Mithilesh Thakur (Ptrakar), Bhilai |
इसी का नाम जिंदगी है.......
कहते है मेहनत लगन और कुछ कर गुजरने का जुनून हो
तो कोई भी राह कठिन नहीं होती है । ऐसा ही
भिलाई का एक कलाकार है ओंकार दास मानिकपुरी जिसके
कुछ कर गुजरने के जूनून ने उसे आज एक स्टार बना दिया
है ।
सीधा सादा सा किरदार निभाकर लाखों लोगों का दिल जीत लेने वाले
‘नत्था’ को भला कौन भूल सकता है । बगैर कुछ कहे जैसे
नत्था याने ओंकार दास मानिकपुरी ने फिल्म पीपली लाईव में एक किसान
की जीवनगाथा बखूबीं बयाॅ कर दी। बाॅलीवुड में धूम मचाने
वाली फिल्म पीपली लाईव के नत्था ने जैसे एक किसान की जिंदगी में
मचे उथल पुथल को जीवंत रूप प्रदान कर दिया । यही वजह है कि इस फिल्म
ने हिन्दी सिनेमा जगत में तो धूम मचाई ही साथ ही बडे बैनर की
फिल्मों को भी खुली चुनौती दे दी ।
फिल्म पीपली लाईव की सफलता के लिये जितना श्रेय फिल्म की निर्देषिका
अनुशा रिजवी और निर्माता आमिर खान को जाता है उतना ही श्रेय फिल्म
में प्रमुख किरदार निभाने वाले नत्था याने ओंकार दास मानिकपुरी
को जाता है । जिसने एक सीधे सादे से किसान के रोल को अदा कर सचमुच इस
फिल्म में जान डाल दी ।
इस फिल्म में जितनी कठिन नत्था की जिंदगी दिखाई गयी थी उससे
जुदा ओंकारदास मानिकपुरी की वास्तविक जिंदगी नहीं है । आर्थिक रूप
से बेहद कमजोर परिवार मंे जन्में ओंकारदास अपने परिवार की इसी माली
हालत के कारण पढ़ाई लिखाई नहीं कर पाऐ और अपने परिवार का पेट
पालने के लिये इन्हें दर दर की ठोंकरें तक खानी पड़ीं। दो जून की
रोटी के तलाष में वर्श 1988 में ओंकार दास की मुलाकात इन्हीं
के गाॅव के मुछक्कड से हुई. और इनके साथ मिलकर ओंकार अपने
जमाने के प्रसिद्ध नाचा कलाकार बैतर राम साहू के कार्यक्रम को देखने जाने
लगा । इस
कार्यक्रम ने ओंकार को इतना प्रभावित किया कि ओंकार ने बस उसी
समय ठान लिया कि अब उसे बनना है तो सिर्फ कलाकार । बैतर राम साहू के
कार्यक्रम से जैसे ओंकार दास का कला जीवन आरंभ हो गया । भाई
अमर दास मानिकपुरी के सहयोग से ओंकार दास ने भजन एवं गजल गायक नवल
दास मानिकपुरी के कार्यक्रम से अपना कला जीवन आरंभ किया तो जैसे एक
दिषा मिल गयी और फिर ओंकार ने निर्देषक तोरण ताम्रकार, झुमुक
लाल देवांगन जैसे प्रसिद्ध लोगों के साथ जुडकर स्वयं को निखारने का
प्रयास किया । लेकिन नष्त्य कला में षायद ओंकार दास की जिंदगी नहीं
लिखी थी । साथ में काम करने वाली महिला कलाकारों के चिढाने से
ओंकार दास ने नष्त्य कला से तौबा करने का मन बना लिया । और अपने
जमाने के प्रसिद्ध काॅमेडियन गौकरण साहू व हेमंत साहू से जुडकर ‘ननपन
के बिहाव’ नामक नाटक में कुली का रोल कर अपने अभिनय की षुरूवात की
।
ननपन का बिहाव नाटक अपने समय में इतना चर्चित हुआ कि प्रदेष के
विभिन्न हिस्सों में इसके कई प्रदर्षन हुऐ । इससे जुडकर ओंकार
दास अपने आप को निखारते रहा । वर्श 1999 में ओंकार दास मानिकपुरी
