ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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रविवार, 20 नवंबर 2011

जीवन को संवारने के लिए संस्कृत के दुर्लभ लघु-सूक्त

जीवन को संवारने के लिए संस्कृत के दुर्लभ लघु-सूक्त
मित्रों मैं आज आप लोगों के सामने जो रखने जा रहा हुं वह जीवन के मर्म स्पर्शी हर पहलुओं पर एक नांव को खेने वाला पतवार का काम करेगा  अतः आप सभी से हमारा व्क्यक्तिगत तौर पर आपसे अनुरोध है कि इन लघु-सूक्तों में से कम से कम किन्हीं पांच सूक्त को अपने जीवन में जरूर उतारें ताकि समाज के हित में किये गये यह प्रयास सफल हो सके.
अनुरोध कर्ताः ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, 09827198828, भिलाई (छ.ग.)
पढ़े और मनन करें -
1. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
अर्थः जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता रमते हैं।

२ शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
अर्थः दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना उचित है।

३ आचार्य देवो भव।
अर्थः आचार्य को देवता मानो।

४ सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम् .।
अर्थः सन्तोष ही मनुष्य का श्रेष्ठ धन है।

५ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
हमारी माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है।

६ सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते।
अर्थः सभी गुण धन का आश्रय लेते हैं।

७ संघे शक्तिः कलौयुगे।
अर्थः कलियुग में संघ में ही शक्ति होती है।

८ शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।
अर्थः शरीर को स्वस्थ रखो क्यों कि यही धर्म का साधन है।

९ परोपकाराय सतां विभूतयः।
अर्थः सज्जनों के सभी कार्य परोपकार के लिये ही होते हैं।

१० उद्योगिनं पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मीः।
अर्थः लक्ष्मी सिंह के समान उद्योगी पुरुष के पास जाती है।

११ सत्यमेव जयते नानृतम्।
अर्थः सत्य की ही जीत होती है । झूट की नहीं।

१२ विद्या विहीनः पशुः।
अर्थःविद्याहीन व्यक्ति पशु है।

१३ आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः।
अर्थःआलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।

१४ पुराणमित्येव न साधु सर्वम्।
सब पुराना ही अच्छा नहीं होता।

१५ बुभूक्षितः किं न करोति पापम्।
अर्थःभूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं करता।
16.अतिपरिचयादवज्ञा ।
अर्थः अधिक परिचय से अवज्ञा होने लगती है।

17.अतिलोभो विनाशाय ।
अर्थः अधिक लालच विनाश को प्राप्त कराता है।

18.अतितृष्णा न कर्तव्या ।

अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
अर्थः अति करने से सर्वत्र बचना चाहिए।

19.अधिकस्याधिकं फलम् ।
अर्थः अधिक का फल भी अधिक होता है।

20.अनतिक्रमणीया हि नियतिः ।

अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नाः ।
अर्थः जीवन में , समय कम है और विघ्न बहुत से हैं ।

21.अलभ्यो लाभः ।

अव्यापारेषु व्यापारः ।

अहिंसा परमो धर्मः ।

अभद्रं भद्रं वा विधिलिखितमुन्मूलयति कः ।

अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः ।
अर्थः धन ही इस संसार में आदमी का बन्धु है।

22.आकृतिर्बकस्य दृष्टिस्तु काकस्य ।
अर्थः बगुले की आकृति और कौए की दृष्टि.

23.आये दुःखं व्यये दुःखं धिगर्थाः कष्टसंश्रयाः ।
अर्थः कष्टो के आश्रय धन को धिक्कार है, जिसके आने से भी धुख मिलता है और जाने से भी .

24.इक्षुः मधुरोऽपि समूलं न भक्ष्यः ।

इतः कूपः ततस्तटी ।
अर्थः इधर कुँवा, उधर खाई.

25.इतो भ्रष्टस्ततो नष्टः।
अर्थः इधर जाने से भ्रष्ट होंगे और उधर जाने से नष्ट.


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