधियार।
चरणशरण नौका चढे,
भव सों जावत पार।।
निज मति को बल है नहीं,
केवल गुरु की आस।
कर्ता धर्ता आप ही,
त्र्यम्बक उर विश्वास।।
जय हरिहरविधि विविध स्वरूपा।
जयजय ऋषि मुनि यति कुल भूपा।।१
काशी अवध प्रयाग त्रिकोणहि।
बिंदू सम भटनी भू सोहहि।।२
ओझा भूसुर वंश विमंडन।
अधम कुमति मतवाद विखंडन।।३
हरनारायण हरिहर स्वामी।
विश्वेश्वर ब्रह्मा अनुगामी।।४
भृगूक्षेत्र नरवर विद्यालय।
कोयलघाटी दिव्य हिमालय।।५
शिक्षा तप साधन धन धीरा।
सरस्वती वर गंगातीरा।।६
कर ही पात्र बना ले भिक्षा।
करपात्री बन देते शिक्षा।।७
एक लंगोटी भस्म भाल पर।
संस्कृतभाषण हंस चाल पर।।८
ज्ञान भक्ति वैराग्य सुशोभित।
संगम लख नरदेव विलोभित।।९
वर्णाश्रम शुभ धर्म प्रचारक।
सदाचार संचार विचारक।।१०
शास्त्रनिष्ठसिद्धांतसुधारक।
भ्रमित पतित शतजन संतारक।।११
रामराज्य सद्भाव हृदय भर।
धर्मसंघ पथ पावन रचकर।।१२
यज्ञ धूम ध्वज लिए चले तुम।
कलियुग सेवक देख हुए गुम।।१३
गोवध बंद कराने हेतू।
घूमे भारत आगिरि सेतु।।१४
सन छासठ में दिल्ली शासन।
सह न सका संतों के भाषण।।१५
गोरक्षार्थ समागत जनजन।
नरवध करने लगा प्रशासन।।१६
श्री करपात्र स्वामि तब बोले।
गोवध वंशनाश विष घोले।।१७
शास्त्र सृजन शंकापरिमर्दन।
मानवताहित करते गर्जन।।१८
शिव शिव मंगल मंत्र उचारे।
अभिनव शंकर हृदय पुकारे।।१९
श्रीविद्यापूजा परिकर्ता।
दैन्य दोष दुर्भाव विहर्ता।।२०
सत्य सनातन के संपोषक।
धर्म विजय निर्भय उद्घोषक।।२१
विजय धर्म की होवे जग में।
हो अधर्म का नाश सुमग में।।२२
सद्भाव प्राणियों के उर हो।
कल्याण विश्व का ईश्वर हो।।२३
गो वध बंद करे सरकारें।
गूंजे गो माँ के जयकारे।।२४
हर हर महादेव मिल बोले।
निर्भय हिंदू जग में डोले।।२५
घरघर तुलसी गंगाजल हो।
गीता रामायण का बल हो।।२६
हर घर गौ माता की शोभा।
देव हृदय भारत हित लोभा।।२७
वेद पढे द्विज अभय भाव से।
क्षत्रिय रक्षा करें चाव से।।२८
वैश्य कृषि गो पण्य संभारे।
गंगानुज सेवाव्रत धारें।।२९
सती संत शुचि शूर सुरक्षित।
भारत का जनजन हो शिक्षित।।३०
अविरल निर्मल सरिता सर हो।
वृक्ष सजे वन गिरि कंदर हो।।३१
ऐसे भारत का सपना ले।
नंगे पैर चले पग छाले।।३२
वेदभाष्य कर भ्रांति मिटाई।
कीरति अमल जगत भर छाई।।३३
ज्योतिष्मती प्रकल्प साधना।
पार्थिवपूजा शिवाराधना।।३४
काशी नेह भरा जिनके मन।
ऐसे शंकर शंकर पावन।।३५
कथासुधा वृष्टीकर जलधर।
कलिमल हारक तारक गुरुवर।।३६
मोक्षमार्ग उपदेशक ज्ञानी।
कृपासिंधु सर्वोत्तम दानी।।३७
शिष्यशोकसंताप विदारक।
लीला हरिहर नर तन धारक।।३८
कोटि कोटि वंदन अभिनंदन।
भक्तहृदय शुचि शीतल चंदन।।३९
श्रुतिशोधित सन्मार्ग विधायक।
ज्ञान शिरोमणि मुनिगणनायक।।४०
शास्त्र विलास वंश अवतंसा।
त्र्यम्बक शुचि मन मानस हंसा।।
जय गुरुदेव नमामि नमामी।
जय गुरुदेव नमामि नमामी।।
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भावसहित तन शुद्ध कर।
पाठ करे नित नेम।
उद्भासित निज ज्योति हो,
हरिहर पावत प्रेम।।
संकल्पित शुभकाम सब,
होते हैं परिपूर्ण।
विघ्न रोग अरिवृंद दुख,
हो जाते हैं चूर्ण।।
जय गुरुदेवा जय गुरुदेवा।
जय गुरदेवा जय गुरुदेवा।।
गुरुदेव नमो गुरुदेव नमो।
गुरुदेव नमो गुरुदेव नमो।।
गुरुदेव नमामि नमामि गुरो।
गुरुदेव नमामि नमामि गुरो।।
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