की मुलाकात विभाश उपाध्याय से हुई जिनके साथ जुडकर ओंकार ने
साक्षरता मिषन के लिये नवा किसान नामक नाटक की करीब 150 स्थानों
में प्रसतुति दी । जिला साक्षरता भवन दुर्ग में जब इसके समापन का दिन
आया तब ओंकार दास की प्रस्तुति को मुख्य अतिथी के रूप में पधारे प्रख्यात
निर्देषक हबीब तनवीर ने भरपूर पसंद किया और अपने नाटक सुनबहरी
में ओंकार को स्थान दिया. इस नाटक ने दूरदर्षन में जमकर धूम
मचाई लेकिन जब यह समाप्त हो गया तब फिर ओंकार को भविश्य की चिंता
सताने लगी लेकिन नाटय निर्देषक हबीब तनवीर के चहेते कलाकार बन चुके
ओंकार को भोपाल में स्थित नया थियेटर से जुडने का आॅफर प्राप्त
हुआ । वर्श 2000 से ओंकार दास हबीब तनवीर के भोपाल में स्थित
‘नया थियेटर’ से जुड़ गए । इसी बीच वर्श 2008 में पीपली लाईव की
निर्देषिका आयुशी रिजवी नया थियेटर पहुॅची जिनके कलाकारों की
प्रस्तुति देख वे काफी प्रभावित हुईं और इन्हीं में से एक कलाकार
को अपनी फिल्म में लेने का फैसला लेते हुऐ आॅडिषन रखा ।
ओंकार दास के लिये ये आॅडिषन भी काफी रोचक रहा । भोपाल में
दो दिन हुऐ आॅडिषन के पहले दिन ओंकार दास का नम्बर ही नहीं
आया फिर पुनः जब दूसरे दिन आॅडिषन हुआ तो वो भी काफी रोचक
रहा । ओंकार ने ये आॅडिषन फिल्म के एक छोटे से रोल मछुआ के
लिये दिया था लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजुर था । ओंकार की
किस्मत ने ऐसा खेल रचा कि फिल्म के निर्माता आमिर खान ने ओंकार को
‘नत्था’ के रोल के लिये चुन लिया जो ओंकार के जीवन के लिये किसी
अचंभे से कम नहीं था ।
देष के एक छोटे से राज्य छत्तीसगढ के छोटे छोटे स्टेजों से
निकलकर मुबंई की चकाचैंध के बीच ओंकार दास को अभिनय
कर सबका दिल जीतना किसी चुनौती से कम नहीं था । पहली बार भारी
भरकम सैट और कैमरे के बीच आऐ ओंकार के पसीने छूट गये लेकिन
सभी के प्रोत्साहन से नत्था का किरदार जीवंत हो उठा । नत्था
ने फिल्म पीपली लाईव में ऐसी धूम मचाई कि अंतर्राश्टीय स्तर में
भी ये गूॅज सुनाई दी । अब भारत में इस फिल्म की जर्बदस्त सफलता
के बाद अंतर्राश्टीय स्तर पर इसे आॅस्कर एवार्ड के लिये चुना गया ।
हालाकि आॅस्कर अवार्ड इस फिल्म को नहीं मिल सका लेकिन वहाॅ तक
पहुॅचना ही फिल्म और नत्था के लिए काफी था. ओंकार दास इसे
जिंदगी का सबसे बडा उपहार मानते है । प्रदेष की तंग गलियों से निकलकर
अंतर्राश्टीय स्तर पर धूम मचाने वाले कलाकार ओंकार दास मानिकपुरी आज
अपनी सफलता से भारी खुष हैं और वे फिल्मों के साथ साथ कभी
भी थियेटर नहीं छोडने की बात कहते हैं । सचमुच किसी ने कहा
कि यदि सच्चे दिल से कोई भी कार्य किया जाऐ तो सफलता निष्चित होती है
। इस बात को चरित्रार्थ कर दिखाया है ओंकार दास मानिकपुरी नेकृजो
आज हर किसी कलाकार के लिये प्रेरणास्त्रोत बन गये हैं ।
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मिथलेष ठाकुर
