ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

शक-शका: सचन्ते......! शक संवत् रहस्यम्

शक के विभिन्न अर्थ-मन्त्रों के प्रसंग (संस्था) या विनियोग के अनुसार अर्थ होंगे। शक सम्बन्धी मुख्य अर्थ नीचे दिये जाते हैं-
१. शक-शकाः सचन्ते समवायेन वर्तनो शक्नुवन्ति इति वा।
(१) मधुकक्षिका, छत्ता, (२) मधु, समवाय बना कर रहने वाला शक्तिशाली पुरुष
सोमाय कुलुङ्गऽआरण्योजो नकुलं शका ते पौष्णां क्रोष्टा, मायोरिन्द्रस्य गौरमृगं पिद्वो न्यङ्कु कक्कटस्तेनुमत्यै प्रतिश्रुत्कायै चक्रवाक्॥ (वाजसनेयि २४/३२, तैत्तिरीय संहिता ५/५/१२/१, मैत्रायणी संहिता ३/१४/१३ या १७५/३)
२. शकधूम-शकस्य शकृतः सम्बन्धी धूम यस्मिन् अग्नौ स शकधूमः अग्निः। तद् अभेदात् ब्राह्मणस्य अभिधीयते।-(१) अपनी शक्ति से सबको कंपाने वाला -धुआं उड़ा दे, (२) सायण के मत से वह अग्नि शकधूम है जिसमें शकृत् (गोबर) सम्बन्धी धूम हो। (३) अग्नि के समान तेजस्वी या अग्निहोत्र करनेवाला ब्राह्मण (शाकद्वीपी ब्राह्मण?)
शकधूमं नक्षत्राणि यद् राजानम् अकुर्वत (अथर्व वेद ६/१२८/१)
३. शकधूमजः-(१) शक्तिमान्, तामसः, (३) बड़बड़ाने वाला-
खलजाः शकधूमजा (अथर्व वेद ८/६/१५)
४. शकन्-(१) मल, विष्ठा-विलोहितो अधिष्ठानात् शक्नो विन्दति गोपतिम् (अथर्व १२/४/४)
(२) लीद, सक्ति, अधिक सामर्थ्य
अश्वस्य त्या वृष्नः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः (वाजसनेयि यजु ३७/९, शतपथ ब्राह्मण १४/१/२/२०)
स इच्छक्ना संज्ञायते (अथर्व २०/१२९/१२)
५. शकपूत-(१) शकपूत नामक एक वैदिक ऋषि, (२) शक्ति से अभिषिक्त पुरुष
अस्मिन् स्वे तच्छक्तिपूत एनः (ऋक् १०/१३२/५)
६. शकमय-शक्तिमान्-
शकमयं धूममारादपश्यम् (ऋक् १/१६४/४३, अथर्व ९/१०/२५)
७. शकम्भर-शक्ति को धारण करने वाला बलवान् मनुष्य
शकम्भरस्य मुष्टिहा (अथर्व ५/२२/४)
दुर्गासप्तशती, अध्याय ११ में शाकम्भरी देवी का कलियुग का एक अवतार है। जिस समय १०० वर्ष तक अनावृष्टि हुयी थी (पश्चिमोत्तर भारत में २७००-२६०० ई.पू. में सरस्वती सूख गयी, इस अवसर पर काशिराज का पार्श्वनाथ रूप में संन्यास २६३४ ई.पू.-जैन युधिष्ठिर शक), उस समय लोगों को अन्न देने के लिये शाकम्भरी अवतार हुआ जिसने शाक से लोगों का भरण किया। चाहमान राजा इनके भक्त माने जाते हैं, इनका मूल स्थान कई व्यक्ति राजस्थान में मानते हैं। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के निकट शिवालिक पहाड़ी के तिमली में शाकम्भरी मन्दिर है। शाकम्भरी का भी अपभ्रंश सहारन हो सकता है।
भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि। मुनिभिः संस्तुता भूमौ सम्भवाम्ययोनिजा॥ (११/४६)
ततः शतेन नेत्रआणां निरीक्षिष्यामि यन्मुनीन्। कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः॥४७॥
ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेह समुद्भवैः। भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः॥४८॥
शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्यामहं भुवि॥ तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम्॥४९॥
यहां शक = साग, अन्न। हर विपत्ति का फायदा उठा कर पश्चिम एशिया के असुर आक्रमण करते रहते हैं। उस समय शाकम्भरी अवतार के समय दुर्ग असुर मारा गया था।
८. शकल्य-शरीर के रग रग में व्याप्त होकर कंपाने वाला ज्वर-
शकल्येषि यदि व् ते जनित्रम् (अथर्व १/२५/२)
९. शकबलि-शक्तिशाली पुरुष-अथर्व (२०/१३१/१३)
१०. शका-मक्खी-इहो शकेव पुष्यत (अथर्व ३/१४/३)
