गुरु ब्रह्म
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
परब्रह्म की तरह गुरु का भी वास्तविक रूप नहीं समझा जा सकता है। इसे भी गायत्री मन्त्र के माध्यम से तीन पार में समझना पड़ेगा। यज्ञोपवीत संस्कार में वेदारम्भ के लिये गायत्री मन्त्र पढ़ाया जाता है। गायत्री से वेदज्ञान का आरम्भ होने से भी यह वेदमाता है। ज्ञान आरम्भ होने से यह गुरु रूप भी है।
ॐ भूर्भुवः स्वः-तत् सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्।।
प्रथम पाद सविता या स्रष्टा का है-यह ब्रह्मा हुआ।
मूल स्रष्टा दृश्य नहीं है। उसका क्रिया या तेज रूप दीखता है अतः कुछ समझा जा सकता है (धीमहि)। यह क्रिया या यज्ञ रूप द्वितीय पार है।
तृतीय पाद मे बुद्धि को प्रेरणा देने की बात है, अतः गुरु रूप यही लगता है। पर द्वितीय पाद में भी धीमहि ज्ञान से सम्बन्धित है। यह पाद गुरु-शिष्य परम्परा के स्रोत शिव का रूप है।
इनके प्रतीकों पर ध्यान देने से गुरु का ब्रह्मा-विष्णु-शिव रूप स्पष्ट होगा।
ब्रह्मा से सृष्टि के अतिरिक्त वेद भी उत्पन्न हुए। मूल अथर्ववेद था जिसकी तीन अन्य शाखा-ऋक्, यज्ञ, साम हुई। तीन शाखा के बाद मूल भी बचा रहा। इसका प्रतीक पलास दण्ड वेदारम्भ संस्कार में व्यवहार होता है, जो ब्रह्मा का चिह्न है। इससे भी तीन पत्ते निकलते हैं, उसके बाद मूल दण्ड भी बचा रहता है। यह शास्त्र रूपी ज्ञान है जिसकी प्रतिष्ठा वेद है (मुण्डकोपनिषद्, 1/1/1-5)
द्वितीय रूप विष्णु का प्रतीक है पीपल या अश्वत्थ। इसके हर पत्ते अपने स्थान पर स्वतन्त्र रूप से हिलते है। हर व्यक्ति अपने स्थान पर स्वतन्त्र चिन्तन करता है। सृष्टि चलाने के लिए यह जरूरी है कि हर व्यक्ति या व्यवस्था चलती रहे। एक दूसरे का अधिक प्रभाव पड़ने से काम बन्द हो जायेगा। गुरु हर छात्र को पुस्तक दे सकता है, पढ़ा भी सकता है पर सबको स्वाध्याय से समझना होगा। यह गुरु का विष्णु रूप है।
गुरु शिष्य परम्परा का प्रतीक वट वृक्ष है जो शिव का रूप है। वट वृक्ष की शाखा जमीन से लग कर वैसा ही वृक्ष बन जाता है। इसी प्रकार गुरु भी शिष्य को ज्ञान देकर अपने जैसा बना देता है। मूल वट द्रुम से जो अन्य द्रुम निकलते हैं उनको लोकभाषा में दुमदुमा कहते हैं-द्रुम से द्रुम। हर शिव पीठ में दुमदुमा है। सोमनाथ के निकट दुमियानी, वैद्यनाथ धाम में दुमका, भुवनेश्वर में दुमदुमा, हरमन्दिर अमृतसर में दमदमी टकसाल। टकसाल के सांचे से जैसे पैसा ढलता है, वैसे ही गुरु से शिष्य। शिष्य को ढालना तथा गुरु-शिष्य परम्परा को चलाते रखना गुरु का शिव रूप है।
वेबसाईट- www.jyotishkasurya.in
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।
ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।
ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)
आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..
सोमवार, 8 जनवरी 2018
गुरु ब्रह्म गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुदेवो महेश्वरः
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें