1669 मे औरंगजेब के हाथों विध्वस्त हो जाने
के बाद 1775 तक काशी मे विश्वनाथजी का
मन्दिर ही ना रहा।
1775 मे अहिल्या बाई ने ज्ञानव्यापी मस्जिद
के बगल मे रहने वाले बहुत ही छोटे से मण्डप
मे एक छोटी सी रचना का निर्माण करवाया जिसे आजकल मन्दिर कहा जाता है।
1857 के सैन्य संग्राम मे मुसलमानों ने विश्वेश्वर
जी के इस छोटे से मन्दिर पर हरा झण्डा फहराने
की कोशिश की थी।
उससे अंग्रेजों को ही फायदा पहुंचा था।
अपनी हुकुमत को बनाये रखने के लिये अंग्रेजों
ने धार्मिक संतुलन का जो सुत्र अपनाया था,
उसी को अधिकार ग्रहण करने वाले भारत के राजकारण के मुखियाओं ने संविधान का पवित्र नियम सा बना डाला।
इससे मुसलमानों को यह तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिल गया कि इससे पहले अपने हाथों विध्वस्त किये गये हिन्दुओं के मन्दिरों के पवित्र स्थानों को वापस हिन्दुओं को नहीं लौटाने का
कानूनी हक तथा सविंधान का समर्थन उन्हे
प्राप्त हुआ है।
1803 मे लॉर्ड वेलेंशिया नाम के अंग्रेज अफसर
ने लिखा था " औरंगजेब की मस्जिद की ऊंची
मिनारों को देखने के बाद, मेरे मन मे एक हिन्दु
की भावना जगी।
मैने विचार किया की आंखों मे व्यथा भर देने
वाले इस झगडे को समाप्त करके इस पवित्र
नगर के इस स्थल को उसके पुराने मालिकों
के हाथों सौंप देना चाहिये।
( जार्ज वैंकाउट वेलेंशिया: Voyage and
Travels of Lord Valentia Pt. 1; P.90; London,1811)
मुसलमानों की हुकुमत समाप्त होने के बाद भी तीर्थक्षेत्रों की पौर-सभायें इस यात्रा शुल्क को
वसूल करती आ रही हैं।
विदेशी हुकुमतों के हाथों ढाये गये इस हीन
आचरण को समाप्त करने के बदले,उसको
जारी रखते हुये आने वाले स्वदेश के हुकुमत
परस्तों की विवेकहीनता के बारे मे क्या कहें ???
चित्र ज्ञानवापी मस्जिद में शिव मन्दिर का भग्नावशेष !!
- साभार
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