हे बाबा रामदेव !! बात बात मे ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड का, गया पिण्डदान आदि का मजाक मत उड़ाओ, 'ज्योतिष' को समझो बाबाजी, ज्योतिष कोई मजाक का विषय नहीं है, या तो आपकी मती बौरा गई है, या तो आपके शिर पर 'एक व्यापारी बाबा' हावी हो चुका है ! लगता है दस हजार करोड़ी बाबा होने के बाद चर्रा गये हैं क्या ? ' नहीं तो आप इस प्रकार की मनबहकई नहीं करते ! एक तो सप्तर्षियों के नाम पर दुकान चला रहे हो, और दूसरी ओर उन्हीं के अनुसंधान पर आधारित 'सूर्य सिद्धांत', 'लाघव' जैसे सिद्धांतो का मजाक उड़ा रहे हो, जो भारतीय पर्व एवं तिथि, त्याहारों को सुनिश्चित करते हैं , जिसके वगैर अधूरा है, षड्वेदांगों में से एक 'ज्योतिष को 'ज्योतिषामयनम्' कहा गया है ! आपके सोशल साईट में कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसे देख व सुनकर हम लोगों को बार बार ऐसे आलेख लिखने पड़ते हैं, या तो आप यह सब जानबूझकर करते हैं, या तो आप अब शठिया गये हैं, तभी बकवास करते फिरते हैं जिसका आपने कोई औषधी नहीं बनाई, खैर आपका यह व्यक्तिगत समस्या हो सकती है ! बाबाजी, आईए आपको थोड़ी सी ज्योतिष के मौलिक आधार 'गणित' के बारे में आपको बताता हुं, यदि वानरों जैसे उछल-कूद से समय मिले तो यह नर-लेखनी से लिखा लेख अवश्य पढ़ियेगा....और फालतू का बकवास बंद किजीए ! या नहीं तो समयसुनिश्चित करें इस विषय पर आप हमसे (आचार्य पण्डित विनोद चौबे, 9827198828) शास्त्रार्थ कर लें ! प्रिय बाबा रामदेव, आप जिस विषय को नहीं जानते उस विषय का मजाक मत उड़ाईए !
भारतीय गणित:
गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग
भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है।
संख्या,शून्य,स्थानीय मान,अंकगणित, ज्यामिति,बीजगणित,कैलकुलस आदि
का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ।
गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति
का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक
उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है।
बिना गणित के विज्ञान की कोई
भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती।
भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल
आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की
नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके
बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी
के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर
पाती।
विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र
में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से
सराहना की है। और बाबाजी रामदेव
मजा़क उड़ा रहे हो, जो दु:खद है !और आपके अवसाद ग्रस्त सेहत के लिये चिन्ताजनक !
विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद संहिताओं
से गणित तथा ज्योतिष को अलग-अलग
शास्त्रों के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी।
यजुर्वेद में खगोलशास्त्र(ज्योतिष)के विद्वान्
के लिये ‘नक्षत्रदर्श’ का प्रयोग किया है तथा
यह सलाह दी है कि उत्तम प्रतिभा प्राप्त
करने के लिये उसके पास जाना चाहिये
(प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्शम्)।
वेद में शास्त्र के रूप में ‘गणित’ शब्द का
नामतः उल्लेख तो नहीं किया है पर यह
कहा है कि जल के विविध रूपों का लेखा
जोखा रखने के लिये ‘गणक’ की सहायता
ली जानी चाहिये।
शास्त्र के रूप में ‘गणित’ का
प्राचीनतम प्रयोग लगध ऋषि
द्वारा प्रोक्त वेदांग ज्योतिष नामक
ग्रन्थ का एक श्लोक में माना जाता है।
पर इससे भी पूर्व छान्दोग्य उपनिषद्
में सनत्कुमार के पूछने पर नारद ने जो
18 अधीत विद्याओं की सूची प्रस्तुत की
है,उसमें ज्योतिष के लिये ‘नक्षत्र विद्या’
तथा गणित के लिये ‘राशि विद्या’ नाम
प्रदान किया है।
इससे भी प्रकट है कि उस समय इन
शास्त्रों की तथा इनके विद्वानों की
अलग-अलग प्रसिद्धि हो चली थी।
आगे चलकर इस शास्त्र के लिये अनेक
नाम विकसित होते रहे।
सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने पाट या पाटी का
प्रयोग किया। बाद में श्रीधराचार्य ने ‘पाटी
गणित’ नाम से महनीय ग्रन्थ लिखा।
तब से यह नाम लोकप्रिय हो गया।
पाटी या तख्ती पर खड़िया द्वारा संक्रियाएँ
करने से यह नाम समाज में चलने लगा।
अरब में भी गणित की इस पद्धति को
अपनाने से इस नाम के वजन पर ‘इल्म
हिसाब अल तख्त’ नाम प्रचलित हुआ।
भारतीय परम्परा में गणेश दैवज्ञ ने
अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में गणित
की परिभाषा निम्नवत की है-
गण्यते संख्यायते तद्गणितम्।
तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते।
(जो परिकलन करता और गिनता
है,वह गणित है तथा वह विज्ञान जो
इसका आधार है वह भी गणित
कहलाता है।)
गणित दो प्रकार का है-
व्यक्तगणित या पाटीगणित-
-इसमें व्यक्त राशियों का उपयोग किया
जाता है।
अव्यक्तगणित या बीजगणित-
-इसमें अव्यक्त या आज्ञात राशियों
का उपयोग किया जाता है।
अव्यक्त संख्याओं को 'वर्ण' भी
कहते हैं।
इन्हें 'या', 'का', 'नी' आदि से निरूपित
किया जाता है।
(जैसे आजकल रोमन अक्षरों
x,y,z का प्रयोग किया जाता है।
(का=कालक,नी=नीलक,
या =यावत्,ता=तावत्)
#साभार_संकलित★
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक-
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