'पान ठेला उवाच :'
'मांस-भक्षी' संडे की बजाय रविवार को करें आध्यात्मिक चिन्तन..
साथियों मैं 'ताम्बूल ग्रहण' करने भिलाई के लक्ष्मीनगर मार्केट के पास 'शुक्ला पान ठेला' पर अक्सरहां जाता हुं, इसी बहाने श्री दिनेश शुक्लजी से मुलाकात भी हो जाती है क्योंकी उनसे मेरा आत्मीय लगाव है! साथियों मैं बात पान ठेला का बिल्कुल नहीं कर रहा हुं, बल्कि मैं आपको कुछ यथार्थ बताना चाह रहा हुं ! पानठेला से कुछ ही दूरी पर 'मटन मार्क़ेट' है वहां रविवार को 'मांस-भक्षी- संडे' मनाने वालों की इतनी भीड़ होती है मानो कोई मेला लगा हो, और उसमें अधिकतर संख्या हिन्दुओं की होती है, विक्रेता मुश्लिम ! अब आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे सप्ताह का आरंभ दिवस 'रविवार' की शुरुआत 'मांस भक्षण' करके कर रहे हैं, जबकी पूरे नवग्रह मण्डल का अधिपति सूर्य हैं और उन्हीं से तेज, पराक्रम, शौर्य तथा मान-सम्मान, पद और प्रतिष्ठा हमें प्राप्त होती है जिसका हम ही खुद-ब-खुद क्षरण कर रहे हैं! अब आईये आपको 'मटन' का हिंदी रुपांतरण 'मांस' और अब इसका तैत्तरीय संहिता तथा मनुस्मृति के माध्यम से आपको समझाता हुं... 'मांस’ को ‘मांस’ इसलिए कहा जाता है कि –
मां स भक्षयिताऽमुत्र यस्य मान्समिहाद्म्यहम् | (मनु ५|५५)
अर्थात् – जिस को मारकर आज मै खा रहा हूँ कल मेरे को वह खाएगा |
साथियों मैंने 'पान ठेला बनाम मटन मार्केट की व्यथा' इसलिये रखा क्योंकि- साकाहारी भोजन ना केवल सात्विकता प्रदान करता है, वरन शारीरिक, भौतिक और पारलौकिक सभी प्रकार का सुख प्रदान करता है इसलिये शुद्ध शाकाहारी बनो..
'मांस भक्षण को (तैतरिय १|१|९|७)में सद्य: वर्जित किया गया है ''न माँ गुं समश्नोयात् |" अर्थात् – मांस नहीं खाना चाहिए | वहीं अथर्ववेद के ८|७|२३ में कहा गया है कि "य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये क्रवि: |" गर्भान् खादन्ति ये केशवास्तानितो नाशयामसि ||
अर्थात्- जो दुर्व्यसनी कामुक पिशाच कच्चा मांस खाते है और जो पुरुष द्वारा संपादित पका हुआ मांस खाते है और जो अण्डों को खाते हैं कच्चा – पक्का अंडा इन तीनों प्रकार के मांस को खाने वालों को यहाँ से हम नष्ट करते हैं | यानी हजारों हजार भ्रूण हत्या के हम भागी बनते हैं जिसका सीधा दुष्परिणाम अपनी आने वाली पीढ़ी पर पड़ता है ! और कुण्डली में राहु जनित ',चाण्डाल योग' , 'ग्रहण दोष',,' कालसर्प दोष' एवं अन्य कुयोगों के अशुभ फल से निज़ात मिल जाता है, केवल मांश का परित्याग कर देने से ! 'आईये मेरे मित्रों/शिष्यों/ छोटे भ्राताओं एवं मांस-भक्षी वरिष्ठजनों आईए हम आज रविवार के २८ तारीख द्वादशी (वैष्णवों की एकादशी) को संकल्प लें की हम मांस भक्षण कदापि नहीं करेंगे, यही मेरे इस आलेख की सार्थकता होगी !
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, मोबाईल नं 9827198828
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