ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 3 जनवरी 2018

आईए तिल चतुर्थी (तिल चौथ) के माहात्म्य को समझें

साथियों, मैं अभी कड़कड़ाती ठंड में मैं अभी अपने गृहग्राम देवरिया के ग्राम मौना गढ़वां में हुं, 6 डिग्री सेल्शीयस में भी व्रती महिलाएं संतानों के दीर्घजीवी की कामना से इस व्रत को करने के उद्यत हैं, ये है हमारी आस्था!

प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं. पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं. हालाँकि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है और अमांत पंचांग के अनुसार पौष के महीने में पड़ती हैं , इस बार पांच जनवरी मघा नक्षत्र और शुक्रवार को हेमलंबी सम्वत का यह महाव्रत पड़ रहा है, व्रतियों को चाहिये की चार जनवरी वृहस्पतिवार को ही साग खाकर नियम-यम का पालन करते हुए शुक्रवार का व्रत करना चाहिये!  अब आईए विस्तृत तौर पर इस व्रत विधान के रहस्य को  समझने का प्रयास करें !

मित्रों नमस्कार

संकट या तिल चतुर्थी व्रत संतान कष्ट दूर करता है इस वर्ष संकट चतुर्थी व्रत 5 जनवरी 2018 को यानी कल है। यह पर्व माघ स्नान का प्रथम सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व को संकट चतुर्थी व्रत के अलावा वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ व्रत भी कहा जाता है। इस दिन श्री विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से मनुष्य के समस्त संकट दूर हो जाते हैं।उत्तर भारत में तथा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में माताएं इस व्रत को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

विना किसी विघ्न के कार्यों की समाप्ति हेतु सर्वप्रथम गणेश जी की पुजा जाती है। गणपति हिन्दू समाज में शुभता के प्रतीक हैं। यही नहीं गणेश पूजन किए बिना कोई भी देवी-देवता, त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश, आदिशक्ति, परमपिता परमेश्वर की भक्ति-शक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। स्पष्ट है कि केवल गणेश जी पूजा मात्र से ही समस्त देवी-देवता, त्रिदेव, आदिशक्ति, परमपिता परमेश्वर प्रसन्न हो उठते हैं। गणेशजी को यह वरदान माता-पिता शिव-पार्वती की सेवा करने से प्राप्त हुआ। गणेशजी को प्रतिदिन स्नान के बाद उत्तर या पूर्व  दिशा की ओर मुंह करके एक बार जल अर्पित करना चाहिए।

संकट चतुर्थी व्रत क्यों करना चाहिए ?

वस्तुतः संकट चतुर्थी संतान की दीर्घायु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा है। इस दिन पूजा करने से संतान के ऊपर आने वाले सभी कष्ट शीघ्रातिशीघ्र दूर हो जाते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर न भीे भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर इस व्रत को किया था।

संकट चतुर्थी व्रत कब और कैसे करना चाहिए ?

इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय काल से ही करनी चाहिए। सूर्यास्त से पहले ही गणेश संकट चतुर्थी व्रत  कथा-पूजा होती है। पूजा में तिल का प्रयोग अनिवार्य है। तिल के साथ गुड़, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। इस दिन मूली भूलकर भी नहीं खानी चाहिए कहा जाता है कि मूली खाने धन -धान्य की हानि होती है। इस व्रत में चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही संकटहारी  गणेश एवं चतुर्थी माता को तिल, गुड़, मूली आदि से अर्घ्य देना चाहिए।

अर्घ्य देने के उपरांत ही व्रत समाप्त करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत का भी विधान है माताएं निर्जला व्रत अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए अवश्य ही करती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। गणेश जी को  दूर्वा तथा लड्डू अत्यंत प्रिय है अत: गणेश जी पूजा में दूर्वा और लड्डू जरूर चढ़ाना चाहिए।

संकट चतुर्थी व्रत कथा

इस व्रत की एक प्रचलित कथा है- सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार कुम्हार ने बर्तन बना कर आंवा लगाया, पर आंवा पका ही नहीं बर्तन कच्चे रह गए। इससे कुम्हार बहुत परेशान हो गया और बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक के पास जाकर पूछा तो उसने कहा कि इस संकट से बचने के लिए किसी एक बच्चे की बलि देना पड़ेगा। बलि के बाद तुम्हारे सभी संकट दूर हो जाएगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर संकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। परन्तु सौभाग्यवश बालक की माता ने उस दिन गणेशजी की पूजा की थी। बहुत खोजने के बाद भी जब पुत्र नहीं मिला तो गणेशजी से प्रार्थना की।

सुबह कुम्हार ने देखा कि आंवा तो पक गया, परन्तु बच्चा जीवित और सुरक्षित था। डर कर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार कर लिया। राजा ने माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणेश पूजा के बारे में बताया। राजा ने संकट चतुर्थी व्रत की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। इसी कारण  प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकटहारिणी माना जाता है और इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार के कष्ट शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं।

-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका भिलाई, शांति नगर, मोबाईल नं. 9827198828

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