9827160789
कहते है मेहनत लगन और कुछ कर गुजरने का जुनून हो
तो कोई भी राह कठिन नहीं होती है । ऐसा ही
भिलाई का एक कलाकार है ओंकार दास मानिकपुरी जिसके
कुछ कर गुजरने के जूनून ने उसे आज एक स्टार बना दिया
है ।
सीधा सादा सा किरदार निभाकर लाखों लोगों का दिल जीत लेने वाले
‘नत्था’ को भला कौन भूल सकता है । बगैर कुछ कहे जैसे
नत्था याने ओंकार दास मानिकपुरी ने फिल्म पीपली लाईव में एक किसान
की जीवनगाथा बखूबीं बयाॅ कर दी। बाॅलीवुड में धूम मचाने
वाली फिल्म पीपली लाईव के नत्था ने जैसे एक किसान की जिंदगी में
मचे उथल पुथल को जीवंत रूप प्रदान कर दिया । यही वजह है कि इस फिल्म
ने हिन्दी सिनेमा जगत में तो धूम मचाई ही साथ ही बडे बैनर की
फिल्मों को भी खुली चुनौती दे दी ।
फिल्म पीपली लाईव की सफलता के लिये जितना श्रेय फिल्म की निर्देषिका
अनुशा रिजवी और निर्माता आमिर खान को जाता है उतना ही श्रेय फिल्म
में प्रमुख किरदार निभाने वाले नत्था याने ओंकार दास मानिकपुरी
को जाता है । जिसने एक सीधे सादे से किसान के रोल को अदा कर सचमुच इस
फिल्म में जान डाल दी ।
इस फिल्म में जितनी कठिन नत्था की जिंदगी दिखाई गयी थी उससे
जुदा ओंकारदास मानिकपुरी की वास्तविक जिंदगी नहीं है । आर्थिक रूप
से बेहद कमजोर परिवार मंे जन्में ओंकारदास अपने परिवार की इसी माली
हालत के कारण पढ़ाई लिखाई नहीं कर पाऐ और अपने परिवार का पेट
पालने के लिये इन्हें दर दर की ठोंकरें तक खानी पड़ीं। दो जून की
रोटी के तलाष में वर्श 1988 में ओंकार दास की मुलाकात इन्हीं
के गाॅव के मुछक्कड से हुई. और इनके साथ मिलकर ओंकार अपने
जमाने के प्रसिद्ध नाचा कलाकार बैतर राम साहू के कार्यक्रम को देखने जाने
लगा । इस
कार्यक्रम ने ओंकार को इतना प्रभावित किया कि ओंकार ने बस उसी
समय ठान लिया कि अब उसे बनना है तो सिर्फ कलाकार । बैतर राम साहू के
कार्यक्रम से जैसे ओंकार दास का कला जीवन आरंभ हो गया । भाई
अमर दास मानिकपुरी के सहयोग से ओंकार दास ने भजन एवं गजल गायक नवल
दास मानिकपुरी के कार्यक्रम से अपना कला जीवन आरंभ किया तो जैसे एक
दिषा मिल गयी और फिर ओंकार ने निर्देषक तोरण ताम्रकार, झुमुक
लाल देवांगन जैसे प्रसिद्ध लोगों के साथ जुडकर स्वयं को निखारने का
प्रयास किया । लेकिन नष्त्य कला में षायद ओंकार दास की जिंदगी नहीं
लिखी थी । साथ में काम करने वाली महिला कलाकारों के चिढाने से
ओंकार दास ने नष्त्य कला से तौबा करने का मन बना लिया । और अपने
जमाने के प्रसिद्ध काॅमेडियन गौकरण साहू व हेमंत साहू से जुडकर ‘ननपन
के बिहाव’ नामक नाटक में कुली का रोल कर अपने अभिनय की षुरूवात की
।
ननपन का बिहाव नाटक अपने समय में इतना चर्चित हुआ कि प्रदेष के
विभिन्न हिस्सों में इसके कई प्रदर्षन हुऐ । इससे जुडकर ओंकार
दास अपने आप को निखारते रहा । वर्श 1999 में ओंकार दास मानिकपुरी
की मुलाकात विभाश उपाध्याय से हुई जिनके साथ जुडकर ओंकार ने
