ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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रविवार, 21 अक्तूबर 2012

अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे....

Pt.Vinod Choubey
छत्तीसगढ़ के भिलाई से प्रकाशित एकमात्र भारतीय धर्म-संस्कृति पर आधारित....राष्ट्र देवो भवः राष्ट्रे वयं जागृयामः का लक्ष्य ही भारत को विश्वमहाशक्ति और गुरु बना सकता है। ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका का ''दीप-पर्व स्पेशल'' अंक 2012 को आप नेट पर पढ़ें और अपने मित्रों को पढ़ाएं...।



अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे....

प्रिय पाठकों,
धन की प्राप्ति के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं किन्तु उनमें आस्था की दुनिया में धन की प्रतीक माँ लक्ष्मी को माना गया है और उनको प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्तम् का पाठ प्राय: हम सभी करते हैं। श्री सूक्तम में कहा गया है अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे.... अर्थात अलक्ष्मी अथवा अनावश्यक तौर पर आने वाला धन जिसको काला धन कहा जाता है उसका नाश करें और हमें आप स्वयं वरण करें। लेकिन इसके बावजूद हम लोग दिनरात उसी अलक्ष्मी (भ्रष्टाचार के द्वारा अर्जित धन) के पीछे दौड़ते रहते हैं, जो एक ना एक दिन पर्दाफाश होकर अपने हाथ से निकल जाता है, साथ ही प्रतिष्ठा भी गंवानी पड़ती है। हालांकि वास्तविक लक्ष्मी (अर्जित धन) से मनुष्य धर्म और धर्मं से आरोग्यता (सुख) और अंतत: त्रिलोक-विजयी होकर मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है। हम लोग इस सूक्त का पाठ करते हैं परन्तु यह भूल जाते हैं कि इस काले धन का माँ लक्ष्मी के नजर में भी कोई स्थान नहीं होता है।  माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो पहले अपने व्यापार, उद्योग, कर्मक्षेत्र को परिशोधन करने की आवश्यकता है।
यह अंक दीपोत्सव विशेषांक में समाज के अन्तगर्भित विचारों से भाग्य के प्रति किए गए छिद्रान्वेषण के वैज्ञानिकीय, सामाजिक, सामयिकी, ज्योतिषीय, दार्शनिक, तंत्र-मंत्र विज्ञान पर आधारित लेख सामग्री से परिपूर्ण यह पत्रिका आपको समर्पित है। चूंकि इसमें कर्म से भाग्य और भाग्य से सौभाग्य तथा लक्ष्मी की साधना का विशेष रूप से सम्पूर्ण पूजा विधान दिया गया है।
दीप दूसरों को प्रकाशित करता है किन्तु स्वयं को जलाकर अर्थात् अग्नि के ताप को स्वयं अंगीकार करते हुए दूसरों को प्रकाशित करता है। यह परोपकार का प्रतीक है जो मनुष्य परोपकाराय सतां विभूतय: के सूत्र को अपनाता है वही लक्ष्मीवान हो सकता है।
आजकल एक के बाद एक घोटाले, भ्रष्टाचार से अर्जित किया गये कालेधन से बने धनवान वास्तव में सबसे बड़े दरिद्र हैं क्योंकि विपन्नता छल और कपट से उत्पन्न होती है। जिस धन और जिस लक्ष्मी की परिकल्पना भारतीय शास्त्रों में की गई है वह धन परोपकार धन है इसलिए ऐसे परोपकारी सज्जनों को विभूति से परिभाषित किया गया अतएव परोपकाराय सताम् विभूतय:।
केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और तमाम अफसर यहाँ तक कि मध्यप्रदेश के एक अध्यापक के यहाँ करोड़ों का कालाधन मिलना अपने आप में सबसे बड़ी विपन्नता का परिचायक है क्योंकि धन के बाद धर्म का पायदान है और धर्म के बाद ही मनुष्य उस धन का सुख भोग पाता है अन्यथा कारागार में कारागार में जीवन यापन करने को विवश हो जाता है। इसीलिए कहा गया है- धनात् धर्मम् तत: सुखम्।
साथ ही मैं यह भी बताना चाहूँगा कि, जहाँ धर्म है वहीं विजय है चाहे वह राजनीतिक हो, सामाजिक हो, पारवारिक हो या युद्धभूमि हो या व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का द्वंद्व युद्ध हो।
यतो धर्मस्ततो जय:।
सभी देश वासियों को धनतेरस और दीपावली पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ महामाया लक्ष्मी से कामना करता हूं कि आपके जीवन में आरोग्य, सुख, समृद्धि, शांति का उल्लास भर दें।
ऋण रोगादि दारिद्वयं पाप क्षुदपमृत्यव:।
भय शोक मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥
श्रीर्वर्चस्वभायुषअण मारोग्यमा विधाच्छो भमानं महीयते।
धनम् धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शत संवत्सरं दीर्घमायुर आरोग्यमस्तु। शुभमस्तु। कल्याणमस्तु।
संपादक- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
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अब पुनश्च चलते चलते...
सभी देश वासियों को धनतेरस और दीपावली पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ महामाया लक्ष्मी से कामना करता हूं कि आपके जीवन में आरोग्य, सुख, समृद्धि, शांति का उल्लास भर दें।

  1. ऋण रोगादि दारिद्वयं पाप क्षुदपमृत्यव:।
  2. भय शोक मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥
  3. श्रीर्वर्चस्वभायुषअण मारोग्यमा विधाच्छो भमानं महीयते।
  4. धनम् धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शत संवत्सरं दीर्घमायुर आरोग्यमस्तु।
  5. शुभमस्तु। कल्याणमस्तु।
  6. संपादक- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

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