११. शक्राः (द्विवचन)-शक्तिमान् स्त्री-पुरुष, (२) अश्विद्वय
अर्वाञ्चा यानं रथ्येव शक्रा (ऋक् २/३९/३)
१२.. शक्रः, शक्राः-(१) शक्तिशाली आत्मा, (२) इन्द्र, (३) शक्तिशाली राजा
यच्छक्रा वाचमारुहन् (अथर्व २०/४९/१)
अपाप शक्रस्ततनुष्टिमूहति (ऋक् ५/३४/३)
शक्रः = शक्तिशाली या शक+क्रतु का संक्षेप। जो १०० अश्वमेध यज्ञ करे वह इन्द्र होता है। वर्ष क्रम से यज्ञ होते हैं अतः इसे सम्वत्सर भी कहा है। जिसने १०० वर्ष तक प्रजापालन रूपी यज्ञ किया (वाजपेय, राजसूय, अश्वमेध, चयन) वह इन्द्र है। १४ मुख्य इन्द्रों के नाम पुराणों में वर्णित हैं, जिन्होंने १००-१०० वर्ष शासन किये। इन्द्र पूर्व के, वरुण पश्चिम के लोकपाल थे। पश्चिम में इन्द्र ने पाक दैत्यों का दमन किया था अतः ब्रह्मा ने उनका नाम पाकशासन रखा। जहां उन्होंने शक्ति प्रदर्शित की वह शक्र (सक्खर) है जहां इसी नाम की हक्कर नदी है।
शक जाति,द्वीप, ब्राह्मण, वर्ष-(१) मध्य एशिया तथा दक्षिण पूर्व यूरोप की बिखरी जातियां शक थीं, जो संयुक्त हो कर शक्तिशाली हो गयीं। इनमें कई जातियों के नाम अभी भी प्रचलित हैं-स्लाव, हूण (हंगरी = हूण गृह), उक्रयिनी (युक्रेन), उइगर (चीनी तुर्किस्तान, सिंकियांग), यूची (चीन)। पता नहीं अभी कुषाण कहां हैं? किन्तु यह क्षेत्र शक द्वीप नहीं था, वरन् मुख्यतः जम्बू द्वीप था। यूरोप अंश प्लक्ष द्वीप था या लोक रूप में अतल था। इन जातियों में वर्ण व्यवस्था नहीं थी। ४ वर्ण और आश्रम केवल भारत में ही थे-
विष्णु पुराण (२/३)-कर्मभूमिरियं स्वर्गमपवर्ग च गच्छताम् (४ पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष)॥२॥
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते (आश्रम धर्म)॥५॥
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्या मध्ये शूद्राश्च भागशः। इज्यायुधवाणिज्याद्यैर्वर्तयन्तो व्यवस्थिताः॥९॥
मेगास्थनीज आदि को भारत के बारे में प्रायः कोई जानकारी नहीं थी-उसने ७ जातियों का वर्णन किया है। उसके चेलों ने भारत में आरक्षण के लिये १०,००० से अधिक जातियों में समाज को बांट दिया है।
पुरुषैर्यज्ञपुरुषो जम्बूद्वीपे सदेज्यते। यज्ञैर्यज्ञमयो विष्णुरन्यद्वीपेषु चान्यथा॥२१॥
(पुरुष सूक्त का अन्तिम श्लोक-यज्ञेनयज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्)
अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने। यतो हि कर्मभूरेषा ह्यतोऽन्या भोगभूमयः॥२२॥
श्रेष्ठ होने के कारण भारत के अनुकरण पर पूर्व तथा पश्चिम में इसके स्थान नामों का अनुकरण है।
(२) वर्ण व्यवस्था नहीं होने के कारण मध्य एशिया या दक्षिण पूर्वी यूरोप के शकों में ब्राह्मण कभी भी नहीं थे, जो वहां से भारत आते। यदि शकों में ब्राह्मण थे तो क्षत्रिय, वैश्य भी होते और गर्व से अपने को शक क्षत्रिय कहते-अपने को गुहिल ब्राह्मण वंश के सीसोदिया या राठौर, परमार (सामवेदी), शुक्ल (चालुक्य, सोलंकी, सालुंखे) आदि नहीं कहते। प्रश्न है कि फिर इनको शाकद्वीपी या सकलदीपी ब्राह्मण क्यों कहते हैं। कर्म के अनुसार शकधूम द्वारा हवन करने वाले, या आयुर्वेद द्वारा स्वस्थ करने वाले (आन्तरिक वषट् या हवन) हो सकते हैं। ये पूरे भारत में नहीं हैं। केवल उसी भाग में हैं जहा शक (सखुआ, साल) वन हैं। शक वन क्षेत्र में निवास करने के कारण इक्ष्वाकु वंश की एक शाखा को शाक्य कहते थे। मैदानी भाग में मुख्यतः शक-वन (सागवान) होना चाहिये पर वर्षा और मिट्टी की विशेषता के कारण गोरखपुर, काशी, रोहतास, पलामू, सिंहभूमि, सम्बलपुर, कालाहांडी, कोरापुट तक साल वन हैं। इसकी अन्तिम सीमा पर बालि का वध हुआ था जिसे बालिमेला कहते हैं। इसके पूर्व राम की परीक्षा के लिये सुग्रीव ने उनको ७ साल वृक्ष दिखाये थे, जिनको राम ने १ बाण से काटा था। शक= शक्ति शाली। एक घास कुश है। यह क्षेत्र भारत के भीतर ही शक द्वीप जैसा है। कुश जैसा बड़े आकार का वृक्ष शक है-जैसे साल, सागवान (टीक), आस्ट्रेलिया में युकलिप्टस आदि।