साक्षरता मिषन के लिये नवा किसान नामक नाटक की करीब 150 स्थानों
में प्रसतुति दी । जिला साक्षरता भवन दुर्ग में जब इसके समापन का दिन
आया तब ओंकार दास की प्रस्तुति को मुख्य अतिथी के रूप में पधारे प्रख्यात
निर्देषक हबीब तनवीर ने भरपूर पसंद किया और अपने नाटक सुनबहरी
में ओंकार को स्थान दिया. इस नाटक ने दूरदर्षन में जमकर धूम
मचाई लेकिन जब यह समाप्त हो गया तब फिर ओंकार को भविश्य की चिंता
सताने लगी लेकिन नाटय निर्देषक हबीब तनवीर के चहेते कलाकार बन चुके
ओंकार को भोपाल में स्थित नया थियेटर से जुडने का आॅफर प्राप्त
हुआ । वर्श 2000 से ओंकार दास हबीब तनवीर के भोपाल में स्थित
‘नया थियेटर’ से जुड़ गए । इसी बीच वर्श 2008 में पीपली लाईव की
निर्देषिका आयुशी रिजवी नया थियेटर पहुॅची जिनके कलाकारों की
प्रस्तुति देख वे काफी प्रभावित हुईं और इन्हीं में से एक कलाकार
को अपनी फिल्म में लेने का फैसला लेते हुऐ आॅडिषन रखा ।
ओंकार दास के लिये ये आॅडिषन भी काफी रोचक रहा । भोपाल में
दो दिन हुऐ आॅडिषन के पहले दिन ओंकार दास का नम्बर ही नहीं
आया फिर पुनः जब दूसरे दिन आॅडिषन हुआ तो वो भी काफी रोचक
रहा । ओंकार ने ये आॅडिषन फिल्म के एक छोटे से रोल मछुआ के
लिये दिया था लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजुर था । ओंकार की
किस्मत ने ऐसा खेल रचा कि फिल्म के निर्माता आमिर खान ने ओंकार को
‘नत्था’ के रोल के लिये चुन लिया जो ओंकार के जीवन के लिये किसी
अचंभे से कम नहीं था ।
देष के एक छोटे से राज्य छत्तीसगढ के छोटे छोटे स्टेजों से
निकलकर मुबंई की चकाचैंध के बीच ओंकार दास को अभिनय
कर सबका दिल जीतना किसी चुनौती से कम नहीं था । पहली बार भारी
भरकम सैट और कैमरे के बीच आऐ ओंकार के पसीने छूट गये लेकिन
सभी के प्रोत्साहन से नत्था का किरदार जीवंत हो उठा । नत्था
ने फिल्म पीपली लाईव में ऐसी धूम मचाई कि अंतर्राश्टीय स्तर में
भी ये गूॅज सुनाई दी । अब भारत में इस फिल्म की जर्बदस्त सफलता
के बाद अंतर्राश्टीय स्तर पर इसे आॅस्कर एवार्ड के लिये चुना गया ।
हालाकि आॅस्कर अवार्ड इस फिल्म को नहीं मिल सका लेकिन वहाॅ तक
पहुॅचना ही फिल्म और नत्था के लिए काफी था. ओंकार दास इसे
जिंदगी का सबसे बडा उपहार मानते है । प्रदेष की तंग गलियों से निकलकर
अंतर्राश्टीय स्तर पर धूम मचाने वाले कलाकार ओंकार दास मानिकपुरी आज
अपनी सफलता से भारी खुष हैं और वे फिल्मों के साथ साथ कभी
भी थियेटर नहीं छोडने की बात कहते हैं । सचमुच किसी ने कहा
कि यदि सच्चे दिल से कोई भी कार्य किया जाऐ तो सफलता निष्चित होती है
। इस बात को चरित्रार्थ कर दिखाया है ओंकार दास मानिकपुरी नेकृजो
आज हर किसी कलाकार के लिये प्रेरणास्त्रोत बन गये हैं ।
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मिथलेष ठाकुर
9827160789
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