मित्रों, नमस्कार
'धाम्नाम्श्वेनसदा निरस्तकुहकम् सत्यम् परम् धीमही'' सत्य की कथा को संगीत की कथा बना डालने वालों ने तो अब सारी हदें पार करते हुए व्यासपीठ पर भांगड़ा करने लगे हैं, बेहद पीड़ा होती है ऐसे दृश्यों को देखकर ! कुछ दिनो पूर्व वृंदावन निवासी हमारे छोटे भाई आचार्य लवकुश शुक्ल ने एक वीडियो भेजा था, साथ ही उस वीडियो पर उन्होने कड़ी प्रतिक्रिया भी दी थी, और वृंदावन एवं मथुरा के विद्वानों द्वारा मुझसे भी प्रतिक्रिया मांगी गई थी! (प्रस्तुत है हमारी प्रतिक्रिया)
सभी विद्वदजनों/प.पू.संतजनों को आचार्य पण्डित विनोद चौबे की ओर से सादर प्रणाम !!
अस्तु!! श्रीमद्भागवत के संबंध में चर्चा तो मुझ जैसे जनसाधारण से संभव नहीं फिर भी प्रयास करुंगा, श्रीमद्भागवत महापुराण मे 18000 श्लोक एवं कुल अध्याय 335 और द्वादश स्कंध में 'सत्यं परम धीमही' का वेदांतीय आध्यात्मिक व्याख्या है, पंचम स्कंध का गद्य तो अद्भुत है जिसमे खगोल, भूगोल का सविशद वर्णन है ! जिसकी यदि मंचस्थ व्यासपीठ से वैशिष्ट्यता के साथ व्याख्या किया जाय तो निश्चित ही लोगों का इहलौकीक एवं पारलौकीक कल्याण होगा ! साथियों मैं (आचार्य पण्डित विनोद चौबे) 10 Feb 2002 को प्रथम बार भिलाई के वैशालीनगर स्थित 'पुराना शिव मंदिर' से श्रीमद्भागवत कथा करना आरंभ किया तबसे लगातार 2010 तक अनेक स्थलों पर कई श्रीमद्भागवत कथायें की ! आप लोगों की पीड़ा का मैं अनुभव कर पा रहा हुं, मैंने भी इस वीडियो को देखा, अन्तर्मन विंध गया, हृदय वीदिर्ण हुआ! परन्तु आजकल के युवा पीढ़ी के कथाओं से आध्यात्मिक व्याख्या तो लगभग शून्य हो चली है, और श्रीमद्भागवत कथा के नाम पर केवल मनोरंजन करने वाले नचनीया-गवनिया और फूहड़ डांसर करने वालों की मांग बढ़ी जिसका परिणाम ये हुआ की श्रीमद्भागवत कथा पीठ पर ही विगत दिनों एक बालिका का फुहड़ डांस वाला वीडियो वायरल हुआ था, जिसका वृंदावन के कई संतो और कई आध्यात्मिक कथावाचकों द्वारा किये जा रहे विरोध का मैं समर्थन करता हुं, वृंदावन के प्रतिष्ठित परम पूज्य संत श्री 'पागल बाबा' द्वारा ऐसे कथावाचकों पर 'संतसमूह' द्वारा रोक लगाने पर नहीं मानने पर 'कानून' अपने हाथ में लेने के बयान को भी हम सभी विद्वदजनों को शिरोधार्य व स्वीकार किया जाना चाहिये ! "
चिन्ताजनक पहलु ....
यहां तो कुछ ऐसे कथा वाचक हैं जो स्वयं का टेंट माईक और पूरी साज-सज्जा लेकर जाते हैं और 'शेरों-शायरियों' का उद्धरण दे कथा करते हैं उनको एक भी संस्कृत के श्लोक की व्याख्या तक नहीं आती ! यदि कथा श्रोताओं को वगैर व्यय किये 'शेरों शायरी' के साथ संगीतमय मनोरंजन हो जा रहा है तो आध्यात्मिक और संस्कृत श्लोकों के व्याख्या करने वाले महंगे कथावाचकों को भला कौन बुलाना चाहेगा ! कुछ कथावाचक तो ऐसे भी हैं जो अज्ञानतावश अपने ही पौराणिक संदर्भों, कथाओं, उपाख्यानों का मज़ाक उड़ाते रहते हैं ! कुछ कथावाचक केवल 'सूकरवत्' केवल उदरपोषण में लगे हैं कभी उन्होंने संस्कृत-साहित्य एवं शास्त्र, राष्ट्र व समाज के लिये कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिससे राष्ट्र और हिन्दुत्व के लिये लाभप्रद हो सके ! कुछ तो कल्कि भक्त संत भी हैं जो शेर-शायरी और कौव्वाली तो करते हैं परन्तु श्लोक बोलने तथा कृष्णकथा करने में शर्म आती है ऐसा ही एक संत है 'आचार्य प्रमोद कृष्णन' ऐसे लोगों से बचना होगा ! यह हमने यथार्थता को बयां किया ! अभी कुछ दिनों पूर्व परम पूज्य शंकाराचार्य स्वरुपानंद सरस्वतीजी ने 'ब्राह्मण शतपथ' का एक उदाहरण देते हुए महिला कथा वाचकों का विरोध कर रहे थे, अचानक महिला कथावाचकों की बढ़ती संख्या देखकर अचानक शंकराचार्य जी के विचार का प्रकटीकरण हुआ,यही पूर्व में किये होते तो शायद इस पर रोक लग भी सकती थी परन्तु अब तो बमुश्किल की शंकराचार्य जी के बातों को लोग माने, क्योंकि उनके बयान के बावजूद महिला कथावाचकों की व्यास गद्दी जमी हुई है!
पिबत भागवतम् रसमालयम् ...!
श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है। स्वयं भागवत में कहा गया है-
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥
श्रीमद्भागवत सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।)
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई, मोबाईल नं. 9827198828
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