(३) शक द्वीप-यह भारत के दक्षिण पूर्व में था। मुजफ्फर अली ने मलयेसिया को शक द्वीप माना है। पर यह बहुत छोटा क्षेत्र है और जम्बू द्वीप में भी भारत वर्ष के ९ द्वीपों में से है। मुख्य भूमि जैसे इनके भी नाम हैं-जैसे केरल मलय देश है, उसकी राजधानी के निकट कोवलम समुद्र तट है। मलय (मलयेशिया) की राजधानी भी कोवलमपुर है। केरल में परशुराम ने अपना वर्ष आरम्भ किया था। ज्योतिष के गोल में उच्च विन्दु कदम्ब, निम्न विन्दु कलम्ब है। समुद्र तट पर लंगर नीचे की तरफ डालते हैं, अतः वह कलब है (श्रीलंका का पत्तन कोलम्बो)। अतः यहां का सम्वत्सर कलम्ब (कोल्लम) है। अनाम उत्तर पूर्व आन्ध्र तथा वियतनाम भी है। चम्पा का अर्थ भागलपुर तथा कम्बोडिया भी है। पश्चिम में मुम्बई जैसा पूर्व अफ्रीका तट पर मोम्बासा है। कन्या कुमारी जैसा केन्या है।
दक्षिण पूर्व का बड़ा भूभाग आस्ट्रेलिया ही शक द्वीप हो सकता है, जहां ३०० प्रकार के युकलिप्टस शक वृक्ष हैं। शक द्वीप के भूगोल का पौराणिक वर्णन आस्ट्रेलियासे बहुत मिलता है। दक्षिण पूर्व दिशा को अग्नि कोण कहने के कारण वायु पुराण में इसे अंग द्वीप भी कहा गया है।
(४) शक वर्ष-युधिष्ठिर, शूद्रक, शालिवाहन आदि सभी के वर्षों को शक कहा है। इनमें कोई भी शक जाति या भारत के भी छोटे शकद्वीप का नहीं था। गणित में १ का चिह्न कुश है। १-१ को जोड़ कर निर्दिष्ट विन्दु से दिन संख्या (अहर्गण) निकाली जाती है, वह कुशों का समूह होने से शक है। सौर-वर्ष-मास द्वारा दिन गणना में सुविधाहोती है अतः गणना के लिये जो सौर वर्ष की पद्धति प्रयुक्त होती है उसे शक कहते हैं। कमलाकर भट्ट ने गणना के लिया शालिवाहन शक तथा निर्णय सिन्धु में पर्व निर्णय के लिये विक्रम सम्वत् का व्यवहार किया है। शालिवाहन से पूर्व ब्रह्मगुप्त तथा आराहमिहिर ने ६१२ ई.पू, के चाप-शक का व्यवहार किया है। पर्व निर्णय के लिये सौर चान्द्र वर्षों का समन्वय होता है तथा इसके अनुसार समाज चलता है अतः इसे सम्वत्सर कहते हैं। ३ सम्वत्सर हैं-सृष्टि, कलि, विक्रम-क्योंकि इन कालों में आचार संहिता बनीं थीं। अल बरूनी के अनुसार मध्य एशिया की किसी भी शक जाति ने अपना कैलेण्डर शुरु नहीं किया था (क्रोनोलौजी औफ एन्शियेन्ट नेशन्स)। वे ईरान या सुमेर के वर्षों का प्रयोग करते थे। यह भारत की किसी भी पुस्तक या इतिहास पढ़ने से बिल्कुल स्पष्ट है। यदि शक आक्रमणकारियों द्वारा वर्ष आरम्भ होता तो उनका नाश करने वाले विक्रम और शालिवाहन ने शक वर्ष भी समाप्त किया होता. स्वयं शालिवाहन शक नहीं चलाते। शकों का अधिकार केवल उत्तर पश्चिम भाग में कुछ समय के लिये था। उनका शक होने पर इसका व्यवहार कम्बोडिया या फिलीपीन (लुगुना) के लेखों में नहीं होता या भारत के ही दक्षिण में नहीं होता। अक्षांश-देशान्तर गणना या स्वास्थ्य के लिये सूर्य का दर्शन किया जाता है, अतः शाकद्वीपी ब्राह्मण सूर्य पूजा करते थे।
- अरूण उपाध्याय, पूर्व आईएस अधिकारी

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